साधना की एक तरकीब

Last Updated on November 15, 2019 by admin

आप जो भी साधन भजन करते हो उसमे चार चाँद लग जायेंगे | अग्नि जलती है न तो नीचे चौड़ी होती है और ऊपर लौ पतली होती जाती है …ऐसे ही नाभि के पास लौकिक अग्नि नहीं है, जठराग्नि है | आदि अग्नि है । लौकिक अग्नि से विलक्षण अग्नि है| आप ध्यान भजन करते समय नाभि में ध्यान कीजिये ॐ ॐ उच्चारण करो, ये बहुत फायदा करेगा | ३ से ७ बार ॐकार का उच्चारण कीजिये और फिर भावना कीजिये त्रिकोणात्मक अग्नि की ज्योत प्रकट हो | इसमें मैं अज्ञान की आहुति देता हूँ। मनुष्य के जो पाँच शत्रु है उनसे कई योनियों में भिड़ते-भिड़ते मनुष्य थक जाता है । उन शत्रुओंसे भिड़ने की जरुरत नहीं है, उन शत्रुओं को जैसे पतंगे दीये में चले जाते है, तो तबाह हो जाते है ऐसे ही ज्ञानाग्नि में उन शत्रुओं की आहुति दे दो । लगता तो है कि ये आहुति बड़ी साधारण साधना है पर ये आपकी जिन्दगी में बड़ी खुशहाली लायेगा. आपके जीवनमे निर्विकारिता लायेगा, आपके जीवनमे सहजता लायेगा, आपके जीवन में शान लायेगा | आप के जो पांच शत्रु है अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अधिनिवेश, इन पाँच के कारण तुम अपने आत्म ईश्वर से दूर हुए हो, इन पांचों को अग्नि में स्वाहा करो. ध्यान भजन में जब भी बैठे तो (रात्रि को सोते समय भी कर सकते हो )

ॐ अविद्यां जुहोमि स्वाहा:

(अविद्याको मैं आहुति में डालता हूँ |)

ॐ अस्मितां जुहोमि स्वाहा:

(फिर अस्मिता, देह को मैं मानने की गलती ! हकीकत में हम आत्मा है, बेवकुफी से मानते है मैं शरीर हूँ । शरीर मरनेके बाद भी मैं रहता हूँ )

ॐ रागं जुहोमि स्वाहा:

ॐ द्वेषं जुहोमि स्वाहा:

ॐ अभिनिवेशं जुहोमि स्वाहा:

(अभिनिवेश मतलब मृत्यु का भय । हमारी मृत्यु नहीं होती है फिर भी हम मौत से डरते है । डर के कारण कोई माई का लाल बच निकला है ऐसा पैदा नही हुआ)

अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अधिनिवेश इन पांचों को स्वाहा करके ध्यान में बैठोगे तो बड़ी मदद मिलेगी. अच्छा ध्यान लगेगा, अच्छी शांति मिलेगी. बुध्दि‍ में अच्छी प्रेरणा और समता आयेगी.

दूसरा – रात्रि को सोते समय की साधना है| आप सोते हो उस कमरे में कभी कभार गाय के गोबरके कंडे का या गौचन्दन का धूप कर दिया, कर सके तो… नहीं तो कई बात नहीं | सो गये । श्वांस अन्दर गया, ॐ…… बाहर गया गिनती……. २ – ५ गिनती हो गयी फिर पैर के नाखून से लेकर शौच जाने की जगह तक पृथ्वी तत्त्व है तो आप अपने मन को दौड़ाये, पैर की उंगली से लेकर शौच जाने की जगह तक ये पृथ्वी अंश है उसे थोड़ा सा ऊपर पेशाब करने की जगह जल अंश है, नाभि के करीब तेज अंश है और ह्रदय के करीब आकाश अंश है | तो पृथ्वी अंश फिर जलीय अंश फिर तेज अंश फिर वायु अंश फिर आकाश अंश ये पाँच भूत है | पृथ्वी को जल में विलय किया, जल को तेज में, तेज को वायु में फिर आप आ गए आकाश में फिर मन, आकाश, चिदाकाश परमात्मभाव ये सब परमात्ममें विलीन हो गए | अब ६ घंटा मुझे कुछ भी करना नहीं है, पंचभौतिक शरीरको मैनें पाँच भूतों में समेट कर अपने आपको परमात्ममें विलय कर लिया | अब कोई चिंता नहीं, कोई कर्त्तव्य नहीं , इस समय तो मैं भगवानका हूँ, भगवान मेरे | मैं भगवानकी शरण हूँ | ऐसा सोचोगे तो शरणागति सिद्धि होगी अथवा तो मेरा चित्त शांत हो रहा है, मैं शांत आत्म हो रहा हूँ | इन पाँच भूतोंकी प्रक्रियासे गुजरते हुए, पाँच भूतों को जो सत्ता देता है उस सत्ता स्वभाव में मैं शांत हो रहा हूँ|

और सुबह जब उठे तो, कौन उठा? मस्तक से, चिदघन चैतन्य से पैर की ओर जैसे रात को समेटा वैसे सुबह जागृत करे | मन तत्व में आया मन जगा मनसे फिर आकाशतत्व में आया, फिर वायु तत्व में उसके बाद अग्नि में, अग्नि का जल में, जल का पृथ्वी में सारा व्यवहार चला| रात को समेटा ओर सुबह फिर उतर आये | आसान साधना है और बिलकुल चमत्कारिक फायदा देगी सोते तो हो ही रोज । इसमें कोई परिश्रम नहीं है, १८० दिन सिर्फ । एक दिन भी नागा न हो बस… करना है करना है बस करना है!

६ महीने के अन्दर आप परमात्माका साक्षात्कार कर सकते हो, अगर सगुण भगवान को चाहते हो तो सगुण भगवान की शरणागति ६ महीने में सिध्द हो जाएगी । अगर समाधि‍ चाहते हो तो ६ महीने में समाधि‍ सिध्द हो जाएगी | अगर निर्गुण निराकार भगवानका साक्षात्कार चाहते हो तो वो भी सिध्द हो जायेगा | ये रात्रि को कोई परिश्रम नहीं है और स्वाभाविक है, कुछ पकड़ना नहीं, कुछ छोड़ना नहीं, कुछ व्रत नहीं कुछ उपवास नहीं बहुत ही उपयुक्त कल्याणकारी साधना है| . पराकाष्ठा की पराकाष्ठा पर पहुंच जाओगे|

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