अहिंसा की विजय (प्रेरक कहानी) | Prerak Hindi Kahani
बोध कथा : Hindi Motivational Storie एक बार काशी नरेश नारायण सिंह ने अयोध्या के राजा चन्द्रसेनपर अकारण चढ़ाई कर दी। अपने राज्यका विस्तार करना ही कारण था। राजा चन्द्रसेन था अहिंसा का पुजारी। उसने …
बोध कथा : Hindi Motivational Storie एक बार काशी नरेश नारायण सिंह ने अयोध्या के राजा चन्द्रसेनपर अकारण चढ़ाई कर दी। अपने राज्यका विस्तार करना ही कारण था। राजा चन्द्रसेन था अहिंसा का पुजारी। उसने …
बोध कथा : Hindi Moral Story फतहगढ़के सेठ रामगोपालजीका नियम था कि जबतक किसी अतिथिको भोजन न करा लेते, तबतक स्वयं भोजन न करते थे। वे एक भक्त साहूकार थे। लखपती सेठ थे; पर लक्ष्मीसे …
बोध कथा : Hindi Moral Story आजमगढ़ के कलक्टर मि० देसाई अपने बँगले में एक कमरे में आराम कुरसी पर लेटे हुए अखबार देख रहे थे। इतवारकी छुट्टीका दिन था और सुबहके आठ बजे थे। …
बोध कथा : Hindi Moral Story उस समय भारत की राजधानी उज्जैनमें थी। राजा वीर विक्रमादित्य उस समय भारत-सम्राट् थे। आपको बालकों से बड़ा प्रेम था। महलके भीतर प्रत्येक कार्य पर बालक ही नियुक्त थे; …
बोध कथा : Hindi Moral Story उन दिनों हरद्वारमें अर्धकुम्भीका मेला था। मैं भी गया था। मैंने तीन दिनसे लक्ष्य किया कि एक सिपाही सरकारी वर्दी में एक करीलके नीचे बैठा माला जपा करता है। …
बोध कथा : Hindi Moral Story सम्राट् विक्रमादित्य अन्य राजाओंकी तरह विलासी नहीं थे। वे हर समय इसी चिन्तामें रहा करते थे कि प्रजाको किस-किस बातकी तकलीफ है और वह किस प्रकार से दूर की …
शिक्षाप्रद कहानी : Hindi Moral Story कई साल पहलेकी बात है। मि० सप्रू इटावामें डिप्टी कलेक्टर बनकर आये। एक दिन एक विचित्र घटना घटी। सप्रूजी भोजन करके पलंगपर लेटे हुए थे। रातके दस बजेका समय …
शिक्षाप्रद कहानी : Hindi Moral Story • जिला गौहाटीके खगीपुर नामक एक गाँवमें एक अहीर रहता था। नाम था मनमौजी। था भी मौजी ! उसने गाँवके जानवरोंके चरानेका काम पसंद किया। यह कहानी उस समय …
शिक्षाप्रद कहानी : Prerak Hindi Kahani ज्यादा दिनों की बात नहीं। संवत् १९०० वि० की एक सच्ची और विचित्र घटना सुनिये। उस घटना ने यह कहावत प्रमाणित कर दी कि ‘गुरु गुड़ ही रहे, चेला …
शिक्षाप्रद कहानी : Prerak Hindi Kahani आजसे दो हजार वर्ष पूर्व भारतकी राजधानी उज्जैनमें थी। भारतसम्राट् भरथरी (भर्तृहरि) महाराज जब योगी हो गये, तब विक्रमादित्यजी सिंहासनपर विराजमान हुए। उस समय बंगालके राजा गोपीचन्दजी थे, जो …