भक्त अंबालाल की मधुर कथा | Inspirational storie in hindi

Last Updated on July 23, 2019 by admin

आज हम आपके लिए motivational stories in hindi की श्रंखला में लायें है भक्त अंबालाल जी का जीवन प्रसंग

★ मेहसाना जिले के किसी गाँव में अंबालाल पटेल नामका एक लडका था । उसकी माँ बचपन में मर गयी थी । बाप ने दूसरी शादी की । अब सौतेली माँ उसे खूब सताती । जब अंबालाल सत्रह-अठारह साल का हुआ तो उसे अपनी समझ आने लगी । अपमान उससे सहन नहीं होता ।

★ उमर लायक लडके-लडकी को ज्यादा रोक-टोक करने से उनका दिमाग खराब हो जाता है । बालक छोटा है तो उसे प्यार करो । बडा हुआ, दस-बारह सालका, पंद्रह साल का किशोर हुआ तो उसे सीख दो । अनुशासन में रखो । जब अठारह-बीस साल का हो तब उससे मित्र जैसा, भागीदार जैसा व्यवहार करना चाहिए । फिर डंडे से काम नहीं लेना चाहिए ।

★ मगर सौतेली माँ क्या जाने ? वह तो धमकाती कि : ‘मुफ्त का क्यों खा रहा है ? मुँआ, मर जा । वह तेरी माँ गयी और तू इधर क्यों पडा रहा है ? जा, तुझे वह बुला रही है । ऐसा उसे बोलती तो अंबालाल से सहा नहीं जाता था ।

★ एक दिन वह घर से निकल ही पडा । मेहसाना स्टेशन पर आया । वहीं मि. थोल्स नाम के स्टेशन मास्टर थे, उनसे आकर मिला । उनके आगे थोडा रोया, अपनी आपबीती सुनाई और बोला : ‘‘मुझे कुछ काम दे दीजिये ।
स्टेशन मास्टर ने लडके को छोटा-मोटा काम दे दिया । फिर धीरे-धीरे उस लडके ने सीखते-सीखते अजमेर में तारबाबू की परीक्षा दी और पास हो गया । वह तारबाबू बन गया ।

★ उसको सिद्धपुर में नौकरी मिली । सिद्धपुर में सरस्वती नदी बहती है । उस समय उसमें पानी खूब रहता था ।
अंबालाल सीधा-सादा जीवन जीता था । नौकरी से छुट्टी पाने के बाद थोडा-सा दैनिक कार्य करता और फिर कहीं साधु-संतों का नाम सुनता तो वहाँ दर्शन करने पहुँच जाता ।

★ कोई नंगा, भूखा हो तो उसको सहाय करता । बाकी का समय और पैसा कोई भक्ति, ज्ञान का प्रचार करनेवाले साधु-संत की सेवा में लगाता । अपने लिए बहुत कम खर्च करता । सीधा-सादा बिस्तर, कपडे, और भोजन । बाकी का सब सत्कर्म में खर्च कर देता ।

★ जो आदमी अपनी आवश्यकता कम रखकर अपनी बाकी आय का सदुपयोग करता है उसका हृदय जल्दी सत्पद में टिक जाता है ।bhakt ambalal-hindi motivational storie
अंबालाल ने सोचा कि आठ घण्टे तो यह पेट की पूजा के लिए नौकरी करना पडता है । यह हाड मांस के शरीर को जिलाने के लिए आठ घण्टे, तो आत्मा-परमात्मा को जगाने के लिए भी तो आठ घण्टे होना चाहिए । आठ घण्टे नौकरी, छः घण्टे नींद । हो गये चौदह घण्टे । बाकी दस घण्टे बचे । उसने निर्णय किया कि उसमें से आठ घण्टे तो प्रभु के लिए अवश्य लगाना चाहिए ।

★ ऐसा नियम बनाया कि आठ घण्टे तो नौकरी में जायें और आठ घण्टे भक्ति में लगे । उस समय महीने-महीने बदली हो जाती थी । कभी पंद्रह दिन में पाली (ड्यूटी) बदल जाती थी, तो वह भजन का समय भी बदल देता । लेकिन आठ के बजाय पौने आठ घण्टे नहीं होने देता । मन लगे चाहे न लगे मगर भगवान के लिए बैठना है । आफिस में मन लगता हो चाहे नहीं लगता हो फिर भी सरकार वेतन देती है । तो वह दैवी सरकार कोई दिवालिया थोडे ही है ? तुलसी अपने राम को रीझ भजो या खीझ । भूमि फैंके उगेंगे ही उलटे सीधे बीज ।।

★ सरस्वती के बीच में कोई टापू बन गया था । अंबालाल कमर तक के पानी को लाँघकर, नहा धोकर फिर उस टापू में बैठ जाता ।
एक दिन शाम को वह उस टापू में बैठा था । एक बूढा ब्राह्मण वहाँ आया और बोला :
‘‘अरे ! तुझे अपना प्राण प्यारा नहीं है । रात गहरी होने जा रही है । इधर मरने को बैठा है ? इतना गहरा पानी और उधर की ओर जंगल…!
अंबालाल : ‘‘मुझे मरने का भय नहीं । कोई qहसक पशु आ जायेगा, पानी में से मगर या कोई और आकर खा जायेगा तो उसकी भूख समाप्त होगी । …और एक न एक दिन मरना तो मुझे है ही ।

★ बूढा ब्राह्मण चिढ गया और बोला :
‘‘अपनी अक्ल नहीं और दूसरे की मानता नहीं । मरने के लिए जन्म मिला है ? अमर होने के लिए आया है कि मरने के लिए आया है ? मनुष्य जन्म बडी मुश्किल से मिलता है यह तुझे खबर नहीं है क्या ? घोडा बना, गधा बना, बिल्ली बना, चूहा बना, भैंसा बना, गाय बना, न जाने क्या क्या बना । डंडे खाये । उसके बाद तो मनुष्य जन्म मिला । और उसे तू ऐसे ही बरबाद करने को आया है ? मनुष्य तन मिला है बडा कीमती, मुक्त होने के लिए मिला है ।

★ बोल, क्या चाहता है ?
अंबालाल को हुआ कि यह ब्राह्मण कोई संत आदमी लगता है । वह बोला :
‘‘ब्राह्मण देव ! माफ करना । मैं आपके वचनों की अवज्ञा की । मैं तो समझा की नश्वर शरीर है, किसी के काम आ जाय तो आ जाय ।
ब्राह्मण : ‘‘शरीर नश्वर है । मगर खा जाय उससे पहले शरीर की ममता हट जाय, भगवत्प्राप्ति हो जाय वह काम करना चाहिए न ?
ब्राह्मण की आवाज में प्रेम प्रकट हो रहा था ।

★ ‘‘आप दया करो, आशार्वाद दो । अंबालाल झुक गया ।
‘‘क्या चाहता है ?
‘‘मैं तो मेरे गिरिधर गोपाल का दर्शन करना चाहता हूँ । मेरे रणछोडराय के दीदार करना चाहता हूँ ।
‘‘रणछोडराय तो डाकोर में है ।
‘‘डाकोर में तो ठाकोरजी की मूर्ति है । मोरमुकुट पीताबर धारी चाहें तो शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण करके प्रकट हो जायँ । उन अंतर्यामी, सर्वेश्वर श्री आदिनारायण का मैं दर्शन करना चाहता हूँ । नर-नारी सबमें जो बिराजमान हैं उन नारायण का मैं दर्शन करना चाहता हूँ ।

★ ब्राह्मणदेव : ‘‘वह नारायण तो सबमें बिराज रहा है यह समझ ले । चींटी में छोटा लगे, हाथी में बडा लगे महावत बनकर भी वही बैठा है ऐसा समझ ले । ज्ञान पा ले, बस !
अंबालाल : ‘‘ज्ञान तो पा लूँ, मगर मुझे तो साकार नाराण का दर्शन करना है । मैं तो गिरिधर गोपाल रणछोडराय के दर्शन करना चाहता हूँ ।

★ अब अंबालाल बडे आदर से ब्राह्मण को प्रणाम करता है सूर्य तो कब का ढल ही चुका था । चंद्रमा अपनी शीतल चाँदनी छिडक रहा था । इतने में उस बूढे ब्राह्मण ने अपना असली रूप प्रकट किया । शंख, गदा पद्म और सुदर्शनचक्रधारी नारायण प्रकट हो गये । नारायण का दर्शन करके अंबालाल भावमग्न हो गया । प्रणिपात करके एडी से चोटी तक के परमात्मा के रूप-माधुर्य को अपनी प्रेम-विह्वल आँखों से पीता हुआ परमात्मा की आज्ञा की अपेक्षा से खडा रह गया । ‘‘जा बेटा अपना कर्तव्य कर । काम में, ड्यूटी में चोरी नहीं करना ।

★ काम तत्परता से करना मगर करने का भाव अपने अंदर मत रखना । करने-कराने वाला मैं आदिनारायण सबके हृदय में बस रहा हूँ । यह जो दिख रहा है वह सब माया है । जिससे दिख रहा है वह नारायण है । जो नारायण है वह तू है, जो तू है वह मैं हूँ । जा, अब अपने काम में लग जाना ।
अंबालाल गदगद् होकर भावसमाधि में आ गया ।

★ चंद्रमा की चाँदनी बढ रही थी । रात्रि के ग्यारह बजे अंबालाल उठा । स्मरण हो आया कि सुबह जल्दी उठना है । डयूटी पर भी जाना है । अपनी अलौकिक मस्ती में घर पहुँचा । सुबह में थोडा नारायण का स्मरण किया और भावसमाधि लग गयी । आठ बजे डयूटी पर जाना था उसकी जगह साढे दस बज गये । आफिस में गया । पोस्ट मास्टर ने कहा : ‘‘अरे अंबालाल ! पटेल तो पटेल ही रहा, बैल की पूँछ मरोडनेवाला । तारबाबू हुआ फिर भी तुझे अक्ल नहीं ? लापरवाह ! बेपरवाह ! उसे सस्पेन्ड कर दिया ।

★ इधर अंबालाल के दिल में दुःख नहीं हुआ । ‘जो कुछ करता है मेरा नारायण ही करता है । वह घर गया । दो-चार दिन घर में ही ध्यान-भजन करता रहा । स्वप्न आया कि ‘‘जाओ नौकरी पर । स्वप्न भी नारायण ने ही दिया है । ‘‘तेरी मर्जी…!
फिर गया आफिस में तो पोस्ट मास्टर ने कहा : ‘‘तुझे तो मैंने जरा ऐसे ही डाँटा था और तू सचमुच में चला गया । देखो, कितना काम भटक गया ? बैठो बैठो । माफ करना ।
हाथ मिलाया और फिर काम में लगा दिया ।

★ भगवान का भजन करो तो जो रूठे हुये होते हैं वे भी राजी हो जाते हैं । भगवान को छोडकर संसार के पीछे पडे तो राजी हुये भी नाराज हो जाते हैं । जो प्रेम भगवान को करना चाहिए, वह अगर बाहर के व्यक्तियों को ज्यादा स्वार्थ से करने लग गये तो वे कभी न कभी रूठ जायेंगे । मित्र रूठ जाता है, पति रूठ जाता है, पत्नी रूठ जाती है लेकिन परमात्मा नहीं रूठता । जो कभी रूठता भी नहीं और कभी मरता भी नहीं वह हमारा राम, हमारा मालिक है ।ambalal ki katha hindi motivational storie

★ अंबालाल आफिस में काम करता रहा । वह आँजणा पटेल था । उसका नियम था आठ घंटे भजन में बिताना । कीर्तन में उसकी खूब रुचि । कीर्तन करते करते हरि की मस्ती में खो जाय । जो आदिनारायण का दर्शन किया था उसके सुमिरन में खो जाय । दूसरे कीर्तन करनेवाले कीर्तन पूरा करके प्रसाद बाँटे । इसको प्रसाद देने आये तो यह तो अपनी मस्ती में मस्त । उसको जगाये तब वह प्रसाद लेता । देखता कि प्रसाद में भी मेरा नारायण है । नारायण का सुमिरन करता हुआ प्रसाद को देखता तो प्रसाद भी सचमुच नारायण का कृपा-प्रसाद बन जाता । फिर प्रसाद पाता । घर जाय । भोजन बनाने के लिए आटा गूँदे तो रग-रग में चलता रहे : ‘नारायण.. नारायण… नारायण.. । वह आटा, दिखे तो आटा ही मगर महाप्रसाद बन जाता । उसकी रग-रग में, हर विचार में, स्मृति में ‘नारायण… नारायण… ।तार की खट खट में भी उसे लगता कि यह खट खट भी नारायण से हो रही है । पक्षियों का किल्लोल सुने तो जैसे ज्ञानी को शब्द ब्रह्म दिखता है वैसे ही उसको दिखता ।

★ अंबालाल तेईस साल छः महीने और सत्रह दिन का हुआ । अंबालाल सोचता है कि भगवान के दर्शन किये, फिर भगवान अंतर्धान हो गये । तो अंतर में ही सार है । अंतर्मुख होने के सिवा कोई सार नहीं । बैठा ध्यान में, थोडा अंतर्मुख हुआ, समय का पता नहीं चला । आफिस में देर से गया ।

★ पहले वाला पोस्ट मास्टर बदल गया था । नये को किसी ने बहका दिया था कि यह तो भगतडा है । कभी देर से अपनी मौज में आता है ।
उसने इसको डाँट दिया- ‘‘गेट आऊट । अंबालाल चला गया । चलते चलते माऊन्ट आबू पहुँचा । अब उसे कोई मान-अपमान का भय नहीं । सब भूमि गोपाल की । माऊन्ट आबू की किसी छोटी-मोटी गुफा में बैठकर सर्वत्र नारायण देखते हुये मस्ती में रहने लगा । पक्षी की आवाज आती तो ‘नारायण… । हवा लगे तो ‘नारायण…। सब में ‘नारायण… नारायण… नारायण… । सुमिरन करते करते सात दिन और सात रात्रि वह भाव-समाधि में तल्लीन हो गया ।

★ चतुर्भुज नारायण प्रकट हुये और कहा : ‘‘यह अणु-अणु, परमाणु सबमें मुझे देख । जड जड नहीं है । उसमें सुषुप्त चेतना है । चेतना की धन सुषुप्ति अवस्था जड पदार्थ है । प्राणी, पक्षी और जंतु में वह चेतना जगी है । मनुष्य में उसका ज्यादा विकास हुआ है । चेतना अपने पूर्ण रूप से विकसित हो जाय, ऐसा कोई सद्गुरु मिले तो ज्ञान होवे । गुरु बिना तो मेरा दर्शन होवे तब आनंद, फिर मेरी स्मृति करके आनंद । लेकिन मेरे तत्त्व का साक्षात्कार तो अभी नहीं हुआ ।

★ अंबालाल की बुद्धि खुल गयी । उसे पता चला कि ‘गुरु बिन गत नहीं । हरिद्वार में कुंभ का मेला आ रहा था । वह कुंभ के मेले में गया । नौकरी तो पहले ही छोड चुका था । जिसको भगवान की कृपी होती है, भक्ति का रस मिलता है वह सरकार का गुलाम कब तक रहेगा ? जिसको आदर की बंदगी खुल गयी वह संसार की गुलामी कब तक करेगा ?
मुर्दे को प्रभु देत है कपडा लकडा आग । जिन्दा नर चिंता करे उसके बडे अभाग ।।

★ चिंता करनी है तो उस बात की कर कि नारायण तत्त्व का साक्षात्कार हो जाय, दीदार हो जाय । अमर पद को पा ले । रोटी की चिंता करता है ? माता के गर्भ में था तब भी पोषण हो रहा था । जब बाहर आया तो माता के स्तनों में दूध प्रकट कर दिया । न ज्यादा ठंडा न ज्यादा गरम । गरम हो तो मुँह जले, ठंडा हो तो वायु करे । ज्यादा फिका नहीं, ज्यादा मीठा नहीं । मीठा हो तो डायाबीटिस करे और फिका हो तो अच्छा न लगे । बिल्कुल अनुकूल । प्रत्येक बच्चे की भी वह इतनी रक्षा कर रहा है तो जो उसका भजन करे उसको किस बात की कमी रखेगा ?

★ खूनी को सरकार रोटी और कपडा देती है । जेल में भी रोटी और कपडा मिले तो जो भगवान का भजन करे उसे रोटी और कपडे की कमी हो ? वह तो जहाँ जाय वहाँ रोटी, कपडा सब हाजिर ।

★ कुंभ में किसी सिद्ध सद्गुरु की शरण में गया उसका हृदय शुद्ध तो था ही । नारायण का भी आशीर्वाद था । गुरु के वचनों को आत्मसात कर लिया । अब अंबालाल पटेल का पुत्र न रहा, पटेल का पुत्र तो उसका शरीर था । वह तो ईश्वर का पुत्र था । वह तो वह तो संत बन गया, स्वामी अजरानंद । ‘जरनेवाला शरीर है । मैं तो अजर अमर हूँ । नारायण स्वरूप में हूँ । उसे गुरु ने ऐसा ज्ञान दे दिया ।
ईश कृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान ।
ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहि वेद-पुरान ।।

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)

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