मासानुसार गर्भवती महिला की देखभाल | 9 month pregnancy tips in hindi

Last Updated on July 23, 2019 by admin

मासानुसार गर्भिणी परिचर्या pregnancy ke 9 month in hindi

हर महीने में गर्भ-शरीर के अवयव आकार लेते हैं, अत: विकासक्रम के अनुसार हर महीने गर्भिणी को कुछ विशेष आहार लेना चाहए |

गर्भावस्था का पहला महीना :

★ गर्भधारण का संदेह होते ही गर्भवती महिला(garbhwati mahila )सादा मिश्रीवाला सहज में ठंडा हुआ दूध पाचनशक्ति के अनुसार उचित मात्रा में तीन घंटे के अंतर से ले अथवा सुबह-शाम ले | साथ ही सुबह १ चम्मच ताजा मक्खन (खट्टा न हो) ३ – ४ बार पानी से धोकर रूचि अनुसार मिश्री व १- २ कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर ले तथा हरे नारियल की ४ चम्मच गिरी के साथ २ चम्मच सौंफ खूब देर तक चबाकर खाये | इससे बालक का शरीर पुष्ट, सुडौल व गौरवर्ण का होगा |

★ इस महीने के प्रारम्भ से ही माँ (garbhwati mahila )को बालक में इच्छित धर्मबल, नीतिबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रद्धापूर्वक सतत मनन-चिंतन करना चाहिए | ब्रम्हनिष्ठ महापुरुषों का सत्संग एवं उत्तम शास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन-चिंतन करना चाहिए |

गर्भावस्था का दूसरा महीना :

★ इसमें शतावरी, विदारीकंद, जीवंती, अश्वगंधा, मुलहठी, बला आदि मधुर औषधियों के चूर्ण को समभाग मिलाकर रख लें | इनका १ से २ ग्राम चूर्ण २०० मि.ली. दूध में २०० मि.ली. पानी डाल के मध्यम आँच पर उबालें, पानी जल जाने पर सेवन करें |

गर्भावस्था का तीसरा महीना :

★ इस महीने में दूध को ठंडा कर १ चम्मच शुद्ध घी व आधा चम्मच शहद )अर्थात घी व शहद विषम मात्रा में ) मिलाकर सुबह-शाम लें |

★ उलटियाँ हो रही हों तो अनार का रस पीने तथा ‘ॐ नमो नारायणाय’ का जप करने से वे दूर होती हैं |

गर्भावस्था का चौथा महीना :

★ इसमें प्रतिदिन १० से २५ ग्राम मक्खन अच्छे-से धोकर, छाछ का अंश निकाल के मिश्री के साथ या गुनगुने दूध में डालकर अपनी पाचनशक्ति के अनुसार सेवन करें |

★ इस मास में बालक सुनने-समझने लगता है | बालक की इच्छानुसार माता के मन में आहार-विहार संबंधी विविध इच्छाएँ उत्पन्न होने से उनकी पूर्ति युक्ति से (अर्थात अहितकर न हो इसका ध्यान रखते हुए) करनी चाहिए |

★ यदि गर्भाधान अचानक हो गया हो तो चौथे मास में गर्भ अपने संस्कारों को माँ के आहार-विहार की रूचि द्वारा व्यक्त करता है | आयुर्वेद के आचार्यों का कहना है कि यदि इस समय भी हम सावधान होकर आग्रहपूर्वक दृढ़ता से श्रेष्ठ विचार करने लगें और श्रेष्ठ सात्त्विक आहार ही लें तो आनेवाली आत्मा के खुद के संस्कारों का प्रभाव कम या ज्यादा हो जाता है अर्थात रजस, तमस प्रधान संस्कारों में बदला जा सकता हैं एवं यदि सात्त्विक संस्कारयुक्त है तो उस पर उत्कृष्ट सात्त्विक संस्कारों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है |

गर्भावस्था का पाँचवाँ महीना :

★ इस महीने से गर्भ में मस्तिष्क का विकास विशेष रूप से होता हैं , अत: गर्भवती महिला(garbhwati mahila ) पाचनशक्ति के अनुसार दूध में १५ से २० ग्राम घी ले या दिन में दाल-रोटी, चावल में १-२ चम्मच घी, जितना हजम हो जाय उतना ले | रात को १ से ५ बादाम (अपनी पाचनशक्ति के अनुसार) भिगो दे, सुबह छिलका निकाल के घोंटकर खाये व ऊपर से दूध पिये |

★ इस महीने के प्रारम्भ से ही माँ को बालक में इच्छित धर्मबल, नीतिबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रद्धापूर्वक सतत मनन-चिंतन करना चाहिए | ब्रम्हनिष्ठ महापुरुषों का सत्संग एवं उत्तम शास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन-चिंतन करना चाहिए | ‘हे प्रभु ! आनंददाता !!….’ प्रार्थना आत्मसात करे तो उत्तम है |

गर्भावस्था का छठा व सातवाँ महीना :

★ इन महीनों में दूसरे महीने की मधुर औषधियों (इसमें शतावरी, विदारीकंद, जीवंती, अश्वगंधा, मुलहठी, बला आदि मधुर औषधियों के चूर्ण को समभाग मिलाकर रख लें | इनका १ से २ ग्राम चूर्ण २०० मि.ली. दूध में २०० मि.ली. पानी डाल के मध्यम आँच पर उबालें) में गोखरू चूर्ण का समावेश करे व दूध-घी से ले | आश्रम-निर्मित तुलसी-मूल की माला कमर में धारण करें |

★ इस महीने से प्रात: सूर्योदय के पश्चात सूर्यदेव को जल चढ़ाकर उनकी किरणें पेट पर पड़ें, ऐसे स्वस्थता से बैठ के ऊंगलियों में नारियल तले लगाकर पेट की हलके हाथों से मालिश (बाहर से नाभि की ओर) करते हुए गर्भस्थ शिशु को सम्बोधित करते हुए कहे : ‘जैसे सूर्यनारायण ऊर्जा, उष्णता, वर्षा देकर जगत का कल्याण करते हैं, वैसे तू भी ओजस्वी, तेजस्वी व परोपकारी बनना |’

★ माँ के स्पर्श से बच्चा आनंदित होता है | बाद में २ मिनट तक निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए मालिश चालू रखे |

ॐ भूर्भुवः स्व: | तत्सवितुर्वरेन्य भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात् || (यजुर्वेद :३६.३)

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रामेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: |

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोsस्म्यहं रामे चित्तलय: सदा भवतु में भो राम मामुद्धर || (श्री रामरक्षास्तोत्रम्)

★ रामरक्षास्तोत्र के उपर्युक्त श्लोक में ‘र’ का पुनरावर्तन होने से बच्चा तोतला नहीं होता | पिता भी अपने प्रेमभरे स्पर्श के साथ गर्भस्थ शिशु को प्रशिक्षित करे |

★ सातवें महीने में स्तन, छाती व पेट पर त्वचा के खिंचने से खुजली शुरू होने पर ऊँगली से न खुजलाकर देशी गाय के घी की मालिश करनी चाहिए |

गर्भावस्था का आठवाँ व गर्भावस्था का नौवाँ महीना :

★ इन महीनों में चावल को ६ गुना दूध व ६ गुना पानी में पकाकर घी दाल के पाचनशक्ति के अनुसार सुबह-शाम खाये अथवा शाम के भोजन में दूध-दलियें में घी डालकर खाये | शाम का भोजन तरल रूप में लेना जरूरी है |

★ गर्भ का आकार बढ़ने पर पेट का आकार व भार बढ़ जाने से कब्ज व गैस की शिकायत हो सकती है | निवारणार्थ निम्न प्रयोग अपनी प्रकृति के अनुसार करे :

★ आठवें महीने के १५ दिन बीत जाने पर २ चम्मच एरंड तेल दूध से सुबह १ बार ले, फिर नौवें महीने की शुरआत में पुन: एक बार ऐसा करे अथवा त्रिफला चूर्ण या इसबगोल में से जो भी चूर्ण प्रकृति के अनुकूल हो उसका सेवन वैद्यकीय सलाह के अनुसार करे | पुराने मल की शुद्धि के लिए अनुभवी वैद्य द्वारा निरुह बस्ति व अनुवासन बस्ति ले |

★ चंदनबला लाक्षादि तेल से अथवा तिल के तेल से पीठ, कटि से जंघाओं तक मालिश करे और इसी तेल में कपडे का फाहा भिगोकर रोजाना रात को सोते समय योनि के अंदर गहराई में रख लिया करे | इससे योनिमार्ग मृदु बनता है और प्रसूति सुलभ हो जाती है |

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पंचामृत :

९ महीने नियमित रूप से प्रकृति व पाचनशक्ति के अनुसार पंचामृत ले |

पंचामृत बनाने की विधि :

१ चम्मच ताजा दही, ७ चम्मच दूध, २ चम्मच शहद, १ चम्मच घी व १ चम्मच मिश्री को मिला लें | इसमें १ चुटकी केसर भी मिलाना हितावह है |

गुण :

★ यह शारीरिक शक्ति, स्फूर्ति, स्मरणशक्ति व कांति को बढ़ाता है तथा ह्रदय, मस्तिष्क आदि अवयवों को पोषण देता है |
★ यह तीनों दोषों को संतुलित करता है व गर्भिणी अवस्था में होनेवाली उलटी को कम करता है |

उपवास में सिंघाड़े व राजगिरे की खीर का सेवन करें | इस प्रकार प्रत्येक गर्भवती महिला को नियमित रूप से उचित आहार-विहार का सेवन करते हुए नवमास चिकित्सा विधिवत् लेनी चाहिए ताकि प्रसव के बाद भी इसका शरीर सशक्त, सुडौल व स्वस्थ बना रहे, साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल व सुंदर और ह्रष्ट-पुष्ट शिशु को जन्म दे सके | इस चिकित्सा के साथ महापुरुषों के सत्संग-कीर्तन व शास्त्र के श्रवण-पठन का लाभ अवश्य लें |

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)

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