सुबह की सैर करने के चमत्कारी फायदे जान आप भी रह जायेंगे हैरान

Last Updated on December 28, 2021 by admin

सेहत के लिए सैर :

हर चिकित्सा-पद्धति यह बात मानती है कि सैर करना सेहत के लिए बहुत अच्छा है। इससे शरीर चुस्त रहता है; दिल, फेफड़ों और मांसपेशियों की कसरत होती है और दिमाग तरोताजा रहता है। कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने तो ये परीक्षण भी कर डाले हैं कि सैर से हमारे भीतर की दुनिया की जैव रासायनिक संरचना पर क्या असर पड़ता है। पाया गया है कि नियमित सैर करने से रक्त में, दिल को सुरक्षा देने वाले कोलेस्ट्रोल घटक उर्फ हाई-डेंसिटी-लाइपोप्रोटीन (एच.डी.एल.) की मात्रा बढ़ती है। और नुकसान पहुँचानेवाले जोखिम-भरे कोलेस्ट्रोल घटक उर्फ लो-डेंसिटीलाइपोप्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है।

कुछ परीक्षणों में तो यहाँ तक देखा गया है कि कई लोगों के लिए सैर करना एक समय के बाद व्यसन बन जाता है। घड़ी की सुइयों के फेर में या किसी दूसरे कारण से अगर कोई आदत के मुताबिक सैर के लिए नहीं जा पाता तो उसे उस रोज अधूरापन सा महसूस होता है। इसका संबंध भी शरीर की जैव रासायनिकी से जोड़ा गया है। वैज्ञानिकों ने साबित करने की कोशिश की है कि सैर करने से शरीर में कुछ ऐसे प्राकृतिक जैव रसायन पैदा होते हैं जो हमारे दुख-दर्द मिटाते हैं और उनकी रासायनिक संरचना मॉरफीन जैसी होती है। सैर करने से शरीर की कुदरती बचाव-प्रणाली (इम्यून सिस्टम) भी अधिक सशक्त बनती है, यह मत भी व्यक्त किया गया है।

अक्सर समझा जाता है कि सैर के इन फायदों को हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि सैर तेज गति से ही की जाए, नहीं तो कोई फायदा नहीं। लिहाजा इस बारे में कुछ बातें साफ कर देना बेहतर होगा :

1. बड़े डग भरना किसी भी मायने में फायदेमंद नहीं है। सैर करते वक्त कदम उतने ही बड़े लें जितने की आदत हो। कदमों की लंबाई आरामदेह ही होनी चाहिए. तनाव पैदा करनेवाली नहीं।

2. किसी भी गति से सैर करना उपयोगी है। यह सोच गलत है कि तुरत-फुरत गति से सैर करना ही कारगर है। शरीर जिस रफ्तार को आसानी से सह सके, वही गति अपनाएँ। हाँ, अगर स्वास्थ्य ठीक-ठाक हो तो धीरे-धीरे गति को बढ़ा लेना भी अच्छा है। यह बात बिलकुल सही है कि तेज रफ्तार से सैर करना भरपूर
व्यायाम है

3. अगर सेहत अनुमति दे, तो सैर करने की अपनी गति बढ़ाने के लिए एक सरल तरीका आजमाएँ। सैर करते समय बाँहों को कोहनियों पर 90° के कोण पर मोड़कर, आगे-पीछे कुदरती तौर पर ‘स्विंग’ करें। इससे प्रायः शरीर के चलने की गति स्वतः बढ़ जाती है। इसका संबंध शरीर के बायो-मेकेनिक्स या जैव प्रक्रिया से है। बाँहों और टाँगों के बीच सदा एक संतुलन रहता है। जब कोई चलता है, तो चलने की गति का इस सामंजस्य से भी संबंध रहता है। अगर हम बाँहें सीधी रखकर चलें, तो टाँगों की गति धीमी हो जाती है। बाँहें मोड़कर चलें, तो टाँगों की रफ्तार कुछ तेज हो जाती है। ( और पढ़े – दौड़ने के लाजवाब फायदे और स्‍वास्‍थ्‍य लाभ)

4. चलते वक्त गति बढ़ाने के लिए कमर से ऊपर के भाग को झुकने देना वाजिब नहीं है। इस झुकाव से कंधों, छाती और रीढ़ में तनाव पैदा होता है, जबकि सैर करने का एक मकसद निःसंदेह ही शरीर को तनावरहित करना है। लिहाजा अगर तेज गति से चलें, तब भी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कंधे और
पीठ न झुकें।

5. चलते हुए शारीरिक मुद्रा सही और कदमों में ताकत हो। इसके लिए एक सुझाव यह है कि महसूस करें कि टाँगें, नाभि के दो इंच ऊपर से आरंभ हुई हैं न कि कूल्हों से। यह कल्पना दरअसल शरीर की मांसपेशियों के हिसाब से गलत भी नहीं है। पर मन भी अगर इस सोच को अपना ले तो चलने की गति खुद-ब-खुद मुस्तैद हो जाएगी।

6. अगर हृदय-रोग, श्वास-रोग या गठिया जैसा कोई रोग हो, जिससे चलने में तकलीफ महसूस होती हो या अनावश्यक जोर पड़ने का अंदेशा हो, तो सैर का कार्यक्रम अपनाने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

7. यह सोच सरासर गलत है कि दिल का दौरा पड़ चुकने के बाद आदमी सैर करने लायक नहीं रहता। दरअसल बेहतरी तो इसमें है कि दौरे के कुछ हफ्तों बाद ही अगर स्वास्थ्य अनुमति दे तो डॉक्टरी राय से सैर का एक पूरा क्रमबद्ध कैलेंडर बनाकर उसे अमल में लाना चाहिए। इससे दिल की सेहत बढ़ती है। बंद, रुकी हुई कोरोनरी धमनियों के हिस्सों में नई रक्त-धमनियाँ फूट आती हैं जिनसे दिल को खुराक मिलने लगती है।

8. मधुमेहियों (डायबिटिक व्यक्तियों) के लिए भी सैर बहुत फायदेमंद है। नियमित सैर करने से शुगर का नियंत्रण और संतुलन बेहतर बनता है। लेकिन यह ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है कि शरीर के साथ कभी ज्यादती न हो जाए। जोड़ सूजे हों, साँस फूलती हो या किसी भी कारणसे कोई परेशानी हो तो यह सोचना सरासर गलत है कि मन में संकल्प हो तो रोग दूर भाग जाएगा। कुछ लोग इसी गलत सोच के कारण रोग को बढ़ा लेते हैं। ( और पढ़े – सुबह खाली पेट पानी पीने के 14 बड़े फायदे)

9. सैर को नियम बना लेने से ही सच्चा स्वास्थ्य-लाभ और आनंद मिलता है। हफ्ते में कम-से-कम पाँच दिन सैर के लिए जरूर निकालें । शहरी जीवन में कई तरह के कारण इसमें बाधक बनते हैं, पर इच्छाशक्ति हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है और राह निकल ही आती है। सैर के लिए निकलते समय यह ध्यान अवश्य रखें कि तन पर उपयुक्त वस्त्र हों; ढीले वस्त्र जो मौसम के अनुकूल हों और पाँवों में केनवस के आरामदेह जूते भी कसे हों तो बेहतर होगा। समय बचाने के चक्कर में इन छोटी, मगर महत्त्वपूर्ण बातों पर ध्यान न देना कष्टकारी सिद्ध हो सकता है।

11.आखिरी बात-भरपेट भोजन करने पर सैर करना शारीरिक नियमों की दृष्टि से ठीक नहीं है। अगर दिल की सेहत जरा भी कमजोर हो, तब इस बात का ध्यान रखना खासतौर से जरूरी हो जाता है।

सैर, नियम से सैर, स्वास्थ्यवर्धक है। इसे जीवनचर्या का अंग बना लेना तन और मन, दोनों के ही लिए फलदायक है।

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