योग क्या है उसके जरुरी नियम, महत्त्व और लाभ | Yog ke Fayde Jaruri Niyam aur Mahatva

Last Updated on February 28, 2024 by admin

योग क्या है ? : Yog Kya Hai in Hindi

चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है। (मृत्यु) दुःख से छूटने और (अमृत) आनन्द को प्राप्त करने का साधन (योग) ईश्वर उपासना करना है। योग शब्दों के बारे में भाष्यकारों के अपने-अपने मत हैं। कुछ भाष्यकारों ने योग शब्द को वियोग’, ‘उद्योग’ और ‘संयोग’ के अर्थों में लिया है, तो कुछ लोगों का कहना है कि योग आत्मा और प्रकृति के वियोग का नाम है।

कुछ कहते हैं कि यह एक विशेष उद्योग अथवा यत्न का नाम है, जिसकी सहायता से आत्मा स्वयं को उन्नति के शिखर पर ले जाती है। इसी सम्बन्ध में कुछ लोगों का विचार है कि योग ईश्वर और प्राणी के संयोग का नाम है। सच तो यह है कि योग में ये तीनों अंग सम्मिलित हैं। अन्तिम उद्देश्य संयोग है, जिसके लिए उद्योग की आवश्यकता होती है और इसी उद्योग का स्वरूप ही यह है कि प्रकृति से वियोग किया जाए। ( और पढ़े – आओ सीखें योग )

योग के प्रकार और उनका महत्व : Yog ke Prakar aur Unka Mahatva

  • योग के अंग–योग के आठ अंग होते हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
  • यम पांच होते हैं, जिनको हम समाज से सम्बन्धित होने के कारण ‘सामाजिक धर्म कहेंगे।
  • नियम भी पांच हैं।
  • चूंकि यह व्यक्ति से सम्बन्ध रखते हैं, अतः इन्हें हम ‘वैयक्तिक धर्म’ कहेंगे। यम और नियम योग में प्रवेश करने वालों के लिए ऐसे आवश्यक अंग हैं, जैसे किसी मकान के लिए उसकी नींव होती है।
  • वास्तव में योगाभ्यास का आरम्भ ‘आसन से होता है, जो योग का तीसरा अंग है। आसन का अन्नमय–कोश से सम्बन्ध है। आसन करने से अन्नमय कोश सुन्दर और स्वस्थ बनता है। शरीर निरोगी और तेजस्वी बनता है।
  • प्राणायाम का प्राणमय कोश से सम्बन्ध है। प्राणायाम करने से प्राणमय कोश की वृद्धि होती है और प्राण शुद्धि होती है।
  • प्रत्याहार और धारणा का मनोमय कोश (कर्मेन्द्रियों) से सम्बन्ध होता है। इससे इन्द्रियों का निग्रह होता है। मन निर्विकारी और स्वच्छ बनता है, और उसका विकास होता है।
  • धारणा का विज्ञानमय कोश (ज्ञानेन्द्रियों) से सम्बन्ध है। इससे बुद्धि का शुद्धिकरण और विकास होता है।
  • समाधि का आनन्दमय कोश (प्रसन्नता, प्रेम, अधिक तथा कम आनन्द) से सम्बन्ध है। इससे आनन्द की प्राप्ति होती है।आइये जाने जीवन में योग का महत्व । ( और पढ़े – प्राणायाम के लाभ और इसके 15 आवश्यक नियम)

योग आसन के फायदे और लाभ : Yoga ke Fayde aur Labh

1. योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।

2. योगासन अमीर-गरीब, बूढे-जवान, सबल–निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते है।

3. आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करने वाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

4. योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती हैं।

5. योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं ।

6. योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।

7. योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तन्दुरुस्त होता है।

8. योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।

9.योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्म-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।

10. योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अतः मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।

11. योगासन श्वास–क्रिया का नियमन करते हैं. हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।

12. योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है, और वह अपना कार्य सुचारु रूप से करते हैं।

13. आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बल्ठि बनाए रखते हैं।

14. आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्मे की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

15. योगासनों से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णतः स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल बाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगासन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं। ( और पढ़े – हठयोग के लाभ और उसकी साधना)

योगाभ्यास के जरुरी नियम : Yogabhyas ke Niyam in Hindi

योगाभ्यास के लिए आवश्यक बातें -योगाचरण का अधिकार बिना किसी भेद-भाव के हर नर-नारी मात्र को है। योग, मात्र साधु-संन्यासियों और वैरागियों के लिए है, यह धारणा गलत है। हां, जिस व्यक्ति के हृदय में पिपासा, अभीप्सा, श्रद्धा और विश्वास है, वही इसका अधिकारी है, फिर वह चाहे कोई भी हो।

योग प्रक्रिया एक साधना है, जिससे पूर्ण लाभान्वित होने के लिए इसके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए यह विश्वास करना चाहिए कि जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए योगाभ्यास किया जा रहा है, उसमें निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। योग पद्धति अपने आप में पूर्ण एवं समर्थ हैं। योग अभ्यास द्वारा रोग निवारण किया जाना संभव है। योगाभ्यास से सम्बद्ध निम्नलिखित नियमों एवं अपेक्षाओं को भी ध्यान में रखना एवं समझना आवश्यक है।

योग में प्रविष्ट होने के लिए आवश्यक है कि देह शुद्ध और स्वस्थ हो, भोजन शुद्ध, सात्त्विक, स्वल्प हो। श्रद्धा, विश्वास, अभीप्सा और पिपासा हो।

1. योगाभ्यास करते समय मन में कोई दुर्विचार या तनाव नहीं होना चाहिए। मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो और रोजमर्रा की समस्त चिन्ताओं एवं समस्याओं को भूलकर मन योग प्रक्रिया में सलग्न हो।

2. योगाभ्यास करने का सही समय –

योगाभ्यास कभी भी शुरू किया जा सकता है, लेकिन शरद ऋतु से प्रारम्भ करने को सर्वोत्तम काल माना गया है। शौचादि से निवृत्त होकर जलपान के पूर्व प्रातःकाल का समय योग क्रिया के लिए श्रेष्ठतम है। कोई व्यक्ति इसे शाम को या किसी अन्य समय में भी कर सकता है, पर इसकी शर्त यह है कि योगाभ्यास आरंभ करने से तीन-चार घंटे पहले कुछ भी खाना नहीं चाहिए। यहां तक कि चाय, रस और पानी आदि पीने के एक दम बाद भी योगाभ्यास न करें, बल्कि इसमें भी प्रायः आधा घंटे का समय देना जरूरी है। आसनों का अभ्यास करते समय शरीर के साथ कोई जबरदस्ती न करें और उसे सामान्य एवं विश्राम की स्थिति में रखना चाहिए। प्रतिदिन एक ही निश्चित समय पर योगाभ्यास करने का प्रयास करना चाहिए।

3. स्थान –

योगाभ्यास के लिए स्थान स्वच्छ, खुला और हवादार होना चाहिए। गर्मियों में इसके लिए बाग-बगीचा यो खुला मैदान अधिक उपयुक्त है। यदि इसकी सुविधा न हो तो मकान की छत का प्रयोग किया जा सकता है। सर्दियों में योगासन बन्द कमरे में भी किए जा सकते हैं, लेकिन रोशनी और हवा के लिए खिड़कियां आदि इस तरह खुली रहनी चाहिए कि ठण्डी हवा के झोंके सीधे आपको न लग सकें।

योगाभ्यास के लिए समतल भूमि का चुनाव करें। जमीन पर दरी, चटाई या कम्बल बिछा लेना चाहिए। सर्दियों में रुई के गद्दे अथवा कम्बल का भी प्रयोग किया जा सकता सकता है । योगासन नस-नाड़ियों के खिंचाव का व्यायाम है। अतः नियम यह है कि प्रत्येक खिंचाव के बाद नसों-नाड़ियों को आराम मिलना चाहिए, तभी अगला आसन सफलतापूर्वक किया जा सकता है। विश्राम के लिए शवासन उत्तम है। अतः प्रत्येक आसन के बाद इसका अभ्यास करना चाहिए।

4. विश्राम –

नियमित योगाभ्यास करने के बाद शरीर को थकावट अनुभव नहीं होनी चाहिए। जब शरीर थकने लगे, तो आसन बन्दकर विश्राम कर लेना चाहिए। विश्राम का सामान्य सिद्धान्त यह है कि वास्तविक अभ्यास काल का एक चौथाई समय विश्राम में लगाएं । उदाहरण के लिए यदि किसी ने बीस मिनट तक योगाभ्यास किया हो, तो अन्त में पांच मिनट का विश्राम होना चाहिए।

5. स्नान –

योगाभ्यास से पूर्व यदि गर्म जल से स्नान कर लिया जाय, तो शरीर लचीला हो जाता है, जिससे आसन करने में सुविधा रहती है। वैसे ठण्डे जल से भी स्नान किया जा सकता है। गर्म जल से आसनों के बाद भी स्नान किया जा सकता है, लेकिन ठण्डे जल से स्नान करने के लिए कम-से-कम 15-20 मिनट का अन्तर होना आवश्यक है। नहाने के बाद, आसनों के पूर्व शरीर भली भांति पोंछकर सुखा लेना चाहिए और बाल भी न गीले रहने चाहिए।

6. वस्त्र –

योगासन करते समय आवश्यकतानुसार (मौसम या शारीरिक क्षमता के अनुकूल) वस्त्र धारण करें। जहां तक सम्भव हो शरीर पर कम-से-कम वस्त्र होने चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि वस्त्र कुछ ढीले-ढाले हों, ताकि योग प्रक्रिया में रुकावट न पैदा करें । अभ्यासी पुरुष अण्डरवियर के साथ हाफ पैन्ट या पाजामा पहन सकते हैं। अभ्यासी महिलायें ब्लाउज के साथ साड़ी, स्लेक्स आदि पहन सकती है।

7. सूर्य स्नान –

प्रातःकाल सूर्य स्नान किया जाये तो आसनों से विशेष लाभ होता है।

8. ध्यान रखें

यदि शरीर में विषैले पदार्थों की उपस्थिति होगी, तो शीर्षासन करने से हानि भी हो सकती है, अतः इसका ध्यान रखें। हाथों में खुजली या सूजन हो या आंतों में वायु व अम्ल हों, तो इसका अर्थ यह है कि शरीर में विषैले तत्त्व मौजूद हैं।

9. उचित आहार –

योग पद्धति में आहार का प्रमुख स्थान है। अतः जो व्यक्ति उचित आहार नहीं लेता और आहार के सिद्धान्तों की समझ नहीं रखता, वह अपना शारीरिक और मानसिक तौर पर धीरे-धीरे नुकसान ही करता है। क्योंकि आहार के प्रकार तथा गुण का प्रभाव व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों पर पड़ता है। ( और पढ़े – धारणा क्या है ? उसकी अभ्यास विधि और लाभ)

योगाभ्यास में स्त्री समस्याएं :

  1. उन स्त्रियों को योगासन नहीं करना चाहिए, जो रजस्वला हों या जिनके गर्भ को 5-6 माह हो चुके हों। जो स्त्रियां प्रारम्भिक योगाभ्यास कर रही हों, उन्हें गर्भ के 2 माह बाद ही बन्द कर देना चाहिए।
  2. गर्भावस्था को छोड़कर स्त्रियों के विभिन्न प्रकार के रोगों तथा अव्यवस्थाओं के निवारण के लिए योग का अपना विशेष महत्त्व है। गर्भावस्था के आरम्भिक दिनों में उचित योगाभ्यास से गर्भस्थ शिशु का विकास होता है और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। साथ ही प्रसव के समय होने वाली वेदना भी किसी हद तक दूर हो जाती है।
  3. स्त्रियों में रजःस्राव की कठिनाइयों को दूर करना और सामान्य-स्वाभाविक स्थिति में लाना योग द्वारा संभव है।

योगाभ्यास के लिए आदर्श दिनचर्या :

योगाभ्यास करने वालों को निम्न दिनचर्या भी ध्यान में रखनी चाहिए –

  1. प्रातः 4 से 5 बजे-ब्रह्म मुहूर्त में उठना।
  2. प्रातः 5 से 6 बजे-शौच, दन्त सफाई और स्नान आदि।
  3. प्रातः 6 से 7 बजे-आसन, प्राणायाम।
  4. प्रातः 7 से 8 बजे-हवन, स्वाध्याय, प्रतिराश।
  5. प्रातः 8 से 9 बजे-पारिवारिक कार्य।
  6. प्रातः 9 से 10 बजे-भोजन।
  7. प्रातः 10 से 5 बजे सायं तक-अपना व्यवसायिक कार्य ।
  8. सायंकाल 5 से 6 बजे-पारिवारिक कार्य।
  9. सायंकाल 6 से 7 बजे-शौच, आसन, संध्या, हवन ।
  10. सायंकाल 7 से 8 बजे-भ्रमण, स्वाध्याय ।
  11. सायंकाल 8 से 9 बजे–भोजन।
  12. सायंकाल 9 से 10 बजे-संगीत, व्याख्यान, सत्संग, स्वाध्याय आदि। दिनभर के अच्छे-बुरे कामों का चिन्तन।आइये जाने योगा कैसे करे ,योग करने की विधि

योगाभ्यास की विधि :

  • योग का पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए उसे ठीक ढंग से करना चाहिए। आसन में गहरे और लम्बे श्वास बाहर छोड़ना चाहिए। शरीर को मोड़ते हुए श्वास बाहर छोड़ना चाहिए। शरीर को सीधा करते हुए अथवा पहली स्थिति में आते हुए श्वास खींचना चाहिए। चूंकि यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, अतः इसे एक विशेष प्रकार से करने की आवश्यकता है। आसन, प्राणायाम, बंध तथा मुद्राएं प्रमाणित विधियों-नियमों के अनुसार सम्पन्न किए जाएं तो शरीर संस्थान पर योग द्वारा विशेष लाभ होता है।
  • आसनों में दिए जाने वाले समय का निर्धारण व्यक्तिगत अभ्यास पर निर्भर करता है, जैसे 15 से 40 मिनट तक किये जा सकते हैं। सर्वांगासन के समय को धीरे-धीरे क्रम से बढ़ाकर 10 मिनट तक किया जा सकता है। इसकी पहली और अन्तिम स्थिति में जाने और आने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। यह क्रम धीरे-धीरे करना चाहिए। इसके अलावा अन्य आसनों की स्थिति में कुछ समय का विश्राम करना भी उचित होता है।
  • कई लोगों का शारीरिक गठन कुछ इस प्रकार का होता है कि उन्हें सीधे-सीधे आसन करने में भी परेशानी का अनुभव होता है और उन्हें विशेष प्रकार से कठिनाई होती है। लेकिन ऐसे लोगों के लिए परामर्श यह है कि उन्हें धैर्यपूर्वक योगाभ्यास करते रहना चाहिए। निरन्तर योगाभ्यास से शरीर लचीला बनता जायेगा, जिससे उनकी परेशानी-कठिनाई का निवारण होता जायेगा। यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक आसन की शीघ्र सिद्धि हो जाये। इसमें समय लगता है। अतः धैर्यपूर्वक विश्वास करके अभ्यास करते हुए आगे बढ़ाना चाहिए।
  • कठिन रोगों में जब तक किसी अनुभवी पथप्रदर्शक से पूरी जानकारी हासिल न कर लें, तब तक आसन नहीं करना चाहिए। साधारण रोगों में भी पथप्रदर्शन आवश्यक है।
  • अपने नियम आसनों को करने के बाद प्राणायाम करना चाहिए। इसका अभ्यास भी धीरे-धीरे बढ़ना चाहिए।

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