फलों के रस से करें असाध्य रोगों का इलाज | Falo ke Ras se Rogo ka Upchar

Last Updated on July 22, 2019 by admin

फलाहार चिकित्सा के फायदे :

डॉ. एडमण्ड जेकेली ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है-‘डॉक्टरों और दवाइयों की जो प्रणाली आज प्रचलित है, वह कुछ दिनों बाद मध्ययुगीय सभ्यता का मात्र चिह्न समझी जाएगी क्योंकि, भविष्य में यह व्यवस्था मान्य होगी कि जो लोग भोजन करें उसमें 50% फल, 35% शाक-भाजी और 15% अन्न हो और यही खाद्य, भविष्य में समस्त रोगों की औषधि भी होगी।’

आजकल प्रचलित जहरीली औषधियों और विषैले इन्जेक्शनों के प्रचलन से पीड़ित होकर डॉ. ए. जुस्ट ने भी अपनी एक पुस्तक में लिखा है-‘दवा के कड़वे घूंटों में लोग राहत खोजते हैं, जबकि मनुष्य के रोगों और कष्टों की सफल दवा फलों में मौजूद है।’

प्रकृति मानव को ऐसी बनी-बनाई दवा प्रदान करती है जो खाने में भी अति स्वादिष्ट लगती है और उसके रोगों व कष्टों को भी निश्चित रूप से दूर भगा देती है। यदि किसी समझदार प्राकृतिक चिकित्सक की देख-रेख में फलाहार चिकित्सा चलाई जाए तो असाध्य-से-असाध्य रोग भी बड़ी ही आसानी से और थोड़े ही समय में अच्छे किए जा सकते हैं।

फलाहार चिकित्सा हेतु जो फल काम में लाए जाएँ तो वे ताजे और पके होने चाहिए तथा उनका चुनाव रोगी की हालत और उसके रोग को दृष्टिगत रखकर ही किया जाना चाहिए।

फलों के रस से रोगों का इलाज / उपचार : falo ke ras se rogo ka ilaj

1-गुर्दे और जिगर के रोग – गुर्दे और जिगर के रोगों में, काफी मात्रा में अँगूर का रस या सन्तरे का रस शरीर के भीतर पहुँचाने से वह लाभ दिखाई देता है जो बहुत-सी अक्सर औषधियों के सेवन से भी प्राप्त नहीं होता।

2-कमर दर्द- इसी प्रकार कमर के दर्द लम्ब्रेगो (Lumbargo) से पीड़ित रोगियों को केवल नारंगी के रस पर ही रखकर अच्छा किया जा सकता है। फलाहार, स्नायु-रोगियों तथा चर्म-रोगियों के लिए बड़ा ही हितकर है। ( और पढ़ेकमर में दर्द के 13 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक इलाज )

3-बुखार-अँगूर और अनार का रस ज्वर में बड़ा लाभदायक होता है।

3-टायफाइड ज्वर- टायफाइड ज्वर में फलों के रस से विशेष लाभ होता है।

4-खून की कमी- शरीर में खून की कमी हो जाने पर गाजर, टमाटर व नीबू का रस लाभकर है क्योंकि इन फलों के रस में रक्त के लाल कणों की वृद्धि करने की असाधारण शक्ति होती है। अँगूर में यही गुण पाया जाता है। शरीर का रक्तनिर्माण प्राकृतिक लोहे से होता है। किशमिश, टमाटर, खजूर, छुहारा, मुनक्का, मकोय आदि लौह प्रधान वाले फलों का रस इस हेतु सेवन करना चाहिए।

5-गठिया- गठिया रोग में शरीफा लाभकारी सिद्ध होता है। ( और पढ़ेगठिया का कारण लक्षण और इलाज )

6-बहुमूत्र- बहुमूत्र और सूखा रोग टमाटर के सेवन से नष्ट किया जा सकता है ।

7-रक्तविकार- रक्तविकार से उत्पन्न हुए समस्त चर्मरोगों की लाभकारी औषधि गाजर व कागजी नीबू हैं।

8-कब्ज-यकृत विकार और कब्ज, किशमिश के सेवन से दूर किए जा सकते हैं। इसके लिए रात को किशमिश पानी में भिगो देने चाहिए और सुबह इसके रस को पीना चाहिए। ( और पढ़ेकब्ज दूर करने के 18 रामबाण देसी घरेलु उपचार )

9-दुबलापन- आम, खरबूजा, दुबले लोगों को मोटा करने वाले फल हैं। इसके लिए आम के साथ दूध का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।(नोट- दूध के साथ सेवन किये जाने वाले फल खट्टे न हो इसका आप ख्याल रखें )

10- दन्तरोग-पायरिया चूने की कमी के कारण होता है। सन्तरा, नीबू, कटहल आदि से चूने की कमी पूरी करके इससे मुक्ति पाई जा सकती है।

11-डायबिटीज- मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी को तो फलशर्करा के अतिरिक्त और कुछ पचता ही नहीं है।

12-मुँहासे- चेहरे के मुँहासे, दाग आदि नीबू के रस से ही जाते हैं।

13-टॉन्सिल- टॉन्सिल बढ़ने में अनन्नास और नीबू का रस गुणकारी है।

14-कैन्सर- इंग्लैण्ड के एक चिकित्सक का मत है-‘कैन्सर/नासूर के रोग में केवल ताजे फल एक अचूक इलाज है। ऐसे रोगियों को केवल फल और फल के रस पर रखा जाता है और पानी बिल्कुल नहीं पिलाया जाता। यदि अन्न और नमक छोड़कर सिर्फ फल पर ही रखा जाए तो ऊपर से पानी पीने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी।’

15-जीर्णरोग- जीर्णरोगों में फलाहार चिकित्सा से आशातीत सफलता मिलती है। 90% जीर्णरोग तो फलाहार चिकित्सा से ही अच्छे हो जाते हैं। इसमें धीरे-धीरे अन्नसेवन त्याग कर पहले 3-4 दिन फल रस पर ही रहना चाहिए। इन दिनों सुबह-शाम एनिमा जरूर लेना चाहिए। कुछ कमजोरी हो तो उसे स्वाभाविक समझकर बर्दाश्त कर लेना चाहिए।
उसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार 5 से 10 दिनों तक दिन में 3 बार केवल फल खाकर रहना चाहिए। इन दिनों में भी प्रतदिन 1 बार एनिमा लेते रहना चाहिए।

तत्पश्चात् 10 दिन तक सिर्फ फल-दूध पर रहना चाहिए। दूध गाय का और धारोष्ण होना चाहिए। प्रत्येक बार फल खाने के बाद 250 ग्राम दूध पीना पर्याप्त होगा। दूध में चीनी आदि कुछ नहीं मिलाना चाहिए। यदि चिकित्सा के लिए ताजे फल न मिल सकें तो उसकी जगह भीगी हुई किशमिश और उसका मीठा पानी ही काम में लाना चाहिए। किशमिश को पानी में 7-8 घण्टे भिगोए रखने से उसका रस पानी में खिंच आता है और किशमिश भी फूलकर अँगूर का स्वाद देने लगती है।

दूध और फल का भोजन चलाते समय एनिमा लेना छोड़ा जा सकता है। फल और दूध का भोजन अनुकूल न पड़ने पर रोगी को फल और मठा भी दिया जा सकता है। फल, दूध तथा मठा के भोजन की समाप्ति के बाद सुबह-शाम फल और दूध तथा दोपहर को रोटी सब्जी खानी चाहिए।

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