चोबचीनी के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान | Chobchini ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

चोबचीनी क्या है ? इसका सामान्य परिचय : Chobchini in Hindi

चोबचीनी की जड़े चीन देश से यहां पर आती हैं। चीन में इनको ‘टूफूह” कहते हैं। इसका पेड़ जमीन पर बिछा हुआ होता है । डालियाँ पतली होती हैं । इसके पत्ते लम्ब-गोल, पतले और तेजपात के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं । इसकी जड़े सुख माइल गुलाबी रंग की होती है । कोई-कोई सफेद और काली भी होती है । चीन के पहाड़ों के अतिरिक्त बंगाल में सिलहट के पहाड़ों पर और नेपाल के पहाड़ों पर भी यह पैदा होती है ।

मखजनल अदबिया में चोबचीनी का वर्णन करते हुए लिखा है कि एक जाति की लता की जड़ होती हैं जो चीन के तरफ से आती है । इसके टुकड़े प्रायः एक बालिश्त या उससे छोटे बड़े होते हैं। कोई टुकड़ा कम गठान वाला, कोई अधिक गठानों वाला, कोई चिकना, कोई खुरदरा, कोई वजनदार, कोई हलका, कोई सख्त, कोई मुलायम, कोई गुलाबी रंग का, कोई सफेद और कोई काला होता है । इन टुकड़ों में सबसे अच्छी चोबचीनी वही होती है, जिसका रंग लाल या गुलाबी हो, स्वाद मीठा हो, चमदार और चिकनी हो, जिसमें गाँठे कम हो और रेशे न हों । जो भीतर और बाहर से एक रंग की हो, जो स्वाद में कुछ मीठी हो और जो पानी में डालने से डब जाय । जो टुकड़े वजन में हलके और सफेद रंग के हों उनको कच्चे समझना चाहिये । और जो काले रंग के टेढ़े मेढे। और अनेक गठानों वाले हों उनको हलकी जाति के समझना चाहिये ।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत-द्वीपान्त रवचा, अमृतोपहिता । हिन्दी-चोबचीनी । बंगाल-तोपचीनी । मराठी-चोपचीनी । गुजराती । फारसी-बेकचीनी, एवन । अरबी–एवन । तेलगू–पटंगीचक्का । अंग्रेजी- China Root लेटिन-Smilax China । इसकी दो जातियाँ और होती हैं। जिन्हें लेटिन में Smilax Clabra और S. Zelenica कहते हैं।

चोबचीनी के औषधीय गुण और प्रभाव : Chobchini ke Gun in Hindi

आयुर्वेदिक मत-

पूर्व कालीन आयुर्वेदिक ग्रन्थों में इस औषधि का उल्लेख कहीं देखने को नहीं मिलता मगर मध्यकालीन भाव मिश्र ने अपने भावप्रकाश ग्रन्थ में इसका वृतान्त लिखा है। इससे ऐसा मालूम होता है कि इस औषधि का प्रचार मुसलमानी हकीमों के द्वारा ही यहाँ पर हुआ ।
✦भावप्रकाश के मतानुसार चोबचीनी चरपरी, मधुर, कड़वी, गरम, मल, मूत्र को शोधने वाली तथा अफरा, शूल, वात व्याधि, अपस्मार, उन्माद और अंग की वेदना को दूर करने वाली है।
✦विशेष रूप से यह फिरंग रोग में लाभदायक है।
✦इसका रस कुछ मधुर और कड़वा होता है ।
✦यह गरम और अग्निवर्द्धक होती है ।
✦कब्जियत को मिटाती है। आफ और उंदरशूल को दूर करती है ।
✦ दस्त और पेशाब को साफ लाती है ।
✦ पक्षाघात, सन्धिवात तथा वायु के दूसरे रोगों में बहुत लाभदायक है ।
✦अपस्मार और उन्माद में भी फायदा पहुँचाती है ।
✦उपदंश रोग के लिये यह एक अक्सीर औषधि है ।
✦पुरुषों के वीर्यदोष और स्त्रियों के रजोदोष को यह दूर करती है।
✦कण्ठमाला और नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है।
✦डाक्टर वामनगणेश देसाई का कथन है कि चोबचीनी की मुख्य क्रिया त्वचा के ऊपर और त्वचा के उपभागों अर्थात् सन्धियों, बन्धन और रस ग्रन्थियों पर होती है ।
✦यह एक उत्तम रसायन और दिव्य औषधि है । इसकी मात्रा ३ माशे से ६ माशे तक है, जो सूठ के साथ दूध के अनुपान से दी जाती है ।
✦सुजाक की वजह से पैदा हुई सन्धियों की सूजन और सन्धियों की अकड़न में तथा उपदंश की दसरी और तीसरी अवस्था में चोबचीनी बहुत लाभ पहुँचाती है । इन रोगों में पोटेशियम आयोडाइड की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से और अधिक निश्चयपूर्वक चोबचीनी लाभ पहुँचाती है । सुजाक और उपदंश की वजह से पैदा हुई रसग्रन्थियों की सूजन में इसके सेवन से पहले दर्द की कमी होती है और उसके पश्चात् सूजन उतरती है । इन रोगों में पोटेशियम आयोडाइड से जैसा त्रास होता है वैसा चोबचीनी से नहीं होता । यह औषधि चूर्ण के रूप में जैसा गुण वाला है वैसा क्वाथ या शीत निर्यास के रूप में नहीं बतलाती ।
✦चोबचीनी शरीर की सन्धियों और शिराओं के अन्दर प्रवेश करके अविकृत पित्त को सहायता पहुँचाती है, खून को साफ करती है, सन्धियों को मजबूत करती है, पेशाब को गति देती है, मासिक धर्म को साफ करती है।
लकवा, हाथ पैरों की सूजना, उपदंश की वजह से होने वाला सिर दर्द, आधा शीशी, पुराना नजला, विस्मृति, चक्कर, उन्माद, उरदंश और दमे के रोगों में भी यह लाभदायक है ।
✦खून को शुद्ध करने का इसमें खास गुण होने की वजह से यह फोड़े, फुन्सी, घाव तथा खून की गर्मी से होने वाले रोगों में अक्सीर फायदा करती है ।
✦इसके सेवन से अफीम खाने की आदत छुट जाती है । जहरी पदार्थों के विकार को भी यह शान्त करती है ।
✦ इसी प्रकार जो लोग कामदेव की शक्ति नष्ट हो जाने से नाउम्मीद हो गये हों उनको भी यह फिर से नवीन पुरुषार्थ देती है।
✦डॉक्टर मुनीफ शरीफ कहते हैं कि चोबचीनी की मजबूत गांठों वाली जड़ एक सस्ती और सुनिश्चित औषधि है ।
✦कॉडलिव्हर ऑइल, सासपिरेला और पोटास आयोडाइड के बदले में यह बहुत सफलता के साथ काम में आती है ।
✦ मैंने विस्फोटक रोग की अन्तिम असाध्य अवस्था में तथा उपदंश, सन्धिवात और कण्ठमाला के कितने ही केसों में इसका उपयोग बहुत सफलता के साथ किया है । यह औषधि चूर्ण और क्वाथ के रूप में काम में ली जा सकती है ।

उपरोक्त विवेचन से मालूम होता कि चोबचीनो की क्रिया सीधी रक्त के ऊपर होती है और इसलिये यह रक्त विकार के तमाम दोष, उपदंश के विष और सन्धिवात, गठिया इत्यादि वात व्याधियों पर बहुत लाभ पहुँचाती है । इसके अतिरिक्त इसका बाजीकरण धर्म भी बहुत प्रभावशाली है। इसलिए कामशक्ति की निर्बलता, वीर्य की खराबी इत्यादि व्याधियों पर भी इसका उत्तम असर होता है ।जवानी के और बुढ़ापे के शुरू में इसका सेवन करने से बुढ़ापे का असर अधिक मालूम नहीं होता ।

यूनानी मत-

•यूनानी मत से चोबचीनी शरीर के अन्दर मुलायमियत पैदा करती है ।
•भीतर की खराबियों को दूर करती है, खून साफ करती है, दिल, दिमाग, कलेजे और कामेन्द्रिय को ताकत देती है ।
• फालिज, लकवा, कँपकँपी, ऐंठन, पागलपन, मालीखोलिया इत्यादि ज्ञानतन्तु सम्बन्धी बिमारियाँ, गर्भाशय की बीमारियाँ, गुदा सम्बन्धी बीमारियाँ तथा कोढ़, खुजली जहरीले फोड़े, दाद इत्यादि रक्त सम्बन्धी रोगों में यह बहुत लाभ पहुँचाती है ।
• वात से पैदा हुआ बुखार, चौथिया ज्वर और फीलपांव में भी यह लाभदायक है ।
• इससे अफीम खाने की आदत छूट जाती है।
•इसके सेवन से चेहरे का रङ्ग लाल, साफ और रोनकदार हो जाता है ।
•जिसको बेजानकारी में पशाब जाने का रोग हो उसे भी यह ठीक करती है ।

सेवन की मात्रा :

इसके चूर्ण की मात्रा ३ मासे ६ माशे तक की है ।

चोबचीनी के फायदे ,उपयोग व इससे रोगों का उपचार : Chobchini Ke Fayde Hindi Mein

1-उपदंश –
जिसका शरीर उपदंश से फट गया हो और जिसके सारे शरीर में उपदंश का विष फैला हो उसको चोबचीनी के शीत निर्यास में शहद मिलाकर पिलाना चाहिये ।

( और पढ़ेउपदंश रोग के 23 घरेलू उपचार )

2-कण्ठमाला –
इसका चूर्ण ४ माशे से १ तोले तक की मात्रा में शहद के साथ चटाने से कण्ठमाला में लाभ होता है ।

( और पढ़ेकण्ठमाला के 22 घरेलू उपचार )

3-रक्तविकार-
इसके चूर्ण को शहद के साथ चटाने से त्वचा के सारे रोग मिटते हैं ।

( और पढ़ेखून की खराबी दूर करने के 12 घरेलु आयुर्वेदिक उपाय )

4-उपदंश नाशक चूर्ण-
चोब चीनी १६ तोले, मिश्री ४ तोले, पीपर, पीपरामुल, कालीमिर्च, लवंग, अकरकरा, सोंठ, खुरासानी अजवायन, वायबिडङ्ग, दालचीनी, ये सब चीजें एक-एक तोला । इन सबका बारीक, चूर्ण करके इसमें से ६ माशे चूर्ण सुबह, शाम शहद के साथ लेने से रक्त में मिले हुए उपदंश के कीटाणु नष्ट होते हैं। और उपदंश के परिणाम से होने वाले अन्य रोग, जैसे रक्त विकार, संधिवात, गठिा , लकवा, प्रमेह इत्यादि नष्ट होते हैं ।

5-चोब चीनी पाक-
चोबचीनी ४८ तोले, पीपर, पीपरामूल, कालीमिर्च, सूठ, अकरकरा और लौंग, ये सब एक-एक तोला । इन सबके चूर्ण का जितना वजन हो उतनी ही शक्कर की चाशनी में इसका पाक बना लेना चाहिये । इस पाक में से एक-एक तोला सबेरे-शाम लेने से नपुंसकता, व्रण, कूष्ठ, वातरोग, भगन्दर, क्षय इत्यादि रोग दूर होते हैं ।

6-भगन्दर नाशक मोदक-
चोबचीनी का चूर्ण आधी छटाँक, शक्कर आधी छटॉक और घी आधी छटाँक । इन तीनों को मिलाकर इनके दो लड्डू बना लेना चाहिये । एक लड्डु सबेरे और १ लड्डू शाम को खाकर ऊपर से गाय का दूध पीना चाहिये । पथ्य में सिर्फ गेहूँ की रोटी घी, शक्कर और दूघ ही देना चाहिये । १४ दिन तक इस औषधि का सेवन करने से भगन्दर नष्ट हो जाता है । अगर इस दवा के सेवन से शरीर में गर्मी मालूम पड़े तो दवा की मात्रा कम कर देना चाहिये और घी दूध की मात्रा बढ़ा देना चाहिये ।

7-रक्त शोधक क्वाथ-
चोबचीनी, अनन्त मूल, मज्जीठ, मनाय, हरड़, बहेड़ा, आंवला, नीमगिलोय, नीम की अन्तरछाल, कुटकी, पीपल की अन्तरछाल, दारु हलदी और मुलेठी इन सब को समान भाग लेकर चूर्ण कर लेना चाहिये । इन चूर्ण में से ४ तोला चूर्ण लेकर ६४ तोला पानी में औटाना चाहिये । जब ८ तोला पानी बाकी रह जाय तब छानकर पी लेना चाहिये । इस प्रकार दिन में दो बार इस क्वाथ का सेवन करने से शरीर में फैला हुआ उपदंश का विष दूर हो जाता है । तथा सब प्रकार के रक्त विकार, खाज, खुजली, व्रण, भगन्दर, कुष्ठ, वगैरह रोग नष्ट होते हैं । एक्जिमा के ऐसे केस में जिनमें डाक्टरों ने रोगी का पांव काट डालने की सलाह दी थी इस औषधि के सेवन से आराम होते देखा गया है ।

8-मदन संजीवन चूर्ण-
जायफल, लवंग, जायपत्री, पीपर, तज, तमालपत्र, इलायची, नागकेशर बहुफली, पीपलामूल, अजवायन, कोंचबीज, से मरमूसली, असगंध, सफेद मूसली, बलाबीज, गोखरू, समुद्र शोष के बीज, धतूरे के बीज, बंशलोचन और मुलेठी । ये सब चीजें एक-एक तोला, चोब चीनी ४० तोला । इन सब औषधियों का बारीक चूर्ण करके रख देना चाहिये । इस चूर्ण में से ३ माशे चूर्ण, ३ माशे शहद और ६ माशे घी के साथ मिलाकर चाटना चाहिये और ऊपर से गाय का दूध पीना चाहिये यह चूर्ण अत्यन्त बलवर्धक और वाजीकरण है । इससे सब प्रकार के वीर्य दोष नष्ट होकर मनुष्य की वीर्यशक्ति बहुत बढ़ती है।

चोबचीनी के नुकसान :

• इसको सरदी के शुरू में अथवा वसन्त ऋतु में सेवन करना चाहिये कड़ाके की सरदी और कड़ाके की गरमी में इसका सेवन मुनासिब नहीं ।
• कफ सम्बन्धी बीमारियों में इसका सेवन ठीक नहीं है ।
• अधिक गरम मिजाज वाले लोगों को और बच्चों को इसके सेवन से बहुत खुश्की पैदा होती है । निर्बल मनुष्यों को इसका सेवन कराने में बड़ी सावधानी से काम लेना चाहिये क्योंकि यह हृदय की धड़कन को कम करती है ।

दर्पनाशक-
इसके दर्द को नाश करने के लिये अनार उत्तम है।

प्रतिनिधि-
हकीमों के मतानुसार इसका प्रतिनिधि उसबा और वैद्यों के मतानुसार असगन्ध है ।

नोट :- ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।

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