आध्यात्मिक अनुभव : ग्यारह-ग्यारह को सब ठीक हो जायेगा.. | Spiritual Experience

Last Updated on July 22, 2019 by admin

प्रेरक हिंदी कहानी | Motivational story in Hindi

★ इस संसार में सुख-दुःख का चक्र चलता ही रहता है । जब दुःखका चक्र चलता है तब दुःख के सागर में डूबता उतरता मनुष्य उससे निकलने का मार्ग ढूँढता है । जब सारे प्रयत्न व्यर्थ होते दिखाई देते हैं तब उसका हृदय गहरी ग्लानि से भर जाता है । उस समय किसी संतपुरुष की अगम्य कृपा ही हृदय को शीतलता प्रदान करती है । ऐसे कठिन संसार में संत मरुस्थल के मधुर झरने जैसे लगते हैं ।

★ मेरे जीवन में एक ऐसा प्रसंग बन चुका है । मैंने मंत्रदीक्षा नहीं ली थी, फिर भी सत्संग, दर्शन का अनुपम लाभ मुझे मिला है । पू. बापू जब धाणवा आये तब वसई भी आये थे । उस समय मैंने पू. बापू की आरती उतारी थी ।

★ अमदावाद में जब बी.एड. करती थी तब अपनी छोटी बहन को अनुष्ठान के लिए आश्रम में छोडने के लिए जाती थी । उस समय बापू के फव्वारे से तो भीग जाती किंतु मन उतना नहीं भीग पाता था जितना कि भीगना चाहिए था । इसलिए मैंने निश्चय किया कि जब तक मेरा मन नहीं भीगेगा तब तक मैं नामदान नहीं लूँगी ।

★ हम दोनों बहनों का एक सामाजिक प्रश्न था । इससे मैं रोज अपनी बहन से कहती कि तू यह प्रश्न बापू से क्यों नहीं करती ? तेरे तो वे गुुरु हैं ।

★ एक रात्रि को मुझे स्वप्न आया । स्वप्न में बापू मेरे घर आये । मैं तो बापू को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो गयी । मुझे लगा कि आज तो छोटी बहन की बात कह दूँ । ऐसा सोचकर बात करने लगी । फिर मुझे ऐसा लगा कि हम दोनों का प्रश्न तो एक ही प्रकार का है |प्रश्न के साथ दुःख की बात भी कह दूँ जिससे पू. बापू को सारी बात की जानकारी मिल जाये । अभी तो मैं अपनी बात कह ही रही थी कि इतने में मेरी पूरी बात सुने बिना ही पू. बापू कहने लगे :
‘‘ग्यारह-ग्यारह को सब ठीक हो जायेगा ।

★ मैंने अपने स्वप्न घर में सभी को कहा किंतु सभी को वह स्वप्न दिन में की गयी चिन्ता-विचारों का परिणाम लगा ।
उसके बाद बापू मेहसाना आये । सत्संग में मैं अपनी बेटी को लेकर पीछे बैठी थी । तब मैंने बापू से मन ही मन कहा :
‘‘बापू ! अभी जिस नौकरी के लिए अरजी दी है वहाँ डोनेशन नहीं लिया जाता पर मेरिट देखा जाता है । यदि वहाँ नंबर लग जाये तो ही मैं आपको गुुरु बनाऊँगी, नहीं तो नहीं बनाऊँगी ।

★ थोडे दिनों के बाद इन्टरव्यू कॉल आया । दिनांक : ११-११-९२ का कॉल देखकर घर के सभी कहने लगे :
‘‘यह तो स्वप्न में दी हुई तारीख है !
इन्टरव्यू में एक दिन पूर्वसूचि की पूछताछ कराई तो मुझसे मेरिट में एक बहन आगे थी, और वे अपने देश के पास आना चाहती थी । उसके बाद एक भाई एक नंबर से आगे थे । परंतु सभी उम्मीदवारों में मेरी नियुक्ति हो गयी । परिणाम का पता भी उसी दिन चल गया ।

★ तब बापू की असीम कृपा की, अन्तर्यामी गुरु की, सचराचर में व्याप्त मेरे परब्रह्म की, जगत-नियंता खुद विधाता की खबर मिली । शक्ति के पुंज ऐसे बापू ने स्वप्न में जो ‘ग्यारह-ग्यारह को सब ठीक हो जायेगा कहा था वह फलित हुआ ।

★ नौकरी के कारण सामाजिक दुःख थोडा हल्का हुआ । अब मुझे विश्वास है कि बहुत कुछ हो गया । बापू ने मुझे निश्चित तारीख, निश्चित महीना स्वप्न में बताया वह फलित हुआ । अंतर्यामी गुरुदेव के समक्ष कोई दुःख छिपा नहीं रहता इसकी प्रतीति हुई ।

★ मेरे जीवन में वह भाग्यशाली दिन आ गया
याने कि मंत्रदीक्षा का दिन । नामदान (मंत्रदीक्षा) की तारीख पच्चीस । मेरी उम्र भी पच्चीस वर्ष । वार गुरु को मुझे मिले सद्गुरु ।

★ मैंने मूर्ख ने ‘नौकरी मिलेगी तो ही मंत्रदीक्षा लूँगी ऐसा बापू को कहा, इस बात का अब पश्चात्ताप होता है । मुझसे इन भगवान को ऐसा क्यों कहा गया ? बापू ! मुझे क्षमा करना । आखिर तो हम आपके हठी, अवगुणी बालक ही हैं ।
बस, अब तो ऋषि के पुनीत चरणों में हमेशा रहें, उनके प्यारे बनकर रहें यही जीवन भर की आशा है । अब मेरे बापू के विषय में कृतज्ञता के आँसुओं के सिवाय कुछ लिखते नहीं बनता ।
बापू को मेरे लाख-लाख प्रणाम !

– कल्पना बहन (एम.ए., बी.एड.)
यूनियन हाईस्कूल, लांघणज, जि. मेहसाना, गुजरात ।

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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