किशमिश के फायदे और नुकसान | Kishmish ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on September 13, 2022 by admin

किशमिश (द्राक्ष) क्या है ? :

किशमिश (द्राक्ष) एक प्रकार का श्रेष्ठ प्राकृतिक मेवा है। इसका स्वाद मधुर होता है। उत्तम कोटि के फलों में इसकी गणना की जाती है। इसकी बेल होती है। इस बेल का रंग लालिमा लिए हुए रहता है। मण्डप बनाकर बेल को उस पर चढ़ा दिया जाता है। किशमिश की बेल 2-3 वर्ष की होने पर फलने-फूलने लगती है। विशेषतः फरवरी, मार्च के महीनों में बाजार में हरी द्राक्ष अधिक मात्रा में दिखाई देती है।

किशमिश दो किस्म की होती है- 1. काली और 2. सफेद ।
सफेद द्राक्ष अधिक मीठी होती है। काली द्राक्ष सभी प्रकृति वालों को सभी रोगों में लाभप्रद और गुणकारी होती है। काली द्राक्ष का दवा में अधिक प्रयोग होता है। बेदाना, मुनक्का और किशमिश–ये द्राक्ष की प्रमुख किस्में हैं। बेदाना नामक द्राक्ष कुछ सफेद होती है और उसमें बीज नहीं होता। मुनक्का द्राक्ष कुछ काली होती है। किशमिश अधिकतर बेदाना जैसी ही, परन्तु कुछ छोटी होती है।

किशमिश के गुण (kishmish ke gun)

  • किशमिश गर्म देशों के लोगों की भूख और प्यास का शमन करने में उपयोगी है।
  • यह पित्तशामक और रक्तवर्धक है ।
  • हरी किशमिश अंशतः कफकारक मानी जाती है परन्तु सेंधानमक अथवा नमक के साथ खाने से कफ होने का भय नहीं रहता ।
  • सूखी द्राक्ष की अपेक्षा हरी किशमिश कुछ खट्टी, किन्तु अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी होती है।
  • द्राक्ष काजू आदि के साथ नाश्ते के रूप में भी ली जाती है।
  • पुराने कब्जे वाले लोग यदि प्रतिदिन थोड़ी या ज्यादा किशमिशखाएँ तो उन्हें नर्म दस्त आते हैं और कब्जियत निश्चित रूप से दूर होती है ।
  • जिन्हें अर्श की तकलीफ हो वे यदि किशमिश का सेवन करें तो द्राक्ष रेचक होने से उन्हें नर्म दस्त होते हैं और अर्श की पीड़ा कम होती है।
  • जिन लोगों को पित्त प्रकोप हुआ हो, वे यदि द्राक्ष का सेवन करें तो उनका पित्तप्रकोप शान्त होता है, शरीर में होने वाली जलन दूर होती है, उल्टी की शिकायत हो तो वह भी बन्द होती है।
  • यदि शरीर निर्बल, वजन न बढ़ता हो, चमड़ी शुष्क हो गई हो, आँखों में धुंधलापन महसूस होता हो और जलन रहती हो तो द्राक्ष का सेवन करने से यह समस्त शिकायतें दूर होती हैं ।
  • किशमिश में स्थित विटामिन ‘सी’ के कारण स्कर्वी और त्वचा रोगों का इससे अच्छा प्रतिकार होता है।
  • इतना ही नहीं यह सर्दी, मानसिक अस्वस्थता, श्वास आदि रोगों से भी रक्षा करती है।
  • किशमिश खाने से शरीर में स्फूर्ति व ताजगी आती है। यूरोप में किशमिश का खूब उपयोग होता है ।
  • कच्ची किशमिश बहुत कम गुणवाली और भारी होती है ।
  • खट्टी द्राक्ष रक्तपित्त करती है ।
  • हरी किशमिश गुरु, खट्टी, उष्ण, रक्तपित्त कारक, रुचिकारक, दीपक और वातनाशक है ।
  • पकी किशमिश मल को सरकारने वाली, नेत्रों के लिए हितकारी, शीतल और रस में मधुर, स्वर को अच्छा बनाने वाली, कसैली, मल-मूत्र को बाहर निकालने वाली, पेट में वायु भरने वाली, वीर्यवर्धक और कफ तथा रुचि उत्पन्न करने वाली है।

आयुर्वेद के मतानुसार- किशमिश सारक स्वर को अच्छा करने वाली, रस और विपाक में मिठास वाली और चिकनाहट और शीतल गुणवाली है।किशमिश का पेय एक उत्तम पेय है। अतः इसका प्राचीन काल से ही पथ्य और औषधि के रूप में उपयोग होता चला आ रहा है।

यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार- किशमिश कफ को पतला करके बाहर निकालती है। स्त्रियों के मासिकधर्म को नियमित करती है। कब्जियत को दूर करती है, रक्त बढ़ाती है, माँस को पुष्ट करती है। यह खट्टी-मीठी है और पाचक है। फेफड़ों एवं यकृत मूत्राशय के रोगों और जीर्ण ज्वर में यह लाभदायक है। इसका रस सिरदर्द, उपदंश आदि को मिटाता है। इसके बीज शीतल, कामोत्तेजक और ग्राही हैं। इसके पत्ते अर्श को मिटाते हैं । इसकी बेल की शाखाएँ मूत्राशय की सूजन में लाभप्रद हैं। इसकी बेल की भस्म मूत्राशय की पथरी को पिघलाकर निकालने में सहायक बनती है। जोड़ों की पीड़ा को दूर करती है और अर्श की सूजन मिटाती है।

वैज्ञानिक मतानुसार- किशमिश में विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ और ‘सी’ तथा शरीर को बल प्रदान करने वाले पौष्टिक पदार्थ हैं। जिसके कारण यह कब्जियत को दूर करती है।किशमिश के रस के सेवन से यकृत को शक्ति प्राप्त होती है। किशमिश में फल शर्करा और कार्बोहाइड्रेट अत्यधिक मात्रा में हैं। अतः पौष्टिकता की दृष्टि से यह दूसरे किसी भी फल की अपेक्षा अधिक लाभकर है।

किशमिश के फायदे और उपयोग (kishmish ke fayde aur upyog)

1. मस्तिष्क की गर्मी : 2 तोला बेदाना किशमिश को गाय के दूध में उबालकर रात्रि को सोते समय पीने से मस्तिष्क की गर्मी निकल जाती है। ( और पढ़े – द्राक्ष या किशमिश खाने के 25 बड़े फायदे )

2. मूर्च्छा : किशमिश व उबाले हुए आँवले शहद में मिलाकर देने से मूर्च्छा रोग में लाभ होता है।

3. सिर चकराना : 2 तोला किशमिश पर घी लगाकर प्रतिदिन प्रातः इसका सेवन करने से वात प्रकोप दूर होता है। यदि दुर्बलता के कारण सिर चकराता हो तो वह भी ठीक होता है।

4. आधासीसी : किशमिश(द्राक्ष) और धनिया को ठण्डे पानी में भिगोकर सेवन करने से आधासीसी में लाभ होता है। ( और पढ़े –आधा सिर दर्द की छुट्टी करदेंगे यह 27 घरेलू इलाज )

5. विष : किशमिश का सिरका दूध में डालकर पिलाने से धतूरे का विष उतरता है।

6. दाह : 10 ग्राम द्राक्ष को रात में पानी में भिगोकर रखें । प्रातःकाल उसे मसल छालकर और शक्कर मिलाकर पीने से आँखों की गर्मी और दाह में लाभ होता है।

7. अम्लपित्त : किशमिश और सौंफ 2-2 तोला छानकर उसमें एक तोला शक्कर मिलाकर थोड़े दिनों तक सेवन करने से अम्लपित्त, खट्टी डकारें, खट्टी उल्टी, उबकाई, मुँह में छाले पड़ना, आमाशय में जलन होना, पेट का भारीपन आदि में लाभ होता है। ( और पढ़े –चुटकियों मे एसिडिटी को दूर करेंगे यह आसान घरेलू नुस्खे )

8. क्षत कास : बीज निकाली हुई द्राक्ष, घी और शहद एकत्रकर चाटने से क्षत कास में लाभ होता है।

9. शक्ति : बीज निकाली हुई द्राक्ष 2 तोला, खाकर ऊपर से आधा किलो दूध पीने से भूख खुलती है, मल शुद्धि होती है तथा ज्वर के बाद की दुर्बलता दूर होती है और शरीर में शक्ति आती है।

10. मन्दाग्नि : द्राक्ष, कालीमिर्च, पीपर और सैंधा नमक प्रत्येक 1-1 तोला लेकर सबको कूटकर कपड़े से छानकर चूर्ण बनालें । फिर इसमें 40 तोला काली द्राक्ष मिला लें और चटनी की तरह पीसकर काँच के बर्तन में भरकर सुरक्षित रखलें । यह चटनी ‘पंचामृतावलेह’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसे आधा से 2 तोला तक की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से अरुचि, वायु, मन्दाग्नि, कब्जियत, शूल, मुँह की लार, कफ आदि मिटता है। ( और पढ़े – मंदाग्नि दूर कर भूख बढ़ाने के 51 अचूक उपाय)

11. शरीर की गर्मी : 120 तोला पानी में 108 तोला चीनी डालकर आग पर रखें । उफान आने के बाद उसमें हरी द्राक्ष 80 तोला डालकर डेढ़ तार की चासनी बनाकर शर्बत तैयार करलें। यह शर्बत पीने से तृषा रोग, शरीर की गर्मी, क्षय आदि रोगों में लाभ होता है।

12. पित्त : काली द्राक्ष रात में भिगोकर रखें । दूसरे दिन सुबह उसे मसल छानकर उसमें जीरा की बुकनी और शर्करा डालकर पीने से पित्त का दाह मिटता है।

13. सूखी खाँसी : किशमिश, आँवले, खजूर, पीपर और काली मिर्च सममात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें और कपड़े से छानलें। इसमें से पाव-पाव तोला चूर्ण शहद में मिलाकर दिन में 3 बार चाटने से सूखी खाँसी में लाभ होता है।

14. खाँसी में खून : किशमिश और धमासा 1-1 तोला लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से उरशूल के कारण खाँसी में खून गिरना बन्द होता है।

15. कब्ज : 3-4 तोला काली किशमिश को रात को ठण्डे पानी में भिगोकर रखें । प्रातःसमय मसलकर छान लें । इसे थोड़े दिनों तक पीने से कब्ज मिटती है। ( और पढ़े – कब्‍ज दूर करने के 19 असरकारक घरेलू उपचार)

16. मूत्रकृच्छ : काली किशमिश का क्वाथ बनाकर पीने से मूत्रकृच्छ मिटता है । यह प्रयोग मूत्राशय की पथरी में लाभकारी है।

किशमिश के नुकसान : kishmish ke nuksaan

खट्टी या कच्ची द्राक्ष नहीं खानी चाहिए। द्राक्ष सारक और मूत्रल है । अतः सिर्फ द्राक्ष का अतिशय सेवन करने से शरीर कृश बनता है। आहार के साथ थोड़ी द्राक्ष खानी चाहिए। द्राक्ष को गर्म पानी में धोने के बाद ही उसका उपयोग करना चाहिए। ताकि गन्दगी या जन्तु दूर हो जाएँ।

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