यशद भस्म के फायदे | Jasad Bhasma Benefits in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

यशद (जस्ता) क्या होता है ? : Jasad (jasta) kya hota hai

जस्ता एक सुप्रसिद्ध धातु है और यह मद्रास, बंगाल, राजपूताना, पंजाब आदि कई स्थानों में खान से निकलता है, इसका रंग सफेद होता है। व्यवहार में इसका उपयोग व्यापारी लोग सुराही, हुक्का, गिलास, कटोरी, थाली आदि बनाने के काम में करते हैं। यह पानी से अठगुना भारी होता है। प्राचीन रस ग्रन्थों में उसे रसक सत्व या खर्पर सत्व नाम से कहा हैं। यशद नाम से इसका सर्वप्रथम वर्णन भावप्रकाश और आयुर्वेद प्रकाश में मिलता है। यशद का विशिष्ट गुरुत्व ७ है। ४२०° शतांश तापमान पर यह पिघलता है और ९०७° शतांश ताप मान पर उबलता है। इसकी भस्म १४००° शतांश तापमान पर उड़ने लगती है। खुली हवा में गरम करने पर यह नीली ज्वालाओं के रूप में जलकर इसकी सफेद भस्म बन जाती है। इसे बस्ते का फूल या मली कहते हैं। राजस्थान और पंजाब में अंजन के प्रयोग में लिया जाता है, जयपुर की मली बंहुत प्रसिद्ध है। यही असली पुष्पांजन भी है। इससे उत्तम लाभ होता है।

यशद भस्म बनाने की विधि : Jasad bhasma bnane ki vidhi

शुद्ध यशद को कड़ाही में आग पर पिघला कर नीम के गीले पत्तों का रस चूर्ण का थोड़ा-थोड़ा प्रक्षेप देकर नीम के डंडे से चलाते रहें। चूर्ण होने पर ढाँककर ४-५ घण्टे तक तीव्र आँच लगाये। स्वांग-शीतल होने पर पीसकर पश्चात् एक बर्तन पर कपड़ा बाँधकर कपड़े पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालकर हाथ से चलाते जाएँ, इस प्रकार सारी भस्म छान लें और ३-४ घण्टे तक पड़ा रहने दें। बाद में पानी को नितार कर अलग कर दें तथा भस्म को सुखाकर ग्वारपाठा स्वरस की भावना देकर टिकिया बना सुखाकर सरावों में रख कपड़मिट्टी से सन्धि बन्द कर प्रथम पुट में तेज आँच दें। बाद में इसी प्रकार उत्तरोत्तर कुछ हलकी आँच में पुट दें। १०-११ पुट में कुछ ललाई लिए पीली रंग की भस्म बनेगी। इसकी बारीक घुटाई कराकर महीन कपड़े से छानकर काँच या चीनी मिट्टी के पात्र में भरकर रख लें। – रसायन सार के आधार पर स्वानुभूत विधि

यशद भस्म सेवन की मात्रा और अनुपान :

आधी रत्ती से १ रत्ती, शहद, मक्खन, मलाई, मिश्री या रोगानुसार अनुपात के साथ दें।

यशद भस्म के फायदे / लाभ : Jasad bhasma ke fayde / benefits

1- यशद भस्म कड़वी, कषैली, शीतल, पित्त-नाशक, नेत्रों के लिए लाभदायक और पाण्डु, प्रमेह तथा श्वास को नष्ट करनेवाली है।
2- नेत्ररोग में इसकी भस्म बहुत लाभदायक है, जैसे -नेत्र (आँख) में रोहे आना, आँख में दर्द होना, बराबर आँख में लाली बनी रहना या जल्दी-जल्दी आँखें आ (उठ)जाना, इन रोगों में १ माशा यशद भस्म और गो-घृत २ तोला, दोनों को बासी पानी से १०८ बार काँसे की थाली में डालकर हाथ की हथेली से खूब मथकर प्रतिबार पानी निकाल कर धोकर रखें, फिर अंजन बनाकर आँखों में आँजने से शीघ्र लाभ होता है। यदि बच्चों के लिये बनावें तो १ तोला मक्खन और चौथाई रत्ती भीमसेनी कपूर भी डाल दें। यह बच्चों के लिये विशेषकर लाभदायक होगा।
3- ग्रीष्मकाल में होनेवाले बच्चों के फोड़े-फुन्सियों में भी लगाने से अच्छा लाभ होता है।
4- इस अंजन से पैत्तिक रतौन्धी दूर हो जाती है, परन्तु रतौन्धी में इतना और करें कि पात:काल त्रिफला के जल से सिर और आँखों को खुब धो दिया करें।
5- इसकी भस्म को घी में मिलाकर गर्मी में फोड़ा-फूसी आदि पर लेप लगाते हैं।
6- हाथ पैरों की अंगुलियों की बीच जो पानी लग जाने से सफेद पड़ जाती है, उस पर इस भस्म को घी में या नारियल-तैल में मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
7- बच्चों की पीठ, छाती या माथे पर कभी-कभी ग्रन्थि (गाँठ) हो जाया करती है, और क्रमश: बढ़ती रहती है। साधारण बोल-चाल में इसकों मांस वृद्धि’ कहते हैं। शास्त्रकारों ने इसका नाम अर्बुद (रसौली) रखा है। इस पर यशद भस्म का प्रभाव प्रवालपिष्टी के साथ अच्छा पड़ता हैं। साथ ही ग्रन्थि फूटने के लिये-कासीस, सेन्धानमक, चित्रक की जड़, आक और सेहँड के दूध, दन्ती की जड़, गुड़ और गौ-दुग्ध इसका लेप बनाकर ग्रन्थि पर लेप करें, तो ग्रन्थि फूट जायेगी।
8- जस्त भस्म सरसों के तेल में मिला कर पैत्तिक सूजन पर लेप करने से सूजन मिट जाती है।
9- यह भस्म कषाय और शीतल गुणयुक्त है।
10- रसवाहिनी और रसपिण्ड की विकृति में यह बहुत उत्तम औषधि मानी गई है।
11- यह कफ और पित्त शामक, दाह, प्रदर, पित्तज-प्रमेह, खाँसी, अतिसार, संग्रहणी, धातुक्षय, जीर्णज्वर, पाण्डु, श्वास आदि रोगों में लाभदायक हैं।
12- कण्ठमाला, अपची और आभ्यन्तरिक शोध में भी लाभदायक है।
13-नेत्र रोग में १ माशा घी और ४ माशा शहद के साथ खाकर उपर से दूध पियें। दवा सेवन के साथ-साथ १ रत्ती यशद भस्म ६ माशे शतधौत घृत में मिलाकर दिन में दो बार अंजन करना चाहिए। इससे नेत्र की ज्योति बढ़ती है।
14- पेट में दाह (जलन) हो, तो प्रवाल पिष्टी और आँवले के मुरब्बे के साथ १ रत्ती यशद भस्म, जामुन की गुठली का चूर्ण १ माशे में मिलाकर शहद के साथ देने से लाभ होता है। विशेषकर पैत्तिक प्रमेह में जब कि सर्वांग में दर्द हो, हाथ-पैर में जलन हो, प्यास अधिक लगती हो, जिव्हा सख्त और फट जाये, कण्ठ में शोथ हो, मस्तिष्क शून्य हो जाय, थोड़े ही परिश्रम से थकावट मालूम हो इत्यादि लक्षणों से युक्त प्रमेह में यशद भस्म १ रत्ती, गिलोय सत्व ४ रत्ती, शिलाजीत १ रत्ती के साथ देने से बहुत शीघ्र फायदा होता है।

यशद भस्म से रोगों का उपचार : Jasad bhasma se rogon ka ilaj / upchar

1-खाँसी : खाँसी में सितोपलादि चूर्ण के साथ देना चाहिए। ( और पढ़ेकैसी भी खांसी और कफ हो दूर करेंगे यह 11 रामबाण घरेलु उपचार)

2-अतिसार और संग्रहणी : अतिसार और संग्रहणी में – कभी-कभी आँतों में शोथ होने पर अतिसार हो जाया करता है, साथ में वमन, ज्वर, उदर शूल, स्वर भंग आदि उपद्रव होते हैं और रोगी की शक्ति : क्षीण होकर ऐसी दशा हो जाती है कि उससे उठा-बैठा नहीं जाता, यहाँ तक कि हाथ-पैर का संचालन भी अच्छी तरह नहीं कर सकता अर्थात् बहुत भयंकर परिस्थिती हो जाती है। ऐसी भीषण परिस्थिती में यशद भस्म बहुत अच्छा काम करती है। पशद भस्म १ रत्ती, मिश्री ४ रत्ती दोनों एकत्र मिलाकर ३ पुड़िया बना प्रातः, दोपहर, तथा सायं में शहद या मट्ठा (छाछ) से दें।

3-धातुक्षय : धातुक्षय के कारण धातु इतनी पतली हो गयी हो कि पेशाब के साथ पानी की तरह बहकर निकल जाती हो या स्त्री विषयक अथवा तत्प्रसंग विषयक चर्चा होते ही धातु-स्त्राव हो जाता हो या थोड़ी भी खट्टी-मीठी चीजें खा लेने से रात में स्वप्न दोष हो जाता हो, अथवा मैथुनेच्छा (स्त्री प्रसंग की इच्छा) होते ही शुक्रस्त्राव हो जाता हो ऐसी दशा में रोगी बहुत परेशान हो जाता है। इसमें यशद भस्म १ रत्ती और शिलाजीत १ रती दोनों एकत्र मिलाकर मलाई या मक्खन के साथ सेवन करने से फायदा होता है। ( और पढ़ेधातु दुर्बलता दूर कर वीर्य बढ़ाने के 32 घरेलू उपाय )

4- राजयक्ष्मा : जबकि इस रोग का असर सम्पूर्ण शरीर में अच्छी तरह व्याप्त हो गया हो, खाँसी के मारे छाती और कलेजा तथा पीठ में दर्द मालूम होता हो, फुफ्फुस के कुछ भागों में इसका असर पड़कर वह भाग नष्ट हो गया हो, बुखार हर समय बना रहता हो, प्रात:काल पसीना जोरों से आता हो, बल तथा मांसादि क्षीण हों- ऐसी दशा में यशद भस्म १ रत्ती, मोती पिष्टी आधी रत्ती, सितोपलादि चूर्ण २ माशा और च्यवनप्राशावलेह अथवा वासावलेह २ तोला में मिलाकर सेवन करावें। ऊपर से बकरी का दूध पिला दें। इससे पूर्वोक्त उपद्रव शान्त होकर रोग का शमन होने लगता है।

5-पीलिया : पाण्डू रोग में मण्डूर भस्म के साथ देने से लाभ होता है, और उसके उपद्रवों में पान के रस और मधु के साथ देने से लाभ होता है । ( और पढ़ेपीलिया कैसा भी हो जड़ से खत्म करेंगे यह 36 देसी घरेलु उपचार)

6-पैत्तिक प्रमेह : पैत्तिक प्रमेह में यशद भस्म के उपयोग से विशेष फायदा होता है। जिस प्रमेह में रोगी को पित्ताधिक्य के कारण हाथ-पाँव तथा सम्पूर्ण शरीर में दाह मालूम हो, प्यास लगने पर थोड़े ही पानी से शान्ति मिल जाय, मन में बेचैनी के कारण विचार-शक्ति का -हास और मस्तिष्क शून्य मालूम पड़े. ऐसी दशा में यशद-भस्म, प्रवाल चन्दपुटी या गुडूची सत्व के साथ देने से लाभ होता है।

7-पित्तज्वर और रक्तातिसार : पित्तज्वर और रक्तातिसार में छुहारे और चावल के धोवन के साथ, शीतज्वर में लौंग और अजवायन के साथ तथा वमन और जी मिचलाने में मिश्री और जीरे के साथ देना बहुत लाभप्रद है।

8-मन्दाग्नि : पंचकोल (पीपल, पिपलामूल, चव्य, चित्रक और सोंठ) के साथ यशद भस्म १ रत्ती खाने से मन्दाग्नि दूर हो जाती है। ( और पढ़ेभूख न लगना या मन्दाग्नि का सरल आयुर्वेदिक निदान)

9- खाँसी व दमा : इसको ६ माशे अद्रक का रस और ६ माशे शहद के साथ सेवन कराने से खाँसी व दमा नष्ट हो जाता है।

10-सूजाक : सूजाक में जब रोगी को कभी चैन न पड़ती हो, मारे दर्द के परेशान रहता हो, इन्द्रिय में जलन, पेशाब में भी जलन तथा बहुत कष्ट भी होते हों, मवाद का रंग पीला सा तथा उसमें बुरी बास (बदबू) आती हों, ऐसी दशा में ३ माशे सन्दल तैल (चन्दन तैल) आधी रत्ती यशद भस्म मिलाकर दें ऊपर से दही की लस्सी पिला दें तथा प्रातः सायं त्रिफला को दही के पानी में भिगोकर उस पानी हो छान कर रख लें। इस छने हुए पानी से पिचकारी लेकर इन्द्रिय को धोवें। इससे मूत्रनली साफ हो जाती है तथा धीरे-धीरें सूजाक भी मिट जाता है।

11-नंपुसकता : गोखरू क्वाथ के साथ यशद भस्म देने से पेशाब साफ आता है और कौंच के बीज के चूर्ण तथा मिश्री के साथ देने से नंपुसकता मिटती है।- औ. गु. ध. शा. ( और पढ़ेपुरुष बांझपन के 17 घरेलू उपचार)

वक्तव्य – आधुनिक वैज्ञानिक विधि से बनी यशद भस्म का भी नेत्र अंजनों सुरमा, काजल में तथा व्रणों पर लगाने के मलहमों में प्रचुर प्रयोग हो रहा है। यह भी एक प्रकार का जस्ते का फूल ही है। इसे खाने के काम में नहीं लें।

सावधानियां :

★ अधिक मात्रा में इसका सेवन शरीर को नुकसान पहुंचाता है।
★ सही प्रकार से बनी यशद भस्म का ही सेवन करे।
★ अशुद्ध / कच्ची यशद भस्म से शरीर पर बहुत से हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होतें है |
★ इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।

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