चन्द्रगुप्त | सुखी होने का मार्ग ( प्रेरक प्रसंग )

Last Updated on July 24, 2019 by admin

चन्द्रगुप्त ( Chandragupta )व चाणक्य (chanakya)के बीच राज्याभिषेक से पहले संवाद :-

चाणक्य : ये क्या सुन रहा हूँ मैं चन्द्रगुप्त

चन्द्रगुप्त : आपने ठीक ही सुना है आचार्य, नहीं बनना मुझे मगद का सम्राट

चाणक्य : क्यों !

चन्द्रगुप्त : जब से यहाँ आया हूँ अपनी इच्छा से सांस तक नहीं ले सका हूँ।

आपने मुझे एक स्वपन दिया था चक्रवती सम्राट का, चक्रवती साम्राज्य का लेकिन यहाँ आने के बाद पता चला के विष्णुगुप्त के लिए सम्राट एक वेतन लेने वाले नौकर से बढकर कुछ नहीं।

चाणक्य : तूने ठीक ही सुना है

चन्द्रगुप्त। मेरे लिए सम्राट एक नौकर से बढकर कुछ नहीं।
चन्द्रगुप्त : तो रखिये अपना साम्राज्य मुझे नहीं बनना सम्राट अगर यही सुख है सम्राट बनने का।

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चाणक्य : चन्द्रगुप्त! तुझे सुखी होना है।

चन्द्रगुप्त :क्या सम्राटों को सुखी नहीं होना चाहिए ।

चाणक्य : मूर्ख! जब तक तेरे साम्रज्य में एक भी व्यक्ति भूखा है तो क्या तू सुखी रह पायेगा। सुख शिक्षक और सम्राटों के भाग्य में नहीं होता। भूल गया तू चन्द्रगुप्त मैंने तुझे साम्राज्य देने का वचन दिया था सुख देने का नहीं।

भूल गया तू के प्रजा के हित में ही राजा का हित है। प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है, सुख चाहता है तो पहले प्रजा को सुखी बना। तूने साम्राज्य अर्जित
किया है सुख अर्जित करने का मार्ग तेरे आगे खुला है।

=>चन्द्रगुप्त अपने जीवन के अन्तकाल में 40 दिनों तक भूखा रहता है क्योंकि उस समय भयंकर अकाल पडा था।
इसे कहते है राजधर्म / राष्ट्र्धर्म

 

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