अग्नि मुद्रा : कैसा भी मोटापा हो दूर करेगी यह मुद्रा | Agni mudra / Surya Mudra for weight loss

Last Updated on February 2, 2022 by admin

अग्नि मुद्रा जिसे सूर्य मुद्रा भी कहते है, के नियमित अभ्यास से व्यक्ति को गर्मी और प्रकाश प्राप्त होता है। इस मुद्रा को पृथ्वी शामक मुद्रा भी कहते हैं। यह मुद्रा शरीर में अग्नि तत्व को बढ़ाती है और पृथ्वी तत्व को कम करती है। अन्य सभी योग मुद्राओं की तरह ही यह मुद्रा भी बहुत अधिक प्रभावशाली योग क्रिया है। इसके नियमित अभ्यास से अनेकों ऐसी बिमारियों का उपचार संभव है, जिनका उपचार आधुनिक चिकित्सा पद्धति में सम्भव ही नहीं है। यहाँ पर, अग्नि मुद्रा( Agni mudra ) कैसे बनती है और उससे होने वाले अन्य फायदे क्या-क्या हैं, उनकी जानकारी दी गयी है।

मुद्रा बनाने का तरीका :

सूर्य की अँगुली को हथेली की ओर मोड़कर उसे अँगूठे से दबाएँ। बाकी बची तीनों अँगुलियों को सीधा रखें। इसे सूर्य मुद्रा या अग्नि मुद्रा ( Agni mudra ) कहते हैं।

अग्नि मुद्रा (Agni mudra) के समय बरतें सावधानी :

जिन लोगों में पित्त की अधिकता अर्थात गले में जलन, अक्सर एसिडिटी होना, चिड़चिड़ा होना, बात-बात पर गुस्सा होना या त्वचा पर चकत्ते होना आदि रहते हैं उसे इस मुद्रा का अभ्यास ज्यादा देर नहीं करना चाहिए। इस मुद्रा का ज्यादा अभ्यास शरीर में अधिक गर्मी बढ़ा देता है इसलिए गर्मी के समय में इस मुद्रा अभ्यास कम करें।

अवधि :

हर दिन 30 से 45 मिनट, या तो एक बार में या तीन बार में 10 से 15 मिनट के लिए।

अग्नि मुद्रा या सूर्य मुद्रा (Surya Mudra) के फायदे :

अग्निमुद्रा को करने से बलगम, खांसी, पुराना जुकाम, नजला, सांस का रोग, ज्यादा ठंड लगना तथा निमोनिया आदि रोग दूर हो जाते हैं तथा इससे शरीर में अग्नि की मात्रा तेज हो जाती है।

अग्नि मुद्रा के नियमित अभ्यास से निम्नलिखित परेशानियाँ दूर होती हैं-

  • शरीर का तापमान बहुत कम होना,
  • त्वचा, शरीर, अंग, हाथ, पैर, आदि ठंडे होना,
  • सर्दी सहन न होना या शर्दी में काँपने लगना,
  • थायराइड ग्रंथि के कम सक्रिय होने के कारण उपापचय (मेटाबोलिज्म) धीमा हो जाना,
  • मोटापा, धीरे-धीरे वजन बढ़ना,
  • भूख की कमी, अपच, कब्ज,
  • पसीना न निकलना या बहुत कम निकलना,
  • नज़र कमजोर होना, अन्य आँखों की समस्याएँ, विशेष रूप से मोतियाबिंद।

सूर्य मुद्रा, पेट की अग्नि में वृद्धि करती है, इसलिए यह मुद्रा उन लोगों के लिए वरदान है जिनका उपापचय कमजोर होता है या आँखों की दृष्टि कमजोर होती है। पित्त की कमी को दूर करने के लिए भी यह मुद्रा बहुत कारगर है।

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