गोभक्त रामसिंह (प्रेरक कहानी) | Prerak Hindi Kahani

Last Updated on July 22, 2019 by admin

हिंदी कहानी : Hindi Kahani

सबलगढ़ तहसीलके फाटकपर रहीम सिपाही बैठा था। तबतक भीतरसे रामसिंह सिपाही एक रोटी और उसीपर कुछ खीर रखे बाहर निकला।
रहीम-कहो रामसिंह ! यह रोटी और खीर कहाँ लिये जा रहे हो?
रामसिंह-यह ‘अग्रासन’ है।
रहीम-इसके क्या मानी?
रामसिंह-हमलोग जब रोटी बनाते हैं, तब पहली रोटी गोमाता के लिये ही बनाते हैं। उसको ‘अग्रासन’ कहा जाता है।
रहीम-तुम रोटी खा चुके?
रामसिंह-पहले गो-माताको खिला लूंगा, तब कहीं मैं चौके में पैर रखेंगा।
रहीम-तुम गायको माता मानते हो?
रामसिंह-माता ! माता ही नहीं, जगन्माता ! तुम्हारे मुसलमान धर्ममें भी कहा है कि यह पृथ्वी गाय के सींगपर रखी है।
रहीम-तुम्हारा इष्टदेव कौन है? तुम किसकी पूजा करते हो?
रामसिंह–मेरी इष्टदेवी गाय है। मैं गायकी ही पूजा करता हूँ। बैतरनीकी नाव वही है।
रहीम-आज तुम्हारी गोभक्ति देखी जायगी !
रामसिंह–कैसे?
रहीम-तुम जानते हो कि आज ईद है।
रामसिंह –जानता हूँ, फिर ?
रहीम-यह जानते हो कि इस समय तहसीलदार, नायब तहसीलदार, थानेदार, दीवान और कई सिपाही मुसलमान हैं।
रामसिंह-यह भी जानता हूँ। फिर?
रहीम-इस तहसीलके अहाते में ही थाना भी है, यह मालूम है?
रामसिंह –मालूम है। फिर?
रहीम-तहसील और थानेके बीचमें जो आँगन है, उसीमें गोकुशी की जायगी।
रामसिंह-किस समय?
रहीम-रातके बारह बजे
रामसिंह-ग्यारह बजेसे मेरा पहरा है।
रहीम-तब तो तुम अपनी आँखोंसे, अपनी गोमाताको जबह होते देखोगे।
रामसिंह-यह बात सब अहलकारोंने पास कर दी है कि तहसीलमें गोकुशी हो?
रहीम-जी हाँ। ठाकुर साहब! सब अफसर मुसलमान हैं। यह बात तय हो चुकी है।
रामसिंह-मेरे सामने गोकुशी हो, यह बात असम्भव है। नामुमकिन है रहीम!
रहीम-मैं खुद अपने हाथसे गायके गलेपर छुरी चलाऊँगा।
रामसिंह-मगर सिरपर कफन बाँधकर आना।
रहीम-देखूंगा कि तुम क्या करते हो?
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रातके ग्यारह बजे रामसिंह सिपाही वरदी पहनकर और हाथ में भरी हुई दुनाली लेकर खजाने का पहरा देने लगा। वहाँपर बारह बंदूकें और भी रखी थीं। पाँच गारद के सिपाहियों की और सात थाने के सिपाहियों की। सभी भरी हुई थीं और दुनाली थीं।
आधा घंटेके बाद एक जवान और सुन्दर गाय को लेकर रहीम
आया। उसने आँगनके एक खुटेपर गाय बाँध दी और छुरी की धार देखने लगा। | आँगनभर में कुर्सियाँ बिछायी गयीं। तहसीलदार, नायब तहसीलदार, थानेदार और दीवान जी आकर उन कुर्सियों पर बैठ गये। शहर के कुछ धनी, मानी, रईस मुसलमान भी आकर बैठ गये। सब लोग चौदह की संख्यामें थे। सात मुसलमान सिपाही पीछे खड़े थे। एक मौलवीने उठकर जबह की दुआ पढ़ी। छुरी लेकर रहीम आगे बढ़ा।
रामसिंह-खबरदार रहीम! खबरदार !
रहीम-क्या बकते हो?
रामसिंह–चने के धोखे मिर्च मत चबाना।
रहीम-चुप रहो।
रामसिंह-तहसीलदार साहब ! यह तहसील केवल मुसलमानों की तहसील नहीं है। इस तहसीलमें हिंदूलोगोंका भी साझा है।
तहसीलदार- इसका मतलब?
रामसिंह- मतलब यह कि तहसील के भीतर गोकुशी नहीं हो सकती।
तहसीलदार –मेरा हुक्म है।
रामसिंह–आपका हुक्म कोई चीज नहीं। कलक्टरका हुक्म दिखलाइये।
तहसीलदार-अपनी तहसील का मैं ही कलक्टर हैं। तहसील सबलगढ़का मैं जार्ज पंचम हूँ। समझे?
रामसिंह–चाहे आप साक्षात् खुदा ही क्यों न हों, पर मेरे सामने ऐसा हरगिज नहीं होगा।
थानेदार–होगा, होगा और बीच खेत होगा। हथियार रख दो और निकल जाओ तहसीलके बाहर।
रामसिंह–मेरा हथियार कौन छीन सकता है?
थानेदार—मैं!
रामसिंह–आइये! छीनिये आकर!
दीवान-क्या तुम्हारी आफत आ गयी है रामसिंह ! अपने अफसरसे ऐसी नाजायज गुफ्तगू!
रामसिंह–अफसर! किस बेवकूफने इनको अफसर बनाया? पब्लिकका दिल दुखाना अफसरका काम नहीं है।
थानेदार-रहीम ! अपना काम करो ! काफिर को बकने दो। रहीमने गायके पास जाकर ज्यों ही छुरा ऊँचा किया, त्यों ही रामसिंहने दन से गोली चला दी, रहीम मरकर गिर पड़ा।
थानेदार-पकड़ो, पकड़ो!
रामसिंहने दूसरी गोली थानेदारकी छातीपर रसीद की। ‘हाय’ कहकर थानेदार भी वहीं ढेर हो गये।
तहसीलदार उठकर भागने लगे। रामसिंह ने खाली बंदूक वहीं डाल दी और लपककर दूसरी भरी दुनाली उठा ली। रामसिंह–कहाँ चले जार्ज पंचम ! जरा अपनी कलक्टरीकी चाशनी तो चख लो।
इतना कहकर रामसिंहने घोड़ा दबाया। तहसीलदारकी खोपड़ी में गोली लगी और वे वहीं ढेर हो गये।
उसके बाद भगदड़ शुरू हुई। मगर रामसिंह को विराम कहाँ, तडातड़ गोली चल रही थी, निशाना अचूक था। ग्यारह आदमी जान से मारे गये।
इसके बाद रामसिंहने गोमाताके चरण छुए और रस्सी खोल दी, वह बाहर भाग गयी। तब रामसिंहने एक गोली अपनी छातीमें मार ली और मरकर वहीं गिर पड़े।
सबेरा हुआ। सारा समाचार शहरमें फैल गया। हिंदू पब्लिकने रामसिंहकी अरथी बनायी। एक सेठजीने लाशपर पाँच सौ रुपये का दुशाला डाल दिया। चार साधुओंने लाशमें कंधा लगाया। शहरके हलवाइयों ने बतासे जमा किये। सराफों ने पैसे जमा किये। धनिकोंने पैसे और रेजगारी इकट्ठी की। माली लोगोंने फूल इकड़े किये। जब लाश चली तो आगे-आगे वही कुर्बानी वाली गाय सजाकर चलायी गयी; पीछे शंख, घंटा और घड़ियालका नाद होने लगा। रास्ते में फूल बतासे, पैसा और रेजगारी बरसायी जाने लगी। विराट् जुलूस निकाला गया। कई एक सहृदय मुसलमान और ईसाई सज्जन भी साथ थे।

श्मशानपर जब लाश उतारी गयी, तब जनाब मुहम्मदअली सौदागरने लाशपर गुलाबके फूल चढ़ाकर कहा–’हजरत मुहम्मद साहबने शरीफ में लिखा है कि उन जानवरों को हरगिज न मारा जाय जो पब्लिकको आराम पहुँचाते हैं।’ बादशाह अकबर और बादशाह जहाँगीरने कानून बनाकर गोकुशी बंद कर दी थी। अफसोस है कि हमारे तअस्सुबी मुसलमान, सिर्फ हिंदू भाइयोंका दिल दुखानेकी गरज से गोकुशी करते हैं। मैं उनपर लानत भेजता हूँ।

पादरी यंग साहब ईसाई थे। उन्होंने कहा–’सरकार अगर गोकुशी कराती होती तो विलायत में खूब गोकुशी की जाती। मगर वहाँ इसका नामोनिशान तक नहीं है। विलायत के सभी अंग्रेज किसान गायों को पालते हैं। अफसोस है कि सिर्फ चमड़ेके व्यापारने गोकुशीका बुरा काम जारी कर रखा है। भाई रामसिंहकी बहादुरी की मैं तारीफ करता हैं। आप साहबानसे प्रार्थना करता हूँ कि ठाकुर रामसिंहके बाल बच्चों के वास्ते कुछ चंदा किया जाय।’ उसी समय पंद्रह हजारका चंदा लिखा गया। उसमें सहृदय जनाब मुहम्मदअली साहबने तीन हजार और पादरी साहबने एक हजार रुपये दिये। यह घटना अक्षरश: सत्य है। केवल नाम बदल दिये गये हैं।

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