निरोगी स्वस्थ तनावमुक्त जीवन के 13 अनमोल सूत्र | swath rahne ke upay /Health Tips

Last Updated on March 26, 2020 by admin

स्वस्थ रहने के 13 नियम | Health Tips

(१) नाक को रोगरहित रखने के लिए हमेशा नाक में सरसों आदि तेल की बूँदें डालने का अभ्यास रखना । कफ की वृद्धि हो या सुबह में पित्त की वृद्धि हो, या दोपहर को वायु की वृद्धि हो तब शाम को बूँदें डालनी चाहिये। नाक में तेल की बूँदें डालनेवाले का मुख सुगन्धित रहता है, शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पडती । आवाज स्निग्ध निकलती है । इन्द्रियाँ निर्मल रहती हैं । सफेद बाल जल्दी नहीं आते तथा फुन्सियाँ नहीं होतीं ।

(२) दिन में सोना नहीं चाहिये कारण कि दिन में सोने से कफ होता है । ग्रीष्म ऋतु के अलावा बाकी के सभी दिनों में दिन में सोना वर्जित है ।

(३) दस वर्ष के बाद बचपन समाप्त होता है, बीस वर्ष के बाद वृद्धि रुक जाती है, तीस वर्ष के बाद कान्ति कम होती है । चालीस वर्ष के बाद स्मरण शक्ति कम होती है । पचास वर्ष के बाद चमडी की स्निग्धता कम होती है, साठ वर्ष के बाद नेत्र की शक्ति कम होती है, सत्तर वर्ष के बाद वीर्य कम होता है, अस्सी वर्ष के बाद पराक्रम में कमी होती है । नव्वे वर्ष के बाद बुद्धि कम होती है, सौ वर्ष होने पर कर्मेंन्द्रियों की शक्ति कम होती है । एक सौ दस वर्ष के बाद जीवन कम होता है ।

(४) अंगों को दबवाना यह माँस, खून और चमडी को खूब साफ करता है, प्रीतिकारक होने से निद्रा लाता है, वीर्य बढाता है तथा कफ, वायु एवं परिश्रम का नाश करता है ।

(५) भोजन के बाद बैठे रहनेवाले के शरीर में आलस भर जाती है । लेट जाने से शरीर पुष्ट होता है । सौ कदम चलनेवाले की उम्र बढती है तथा दौडनेवाले की मृत्यु उसके पीछे ही दौडती है ।

(६) जीवों के नाभि के ऊपर बाई ओर अग्नि रहता है अतः खाया हुआ पचाने के लिए बाई करवट सोना चाहिए ।

(७) स्वादिष्ट अन्न मन को प्रसन्न करता है, बल बढाता है, पुष्ट करता है, उत्साह बढाता है तथा आयुष्य की वृद्धि करता है जबकि स्वादहीन अन्न ऊपर के कथन से विपरीत असर करता है ।

(८) भोजन के प्रारंभ में नमक तथा अदरक का भक्षण करना यह सर्वकाल में लाभकारी है । अग्नि प्रज्ज्वलित करनेवाला है, रुचि उत्पन्न करनेवाला है तथा जीभ और कंठ को साफ करनेवाला है ।

(९) भोजन करते समय माता-पिता, मित्र, वैद्य, रसोइया, हंस, मोर, सारस या चकोर पक्षी की निगाह उत्तम गिना जाता है, किंतु गरीब, हल्के, भूखे, पापी, पाखंडी या रोगी मनुष्य एवं मुर्गे तथा कुत्ते की दृष्टि अच्छी नहीं गिनी जाती ।

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(१०) मालिश :

★ सभी अंगों में पुष्टिदायक तेल मालिश अवश्य करानी चाहिए । सिर में, कान में और पैरों में तो विशेष रूप से करानी चाहिए । मालिश कराने से वायु तथा कफ मिटता है, थकान मिटती है, शक्ति तथा सुख की प्राप्ति होती है, नींद अच्छी आती है, शरीर का वर्ण सुधरता है, शरीर में कोमलता आती है, आयुष्य की वृद्धि होती है तथा देह की पुष्टि होती है ।

★ सिर में मालिश किया हुआ तेल सभी इन्द्रियों को तृप्त करता है, दृष्टि को बल देता है, सिर के दर्दों को मिटाता है । बाल में तेल पहुँचने से बाल घने, लम्बे तथा मुलायम होते हैं । लंबे समय तक टिकते हैं और बाल काले बने रहते हैं तथा सिर को भी भरा हुआ रखता है ।

★ नित्य कान में तेल डालने से कान में रोग या मैंल नहीं होता । गले के बाजू की नाडी तथा दाढी अकड नहीं जाती । बहुत ऊँचे से सुनना या बहरापन नहीं होता । कान में रस आदि पदार्थ डालने हो तो भोजन से पहले डालना हितकर है ।

★ पैरों पर तेल मसलने से पाँव मजबूत होते हैं । नींद अच्छी आती है, आँख स्वच्छ रहती है तथा पैर झूठे नहीं पड जाते, श्रम से अकड नहीं जाते, संकोच प्राप्त नहीं करते तथा फटते भी नहीं । जिस तरह गरुड के पास साँप नहीं जाते उसी तरह कसरत के अभ्यासी और तेलकी मालिश करानेवाले के पास रोग नहीं जाते ।

★ नहाते समय तेल का उपयोग किया हो तो वह तेल रोंगटों के छिद्रों, शिराओं के समूह तथा धमनियों के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को तृप्त करता है तथा बल प्रदान करता है ।

★ जिस तरह मूल में सिंचित वृक्षों के पत्ते आदि वृद्धि प्राप्त करते हैं उसी तरह अंगों पर तेल मलवानेवाले मानवों की तेल से qसचित धातुएँ पुष्टि प्राप्त करती हैं ।

★ बुखार से पीड़ित, कब्जियतवाले, जिसने जुलाब लिया हो, उसे उल्टी हुई हो, उसे कभी भी तेल की मालिश नहीं करनी चाहिये ।

★ शरीर पर चूर्णरूप पदार्थ मसलने से कफ मिटता है । मज्जा कम होती है, वीर्य बढता है, बल प्राप्त होता है । रक्त ठीक होता है तथा चमडी स्वच्छ तथा मुलायम होता है ।

★ मुँह पर तेल मलने से आँखें मजबूत होती है, गाल पुष्ट होते हैं, फोडे तथा फुन्सियाँ नहीं होती और मुँह कमल के समान सुशोभित होता है ।
जो मनुष्य प्रतिदिन आँवले से स्नान करता है उसके बाल जल्दी सफेद नहीं होते और वह सौ वर्ष तक जीवित रहता है ।

(११) दर्पण में देहदर्शन करना यह मंगलरूप है कांतिकारक है, पुष्टिदाता है, बल तथा आयुष्य को बढानेवाले हैं और पाप तथा अलक्ष्मी का नाश करनेवाला है । – (भावप्रकाश निघण्टु)

(१२) जो मनुष्य सोते समय बिजौरे के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ चाटता है वह सुखपूर्वक सो सकता है ।

(१३) जो मानव सूर्योदय से पूर्व आठ आधे चूल्लू भर पानी पीने का नियम रखता है वह रोग और बुढापा से मुक्त रहकर सौ वर्ष के उपरांत भी जीवित रहता है ।

 

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