चित्रक के फायदे, नुकसान, गुण और उपयोग – Chitrak Benefits and Side Effects in Hindi

Last Updated on January 28, 2023 by admin

चित्रक क्या है ? : chitrak in hindi

सफ़ेद चित्रक सम्पूर्ण भारत वर्ष में पैदा होती है। कहीं कहीं इसकी खेती भी की जाती है। यह बंगाल, उत्तर प्रदेश, दक्षिण भारत, श्री लंका में अधिक होती है। यह कई वर्ष जीने वाली, हमेशा हरी रहने वाली 3 से 6 फीट ऊंचाई वाली गुल्म जाती की वनस्पति है। इसका तना बहुत कम होता है। और जड़ के सिर पर से ही पतली पतली कई डालियां निकलती हैं जो चिकनी हरे रंग की होती हैं। इसके पत्ते 3 इंच लम्बे डेढ़ इंच चौड़े अखण्ड, लम्बाई में गोल हरे रंग के होते है जो आगे की ओर कुछ मोटे होते हैं। 

फूल सफ़ेद रंग के गंधहीन होते है जो शाखायुक्त पूष्प दण्ड के ऊपरी भाग पर आधा से पौन इंच व्यास के गुच्छों के रूप में लगे रहते हैं। इसके बाहरी कोष में चिपचिपी ग्रंथियां सवृत्त होती हैं। फल यव के आकार के लम्बे गोल होते हैं जिसमें एक बीज होता है। इसकी जड़ अंगुली की तरह मोटी है जो सूखने पर तोड़ने पर तत्काल टूटने वाली होती है। इसकी जड़ का स्वाद तीक्ष्ण, कड़वा होता है और इससे एक विचित्र, अच्छी नहीं लगने वाली गंध निकलती है। इसकी जड़ की छाल पर छोटे . छोटे गांठदार उभार होते हैं। सितम्बर से नवम्बर के मध्य फूल आते हैं तथा फल को पकने में एक महिना लगता है। इसकी फूलों के आधार पर लाल, काली और सफ़ेद तीन तरह की प्रजाति मिलती है, सामान्यतः सफ़ेद चित्रक का प्रयोग औषधीय उपयोग में किया जाता है।

चित्रक का विभिन्न भाषाओं में नाम :

  • संस्कृत – चित्रक, अग्नि, अग्निशिखा, सप्तर्षि, शार्दूला। 
  • हिन्दी – चित्रक, चीता, चीतावर। 
  • गुजराती – चित्रा, चीत्रो। 
  • मराठी – चित्रकमूल । 
  • पंजाबी – चितरक । 
  • तामिल – चित्तिर, अहिंगरादि,अफिनी । 
  • तेलुगु – चिक्षमुलग। 
  • अरबी –  शीतज । 
  • फ़ारसी – बिगबरिन्दे ।
  • इंगलिश – लेडवार्ट (LE.ADWORT) | 
  • लैटिन – प्लम्बेगो SISACHT (PLUMBAGO ZEYLANICA).

चित्रक के औषधीय गुण व प्रधानकर्म :

  • आयुर्वेद के मतानुसार चित्रक भोजन को पचाने वाली, रूखी, हल्की, भूख को बढ़ाकर रस रक्तादि सप्तधातुओं की अग्नि को जागृत करने वाली है।
  • चित्रक कड़वी, गरम, रसायन, त्वचारोग, संग्रहणी, बवासीर, पेट के कीड़े व यकृत तथा उदर रोग को दूर करने वाली औषधि है।
  • यह अति उष्ण होने से त्वचा पर शीघ्र घाव उत्पन्न कर देती है। इसका कम अथवा उचित मात्रा में प्रयोग करने पर यह आमाशय और आंत की श्लेष्मिक कला को उत्तेजित करती है जिससे वहां का रक्त संचार बढ़ता है और आंतों की शक्ति में सुधार आता है। व आहार पचाने की क्रिया में वृद्धि होती है।
  • पेट के मल को दस्त के द्वारा साफ कर गैस में राहत देती है। चित्रक लिवर के पाचक रसों की क्रियाशीलता बढ़ा कर पाचन में सुधार करती है। यही कारण है कि चित्रक का उपयोग करने पर मल का रंग पीला हो जाता है।
  • यह गठिया या आमवात में भी लाभदायक है। यह आमदोष का पाचन कर आंतों से मल को निकालकर स्तम्भन भी करती है।
  • चित्रक का शरीर के रक्तसंचार पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • उष्ण होने से यह स्वेदग्रन्थियों से पसीना लाती है।
  • यह कुष्ठ जैसा त्वचा रोग में भी लाभ करती है।
  • मलेरिया के कारण लिवर और तिल्ली के बढ़ जाने में इसके सेवन से लाभ होता है।
  • बुखार के कारण जब भूख कम हो जाती है तब चित्रक का सेवन यकृत को उत्तेजित कर भूख बढ़ाने में सहायक होता है।
  • इसके उष्णवीर्य गुण के कारण यह गर्भाशय पर उत्तेजक प्रभाव डाल कर गर्भाशय को संकचित करती है जिससे गर्भपात की संभावना रहती है। लेकिन इसका यही गुण रुके हुए आर्तव को निकालने में, प्रसव के बाद स्त्री को होने वाले बुखार व अन्य रोगों में उपयोगी सिद्ध होता है, इसके प्रयोग से गर्भाशय का संकोच हो दूषित आर्तव बाहर निकल जाता है तथा आमदोष और बाहरी विष का पाचन होने से बुखार कम हो जाता है।
  • शरीर की इन्द्रियों व अग्नियों को उत्तेजित कर यह धातुओं को पुष्ट करती है व शरीर को बल देती है।
  • आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार यह स्तन शोधक, रक्त शोधक, कफनाशक, ज्वरघ्न एवं लेखनीय हैं अर्थात चित्रक रूखी तीखी होने से कफ को, कड़वी होने से पित्त को व उष्ण होने से वात को नष्ट करती है। अतः यह त्रिदोषनाशक भी है।

रासायनिक संगठन :

इसकी जड़ में तीखा पीले रंग का तत्व होता है जिसे प्लम्बेजिन (PLUMBAGIN) कहते हैं। यह अधिकतम 0.9% होता है। इसके अलावा स्वतन्त्र द्राक्षशर्करा, फलशर्करा तथा प्रोटिएज एन्जाइम होते हैं। प्लेम्बेजिन शरीर के

स्नायुमण्डल को उत्तेजित करता है तथा अधिक मात्रा में यह निष्क्रियता लाकर रक्तभार में कमी भी कर सकता है। यह तेज जलन करने वाला तथा कृमि एवं जीवाणु नाशक तत्व है। ज्यादा मात्रा में यह हृदय को भी नुकसान पहुंचा सकता है। यह मूत्र, पित्त और पसीने की क्रिया को भी उत्तेजित करता है।

चित्रक के फायदे और उपयोग : chitrak ke fayde in hindi

विभिन्न रोगों में इसकी औषधीय उपयोगिता पर बात करने से पहले इस वनस्पति से सम्बन्धित कुछ ध्यान में रखने योग्य बातों पर चर्चा कर लें। चित्रक की जड़ का चूर्ण या काढ़े का प्रयोग औषधीय कार्य में किया जाता है अतः चित्रक की जड़ को छाया में सुखाकर उसका बारीक चूर्ण या मोटा दरदरा काढ़े का पाउडर तैयार कर कांच की शीशी में टाइट बन्द कर रखना चाहिए। सीमित मात्रा में यह अत्यन्त गुणकारी वनस्पति है लेकिन अधिक मात्रा में लेने से यह एक प्रकार के विष की तरह काम करती है।

इसकी अधिक मात्रा लेने से आमाशय में जलन पैदा होती है, उलटी. दस्त होना, पेशाब में कष्ट, अव्यवस्थित नाड़ी चलना आदि समस्याएं हो सकती हैं। त्वचा पर इसका लेप अधिक देर तक लगाये रखने से फफोला या छाला हो सकता है जो अत्यन्त कष्टदायक होता इसके आन्तरिक और बाह्य यानी खाने और लगाने दोनों प्रकार के प्रयोगों में सावधानी रखना अनिवार्य है। आइए अब इसके विभिन्न औषधीय उपयोग पर बात करते हैं।

1. पाचन शक्तिवर्धक में चित्रक के फायदे :

  • सेन्धा नमक, हरड़, पिप्पली और चित्रक इन्हें समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। आधा से एक ग्राम मात्रा गरम पानी के साथ सुबह. शाम लेने से पाचन शक्ति बढ़ कर अजीर्ण, अरुचि व अग्निमांद्य रोग में लाभ मिलता है।
  • चित्रक की जड़ के चूर्ण को बायविडंग और नागरमोथा के साथ समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाकर लेने से आम दोष का पाचन होकर पाचन शक्ति बढ़ती है।( और पढ़े –पाचनतंत्र मजबूत करने के 24 घरेलू उपाय  )

2.  बवासीर (अर्श) में चित्रक के फायदे :

  • चित्रक की जड़ को पीस कर पानी में गलाकर मिट्टी के बरतन में लेप कर दें। फिर इस मिट्टी के बरतन में दूध का दही जमा कर और दही जम जाने के बाद उसे मथ कर मक्खन निकाल कर जो मटठा या छाछ बचे उसे पीने से बवासीर रोग में लाभ होता है।
  • चित्रक की जड़ की छाल के 2 ग्राम चूर्ण को छाछ के साथ सुबह. शाम भोजन से पहले पीने से भी बवासीर में लाभ होता है।
  • चित्रक की जड़, कनेर की जड़, दन्तीमूल, सेन्धानमक.  सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें आक (मदार) का दूध मिलाकर गीला कर लें। इसमें तिल्ली का तैल मिलाकर गरम कर ठण्डा कर लेप बना लें। इस अर्शहर लेप को बाहर निकले बादी के मस्सों पर लगाने से वे सूख जाते हैं। ( और पढ़े –बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार )

3. अपच में चित्रक के फायदे : चित्रकमूल, अजवाइन, सौंठ, काली मिर्च और सेन्धानमक समान मात्रा में लेकर महीन चूर्ण कर लें। इस चूर्ण की आधे से एक ग्राम मात्रा छाछ (मट्ठा) के साथ लेने से अपच दूर होता है। मन्दाग्नि दूर होकर पाचन शक्ति बढ़ती है।

4. अतिसार में चित्रक के फायदे : चित्रक की जड़ का चूर्ण आधा ग्राम छाछ या गरम पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से अतिसार और ग्रहणी का रोग नष्ट होते हैं।( और पढ़े – दस्त रोकने के देसी उपाय)

5. यकृत और प्लीहा के रोग में चित्रक के फायदे : चित्रक, यवक्षार, इमलीक्षार, भुनी हींग और पांचों नमक.  सभी समान मात्रा में मिलाकर नींबू के साथ मिलाकर पीस कर रख लें। इसकी आधा से एक ग्राम मात्रा सुबह. शाम लेने से यकृतप्लीहा के रोगों में लाभ होता है।

6. कामला (पीलिया) में चित्रक के फायदे : चित्रक की जड़ को बारीक पीसकर आधा ग्राम मात्रा दही के पानी के साथ देने से लाभ होता है।( और पढ़े – पीलिया के 16 रामबाण घरेलू उपचार)

7. प्रवाहिका (पेचिस) में चित्रक के फायदे : चित्रक, चव्य, बेलगिरी और सौंठ को बराबर मात्रा में ले कर चूर्ण बना लें। आधे से एक ग्राम मात्रा सुबह. शाम बेलफल के मुरब्बे की चासनी के साथ देने से लाभ होता है।

8. संग्रहणी में चित्रक के फायदे : चित्रक के काढ़े अर्थात् 5 ग्राम चित्रक के चूर्ण को 200 मि.लि. पानी में उबाल कर 100 मि.लि. रह जाने पर उतार कर स्वतः ठण्डा होने दें। इस काढ़े में गाय का घी 5 से 10 ग्राम मिलाकर सुबह एक बार लेने से संग्रहणी में लाभ होता है।

9.  श्लीपद (हाथी पांव) में चित्रक के फायदे : चित्रक की जड़ और देवदारु समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना कर इसमें गौमूत्र मिलाकर हाथीपांव के रोग में बाहर से लेप करने से आराम मिलता है |

10. खांसी. सर्दी में चित्रक के फायदे : चित्रक की जड़ के चूर्ण की आधा ग्राम मात्रा शहद और अदरक के रस में मिलाकर सुबह शाम चाटने से नई सर्दीखांसी में लाभ होता है। ( और पढ़े –कफ दूर करने के सबसे कामयाब 35 घरेलु उपचार )

11. ज्वर में चित्रक के फायदे : चित्रक की जड़ का चूर्ण आधा ग्राम और त्रिकटू चूर्ण (सोंठ, काली मिर्च,पीपल) की एक ग्राम मात्रा गरम पानी के साथ देने से पसीना आकर ज्वर का वेग कम होता है। बुखार में जब रक्त संचार की क्रिया मन्द हो जाती है और रोगी अन्न नहीं खा पा रहा होता है तब चित्रक की जड़ के छोटे टुकड़े चबाने को देने से लाभ होता है।

12. आधाशीशी (माइग्रेन) में चित्रक के फायदे : चित्रक, पुष्कर मूल और सोंठ.  सभी 10-10 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बना लें। लगभग एक ग्राम चूर्ण को प्रातःकाल मिठाई के साथ खाने से सिरदर्द में लाभ होता है। ( और पढ़े – आधा सिर दर्द की छुट्टी करदेंगे यह 27 घरेलू इलाज )

13. गठिया. आमवात में चित्रक के फायदे :

  • चित्रकमूल, आंवला, हरड़, पीपल, रेवदचीनी और कालानमक.  सभी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसकी 2 ग्राम मात्रा रात को सोते समय गरम पानी के साथ लेने से सन्धिवात, गठिया और वायु के रोग में लाभ होता है।
  • चित्रक मूल के चूर्ण को गरम पानी के साथ मिलाकर जोड़ के स्थान पर लेप करने से वृद्धावस्था के जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।

14. योषापस्मार (हिस्टीरिया) में चित्रक के फायदे : चित्रक की जड़, ब्राह्मी और वच के बराबर मात्रा के चूर्ण मिलाकर उसकी 1 से 2 ग्राम मात्रा दिन में तीन बार गाय के दूध और घी में मिलाकर देने से लाभ होता है।

15. बहुमूत्र रोग में चित्रक के फायदे : 5 ग्राम चित्रक की छाल के चूर्ण को 200 मि.लि. पानी में डाल कर मन्द आंच पर उबालें। जब आधा शेष रह जाए तब उतार कर छानकर तीन सप्ताह तक रोज पीने से बार. बार पेशाब जाने की समस्या में लाभ होता है।

16. हृदयशूल में चित्रक के फायदे : जब रोगी को सीने में दर्द हो तो चित्रक की जड़ 2 ग्राम, त्रिकटू चूर्ण 6 ग्राम और पीपरामूल 2 ग्राम लेकर 200 मि. लि. पानी में उबाल कर 100 मि.लि. रहने तक मन्द आंच पर उकालें। फिर छानकर एक से दो बार लेने से हृदयशूल में लाभ होता है।

17. सुखपूर्वक प्रसव में चित्रक के फायदे :

  • लगभग 5 ग्राम चित्रक की जड़ के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से प्रसव सुखपूर्वक होता है और डिलेवरी के बाद प्लेसेन्टा आसानी से बाहर आ जाता है।
  • चित्रक की जड़ का गर्भाशय पर बहुत तीव्र संकोचक प्रभाव होता है अतः गर्भावस्था में इसका प्रयोग नवे माह के बाद ही करना चाहिए। 2 ग्राम मात्रा में आंतरिक सेवन करने से या गर्भाशय में प्रविष्ट कराने से गर्भपात हो सकता है परन्तु गर्भपात के बाद अत्यधिक रक्तस्राव होने का खतरा हो सकता है।

18. अनार्तव में चित्रक के फायदे : जब किसी स्त्री को आर्तव (मासिक रक्तस्राव) नहीं आ रहा हो तो चित्रक मूल की 2 ग्राम मात्रा गरम पानी के साथ देने से आर्तव शुरू हो सकता है।

19. सूतिका ज्वर में चित्रक के फायदे : प्रसव उपरान्त स्त्री को होने वाले बुखार तथा यदि गर्भाशय में कुछ अवरोध हो तो चित्रक की जड़ की 1-1 ग्राम मात्रा पिपलामूल के चूर्ण की आधा ग्राम मात्रा में मिलाकर सुबह. शाम शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।

20. कुष्ठ रोग में चित्रक के फायदे : लाल चित्रक की सूखी जड़ का चूर्ण एक ग्राम मात्रा में सुबह. शाम महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ सेवन करने से लाभ होता है। कुष्ठ रोग में चित्रक की छाल के चूर्ण की एक ग्राम मात्रा नियमित खाने से एक वर्ष की अवधि में लाभ होता है। त्वचा पर मण्डल कुष्ठ व सफ़ेद दाग़ में चित्रकमूल चूर्ण को गौमूत्र में मिलाकर लेप करें। लेप के पश्चात यदि छाले या जले हुए समान निशान दिखाई दें तो लेप तत्काल बन्द कर नारियल का तैल लगाएं। इन छालों पर नई त्वचा आती है और सफ़ेद दाग मिट जाते हैं।

21. अपक्व विद्रधि में चित्रक के फायदे : शरीर पर बाहर की ओर कोई अपक्व गांठ या कच्ची फुसी दिखाई दे तथा उसमें दर्द हो तो चित्रक की जड़ को पीस कर गरम पानी में मिलाकर गांठ पर बांध दें। इससे वह जल्दी पक कर फूट जाती है। फिर मवाद निकाल कर इसकी सफ़ाई कर चित्रक की छाल में सेन्धानमक मिलाकर छाछ में पीस लें और टिकिया बना कर घाव पर रखने से घाव जल्दी भर जाता है।

22. गले का दर्द व स्वरभेद में चित्रक के फायदे : अजमोदा, हल्दी, आंवला, यवक्षार व चित्रक के चूर्ण की समान मात्रा मिलाकर इस मिश्रण की एक ग्राम मात्रा दिन में 3 बार विषम मात्रा में शहद और घी यानी एक भाग शहद और आधा भाग घी में मिलाकर चाटने से गले के रोग ठीक होते हैं। और स्वर भेद में राहत मिलती है।

23. अतिसार, ग्रहणी रोग: चीता की जड़ का चूर्ण लगभग 1-2 ग्राम की मात्रा में मट्ठे या गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार लेना चाहिए। इससे अतिसार (दस्त) और ग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।

24. श्लीपद (हाथी पांव): चीता की जड़ को पीसकर सूजन पर लेप करना चाहिए। इससे श्लीपद के कारण पैदा हुई सूजन दूर हो जाती है।

25. बंद नाड़ी की पुनर्गति: यदि किसी मरने वाले व्यक्ति की नब्ज बंद हो गई हो और वह जीवित हो, तो नब्ज गति जानने के लिए नाड़ी पर चित्रक पीसकर लेप करें जिससे उस पर छाला पड़ जाएगा और नब्ज तेज होने लगती है।

26. यकृत, प्लीहा की दवा: चीता, यवक्षार, पांचों नमक, इमली क्षार, भुनी हींग इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर जम्भीरी नींबू के साथ मिलाकर बारीक पीसकर रख लेते हैं। इसके बाद लगभग 720 मिलीग्राम की गोली बनाकर दिन में 4 बार सेवन करने से यकृत प्लीहा आदि रोग समाप्त हो जाते हैं।

27. कमजोरी:

  • 1 से 2 ग्राम लाल चीता शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से शरीर की कमजोरी मिट जाती है और शरीर को नयी स्फूर्ति मिलती है।
  • आधा से 2 ग्राम लाल चीता (चित्रक) शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से उपवृक्क की क्षय (टी.वी) के रोगियों का रोग ठीक होता है। इसके प्रयोग करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और शरीर मोटा-तगड़ा हो जाता है।

28. सूजन: चीता या चित्रक की जड़ से सिद्ध तेल से मालिश करने पर दर्द कम हो जाता है।

29. आंवरक्त (पेचिश): पेचिश के रोगी को चीता, चव्य, बेलगिरी और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का सेवन करने से पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

30. अग्निमान्द्यता (अपच): चीता, अजवाइन, सोंठ, कालीमिर्च और सेंधानमक को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण को खट्टी छाछ के साथ 7 दिन तक खाने से मन्दाग्नि (भूख कम लगना) की शिकायत दूर हो जाती है।

31. अंगुलबेल (डिठौन): चीता (चित्रक) को अच्छी तरह से पीसकर लेप करने से उंगुली के भीतर का मवाद बाहर आ जाता है और यह अन्दर के सड़न को भी रोकता है।

32. गठिया रोग:

  • चीता, कुटकी, पाढ़, इन्द्रजौ, बच, नागरमोथा, अतीस, देवदारू, गिलोय, हरड़ और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण रोजाना 2 बार पीने से गठिया के रोग में ठण्ड के कारण पैदा हुआ दर्द ठीक होता है।
  • गठिया के रोग में चीता (चित्रक) की जड़ से प्राप्त तेल से मालिश करने से गठिया रोग ठीक हो जाता है।

33. पीलिया का रोग: चीते की जड़ को बारीक पीसकर छाछ में मिलाकर पीने से पीलिया रोग में राहत मिलती है।

34. फीलपांव (गजचर्म):

  • फीलपांव के रोग को दूर करने के लिए चीता, देवदारू सफेद, सरसों अथवा सहजने में से किसी एक पेड़ की जड़ की छाल को गाय के पेशाब में पीसकर गर्म-गर्म लेप करने से फीलपांव के रोगी को लाभ पहुंचता है।
  • फीलपांव के रोगी का रोग दूर करने के लिए चीता की जड़ को पीसकर लगाने से फायदा मिलता है। फोड़ा पक गया हो तो वह स्वत: ही टूट जाती है।

35. नकसीर: 2 ग्राम चित्रक के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से नकसीर बंद हो जाती है।

36. गले की आवाज: अजमोदा, हल्दी, आंवला, यवक्षार, चित्रक के चूर्ण को शहद तथा घी के साथ रोजाना 1-2 ग्राम दिन में 3 बार चाटने से स्वर भंग (आवाज खराब होना) दूर होता है।

37. पाचनशक्तिवर्द्धक:

  • सेंधानमक, हरड़, पिप्पली, चित्रक इन्हें बराबर मात्रा में लेकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से अग्नि प्रदीप्त होती है। इसके सेवन से घी, मांस और नये चावल का ओदन क्षणमात्र में पच जाता है। मात्रा 1 से 2 ग्राम तक।
  • अरुचि (भोजन करने का मन न करना), अग्निमान्द्य (भूख कम लगना) और अजीर्ण (भूख न लगना) के रोगों में चित्रक की ताजी जड़ के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को वायविडंग और नागरमोथे के साथ सुबह-शाम भोजन से पहले देने से पाचनशक्ति की वृद्धि होकर रोजाना भूख लगने लगती है।

38. संग्रहणी:

  • चित्रक के काढ़े या चूर्ण में घी मिलाकर 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से संग्रहणी (दस्त) में लाभ मिलता है।
  • चित्रक या चीता, चव्य, बेलगिरी तथा सोंठ इन चारों को एक बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से संग्रहणी अतिसार (दस्त) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

39. तिल्ली: चित्रक की जड़, हल्दी, मदार का पका हुआ पत्ता, धातकी फूल का चूर्ण इनमें से किसी एक को गुड़ के साथ दिन में 3 बार 1 से 3 ग्राम देने से प्लीहा रोग नष्ट हो जाता है।

40. सुख से प्रसव होना: लगभग 10 ग्राम चित्रक की जड़ के चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ स्त्री को चटाने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।

41. वातरोग: चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, काली पहाड़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ ये सभी चीजें बराबर मात्रा में सुबह-शाम लेने से सभी प्रकार के वात रोग (गैस) दूर हो जाते हैं।

42. हिस्टीरिया: चित्रक की जड़, ब्राह्मी, और बच को बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर लगभग 1 से 2 ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3 बार देने से हिस्टीरिया में लाभ होता है।

43. पक्षाघात (लकवा): लाल चित्रक की जड़ के बारीक चूर्ण को तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात (लकवा) और गठिया (जोड़ो का दर्द) मिट जाता है।

44. प्रसूतिका ज्वर (बच्चे के जन्म देने के बाद का स्त्री का बुखार): प्रसूतिका ज्वर (बुखार) में 2-5 ग्राम चित्रक की जड़ का चूर्ण दिन में 3 बार स्त्री को देने से ज्वर (बुखार) कम हो जाता है तथा दूसरे गर्भाशय उत्तेजित होकर दूषित स्राव बहने लगता है, जिससे मक्कल शूल मिटता है। प्रसूतिका ज्वर में इसे निर्गुण्डी के 10-20 मिलीमीटर रस के साथ देना चाहिए।

45. ज्वर (बुखार):

  • ज्वर (बुखार) में चित्रक की जड़ के चूर्ण को सोंठ, कालीमिर्च, पीपल के साथ 2-5 ग्राम की मात्रा में रोगी को देने से अच्छा लाभ होता है।
  • बुखार में जब रक्तसंचार की क्रिया मंद हो जाती है और रोगी अन्न (आहार, भोजन) नहीं खा सकता, उस समय चित्रक मूल के टुकड़ों को चबाने से लाभ होता है।

46. चर्मरोग (त्वचा के रोग): चित्रक की छाल को दूध या पानी के साथ पीसकर कोढ़ और दूसरे प्रकार के चमड़ी के रोगों पर लेप करना चाहिए अथवा इन्हीं चीजों के साथ पीसकर पोटली बनाकर तब तक बंधा रखना चाहिए जब तक कि छाला उठ न जाए। इस छाले के ठीक होने पर सफेद कोढ़ के दाग मिट जाते हैं।

47. खुजली: लाल चित्रक के दूध का लेप करने से खुजली मिटती है।

48. कुष्ठ:

  • लाल चित्रक की सूखी जड़ की छाल के 2-5 ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम सेवन कराने से लाभ मिलता है।
  • 1 से 3 ग्राम चीता की जड़ का चूर्ण गाय के पेशाब के साथ दिन में 3 बार देना चाहिए।
  • चित्रक की छाल को पीसकर दूध के साथ कम से कम 1 साल तक खाने से कोढ़ और दूसरे चमड़ी के रोग मिट जाते हैं।

49. घावों से पीव का आना: जिन घावों से पीप बहता हो, उनका मुंह बंद करने के लिए चित्रक छाल को पानी में पीसकर लेप करना चाहिए।

50. चूहे का जहर: चित्रक की छाल के चूर्ण को तेल में पकाकर तलुए पर मालिश करने से चूहे का जहर उतर जाता है।

51. खांसी: चित्रक की जड़ का बारीक चूर्ण बनाकर 1-1 ग्राम चूर्ण सुबह और शाम को शहद के साथ चाटने से खांसी ठीक हो जाती है।

52. अतिक्षुधा भस्मक रोग (भूख का अधिक लगना): चित्रक और चीता की मूल क्षार आधा से 2 ग्राम सुबह शाम मट्ठे के साथ सेवन करने से लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसका उपयोग गर्भावस्था में न करें। इस योग में प्रत्येक मात्रा में एक गुलाब का फूल पीसकर मिला देने से चित्रक का जिगर पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।

53. कैन्सर कर्कट रोग: आधा से 2 ग्राम लाल चित्रक सुबह-शाम सेवन से शरीर पर निखार आ जाता है और शरीर की मजबूती भी बढ़ती है।

54. बवासीर (अर्श):

  • 2 ग्राम चित्रक की जड़ के चूर्ण को छाछ के साथ सुबह-शाम भोजन से पहले पीने से बवासीर में लाभ होता है।
  • लगभग 1-2 ग्राम चीता की जड़ का चूर्ण मट्ठे के साथ दिन में 3 बार लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।
  • 80 ग्राम चीते की जड़ की छाल, 160 ग्राम सूखी जिमीकन्द का चूर्ण, 40 ग्राम सोंठ, 20 ग्राम कालीमिर्च, 80 ग्राम मुलहठी, 160 ग्राम विधारा के बीज, 20 ग्राम दालचीनी, 20 ग्राम इलायची तथा पिपलामूल, तालीस पत्र, शुद्ध भिलावां और वायविडंग का चूर्ण 40-40 ग्राम लेकर पीसकर और छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को पुराने गुड़ के साथ मिलाकर लड्डू बना लें। 1 लड्डू रोजाना खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।
  • चित्रक की जड़ को पीसकर मिट्टी के बर्तन में लेपकर, इसमें दही जमाकर, फिर उसी बर्तन में बिलोकर उस छाछ को पीने से बवासीर मिट जाती है।
  • चित्रक की जड़, कनेर की जड़, कस्सी, दन्तीमूल और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण में आक के दूध की 7 बूंदे मिलाकर ठण्डा कर लें तथा इसे तिल के तेल में पकाकर रखें। रोजाना सुबह-शाम शौच क्रिया के बाद उस पके हुए पेस्ट को मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
  • आधा ग्राम से 2 ग्राम चित्रक (चीता) की जड़ को दही के साथ रोजाना सुबह-शाम लेने से बवासीर का रोग ठीक होता है।

55. एड्स: लाल चित्रक (लाल चीता) आधा से 2 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से शरीर नया एवं स्वस्थ होता है।

56. जिगर का रोग:

  • 1 चित्रक की जड़ की छाल 3 ग्राम, सौंफ 3 ग्राम को 12 घंटे तक नींबू के रस में खरल करके गोली बना लें और इसकी बनी गोली को सुबह-शाम सेवन करें इससे जिगर की बीमारी दूर होती है।
  • 3-3 ग्राम चित्रकमूल और सोंठ लेकर रात को पानी में भिगो लें, और सुबह इसे पीसकर इसका मिश्रण बना लें। इस मिश्रण के सेवन करने से यकृत वृद्धि (जिगर बढ़ना) के रोग में लाभ होता है।

57. मधुमेह के रोग:

  • 6 ग्राम चित्रक का पंचाग लेकर मोटा-मोटा पीस लें और उसे आधा लीटर पानी के साथ पकायें। चौथाई शेष काढ़ा रहने पर, उसे उतारकर छान लें, इसे रोजाना सुबह-शाम 3-4 दिन तक सेवन करने से मधुमेह रोग में राहत मिलती है।
  • 6 ग्राम चित्रक के पंचाग का चूर्ण, सुबह-शाम 300 ग्राम पानी में डालकर पकायें। जब 50 ग्राम पानी शेष रह जाये, तब उसे उतार लें। इस हल्के गर्म काढ़े को 3 सप्ताह तक पीने से बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) और मधुमेह रोग मिट जाता है।

58. मोटापा दूर करना: चित्रक की जड़ के बारीक चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से पेट की बीमारियां और मोटापा दूर हो जाता है।

59. प्लेग रोग: प्लेग के रोग से बचने के लिए चित्रक या चीता की जड़ घिसकर प्लेग के रोगी के तलुवे पर मालिश करने से रोग दूर हो जायेगा।

60. आधासीसी (माइग्रेन): 10-10 ग्राम चित्रक, पुष्कर की जड़ और शुंठी को लेकर इसका चूर्ण बनाकर लगभग 1 ग्राम चूर्ण को पेडे़ (मिठाई) के साथ खाने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है।

61. घाव (व्रण): चित्रक की जड़ की छाल और सेंधानमक को छाछ (लस्सी) में पीसकर उसकी टिकिया बनाकर घाव पर रखने घाव ठीक हो जाता है।

62. फोड़ा: चित्रक की जड़ या चीता मूल को पीसकर जब फोड़ा पक जाये तो फोड़े पर लगाने से फोड़ा अपने आप फूट जाता है।

63. संधिवात (गठिया):

  • चित्रक की जड़, आंवला, हरड़, पीपल, रेवंदचीनी और कालानमक को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसे 4 से 5 ग्राम तक की मात्रा में रोजाना सोते समय गर्म पानी के साथ लेने से पुराना संधिवात, वायु (गैस) के रोग और आंतों के रोग मिट जाते हैं।
  • वृद्धावस्था में गठिया का दर्द होने पर चित्रक का लेप बनाकर लेप करने से दर्द ठीक हो जाता है।

64. हृदय के रोग: 10-10 ग्राम चित्रक, त्रिकुटा और पिप्पली की जड़ लेकर 500 ग्राम पानी में उबालें। इस काढ़े को दिन में 2 बार पीने से दिल के दर्द में लाभ होता है।

65. निम्नरक्तचाप: 50 मिलीग्राम से 2 ग्राम लाल चित्रक के चूर्ण को शहद के साथ सुबह शाम सेवन करने से कमजोरी दूर हो जाती है और रक्तचाप बढ़ जाता है।

66. खून की कमी: चित्रक की जड़ की छाल को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें। इसके चूर्ण में 100 मिलीलीटर चित्रक का रस निकालकर मिला लें। यह मिश्रण 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है।

चित्रक के नुकसान : chitrak ke nuksan

  • चित्रक लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें
  • चित्रक का उपयोग निर्धारित मात्रा में ही करना चाहिए अन्यथा यह अतिउष्ण, संकोचक व उत्तेजक होने से मज्जातंतु का संकोच कर रक्तभार की कमी, आन्तरिक अंगों में दाह आदि उत्पन्न कर विष की तरह दुष्प्रभावी भी हो सकती है।
  • गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिये
  • चित्रक को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

Leave a Comment

Share to...