प्रभु की अहैतुकी कृपा (प्रेरक कहानी) | Prerak Hindi Kahani

Last Updated on July 22, 2019 by admin

बोध कथा : Hindi Moral Story

फतहगढ़के सेठ रामगोपालजीका नियम था कि जबतक किसी अतिथिको भोजन न करा लेते, तबतक स्वयं भोजन न करते थे। वे एक भक्त साहूकार थे। लखपती सेठ थे; पर लक्ष्मीसे वे जलसे कमल-पत्र के समान विलग रहते थे। उनके दो लड़के थे। गृहलक्ष्मी थी। घरपर तीन नौकर रहते थे। एक नौकर जोधा का यह काम था कि वह प्रतिदिन किसी-न-किसी अतिथिको सेठजी के यहाँ भोजन कराने लिवा लाया करे। अतिथिके मानी यह कि वह फतहगढ़ शहरका निवासी न हो। कई अतिथि मिल जायँ तो और भी अच्छा, नहीं तो प्रतिदिन एक अतिथि मिलना अनिवार्य था।

एक दिन शामको चार बज गये, परंतु कोई अतिथि ने मिला। जोधाने चार चक्कर शहरके लगाये, पर बेकार। अतिथि मिलते थे और जोधा उनको निमन्त्रण भी देता पर कोई कुछ कह देता और कोई कुछ। एकने कहा- ‘मैं भोजन करके शहरमें आया हूँ।’ दूसरेने कहा-‘मेरे पास क्या कमी है कि जो दूसरेके यहाँ रोटी माँगता फिरूं?’ तीसरेने कहा-‘जान न पहचान, बड़े मियाँ सलाम ! मैं तुम्हारे साथ चलें और तुम ले जाओ मुझे कहीं गुंडों के अड्डेपर। भोजन एक तरफ, जो कुछ मेरे पास लटू-पटू है, उसे भी छिनवा लो। अच्छा रोजगार सीखा है तुम्हारे मालिकने । लंबी काटो। मैं चकमे में आने वाला नहीं।’
बड़ी कठिनतासे एक अतिथि को साथ लेकर जोधा हवेली पर गया। महात्माजी को देखकर सेठजी बहुत खुश हुए और बोले आइये महाराज ! आपकी कुटी कहाँ है?
महात्मा–भागलपुर जिलेमें।
सेठ–आपका शरीर किस जातिका है?
महात्मा- ब्राह्मण।
सेठ–कितने दिनोंसे आप साधुई करते हैं?
महात्मा–तीस सालसे।
सेठ–अब आपकी क्या अवस्था है?
महात्मा-सत्तर सालकी।
सेठ–आपने सब तीर्थ किये होंगे?
महात्मा–हाँ।
सेठ–इधर किधर जानेका विचार है?
महात्मा-बिठूरके ब्रह्माजीका दर्शन करने जा रहा हूँ।
सेठ–आपने अनेक सिद्धोंकी संगत पायी होगी?
महात्मा–अवश्य।
सेठ–आप शिक्षित मालूम पड़ते हैं।
महात्मा–हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, बँगला, गुजराती और गुरुमुखी जानता हूँ।
सेठ–धन्यभाग, जो आपके दर्शन हुए। अब आज्ञा कीजिये कि आपके लिये कच्चा खाना मँगवाऊँ या पक्का? दोनों प्रकारके भोजन ब्राह्मण रसोईदारके बनाये हुए तैयार हैं।
महात्मा-पक्का भोजन ठीक।
सेठजीके आज्ञानुसार एक पत्तलमें महात्माजीको पक्का भोजन परोसा गया। बिना भोग लगाये ही महात्माजी भोजन करने लगे।

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सेठ–आपने भोग नहीं लगाया? |
महात्मा–कैसा?
सेठ–आपने परमात्मा का नाम ही नहीं लिया। हिंदुओं में कायदा है कि भोजन करते समय भगवान को अर्पण करके भोजन करते हैं। मुसलमानों में कायदा है कि खाना खाते समय ‘बिस्मिल्लाह कहते हैं।
महात्मा—यह सब ढोंग है।
सेठ—क्या आप परमात्माको नहीं मानते हैं?
महात्मा–कहाँ है परमात्मा? दिखलाओ!
सेठ–तो आप नास्तिक हैं?
महात्मा–जी हाँ।।
सेठ–(झल्लाकर) नास्तिकको मैं भोजन नहीं दे सकता। राम! राम! आज महापाप हो गया। आप पण्डित नहीं, मूर्ख हैं। आप महात्मा नहीं, बदमाश हैं। आपका तीर्थगमन बेकार है। आपका सत्संग व्यर्थ है। आप पापी हैं, निशाचर हैं। इतना कहकर सेठजीने जोधाको बुलाया। जब वह आया तो कड़ककर बोले-‘क्यों रे! तुझे यही पाखंडी मिला था, जो ईश्वरको नहीं मानता? मैं इसकी सूरत नहीं देखना चाहता। इस महापापी राक्षसकी पत्तल उठाकर बाहर कुत्तोंको फेंक दे और इसे गरदन पकड़कर अभी मेरे मकान से निकाल दे।
जोधा ने बाबाजी पर धावा बोल दिया। उनकी पत्तल फेंक दी। बेचारे आधी ही पूड़ी खा पाये थे। कान पकड़कर उस नास्तिक बाबाको घरसे बाहर ढकेल दिया गया।

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सेठजी ने जोधा को फिर भेजा कि किसी आस्तिक अतिथि को ले आये। बेचारा फिर भागा। एक घंटे बाद जोधा लौटा। साथ थे एक बाबाजी। वे रामनामी कपड़ा ओढ़े थे। गलेमें तुलसीमाला लटक रही थी। मस्तकपर तिलक था। सेठने कहा-‘यह अतिथि ठीक है!’
पूछनेपर बाबाजीने कच्चा भोजन माँगा। पत्तलें परोसी गयीं। बाबाजीने भोग लगाया। कहा–’धन्य भगवन्! जय हो गोपालजीको। परमात्मा! आप बड़े दयालु हो। सेठजी की जय हो। बाल-बच्चे हरे-भरे रहें। महिमा महा प्रसादको पावो भोग लगाय। जय सीतारामकी, लक्ष्मीनारायणकी जय। गुरुजीकी जय। संत-सतीकी जय। दाताकी जय। जगद्गुरु दत्तकी जय।’

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भोग लगाकर बाबाजी भोजन करने लगे। सेठजीने कहा‘इसी तरह भोग लगाया जाता है। इसी तरह के बाबाजी ठीक होते हैं। वह मनमुखा नास्तिक बड़ा पाजी था। पक्का भोजन चाहिये और ईश्वरका नाम लेते छाती फटती थी। जिसने इतना अच्छा भोजन दिया, उस प्रभुको धन्यवाद तक नहीं ! साधु काहे का, सवादू था।’
भोजन करके जब बाबाजी चलने लगे, तब सेठजीने एक रुपया नजर दिया। बाबाजी आशीर्वाद की वर्षा करके चले गये। इसके बाद सेठजीने भोजन किया।
रातको सेठजी ने रामायण तथा गीताका पाठ किया और विनयपत्रिका के पद गाये। सब लोगों ने मिलकर संकीर्तन किया। सेठानी और बच्चे भी उस कीर्तनमें शामिल हुए। यह रोजका नियम था। इसके बाद ठाकुरजी की आरती हुई।
जब रात ज्यादा हुई और सेठजी पलंग पर जा लेटे, तब उनके हृदयमें एक आकाशवाणी हुई
‘रामगोपाल ! तुमने जिस नास्तिकको भूखा भगा दिया था, जानता है उसको आज मैं सत्तर सालसे लगातार भोजन देता आ रहा हूँ। तुम जिसका पालन एक दिन भी न कर सके, उसका पालन मैं सत्तर सालसे कर रहा हूँ। तुम मेरे कैसे भक्त हो?’
सेठजीने कहा –प्रभो आप सबके परम सहद हैं, हम सबपर अहैतुकी कृपा रखते हैं। मेरी गलती क्षमा कीजिये। वास्तवमें मुझसे भूल हुई। नास्तिक और आस्तिक दोनों का पालन आप करते हैं। इसीको कहते हैं-“अहैतुकी कृपा।’ आप सबपर नि:स्वार्थ तथा हार्दिक स्नेह रखते हैं। बाप अपने नालायक लड़केको भी रोटी देता है।’

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