आपके नवजात शिशु का ऐसे करें स्वागत | How to Welcome the New Born Baby?

Last Updated on November 19, 2019 by admin

नवजात शिशु के स्वागत के लिए वैदिक प्रक्रिया

★       अष्टांगहृदयकार का कहना है कि बालक के जन्मते ही तुरन्त उसके शरीर पर चिपकी उल्व को कम मात्रा में सेंधा नमक एवं ज्यादा मात्रा में घी लेकर हलके हाथ से साफ करें।

★       जन्म के बाद तुरन्त नाभिनाल का छेदन कभी न करें। 4-5 मिनट में नाभिनाल में रक्तप्रवाह बंद हो जाने पर नाल काटें। नाभिनाल में स्पंदन होता हो उस समय उसे काटने पर बालक के प्राणों में क्षोभ होने से उसके चित्त पर भय के संस्कार गहरे हो जाते हैं। इससे उसका समस्त जीवन भय के साये में बीत सकता है।

★       बच्चे का जन्म होते ही, मूर्च्छावस्था दूर होने के बाद बालक जब ठीक से श्वास-प्रश्वास लेने लगे, तब थोड़ी देर बाद स्वतः ही नाल में रक्त का परिभ्रमण रुक जाता है। नाल अपने-आप सूखने लगती है। तब बालक की नाभि से आठ अंगुल ऊपर रेशम के धागे से बंधन बाँध दें। अब बंधन के ऊपर से नाल काट सकते हैं।

★       फिर घी, नारियल तेल, शतावरी सिद्ध तेल, बलादि सिद्ध तेल में से किसी एक के द्वारा बालक के शरीर पर धीरे-धीरे मसाज करें। इससे बालक की त्वचा की ऊष्मा सँभली रहेगी और स्नान कराने पर बालक को सर्दी नहीं लगेगी। शरीर की चिकनाई दूर करने के लिए तेल में चने का आटा डाल सकते हैं।

★       तत्पश्चात् पीपल या बड़ की छाल डालकर ऋतु अनुसार बनाये हुए हलके या ज्यादा गर्म पानी से 2-3 मिनट स्नान करायें। यदि सम्भव हो तो सोने या चाँदी का टुकड़ा डालकर उबाले हुए हलके गुनगुने पानी से भी बच्चे को नहला सकते हैं। इससे बच्चे का रक्त पूरे शरीर में सहजता से घूमकर उसे शक्ति व बल देता है।

★       स्नान कराने के बाद बच्चे को पोंछकर मुलायम व पुराने (नया वस्त्र चुभता है) सूती कपड़े में लपेट के पूर्व दिशा की ओर उसका सिर रखकर मुलायम शय्या पर सुलायें। इसके बाद गाय का घी एवं शहद विषम प्रमाण में लेकर सोने की सलाई या सोने का पानी चढ़ायी हुई सलाई से नवजात शिशु की जीभ पर ‘ॐ’ व ‘ऐं’ बीजमंत्र लिखें।

★       तत्पश्चात् बालक का मुँह पूर्व दिशा की ओर करके ” अच्युताय हरिओम फार्मा ” द्वारा निर्मित ‘सुवर्णप्राश टेबलेट (Suvarna Prash Tablet) को घी व शहद के विषम प्रमाण के मिश्रण के साथ अनामिका उँगली (सबसे छोटी उँगली के पास वाली उँगली) से चटायें।

★       बालक को जन्मते समय हुए कष्ट के निवारण हेतु हलके हाथ से सिर व शरीर पर तिल का तेल लगायें। फिर बच्चे को पिता की गोद में दें। पिता बच्चे के दायें कान में अत्यंत प्रेमपूर्वक बोलेः
ॐॐॐॐॐॐॐ अश्मा भव। तू चट्टान की तरह अडिग रहना ! How to Welcome the New Born Baby
ॐॐॐॐॐॐॐ परशुः भव। विघ्न बाधाओं को, प्रतिकूलताओं को ज्ञान के कुल्हाड़े से, विवेक के कुल्हाड़े से काटने वाला बन !
ॐॐॐॐॐॐॐ हिरण्यमयस्त्वं भव। तू सुवर्ण के समान चमकने वाला बन !
यशस्वी भव। तेजस्वी भव। सदाचारी भव। तथा संसार, समाज, कुल, घर व स्वयं के लिए भी शुभ फलदायी कार्य करने वाला बन !’

★       साथ ही पिता निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण भी करेः

अंगादंगात्सम्भवसि हृदयादभिजायसे। आत्मा वै पुत्रनामासि सञ्जीव शरदां शतम्।।
शतायुः शतवर्षोऽसि दीर्घमायुरवाप्नुहि। नक्षत्राणि दिशो रात्रिहश्च त्वाऽभिरक्षतु।।

‘हे बालक ! तुम मेरे अंग-अंग से उत्पन्न हुए हो और मेरे हृदय से साधिकार उत्पन्न हुए हो, तुम मेरी ही आत्मा हो किंतु तुम पुत्र नाम से पैदा हुए हो। तुम सौ वर्षों तक जियो। तुम शतायु होओ, सौ वर्षों तक जीने वाले होओ, तुम दीर्घायु को प्राप्त करो। सभी नक्षत्र, दसों दिशाएँ दिन-रात तुम्हारी चारों ओर से रक्षा करें।’ (अष्टाँगहृदय, उत्तरस्थानम्- 1.3,4)

★       बालक के जन्म के समय ऐसी सावधानी रखने से बालक की कुल की, समाज की और देश की सेवा हो जायेगी।

इसे भी पढ़े :
गौरवर्ण सुंदर तेजस्वी बालक के लिए 12 आयुर्वेदिक घरेलु उपाय
तेजस्वी संतान की प्राप्ति के उपाय
निरोग-स्वस्थ व तेजस्वी संतान-प्राप्ति के शास्त्रीय नियम

★       आयुर्वेद के श्रेष्ठ ग्रन्थ ‘अष्टाँगहृदय’ तथा ‘कश्यप संहिता’ में 16 संस्कारों के अंतर्गत बालकों के लिए लाभकारी सुवर्णप्राश का उल्लेख आता है। नवजात शिशु को जन्म से एक माह तक रोज नियमित रूप से सुवर्णप्राश देने से वह अतिशय बुद्धिमान बनता और सभी प्रकार के रोगों से उसकी रक्षा होती है। सुवर्णप्राश मेधा, बुद्धि, बल, जठराग्नि तथा आयुष्य बढ़ाने वाला, कल्याणकारक व पुण्यदायी है। यह ग्रहबाधा व ग्रहपीड़ा को भी दूर करता है।

★       6 मास तक सेवन करने से बालक श्रुतिधर होता है अर्थात् सुनी हुई हर बात को धारण कर लेता है। उसकी स्मरणशक्ति बढ़ती है तथा शरीर का समुचित विकास होता है। वह पुष्ट व चपल बनता है। विशेष लाभ के लिए 5 या 10 वर्ष तक भी दे सकते हैं।

★       शांत स्वच्छ, पवित्र कमरे में बालक को रखें। वहाँ पूर्व दिशा की ओर दीपक जलायें एवं बालक की रक्षा के लिए गूगल, अगरू, वचा, पीली सरसों, घी तथा नीम के पत्तों को मिलाकर धूप करें। इससे वातावरण शुद्ध होता है और शक्तिशाली प्राणवायु पैदा होती है।

★       नवजात शिशु को ज्यादा लाइट के प्रकाश में तथा पंखे एवं एयर कंडीशन वातावरण में नहीं रखना चाहिए।

★       बच्चे के जन्मने के बाद उसके मस्तिष्क में सृष्टि की संवेदनाओं को ग्रहण करने के लिए 24 घंटे के अंदर निश्चित प्रकार की प्रक्रियाएँ चालू हो जाती हैं। इन 24 घंटों में बालक सहजता से जो संस्कार ग्रहण करता है, वे पूरे जीवन में फिर कभी ग्रहण नहीं कर सकता। इसलिए ऐसे प्रारम्भिक काल की मस्तिष्क की क्रियाशीलता व संवेदनशीलता का पूरा लाभ लेकर उसे सुसंस्कारों से भर देना चाहिए।

★       बच्चे को सम्बोधित करते हुए कहना चाहिए कि ‘तू शुद्ध है, तू बुद्ध है, तू चैतन्य है, तू अजर-अमर-अविनाशी आत्मा है ! तू आनंदस्वरूप है, तू प्रेमस्वरूप है ! तेरा जन्म अपने स्वरूप को जानकर संसार के बंधनों से मुक्त होने के लिए ही हुआ है। इसलिए तू बहादुर बन, हिम्मतवान हो ! अपने में छुपी अपार शक्तियों को जाग्रत कर, तू सब कुछ करने में समर्थ है।’

★       इस प्रकार के आत्मज्ञान, नीतिबल व शौर्यबल के संस्कार इस समय बालक को दिये जायें और उसके इर्द-गिर्द ‘ॐॐ माधुर्य ॐ…. ॐॐ शुद्धोऽसि… ॐॐ चैतन्य… ॐॐ आनन्द….’ के मधुर उच्चारण या मानसिक जप के साथ मन-ही-मन रक्षा-कवच बनाया जाय तो वे संस्कार हमेशा के लिए उसके जीवन में दृढ़ हो जाते हैं।

★       बालक के जन्म के 30 या 31वें दिन से उसे सूर्य की कोमल किरणों का स्नान और रात को चन्द्र-दर्शन कराना चाहिए तथा चाँदनी में कुछ समय रखना चाहिए।

★       विदुषी मदालसा की तरह आत्मज्ञान की लोरियाँ गाकर सुसंस्कारों का सिंचन करें। लोरियों सुनने से बालक के ज्ञानतंतुओं को पुष्टि मिलती है।

Leave a Comment

error: Alert: Content selection is disabled!!
Share to...