मानसिक तनाव के कारण, लक्षण और दूर करने के उपाय | Depression Symptoms Causes and Treatment

Last Updated on January 18, 2023 by admin

मानसिक तनाव क्या है ? इसके कारण और स्वरूप (mansik tanav kyu hota hai)

तनाव शब्द खींचने की संज्ञा है। जिसका भावार्थ है संघर्षात्मक स्थिति, प्रतिकूल परिस्थितियों में स्थिति। इच्छा पूरी न होने पर चिन्ता, क्रोध आदि होना भी इसीका परिणाम है। प्राणी की मूल प्रवृत्ति आहार, निद्रा, भय और मैथुन में वर्गीकृत है, जिसमें अवरोध होने पर क्रोध, रुदन और प्रतिहिंसा के रूप में प्रतिक्रिया देखी जाती है।

उदाहरणार्थ-भूख लगने पर बच्चे का रोना, सोते हुए को छेड़ने पर कुत्ते का गुर्राना, भयभीत बिल्ली का घातक हमला, कामोद्दीप्त यूथ, भ्रष्ट बंदर या हाथी का उजाड़ करना आदि लिये जा सकते हैं। मानव संवेदनशील प्राणी होने से तनाव का विशेष रूप से शिकार है। यदि यह कहा जाए कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी तनाव में ही जी रहा है तब भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि तनावों का कारण मनुष्य का राजसिक या तामसिक स्वभाव है और स्वभाव की त्रिगुणात्मकता जन्मजात है।

धर्म शास्त्रों में काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सरको षडरिपु की संज्ञा दी गई है। अर्थात् उक्त छह वृत्तियां मनुष्य की शत्रु हैं। क्योंकि इनसे आक्रांत तनाव की स्थिति ही समस्त रोगों को जन्म देती है।गोसांईजी ने रामचरित मानस के उत्तरकांड में इसे मानस रोगों की संज्ञा दी है। जो ‘मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला…’ की अर्धाली से प्रारंभ होती है। उसमें मोह से दाद, इर्षा से खुजली, हर्ष-विषाद से गलगण्ड, कुटिलता से कोढ़, मदमान से स्नायु रोग, तृष्णा से जलोदर आदि का वर्णन है।

वास्तव में मुख्य वृत्ति मोह है। अन्य वृत्तियां उसी का रूपान्तर मात्र है, क्योंकि इच्छापूर्ति में जैसे सुख है वैसे इच्छापूर्ति न होने पर दुःख, शोक, क्रोध आदि होने से इन की एकरूपता प्रकट है। सिक्के के दो पहलू की तरह दोनों में भाव-अभाव संबंध हैं। श्रीमद् भगवद् गीता के द्वितीय अध्याय के श्लोक 61-62 में इसके क्रम की वैज्ञानिकता का सुंदर शब्दों में वर्णन है|

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायतेकाम: कामाक्रोधाऽभिजायते।
क्रोधाद्भवति समोहः संमोहात्स्मृति विभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशीबुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

अर्थात् -ध्यान मात्र से विषयों में आसक्ति पैदा होती है, आसक्ति से काम (उपयोगेच्छा) पैदा होता है, वह पूर्ण न होने पर क्रोध की उत्पत्ति होती है, क्रोध से संमोह (विवेकहीनता) उत्पन्न होती है, संमोह से बुद्धिनाश और बुद्धिनाश से प्राणी नष्ट हो जाता है।
आयुर्वेद महर्षि चरक ने इन्हें शारीरिक और मानसिक वेगों में वर्गीकृत करते हुए आदेश दिया है कि लोभ, शोक, भय, क्रोधादि मनो वेगों का संयम करना चाहिए, लेकिन निद्रा, कास, श्रम, प्रवास और जुम्भा (जम्हाई) आदि शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए, यथा

लोभ शोक भय क्रोध मनोवेगान् विधारयेत्।।
निद्रा कास श्रम श्वास जुम्भावेगानुनधारयेत्।।

सारांश यह है कि मानसिक वेगों को संयम से और शारीरिक वेगों को आवश्यकता पूर्ति के द्वारा शांत करना चाहिए। इससे तनाव से बचाव होता है। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि वेग चाहे शारीरिक हो या मानसिक, आवश्यकता पूर्ति के द्वारा (हाजत रफा करके) ही शांत किये जाने चाहिये, अन्यथा रोगों को उत्पन्न करते हैं।

यह विषय अभी तक विवादास्पद ही माना जाता है, क्योंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों ने निर्णय दिया है कि वासना कभी भोग से शांत नहीं होती है, अपितु जैसे घी डालने से अग्नि बढ़ती है उसी प्रकार वासना भी भोग से बढ़ती ही है, शांत नहीं होती। अत: बुद्धिपूर्वक वैराग्य धारण से संयम के द्वारा शांत की जानी चाहिए।

पाश्चात्य विद्वान संयम का अर्थ शारीरिक अनुशासन से ही लेते हैं बुद्धि के संयोग को संभव नहीं मानते, इसलिए यह संयम मिथ्याचार की परिभाषा में आता है। इस दृष्टिकोण को न समझने से ही विवाद होता है। अनुभव से प्रत्येक तथ्य का निर्णय स्वयं किया जा सकता है। उक्त विवेचन से निष्कर्ष यह निकला कि तनाव का संबंध इंद्रियों और मस्तिष्क से है। इसलिए इंद्रियों की कार्य प्रणाली और मस्तिष्क रचना की प्रारंभिक जानकारी कर लेना आवश्यक है।

इंद्रियां :

हमारे शरीर में इंद्रियां दस हैआँख, नाक, कान, रसना और त्वचा ज्ञानेन्द्रियां हैं, जबकि हाथ, पैर, शिश्न, गुदा और वाणी कर्मेन्द्रियां हैं। कर्मेन्द्रियों का स्वतंत्र कार्य नहीं है अपितुज्ञान की प्रतिक्रिया मात्र है। जैसे कांटा चुभने पर पांव का उठना चुभन के कष्ट के ज्ञान की प्रतिक्रिया मात्र है।

शरीर में स्नायु तंत्र के दो विभाग हैं-1. संज्ञावह 2. चेष्टावह इनमें संज्ञावह स्नायुतंत्र ज्ञानेन्द्रियों से संबंध रखता है। जबकि चेष्टावह स्नायुतंत्र कर्मेन्द्रियों से संबंध रखता है। समस्त इंद्रियों के केंद्र मस्तिष्क के बाह्यपृष्ठ में हैं। सुषुम्ना शीर्ष से विकसित 12 नाड़ी युगल इंद्रियों की क्रियाओं का नियमन करता है । इंद्रियों द्वारा अनुभूत विषय को संज्ञावह मस्तिष्क को पहुंचा कर प्रतिक्रिया की चेष्टा प्राप्त करता है।

मस्तिष्क :

मस्तिष्क सिर की सात मजबूत हड्डियों के अंदर रखा हुआ अर्द्धवृत्ताकार मांस पिण्ड है । जिसकी आकृति अखरोट से मिलती-जुलती है । इसके तीन मुख्य भाग किये जा सकते हैं दाहिना, बायां और पिछला। नाक की सीध से खड़ा काटने पर दाहिनी तरफ का हिस्सा शरीर के बायें भाग को और बाईं तरफ का हिस्सा शरीर के दाहिने भाग को संचालित करता है । पीछे का लघु मस्तिष्क संज्ञा व चेष्टा में समन्वय स्थापित करता है । नियामक नाड़ी युगल इसके नीचे सुषुम्ना शीर्ष से विकसित होता है और सारे शरीर में जाल की तरह छा जाता है।

तनावग्रस्त व्यक्ति प्रायः सनकी, शंकालु, भयभीत, अधीर, दुराग्रही, क्रोधी, दिग्भ्रांत, चिन्तित, लोभी, अहंकारी पाये जाते हैं। दूसरे शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है। कि तनाव मस्तिक-रोग का प्रारंभिक स्वरूप है जो प्रतिकूल वातावरण में जन्म लेता है और आसक्तिया चिपटे रहने से बढ़ता है। सिद्धांत यह है कि तनाव स्नायुतंत्र की गतिवाहकता में अवरोध उत्पन्न करता है। जिसके कारण सूक्ष्म वायविक ग्रंथियों का निर्माण होता है और स्नायु मंडल की कार्य क्षमता क्षीण होती चली जाती है।

देखने, सुनने, सूंघने और स्पर्श करने और बोलने संबंधी जिस इंद्रिय का विकार होता है उसी की शक्ति नष्ट हो जाती है। ठीक उसी प्रकार जैसे विद्युत तारों में अवरोध उत्पन्न होने पर चिंगारी प्रकट होकर आग लग जाती है। ऊपर कहा जा चुका है कि त्रिगुणात्मक स्वभाव के कारण प्रत्येक व्यक्ति तनाव का शिकार है, लेकिन जब तक ऐसा दोष व्यवहार में बाधक नहीं होता हम उसे उपचार योग्य नहीं समझते। आइये जाने मानसिक तनाव कैसे दूर करे ,mansik tanav dur kaise kare

मानसिक तनाव से मुक्ति के उपाय : mansik tanav dur karne ke upay

तनाव या रोग से बचने के लिए आवश्यक है कि स्नायु मंडल को सक्षम रखा जाए, प्राण वायु और पोषक द्रव्य पर्याप्त मात्रा में मिलते रहे, वृक्क और यकृत रक्त से विषैले द्रव्यों को पृथक करते हैं अतः इन्हें स्वस्थ और सक्रिय रखने के लिए रक्त व मूत्र परीक्षण कराते रहें। अधिक व्यावहारिक भाषा में वर्णन करने के लिये उपचार या निराकरण की तीन श्रेणियां की जा सकती हैं-आहार, उपचार और अभ्यास

आहार द्वारा मानसिक तनाव से मुक्ति :

स्वास्थ्य के लिए संतुलित मिताहार आवश्यक है। अति आहार से तंद्रा का तत्काल अनुभव किया जा सकता है। विपरीत आहार रक्त को विषैला बनाता है। मलशुद्धि और क्षुधानुभूति ही आहार का मुख्य उद्देश्य है। व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुसार आहार में परिवर्तन किया जा सकता है । जैसे निद्रा के लिए छाछ, प्याज आदि का सेवन उपयुक्त है। मैदा या बहुत बारीक पिसा हुआ अन्न मल में गांठे (शुद्दे) उत्पन्न करता है, दलिया या मोटे दाने में मल को फुलाने की क्षमता अधिक रहती है । मल निष्कासन के लिये शाकादि वनस्पति या सारक द्रव्यों का सेवन किया जाना चाहिये। तात्पर्य यह कि आहार सुपाच्य और आवश्यकतानुसार ही लिया जाए तो साधारणत: स्वास्थ्य ठीक रहता है। ( और पढ़े –तनाव और चिंता की छुट्टी कर देगा योगियों का यह यौगिक प्रयोग )

उपचार द्वारा मानसिक तनाव से मुक्ति :

उपचार से तात्पर्य उस पथ्य या सावधानी से है जो रोग के आक्रमण को रोकने के लिए किया जाता है। उदाहरणार्थ आंखों में यदि पानी या गीद आने लगे तो इसे नेत्ररोग का पूर्वाभास समझना चाहिये और आंखों में शहद अंजन कर, फिटकरी या त्रिफला जल से धो लेना चाहिये, ताकि नेत्रका दूषित जल निकल जाए। इससे आंखें हल्की रहेंगी, नेत्र रोग काभय नहीं रहेगा।
प्रत्येक इंद्रिय को सक्षम रखने के लिये लोक में जो उपचार प्रचलित है उनमें मुख्य यह है- त्वचा में स्पर्शशक्ति निरंतर बनी रहे इसके लिए आवश्यक है कि सरसों के तेल की मालिश करके धूप सेवन की जाए।

सरसों के तेल की चरमराहट स्पर्शशक्ति को उत्तेजित करती है। और धूप सेवन से स्वेदन हो जाता है, जिससे स्नायुमंडल जागृत बना रहता है। नासिका और मस्तिष्क तंतुओं को सक्षम बनाये रखने के लिये एक-दो छींक लेना भी आवश्यक है इसलिये कोई हल्का नस्य ले सकते हैं या सूत की बत्ती नाक में चलाएं। वाणी स्पष्ट और धाराप्रवाह बनी रहे इसके लिये मंत्रपाठ, गायन, स्तोत्रपाठ आदि का नियमित अभ्यास आवश्यक है। इससे वाणी में रुकावट या लड़खड़ाहट पैदा नहीं होगी। संगीत का अभ्यास सूक्ष्म स्वरों के ग्रहण की योग्यता कानों को देता है। ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को सक्षम बनाये रखने से तनाव और शैथिल्य से मुक्ति मिलेगी। ( और पढ़े – मानसिक रोग के कारण व घरेलु उपचार)

मानसिक तनाव दूर करने के लिए योग अभ्यास :

अभ्यास से तात्पर्य आसन, प्राणायाम और एकाग्रता की क्रियाओं को नियमित रूप से करते रहने से है। ये क्रियाएं रोग निवारण में कैसे सहायक है इस पर भी प्रकाश डालना आवश्यक है।

आसन द्वारा मानसिक तनाव से मुक्ति :

ऊपर यह वर्णन आ चुका है कि तनाव या मस्तिष्क रोगों में स्नायुमंडल संकुचित हो जाता है। उसमें वायविक ग्रंथियों का निर्माण हो जाता है । आसन संबंधी व्यायाम स्नायुओं में संकोच व विकास करता है जिसके कारण अवरुद्ध प्रवाह चालू हो जाता है। क्योंकि स्नायुजाल रीढ़ की हड्डी में सुषुम्ना के साथ-साथ चलता है और प्रत्येक कशेरु जोड़ से 31 युगलों में विकसित होता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी पर पूर्ण दबाव डालने वाला सर्वांगासन सर्वाधिक उपयोगी है, इसके बाद शवासन भी किया जाना चाहिये, क्योंकि शव के समान शरीर को ढीला छोड़ने से श्रम से क्षीणशक्ति पुन: उपलब्ध हो जाती है। ( और पढ़े –रोग शारीरिक नहीं मानसिक )

मानसिक तनाव (डिप्रेशन) दूर करने के लिए प्राणायाम :

प्राणायाम को नाड़ी शोधक माना गया है। प्राणायाम की तीन क्रियाएं मुख्य हैं- पूरक, कुंभक और रेचक। सांस अंदर खींचने को पूरक, अंदर रोके रहने को कुंभक और श्वास बाहर निकालने को रेचक कहते हैं। प्राणायाम का एक पृथक विज्ञान है। विभिन्न उद्देश्यों के लिये विभिन्न प्रकार के प्राणायाम प्रचलित हैं जो विभिन्न स्वरों या जिह्वा से नियत अवधि के पूरकादि से किये जाते हैं।

श्वास जितना अधिक रोका जाएगा। उतनी ही तेजी से वह अंदर जाने का प्रयत्न करेगा अत: शक्ति से अधिक रोकने पर कभी कभी चक्कर आने लगते हैं । इसलिए प्राणायाम का अभ्यास किसी जानकार की सहायता से ही करना उचित है।
नाड़ी शोधन के लिये स्वच्छ वायु में लंबे और गहरे श्वास धीरे-धीरे लिये और छोड़े जा सकते हैं। यह क्रिया निरापद है।
सुगंधित हवन सामग्री या गूगल के धुएं में श्वास लेना अधिक लाभप्रद है। साधारण वायुदोष औषधीय वायु के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। ( और पढ़े –प्राणायाम क्या है व उसके फायदे)

एकाग्रता से मानसिक तनाव से मुक्ति :

एकाग्रता से तात्पर्य त्राटक इत्यादि के अभ्यास से नहीं है अपितु मानसिक व्यस्तता से है, इसे मनोरंजन भी कहते हैं, क्योंकि ताश, चौपड़, शतरंज, इन्डोर गेम्स, रुचिकर विषयों का अध्ययन जिसमें ज्योतिष, आयुर्वेद, सामुद्रिक शामिल हैं, पेंटिंग, चित्रकारी, मूर्ति निर्माण, खिलौने या औषधि निर्माण, कलापूर्ण दस्तकारी आदि समस्त ऐसे विषय इसमें शामिल हैं जिनमें व्यक्ति अपने आपको भूल करदत्त चित्त हो जाए। सिद्धांत यह है कि तनाव संबंधी विचारधारा की निरंतरता में व्यवधान पैदा किया जाए। ऐसा व्यवधान आसक्ति के मूलको दृढ़ नहीं होने देता।

वैदिक दिनचर्या में इसका उत्कृष्ट रूप त्रिकाल संध्या है। संध्या में इष्ट के प्रति श्रद्धा और रोमांच स्नायु जाल में जो विद्युत प्रवाह उत्पन्न करता है वह समस्त अवरोधों को समाप्त कर देता है। इसलिए तनावों को समाप्त करने की एक विधि यह भी है कि गुरु, योगी, इष्ट या सुधारक जिसे आप आदर्श समझते हैं और पूर्ण श्रद्धा से आदर करते हैं उसका ध्यान करते हुए नमस्कार करें।

कंठ कूप में (दोनों हंसलियों के जोड़ में जो गड्डू। है) ठोडी लगाकर स्वस्तिकासन से बैठना नमस्कार मुद्रा है। नमस्कार मुद्रा में श्रद्धेय का ध्यान करना शांति का मुख्य साधन है । इसी को एकाग्रता कहा गया है।
तात्पर्य यह है कि तनाव के आधार को किसी भी प्रकार शिथिल किया जाए।

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