वह अनोखा फकीर (बोध कथा) | Inspirational storie in hindi

Last Updated on July 23, 2019 by admin

संत महिमा : Motivational storie in hindi

★ दो संन्यासी युवक यात्रा करते करते किसी गाँव में पहुँचे । लोगों से पूछा : ‘‘हमे एक रात्रि यहाँ रहना है । किसी पवित्र परिवार का घर दिखाओ । लोगों ने बताया कि : ‘‘वह एक चाचा का घर है । साधु-महात्माओं का आदर-सत्कार करते हैं । ‘अखिल ब्रह्मांडमां एक तुं श्रीहरि का पाठ उनका पक्का हो गया है । वहाँ आपको ठीक रहेगा । उन्होंने उन सज्जन चाचा का पता बताया ।

★ दोनों सन्यासी वहाँ गये । चाचा ने प्रेम से सत्कार किया, भोजन कराया और रात्रि-विश्राम के लिये बिछौना बिछा दिया । रात्रि को कथा-वार्ता के दौरान एक सन्यासी प्रश्न किया :

★ ‘‘आपने कितने तीर्थों में स्नान किया है ? कितनी तीर्थयात्रा की हैं ? हमने तो चारों धाम की तीन-तीन बार यात्रा की है ।
चाचा ने कहा : ‘‘मैंने एक भी तीर्थ का दर्शन या स्नान नहीं किया है । यहीं रहकर भगवान का भजन करता हूँ और आप जैसे भगवद्स्वरूप अतिथि पधारते हैं तो सेवा करने का मौका लेता हूँ । अभी तक कही भी नहीं गया हूँ ।

★ दोनों सन्यासी आपस में सोचने लगे : ‘‘ऐसे व्यक्ति का अन्न खाया । अब यहाँ से चले जायें तो रात्रि कहाँ बिताएँ ? यकायक चले जायें तो उसको दुःख भी होगा । लो, कैसे भी करके इस विचित्र वृद्ध के यहाँ रात्रि बिता दें । जिसने एक भी तीर्थ नहीं किया उसका अन्न खा लिया । हाय !आदि आदि । इस प्रकार विचारते सोने लगे लेकिन नींद कैसे आवे ?

★ करवटें बदलते बदलते मध्यरात्रि हुई । इतने में द्वार से बाहर देखा तो गौ के गोबर से लीपे हुये बरामदे में एक काली गाय आयी… फिर दूसरी आयी… तीसरी चौथी… पाँचवीं… ऐसा करते करते कई गायें आर्इं । हरेक गाय वहाँ आती, बरामदे में लोटपोट होती और सफेद हो जाती तब अदृश्य हो जाती ।

★ ऐसी कितनी ही काली गायें आयीं और सफेद होकर बिदा हो गयी । दोनों संन्यासी फटी आँखों से देखते ही रह गये । दंग रह गये कि यह क्या कौतुक हो रहा है ।
आखिरी गाय जाने की तैयारी में थी तो उन्होंने उसे प्रणाम करके पूछा :
‘‘हे गौ माता ! आप कौन हो और यहाँ कैसे आना हुआ ? यहाँ आकर आप श्वेतवर्ण हो जाती हो इसमें क्या रहस्य है ? कृपा करके आपका परिचय दें ।

★ गाय बोलने लगी : ‘‘हम गायों के रूप में सब तीर्थ हैं । लोग हम में गेंगे हर, यमुने हर.. नर्मदे हर.. आदि बोलकर गोता लगाते हैं । हममें अपना पाप धोकर पुण्यात्मा होकर जाते हैं और हम उनके पापों की कालिमा मिटाने के लिये द्वन्द्वमोह से विनिर्मुक्त आत्मज्ञानी, आत्मा-परमात्मा में विश्रान्ति पाये हुये सत्परुुषों के आँगन में आकर पवित्र हो जाते हैं । हमारा काला बदन पुनः श्वेत हो जाता है । तुम लोग जिनको अशिक्षित, गँवार, बूढा समझते हो वे बुजुर्ग तो जहाँ से तमाम विद्याएँ निकलती हैं उस आत्मदेव में विश्रांति पाये हुये आत्मवेत्ता संत हैं ।

★ तीर्थांनां च परं तीर्थं कृष्णाय महर्षयः ।
तीर्थी कुर्वन्ति जगतीं गृहीतं कृष्णनाम यैः ।।
‘हे ऋषियों ! समस्त तीर्थों में बडा तीर्थ कृष्णनाम है । जो लोग श्रीकृष्ण का उच्चारण करते हैं वे सम्पूर्ण जगत को तीर्थ बना देते हैं ।

★ ऐस आत्माराम ब्रह्मवेत्ता महापुरुष जगत को तीर्थरूप बना देते हैं । अपनी दृष्टि से, संकल्प से, संग से, जन-साधारण को उन्नत कर देते हैं । ऐसे पुरुष जहाँ ठहरते हैं, उस जगह को भी तीर्थ बना देते हैं । जैन धर्म ने ऐसे पुरुषों को तीर्थंकर (तीर्थ बनानेवाले) कहा है ।

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)

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