श्वेत प्रदर लिकोरिया का रामबाण इलाज : Likoria ke Gharelu Upay in Hindi

Last Updated on January 21, 2024 by admin

प्रदर रोग क्या है ? Likoria in Hindi

वर्तमान समय में आहार-विहार का असंयम बहुत बढ़ गया है, जिसके कारण पुरुष तो प्रमेहादि रोगों से पीड़ित होते ही हैं, महिलाएँ भी पुरुषों की उच्श्रृंखलता से अथवा अपनी मिथ्या धारणादि से प्रदर प्रभृति रोगों का शिकार बन जाती है । इसका तात्पर्य यह नहीं है। कि उनके रोगों के लिये पुरुष समाज ही उत्तरदायी है, वरन् उनकी स्वयं की भूलें भी अनेक रोगों की उत्पत्ति में सहायक होती हैं।

प्रदर एक ऐसा रोग है, जो कि अधिकांश नवयुवतियों में पाया जाता है, जिसके विषय में वे संकोच या लज्जावश किसी को बताती नहीं और चुपचाप रोग की वृद्धि सहन करती रहती हैं। पति भी अनभिज्ञ रहता है तो रोग बढ़ता हुआ दुःसाध्य रूप धारण कर लेता है। चिकित्सा शास्त्र में उसके निवारणार्थ अनेक उपचारों का निर्देश तथा योग- प्रयोग मिलते हैं। |

प्रदर रोग के लक्षण : Pradar Rog ke Lakshan

शारंगधर ने चार प्रकार के प्रदर रोगों की चर्चा की है। वात, पित्त, कफ और त्रिदोष से उत्पन्न प्रदर, उनमें रक्त प्रदर भी सम्मिलित है ।

लक्षण इस प्रकार कहे हैं –

  • वातजन्य प्रदर में रूक्ष, लाल, झागदार तथा मांस के जल के समान अल्प स्राव होता है।
  • पित्तजन्य प्रदर में पीला, नीला, काला, लाल, गर्म तथा पित्त मिश्रित स्वाव वेग पूर्वक होता है ।
  • कफजन्य प्रदर में आँव के समान चिकना, उज्वल तथा पीलापन लिये हुए, मांस के जल के समान स्राव होता है । इसे श्वेत प्रदर कहते हैं ।
  • सन्निपातजन्य प्रदर में शहद, ई, हरताल तथा चर्बी के वर्ण का शव जैसी दुर्गन्ध वाला स्राव होता है। इसमें तीनों दोषों के मिश्रित लक्षण देखे जाते हैं।

एक मत यह भी है कि योनि से स्राव स्वाभाविक रूप से भी होता रहता है। किन्तु उस स्वाभाविक स्राव का कार्य योनि को नम तथा कोमल रखना है। जो लोग इस तथ्य पर ध्यान नहीं देते और उसे रोकने का विचार रखते हैं, वे वास्तव में बहुत बड़ी भूल करते हैं। किसी भी प्राकृतिक क्रिया में जाने या अनजाने हस्तक्षेप का प्रतिफल हानिकारक भी हो सकता है।

सफेद पानी (श्वेत प्रदर / लिकोरिया) के कारण : Safed Pani (Likoria) ke Karan

श्वेत प्रदर के निम्न कारण समझे जाते हैं –

  • योनिदोष से उत्पन्न प्रदर रोग – जिसमें अधिक संसर्ग आदि कारणों से योनि प्रदाह होने लगता है । अथवा योनि में व्रण अथवा अन्य किसी प्रकार का प्रदूषण ।
  • गर्भाशय ग्रीवा के रोग -नवीन या पुराना ग्रीवा- प्रदाह, गर्भाशय ग्रीवा में व्रण या क्षत अथवा ग्रीवा का बाहर की ओर झुकाव ।
  • जीर्ण गर्भाशय प्रदाह, जिसमें शूल, स्राव, शोथ आदि भी हो सकता है।
  • किन्तु, आवश्यक नहीं कि प्रदर के कारणों में उक्त कारणों को प्रमुख माना जाय । क्योंकि उक्त उपद्रव में प्रदर स्वयं भी, उनका कारण बन सकता है। इसलिये मानना होगा कि यह सभी उपद्रव अथवा व्याधियाँ परस्पर में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रखती हैं।
  • प्रदर के स्वरूप निर्णय में शास्त्र की मान्यता है – ‘रजः प्रदीयते यस्मात्प्रदरस्तेन स्मृतः‘ इसका भावार्थ यह है कि रज को क्षुब्ध करके, प्रदाह उत्पन्न करने वाले रोग को प्रदर कहते है |
  • प्रदर की उत्पत्ति के विषय में चरक का कहना है कि अधिक खट्टे, खारे, भारी, कड़वे, विदाही, स्निध, ग्राम्य और उपौदक पशुओं के माँस, सुरा, बिजौरे आदि के अधिक सेवन से वायु कुपित होकर गर्भाशय की रजोवाहिनी शिराओं में रक्तके साथ पहुँच कर रज को प्रभावित करता है, उसे असृग्दर (प्रदर) कहते हैं ।
  • अन्य कारणों में – विरुद्ध आहार- विहार, उपवास,अत्यन्त स्वेद- स्राव, शूल, क्षत आदि के कारण स्राव में वृद्धि हो जाती है । उत्तेजक दृश्यावलोकन, अश्लील वार्तालाप, अधिक मद्यादि का सेवन, विपरीत रति, अधिक रति, रोगग्रस्त पुरुष से संसर्ग भी इसके कारण हो सकते हैं।
  • मैथुन के अन्त में स्वच्छता के प्रति उपेक्षा रखते हुए योनि का प्रक्षालन न करने से भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है।

प्रदर रोग के प्रकार :

आयुर्वेदोरक्त चार कारणों अथवा आधुनिक चिकित्सकों द्वारा निश्चित किये ये तीन कारणों को जन सामान्य नहीं जानते । इसलिये इस रोग की प्रसिद्धि दो ही रूप में है –1. श्वेत प्रदर, और 2. रक्त प्रदर

चिकित्सा जगत में भी उपचारार्थ यही भेद अधिक स्वीकार्य हैं, क्योंकि श्वेत प्रदर में श्वेत या पीलेपन पर स्राव होता है, जबकि रक्त प्रदर में लाल रंग का स्राव होता है।

प्रदर रोग का प्राथमिक उपचार :

इन सब में प्रारम्भिक चिकित्सा के रूप में योनि प्रक्षालन की ओर सर्व प्रथम ध्यान दिया जाता है । योनि प्रक्षालनार्थ सर्वोत्तम तो फिटकरी का घोल है। दो तोला फिटकरी का घोल बनाकर दिन में 2 बार, उससे योनि को धोना चाहिये अथवा श्वेत फिटकरी के साथ सुहागा या बोरिक एसिड मिला कर भी योनि प्रक्षालनार्थ द्राव तैयार किया जा सकता है । तक्र से अथवा दही के तोड़ से भी प्रक्षालन क्रिया की जा सकती है, किन्तु यह फिटकरी के घोल जैसा कार्य प्रायः नहीं कर पाते । यदि डूश में नारायण तैल का प्रयोग किया जाय तो उससे अधिक लाभ हो सकता है। अब औषधोपचार लिखते हैं:

सफेद पानी,श्वेत प्रदर , लिकोरिया का आयुर्वेदिक इलाज : Safed pani / Likoria ke Ayurvedic Nuskhe

1. प्रदर पर एक अनुभूत सरल योग – शकरकन्द और जिमीकन्द समान भाग लेकर छाया में सुखावें और महीन चूर्ण करके रखें । 5-6 ग्राम तक ताजा पानी, बकरी के दूध अथवा अशोक की छाल के क्वाथ में शहद । मिला कर सेवन करायें । सब प्रकार के प्रदर, विशेष कर श्वेत प्रदर में अत्यन्त हितकर है।( और पढ़े –श्वेत प्रदर के रोग को जड़ से मिटा देंगे यह 33 घरेलू उपाय )

2. प्रदर रोग पर उपयोगी चूर्ण – दारुहल्दी, बबूल का गोंद और शुद्ध रसांजन 10-10 ग्राम, पीपल की लाख, नागरमोथा। और सोना गेरू5-5 राम तथा मिश्री 20 ग्राम । कूट- कपड़छन कर लें। 2-3 ग्राम प्रातः- सायं । पानी के साथ सेवन कराने से सभी प्रकार के प्रदर रो दूर होते हैं।

3. श्वेत प्रदर(लिकोरिया) पर उत्तम योग – मोचरस, अनार की कली और ढाक का गोंद 10-10 ग्राम, पठानी लोध और समुद्र | शोष 40-40 ग्राम तथा मिश्री 50 ग्राम, सबको कूट- कपड़छन करके रखें। 6 से 12 ग्राम तक मिश्रीयुक्त गर्म दूध के साथ प्रातः- सायं सेवन करानी चाहिये । श्वेत प्रदर को शीघ्र नष्ट करती है।

4. सब प्रकार के प्रदर पर – गोखरू, पापड़िया तथा कतीरा गोंद और सेलखड़ी समान भाग लेकर कपड़छन चूर्ण बनावें । 5 से 10 ग्राम तक बकरी के दूध के साथ सेवन करायें । इस प्रयोग से सब प्रकार के प्रदर रोगों में शीघ्र लाभ होता है ।( और पढ़े –रक्तप्रदर को दूर करेंगे यह 77 रामबाण घरेलू उपचार )

सफेद पानी ,श्वेत प्रदर , लिकोरिया का घरेलू इलाज हिंदी में : Safed Pani / Likoria ka Gharelu ilaj in Hindi

1. चौलाई -चौलाई की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम से 5 ग्राम की मात्रा में, चावलों के धोवन में शहद मिला कर, उसके साथ सेवन करावें ।

2. त्रिफला – त्रिफला, मुलहठी, नागरमोथा और लोध के चूर्ण को शहद में मिला कर सेवन करायें ।
वातज प्रदर में उपयोगी है।

3. मुलहठी मुलहठी, शंखजीरा, नीलकमल और काला नमक 2-2 रत्ती लेकर मिलावें । यह एक मात्रा है, इसे दही और शहद 25-25 ग्राम मिला कर, उसके साथ सेवन करायें। इससे वातज प्रदर नष्ट होता है ।

4. वासा – वासा स्वरस मधु में मिला कर देना चाहिये। गिलोय को स्वरस शहद में मिला कर दिया जाय ।

5. कुशा – कुशा की जड़ चावलों के धोवन के साथ पीस कर पिलाने से सब प्रकार का प्रदर रोग दूर होता है।

6. दारुहल्दी – दारुहल्दी, रसौत, वासा, नागरमोथा, चिरायता, बेलगिरी, शुद्ध भल्लातक और कुमुद समान भाग के क्वाथ में मधु मिला कर पिलाने से सब प्रकार के पीले, काले, नीले, लाल अथवा श्वेत प्रवाह वाले प्रदर रोग नष्ट होते हैं । अति पीड़ायुक्त प्रदर में भी यह क्वाथ हित साधन करता है।

7. कठूमर कठूमर के फल के स्वरस में मधु मिला कर पिलावें । इससे रक्त प्रदर दूर हो जाता है । इस औषधि के सेवन काल में रोगिणी को केवल दूध, चावल और शर्करा ही खाने का निर्देश देना चाहिये।

8. खिरेंटी – कुशा की जड़ और खिरेंटी की जड़ के चूर्ण को चावलों के पानी के साथ पिलावें । रक्त प्रदर में हितकर है। अथवा केवल खिरेंटी की जड़ का कल्क बनावें और उसे दूध में डाल कर गर्म करके पिलावें। रक्त प्रदर दूर होगा।

9. बेर – बेर का चूर्ण गुड़ में मिला कर रक्त प्रदर में सेवन कराने से शीघ्र लाभ होता है। लाख का चूर्ण गोघृत में मिला कर खिलाने से रक्त प्रदर में लाभ सम्भव है। रुहेड़ा (रोहितक) की जड़ के कल्क में शहद अथवा मिश्री मिलाकर सेवन कराने से पीतस्राव प्रदर नष्ट हो जाता है।

10. आंवला – आमले के बीजों का कल्क शर्करा और शहद के साथ सेवन करायें । इससे पीत प्रदर में लाभ होता है । उपर्युक्त सभी प्रयोग शास्त्रीय हैं।

11. चना – छिलके उतारे हुए भुने चने, भाड़ पर भूने हुए, लेकर चूर्ण करें और उसमें समान भाग मिश्री का चूर्ण मिला कर 6-6 ग्राम की मात्रा में ठण्डे पानी के साथ सेवन करायें । यह प्रयोग सामान्य होते हुए भी प्रभावकारी है।

12. अंकुरित चना यह योग एक ग्रामीण सज्जन ने बताया था । हमने इसे अधिक लाभकारी तो नहीं पाया, किन्तु कुछ अंशों में स्राव की मात्रा कम हो गई । तब इसका प्रयोग इस प्रकार किया गया -उत्तम प्रकार के चने लेकर उन्हें अंकुरित करें और 25 ग्राम की मात्रा में, मिश्री का चूरा मिला कर सेवन करायें । ऊपर से आमले का क्वाथ ठण्डा करके पिलायें । यह योग प्रातः- सायं दोनों समय दिया जाय । श्वेत प्रदर में अधिक हितकर है।
चना अंकुरित करने की विधि – चना को पानी में एक रात भिगोये रखें । दूसरे दिन पानी निकाल फेकें और चनों को वस्त्र में लपेट कर रख दें। उनमें अंकुर फूट आयेंगे।

13. सफेद जीरा – श्वेत जीरा का चूर्ण 2ग्राम, मिश्री 1 ग्राम का चूर्ण कडुए नीम की छाल के काढ़े में शहद मिला कर सेवन कराने से श्वेत प्रदर (लिकोरिया) में लाभ होता है।

14. गूलर – गूलर का पका फल साबुत खाकर ऊपर से ताजा पानी पियें तो श्वेत प्रदर(लिकोरिया) दूर होगा।

15. गूलर रस – गूलर के फल का स्वरस मधु- योग के साथ सेवन किया जाय उपयोगी है।

16. मोचरस मोचरस का 1 ग्राम चूर्ण बकरी के दूध के साथ श्वेत प्रदर ग्रस्त रोगिणी को सेवन कराना चाहिये।

17. शहद –आमला चूर्ण 3 ग्राम, मधु- योग से प्रातः- सायं सेवन कराना भी श्वेत प्रदर (लिकोरिया) में लाभकारी है।

18. कपास – कपास की जड़ का चूर्ण चावलों के धोवन के साथ दें अथवा कपास की जड़ को चावलों के धोवन के साथ पीस कर पीयें । श्वेत प्रदर में लाभ होगा।

19. माजूफल – माजूफल का चूर्ण 1 से 2 ग्राम तक की मात्रा में ताजा पानी के साथ प्रातः- सायं देने से श्वेत प्रदर(लिकोरिया) का स्राव रुकता है ।

20. सफेद मूसली – श्वेत मूसली का चार्ण 3 ग्राम, आमला- पानक के साथ दें। श्वेत प्रदर दूर होगा।

21. नागकेशर – नागकेशर का चूर्ण 3 ग्राम ताज। पानी के साथ देने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है। अनार के पत्ते 20 ग्राम, काली मिर्च 5 नग, सौंफ 1 ग्राम, पानी के साथ पीस कर छानेऔर प्रातःकाल पिलावें । श्वेत प्रदर, रक्तप्रदर तथा उनके उपसर्ग दूर होंगे।

22. पुनर्नवा – पुनर्नवा पंचांग 3 ग्राम, शृंगराज 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम, चूर्ण करके पानी के साथ दें ।प्रदर तथा गर्भाशय के विकार और शोथ में भी हितकर है।

23. इलायची – बड़ी इलायची 10 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, दालचीनी 1 ग्राम, मिला कर चूर्ण करें। इसकी 4 मात्राएँ कर लें । इसमें थोड़ी मिश्री मिला कर पानी के साथ दें । श्वेत प्रदर में लाभकारी है।

24. केला – केले की पकी हुई फली भी श्वेत प्रदर में लाभ करती है । उस पर छोटी इलायची का चूर्ण बुरक कर देना चाहिये ।

25. नीम तेल – नीम का तेल 1 चम्मच, चौगुने गोदुग्ध में मिला कर सेवन करावें तथा ऊपर से भी मिश्री युक्त गो- दुग्ध पिलावें । इससे प्रदर के सभी उपसर्ग तथा विषैला प्रभाव नष्ट होता है ।

26. हंसपदी – हंसपदी का चूर्ण दही में मिला कर सेवन करायें। श्वेत प्रदर में हितकर है।

27. वासा – वासा स्वरस और मधु मिला कर पिलावें । रक्त प्रदर में लाभकारी है।

28. सफेद चंदन – श्वेत चन्दन और मिश्री समान भाग का सूक्ष्म चूर्ण दूब के रस में मिला कर पिलावें ।दोनों प्रकार के प्रदर रोग में लाभकारी है।

29. सिंघाड़ा – सूखा सिंघाड़ा चूर्ण करके रखें और 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ प्रातः- सायं सेवन करायें । सब प्रकार प्रदर में लाभ करेगा।

30. ऊन की भस्म -ऊन की भस्म और मिश्री समान भाग का चूर्ण 5 ग्राम गोदुग्ध के साथ प्रातः- सायं सेवन करायें । श्वेत प्रदर में बहुत लाभकारी है।

31. शकरकन्दी – शकरकन्दी का छाया- शुष्क चूर्ण श्वेत प्रदर में हितकर होता है । इसे 3 से 5 ग्राम तक की मात्रा में धारोष्ण गाय के दूध के साथ सेवन कराना चाहिये ।

32. अश्वगंधा – असगन्ध और शतावर समान भाग का चूर्ण 3 ग्राम ताजा पानी के साथ सेवन करायें । प्रदर में लाभकारी है।

सफेद पानी ,श्वेत प्रदर , लिकोरिया की आयुर्वेदिक दवा :Safed Pani / Likoria ki Ayurvedic Dawa

1. श्वेत प्रदर (लिकोरिया) में निम्न योग भी लाभकारी हैं : सोना गेरू 25 ग्राम, सज्जी खार 10 ग्राम, शुद्ध कसीस 3 ग्राम, वज्रक्षार 50 ग्राम और मल्लभस्म 3 रत्ती । सबको यथाविधि खरल करके रखें ।
मात्रा –1 से 4 चावल तक मलाई, मक्खन अथवा शहद के साथ प्रातः- सायं सेवन कराये । श्वेत प्रदर में अधिक उपयोगी है।

2. नागकेशर 40 ग्राम, मुलहठी और राल 30-30 ग्राम, मिश्री 100 ग्राम लेकर कूट- छान कर चूर्ण बनावें ।
मात्रा – 3-4 ग्राम तक, मिश्रीयुक्त गर्म दूध के साथ प्रातः- सायं सेवन करावें । यह चूर्ण सब प्रकार के प्रदर रोगों और उनसे उत्पन्न विकारों को दूर करता है।

3. कान्तिसार लौह भस्म 20 ग्राम, कौड़ी भस्म, रौप्य भस्म, त्रिवंग भस्म, संगजराहत भस्म, शंख भस्म, शुद्ध राल, हिंगुलोत्थ, शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक 6-6 ग्राम लेकर प्रथम पारद- गन्धक की कज्जली करें, तत्पश्चात् एक- एक भस्म डाल कर मर्दन करते हुए अन्त में में राल का चूर्ण भी मिला कर कम से कम 3 घण्टे तक खरल करके, ग्वारपाठे के स्वरस की तीन भावनाएँ दें और मूंग के बराबर गोलियाँ बना कर छाया में सुखा लें।
मात्रा -1-1 गोली, बला के स्वरस के साथ प्रातः- सायं सेवन कराये । इसके सेवन से घोर प्रदर भी नष्ट हो जाता है तथा बल, वर्ण और सौन्दर्य की वृद्धि होती है।

4. प्रदर पर अव्यर्थ योग – मुक्ताशुक्ति भस्म 20 ग्राम, लौह भस्म 5 ग्राम, वंग भस्म, कृष्णाभ्रक भस्म और यशद भस्म 3-3 ग्राम, पुष्यानुग चूर्ण और सुपारी पाक 40-40 ग्राम लेकर सबको खरल में 3 घण्टे घोट कर शीशियों में भर लें ।
मात्रा –5-6 ग्राम तक यह मिश्रण, अशोक छाल के क्वाथ से अथवा अशोकारिष्ट के साथ, प्रातः- मध्याह्न और सायंकाल सेवन कराना चाहिये ।
इसके 3 सप्ताह प्रयोग करने से ही पर्याप्त लाभ दिखाई देने लगता है। किन्तु रोग निवृत्ति के लिये 6-7 सप्ताह तक सेवन करायें । इससे सभी प्रकार के प्रदर, रंगीन या श्वेत तथा दुर्गन्धित स्राव भी काबू में आ जाते हैं।

मित्रों लिकोरिया का आयुर्वेदिक उपचार व इलाज का यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरुर बतायेंगा | अगर आपके पास भी सफेद पानी की आयुर्वेदिक दवा या लिकोरिया का घरेलू उपाय की कोई महत्वपूर्ण जानकारी हो तो हमारे साथ भी इसे शेयर कीजिये |

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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