Last Updated on October 10, 2020 by admin
उदर रोगों की शुरूआत मन्दाग्नि होने यानी पाचन शक्ति की कमी होने से होती है।
मन्दाग्नि न हो तो न तो अजीर्ण हो और न ही आध्मान। मन्दाग्नि की स्थिति ठीक न की जाए तो अजीर्ण नामक व्याधि पैदा होती है ।
अपच या अजीर्ण क्या है ?
अजीर्ण शब्द जीर्ण और ‘अ’ की सन्धि से बना है। जीर्ण का शाब्दिक अर्थ है। पुराना, क्षीण और खस्ता हाल ! खाया हुआ आहार जब हज़म हो जाता है तो उस अवस्था को जीर्ण अवस्था कहते हैं और जब तक हज़म न हो तब तक की अवस्था को अजीर्ण कहते हैं यानी हज़म न होना। इस हज़म न होने की स्थिति को अजीर्ण यानी बदहज़मी (Dyspepsia) कहते हैं। आयुर्वेद के प्रकरण में अजीर्ण शब्द का उपयोग बदहज़मी के लिए किया जाता है।
अजीर्ण के प्रकार , लक्षण और कारण : Dyspepsia : Symptoms and Causes
आयुर्वेद ने अजीर्ण के 6 भेद बताये हैं। जिनकी जानकारी आमतौर पर सबको नहीं होती। यहां इन 6 भेदों की संक्षेप में सिर्फ ज़रूरी जानकारी प्रस्तुत करते हैं। ये 6 भेद हैं-
(1) आमाजीर्ण (2) विदग्धाजीर्ण (3) विष्टब्ध अजीर्ण (4) रस शेष जीर्ण (5) दिनपाकी अजीर्ण और (6) प्राकृत अजीर्ण ।
(1) आमाजीर्ण के लक्षण और कारण :
इसे श्लेष्मिक अजीर्ण भी कहते हैं। श्लेष्मा यानी कफ बढ़ाने वाले, भारी, चिकनाई युक्त और कठिनाई से पचने वाले शीतल प्रकृति के पदार्थों का अति मात्रा में और लम्बे समय तक लगातार सेवन करने से होने वाले अजीर्ण को आमाजीर्ण कहते हैं। इसमें कफ बढ़ा हुआ रहता है और मुंह में लार अधिक बनना, शरीर में शिथिलता व आलस्य, सिर में भारीपन, गालों व आंखों के नीचे सूजन होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
(2) विदग्धाजीर्ण के लक्षण और कारण :
इस अजीर्ण में पित्त बढ़ा हुआ रहता है। आहार में तेज़ मिर्च मसालेदार, तले हुए, खटाईयुक्त तथा नमकीन तीखे पदार्थों का अति सेवन, मद्यपान, धूम्रपान आदि का सेवन करने से यह अजीर्ण होता है। इसमें खट्टी डकार आना, पेट में जलन व दर्द, मुंह में कड़वा चरपरा पानी आना, जी मचलाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
(3) विष्टब्ध जीर्ण के लक्षण और कारण :
इसमें वात बढ़ा हुआ रहता है अतः इसे वातिक अजीर्ण भी कहते हैं। दुःख, शोक, भय, निराशा आदि अवसाद वाले कारणों से आमाशय में रस व बल बहुत क्षीण हो जाते हैं जिससे पाचन में विलम्ब होता है। इस अजीर्ण का प्रभाव स्नायविक संस्थान पर पड़ता है। बहुत अधिक परिश्रम करना, रूखा सूखा आहार लेना तथा अति शीतल वातावरण में रहना इस अजीर्ण के कारण हैं। इसमें पेट में हलका दर्द, पेट फूलना, गैस बढ़ना, अपान वायु का रुकना, शरीर में जकड़न होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
(4) रस शेष अजीर्ण के लक्षण और कारण :
इस अजीर्ण में खाया हुआ आहार पच जाने पर, आहार का सार रूप कुछ समय के लिए कुछ अंश में अनपका रह जाता है। इस स्थिति में भोजन की इच्छा नहीं होती, मुंह में पानी आता है, हृदय में भारीपन रहता है। पहले खाया हुआ पूरी तरह से पच जाय इससे पहले ही आहार लेने से यह अजीर्ण होता है।
(5) दिनपाकी अजीर्ण के लक्षण और कारण :
इस अजीर्ण में प्रातः एक बार आहार लेने के बाद पाचन होने में बहुत अधिक समय लगता है यानी शाम तक भूख नहीं लगती तो उसे दिन में एक बार ही भूख लगती है। ऐसा व्यक्ति दिन पाकी अजीर्ण का रोगी होता है। अधिक उपवास करने और मानसिक कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहने वालों को यह अजीर्ण हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का शरीर धीरे धीरे कमज़ोर और दुबला हो जाता है।
(6) प्राकृत अजीर्ण के लक्षण और कारण :
यह अजीर्ण प्राकृतिक रूप से तब होता है जब व्यक्ति दिनचर्या एवं आहार-विहार के नियमों पर ठीक से अमल नहीं करता। भोजन करने के बाद, भोजन यथा समय ठीक से व पूरी तरह पच जाए इसके लिए नियमों और क्रियाओं पर अमल करना आवश्यक होता है ताकि प्राकृतिक रूप से होने वाला अजीर्ण न हो। भोजन के तुरन्त बाद न सोना बल्कि थोड़ी देर टहलना, बायें करवट लेटना, मन को रुचिकर लगने वाले पदार्थों का आहार करना, प्रसन्न और निश्चिन्त मन से आहार लेना खूब अच्छी तरह चबा चबा कर आहार लेना, भोजन के साथ या अन्त में पानी न पीना, भोजन के बाद मुखशुद्धि कर पान खाना, निश्चित समय पर भोजन करना, प्रातः सूर्योदय से पहले नित्य कर्म करके सैर करना, शाम का भोजन जल्दी करना आदि दिनचर्या के नियमों का पालन न करने से होने वाले अजीर्ण को प्राकृत अजीर्ण कहते हैं।
संक्षेप में, सभी प्रकार के अजीर्ण अनियमित दिनचर्या, आहार-विहार में लापरवाही और शरीर पोषक नियमों का पालन न करना, मानसिक रूप से तनाव ग्रस्त, चिन्ता और शोक से पीड़ित रहना आदि कारणों से होते हैं अतः इन कारणों का त्याग करके ही दवा-इलाज करना चाहिए वरना दवाओं का पूरी तरह असर
नहीं होगा और व्याधि पुरानी तथा मज़बूत होती जाएगी। अजीर्ण होने पर खाया पिया ठीक से पचता नहीं तो शरीर को कोई लाभ ही नहीं होता इसलिए अजीर्ण होने पर सावधान हो कर पहले तो अपनी दिनचर्या व आहार-विहार की स्थिति सुधारें और लक्षणों को देख कर यह जान लें कि अजीर्ण किस प्रकार का है। जिस प्रकार का अजीर्ण हो उस प्रकार के अजीर्ण के होने में जो जो कारण बताये गये हैं उनका त्याग करें और सम्बन्धित औषधियों का नियमपूर्वक सेवन करने लगे। जब तक पूरी तरह लाभ न हो जाए तब तक औषधि सेवन करते रहें।
मन्दाग्नि एवं अजीर्ण नाशक घरेलू उपचार : Home Remedies for Dyspepsia
ajirna treatment in ayurveda
यह तो बताया ही जा चुका है कि पहले मन्दाग्नि की स्थिति बनती है और यदि इस स्थिति को दूर न किया जाए तो फिर अजीर्ण की स्थिति बनने लगती है। इन व्याधियों की दो अवस्थाएं होती | हैं एक तो प्रारम्भिक (Acute) तात्कालिक अवस्था और दूसरी जीर्ण यानी पुरानी (Chronic) अवस्था। यहां इन दोनों व्याधियों को दूर करने वाली घरेलू चिकित्सा के कुछ नुस्खे प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इनमें से कोई सा भी एक या दो नुस्खों का सेवन लाभ न होने तक करना चाहिए और परहेज़ का सख्ती से पालन करते हुए अपथ्य आहार का सर्वथा त्याग रखना चाहिए।
प्रारम्भिक (Acute) अवस्था में चिकित्सा :
(1) सोंठ, काली मिर्च, पीपल, जीरा, अजवायन, सेन्धानमक और मिश्री- सब बारीक पिसे हुए समान वज़न (मात्रा) में लेकर मिला लें और छन्नी से तीन बार छान लें ताकि सभी सातों द्रव्य ठीक से मिल कर एक जान हो जाएं। इस चूर्ण को छोटा आधा चम्मच यानी लगभग 2-3 ग्राम मात्रा में, सुबह शाम गरम पानी के साथ लें। ( और पढ़े – अपच के 21 चमत्कारी घरेलु इलाज )
(2) भोजन करने से 10-15 मिनिट पहले लवण भास्कर चूर्ण या शिवाक्षार पाचन चूर्ण गरम पानी के साथ एक चम्मच भर लें।
जीर्ण (Chronic) अवस्था में चिकित्सा :
(1) जवाखार 10 ग्राम और सोंठ चूर्ण 30 ग्राम- मिला लें। यह चूर्ण आधा छोटा चम्मच गरम पानी या छाछ के साथ सुबह खाली पेट, सिर्फ एक बार, लेना चाहिए।
(2) यदि ज्वर के साथ मन्दाग्नि या अजीर्ण हो तो बड़ी मुनक्का को तवे पर घी के साथ सेक कर सेन्धा नमक व काली मिर्च का चूर्ण बुरक कर दिन में 4-5 बार 5-6 मुनक्का चबा चबा कर खाना चाहिए। ( और पढ़े – अजीर्ण बुखार के 10 सबसे असरकारक घरेलु उपचार)
(3) एसिडिटी (अम्लपित्त) के साथ मन्दाग्नि हो तो भोजन के बाद अविपत्तिकर चूर्ण 1 चम्मच, ताज़े पानी के साथ लेना चाहिए। ( और पढ़े – एसिडिटी के सफल 59 घरेलु उपचार)
(4) वात (गैस) के साथ अजीर्ण हो तो शिवाक्षार पाचन चूर्ण एक चम्मच व गन्धक वटी 2 गोली गरम पानी से भोजन के बाद लें।
विशेष- जीर्ण अवस्था के रोगी को बार बार जुलाब न लेकर पथ्य आहार और औषधि का सेवन करना चाहिए परहेज़ का सख्ती से पालन कर अपथ्य आहार कदापि नहीं लेना चाहिए। सात दिन में एक बार एनिमा लेना चाहिए। आहार सम्बन्धी सभी नियमों और दिनचर्या का नियम पर्वक पालन करना चाहिए।
अजीर्ण की आयुर्वेदिक दावा : ajirna ki dawa
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(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)