मेरी रक्षा करो गुरुदेव ( बोध कथा )

Last Updated on July 24, 2019 by admin

एक बार एक शिष्य में आपने गुरुदेव से कहा की – हॆ देव एक डर हमेशा रहता है! की माया बड़ी ठगनी है विशवामित्र जी का तप एक अप्सरा के आकर्षण मे चला गया तो राजा भरत जैसै महान सन्त एक हिरण के मोह मे ऐसे फँसे की उन्हे हिरण की योनि मे जन्म लेना पड़ा और तो और देवर्षि नारद तक को माया ने आकर्षित कर लिया और वो बच न पाये हॆ नाथ बस यही डर हमेशा बना रहता है की कही कामदेव की प्रबल सेना मुझे आप से अलग न कर दे हॆ नाथ आप ही बताओ की मैं क्या करूँ?

<> गुरुदेव कुछ देर मौन रहे फिर बोले
हॆ वत्स चलो मेरे साथ और बिल्कुल सावधान होकर चलना, देखना और फिर दोनो नगर पहुँचे और एक घर मे गये जहाँ एक माँ की गोद मे छोटा सा बच्चा बैठा था गुरुदेव ने उस बच्चे के आगे कुछ स्वर्ण मुद्रायें डाली पर वो बच्चा गोद से न उतरा फिर आकर्षक खिलोने रखे पर वो गोद से न उतरा फिर गुरुदेव ने उस बच्चे को लिया तो वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा फिर ऋषिवर ने उस बच्चे को वापिस माँ की गोद मे बिठाया तो वो बस अपनी माँ से चिपक कर रोने लगा!

<> गुरुदेव फिर आगे बढे फिर एक माँ की गोद मे एक बालक बैठा था गुरुदेव ने उस बच्चे के सामने स्वर्ण मुद्रा और खिलौने डाले तो वो बच्चा खिलौने की तरफ़ बढ़ा और उन खिलौनों को अपने हाथों मे ले लिया पर जैसै ही उसकी माँ उठकर जाने लगी तो उसने उन खिलौनों को वही छोड़कर अपनी माँ की तरफ़ भागा और उस माँ ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया!

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<> फिर गुरुदेव आश्रम पहुँचे और शिष्य से कहने लगे हॆ वत्स जब तक बच्चा अबोध है वो न खिलौनों को महत्व देगा न स्वर्ण मुद्रा को और वो बस अपनी माँ की गोद मे ही रहना चाहेगा!

<> दुसरा वो जिसने खिलौने तो ले रखे है पर जैसै ही उसे तनिक भी आभास हुआ की माँ जा रही है तो उसने उन खिलौनों का त्याग कर दिया और अपनी माँ के पास चला गया!

<> इसलिये हॆ वत्स माँ और सद्गुरु के सामने अबोध बना रहना और त्यागी बनना! हॆ वत्स वस्तुतः होता क्या है जब तक बच्चा अबोध होता है तब तक माँ से दुर नही होना चाहता फिर जैसै जैसै वो बड़ा होता है तो सबसे पहले वो खिलौनों के आकर्षण मे आ जाता है फिर रिश्तों के आकर्षण मे चला जाता है फिर दौलत के आकर्षण मे चला जाता है और फिर इस तरह से आकर्षण बदलता रहता है कभी किसी के प्रति तो कभी किसी के प्रति और फिर वो धीरे धीरे आकर्षण के दलदल मे फंसता ही चला जाता है !
<> शिष्य ने गुरुदेव से पूछा की – हॆ गुरुदेव इससे कैसे बचे ?

<> गुरुदेव नें कहा – हॆ वत्स माँ और सद्गुरु के सामने अबोध बन, त्यागी बन और प्रेमी बन और हॆ वत्स सद्गुरु के चरणों मे जब प्रीति बढ़ती है तो फिर आकर्षण सिर्फ ईष्ट मे आ जाता है सद्गुरु उसके जीवन मे किसी और आकर्षण को टिकने न देंगे!

<> आकर्षण अल्पकालिन है और प्रेम अजर और अमर है, आकर्षण सहज है और प्रेम मुश्किल और निःस्वार्थ, निष्काम और निष्कपट प्रेम बहुत ही दुर्लभ है क्योंकि प्रेम त्याग मांगता है देने का नाम प्रेम है और लेने का नाम स्वार्थ और जहाँ स्वार्थ हावी हो जाता है वहाँ से प्रेम चला जाता है!

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<> आकर्षण किसी के भी प्रति आ सकता है आकर्षण से मोह का जन्म होता है और मोह से आसक्ति का उदय होता है और आसक्ति किसी के भी प्रति आ सकती है और एक बात अच्छी तरह से याद रखना की इष्ट के सिवा किसी और मे आसक्ति कभी मत आने देना नही तो अंततः परिणाम बड़े दर्दनाक होंगे! जब आकर्षण आने लगे तो सद्गुरु के दरबार मे चले जाना इष्ट मे एकनिष्ठ हो जाना!

<> एक बात हमेशा याद रखना की प्रेम गली बहुत सकडि है जहाँ दो के लिये जगह नही है जैसै एक म्यान मे दो तलवारें एक साथ नही आ सकती है वैसे ही एक जीवन मे दो से प्रेम नही हो सकता है! हाँ चयन के लिये तुम पुरी तरह से स्वतंत्र हो चाहो तो ईश्वर को चुन लो और चाहो तो नश्वर को चुन लो!

<> हॆ वत्स ये कभी न भुलना की सारे मिट्टी के खिलौने नश्वर है और केवल श्री हरि ही नित्य है और श्री हरि और गुरु के दरबार मे अबोध बने रहना नही तो अहम, मोह और अन्य दुर्गुणों को आने मे समय न लगेगा!

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