Last Updated on July 22, 2019 by admin
दुकान का वास्तु : dukan ka vastu
वास्तुशास्त्र गहन गम्भीर विषय है । इसका आम व्यक्ति के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है, न केवल आवासीय मकान, अपितु व्यवसाय-व्यापार से भी इसका गहरा रिश्ता है । व्यावसायिक उन्नति का मूल वास्तुविज्ञान है । अन्तः दुकान, ऑफिस, गड़ही, शोरूम, मिल, फैक्ट्री उद्योग आदि की स्थापना से पूर्व वास्तुशास्त्र-विषयक ज्ञान भी लेना चाहिए ।
कभी कभी छोटी-सी त्रुटि रहने पर परिश्रम का फल नहीं मिलता । श्रेष्ठ व्यवसायी भी हार जाता है । अत: वास्तु विषयक ज्ञान होना सभी के लिए आवश्यक है ।
चतुर व्यवसायी को व्यापारस्थापना के मुख्य आधार दुकान, ऑफिस आदि के संदर्भ में भली-भांति विचार करना चाहिए । दुकान की स्थापना (मुहूर्त) करने से पूर्व, लाभ की इच्छा से वास्तुशास्त्र विषय की दृष्टि से दुकान के गुण-अवगुण की परीक्षा कर लेनी चाहिए।
दुकान के लिए वास्तु टिप्स : dukan ke liye vastu tips in hindi
✦ यदि दुकान या ऑफिस पूर्वमुखी है तो व्यवसायिक दृष्टि से उत्तम लाभप्रद है ।
✦ दुकान यदि पश्चिमाभिमुखी है तो व्यवसाय में कभी प्रारोह (तेजी) तो कभी अवरोह मन्दी होती रहती है ।
✦ उत्तारामुखी दुकान, धन-धान्य की वृद्धि करती है, प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा बढ़ाती है और प्रतिष्ठान का नाम चमकता है ।
✦ यदि दक्षिणाभिमुखी दुकान है तो दशाएं कमजोर होने पर बाधाएं आती हैं तथा मन्दगति से व्यापार चलता है ।
✦ जहां तक सम्भव हो पूर्व अथवा उत्तराभिमुखी दुकान ही लेनी चाहिए । इसी में समझदारी है ।
✦ बड़े शहरों में दुकान या कार्यालय सर्वतोमुखी होते हैं, अत: दक्षिण दिशा का पूर्णत: परित्याग नहीं किया जा सकता । चारों दिशाओं में ही दुकानें होती हैं, बड़ी मंहगी कीमतें व पगड़ी देने पर मुश्किल से व्यापार हेतु जगह मिलती है । बड़े शहरों-महानगरों में हमने देखा कि अधिकतर दुकानें दक्षिणमुखी होती हैं । ऐसे में अपनी गद्दी, कुर्सी व काउण्टर आदि का विचार करना चाहिए । अपने आसन (रिवाल्विंग चेयर) की स्थापना नियम पूर्वक करें । अर्थात् दक्षिणमुखी आसन नहीं होना चाहिए । निर्जल ग्रहदशा होने पर हानि निश्चित रूप से होती है ।
✦ व्यापारी या व्यवसायी को अपने प्रतिष्ठान (चाहे दुकान हो या ऑफिस) में उत्तराभिमुख बैठना चाहिए या पूर्वाभिमुख आसन पर बैठना चाहिए। इसके विपरीत स्थिति होने पर धनहानि की आशंका रहती है या कदम-कदम पर किसी-न-किसी प्रकार की बाधाएं रुकावटें उपस्थित होती हैं । चहुंमुखी विकास में रुकावट आती रहती है । अतः दिशा को दृष्टिगत रखते हुए आसन गद्दी की स्थापना करें ।
✦ दुकान अथवा कार्यालय की भूमि का सही ढंग से परीक्षण करना चाहिए । पुस्तक में निर्दिष्ट उपायों के माध्यम से भूमि-परीक्षण करने के बाद यह विचार करना चाहिए कि दुकान या कार्यालय की आकृति क्या है?
✦ यदि छाजमुखी है, अग्रभाग चौड़ा और पृष्ठ का भाग संकरा हो, तो ऐसी दुकान शुभ नहीं कही जाती है । इसे गौमुखी दुकान भी कहते हैं ।
✦ सिंहमुखी दुकान लाभ की दृष्टि से श्रेष्ठ है । कुछ लोग इसे काकमुखी भी कहते हैं । यदि आयतन लम्बा है तो शुभ है, दुकानों के लिए चतुरस आयतन भी शुभ माना गया है ।
✦ दुकान या होटल तिकोना या आड़ा-टेढ़ा शुभ नहीं है । अर्थात् त्र्यस्त्र यानी तीन कटवाली व विकल नेष्ट कही गई है।
✦ इसी प्रकार दुकान अथवा कार्यालय के अग्रभाग में गन्दगी या काबा रहना शुभ नहीं कहा गया है। ऐसी स्थिति में यथासंभव उपायों के माध्यम से सुधार करना अपेक्षित है ।सड़क की नाली भी एक प्रकार से दुकान का वेध कहलाती है, जो कि आवक में रुकावट डालती है ।
✦ होटल, उद्योग या दुकान, कार्यालय, गद्दी अथवा व्यापारिक केन्द्र वास्तुशास्त्रीय दृष्टि से शुभ नहीं, या उसकी बनावट में विकृति है, टेढ़ी-मेढ़ी भुजाएं व असन्तुलित रचना है या अन्य किसी प्रकार की विकृति है तो दुकान के अण्डरग्राउण्ड (गर्भग्रह) व प्रतिष्ठान आदि में उचित स्थान पर, वास्तुविशेषज्ञ के परामर्श से विधि-विधानपूर्वक श्रीयन्त्र की स्थापना करनी चाहिए, ताकि किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका न रहे ।
✦ जहां तक सम्भव हो, दुकान के भीतर-वक्रता (टेढ़ामेढ़ापन) नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर दुकान मालिक एवं व्यापारी को अशान्ति बनी रहती है, किसी-न-किसी प्रकार की बाधा उपस्थित होती रहती है तथा धन-वृद्धि आशा के अनुकूल नहीं होती है।
✦ ऑफिस या दुकान के द्वार पर, देहली, पाठ या ठोकर नहीं होनी चाहिए किसी प्रकार का । अवरोध नहीं रखना चाहिए । व्यावसायिक कार्यालय में इस पर विशेष ध्यान रखना चाहिए । यदि अवरोध (देहली आदि) है तो सम होना चाहिए । उसमें ढलान अथवा वक्रता न हो।अन्यथा लक्ष्मी स्थिर नहीं रह सकती है और न ही धन की बरकत होगी ।
✦ होटल, दुकान, व्यावसायिक कार्यालय आदि का मुहूर्त श्रेष्ठ स्थिर लग्न में करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविज्ञ से श्रेष्ठ मुहूर्त निकलवाकर अपना चन्द्रमा व नक्षत्र आदि पर विचार कर कार्यारम्भ करना चाहिए। यदि शीघ्रता अथवा विशेष परिस्थिति हो तो अपने श्रेष्ठ चन्द्रमा, पुष्य नक्षत्र के दिन तुला या शुभ लग्न में मुहूर्त कर सकते हैं।
✦ होटल, दुकान, व्यावसायिक कार्यालग्र आदि व्यापारिक केन्द्र का आंगन स्वच्छ, सुघड़ तथा आरामदायक होना चाहिए अन्यथा धन-हानि की आशंका बनी रहती है । फर्श ऊबड़ खाबड़ या अधिक ढलानवाला नहीं होना चाहिए । अधिक ढलान से व्यापार में अवरोध आते रहते हैं।
✦ यथा सम्भव करते का समय सुनिश्चित कर होटल, दुकान, कार्यालय अथवा गद्दी पर व्यापारिक कार्य आरम्भ करना चाहिए। मुहूर्त प्रसन्नचित्त होकर सकुटुम्ब, इष्ट-मित्रों सहित ही करना चाहिए । दिन के पूर्वार्द्ध भाग में व्यापारिक मुहूर्त करना मंगलप्रद होता है । अपराह्न के बाद ढलते सूर्य में सायं अथवा रात्रि-समय में व्यापार-व्यवसाय का मुहूर्त नहीं करना चाहिए ।
✦ सबसे पहले मन, वाणी एवं कर्म से शुद्धचित्त होकर संकल्प पूर्वक अपने गुरुदेव ,कुलदेवता ,स्थान व ग्राम-देवता को याद करके, सर्वप्रथम शुद्धि एवं पूजन करना चाहिए। अपने गुरुदेव के श्री विग्रह व श्रीगणेश की प्रतिमा, दुकान, कार्यालय या गद्दी व आसन आदि के दाहिनी ओर स्थापित करनी चाहिए। यदि स्थानाभाव अथवा अन्य कारण से असुविधा हो तो आसन (गद्दी) के शीर्ष (ऊपर) की ओर गुरु चित्र ,गणपति को लक्ष्मी के साथ स्थापित करना चाहिए ।
✦ नींव मुहूर्त के अवसर पर होटल, दुकान, कार्यालय व गद्दी आदि जहां से सुनिश्चित की है, उस भूमि को भी शोधित एवं जागृत कर पूजन करना चाहिए जिससे अशुद्ध भूमि शुभस्वरूप हो सके। किसी भी कारण से वहां उपस्थित होनेवाली विपदाएं, बाधाएं दूर हो सकें और अशान्ति न रहने पाये, अन्यथा कठिन परिश्रम के बाद सफलता के साथ व्यवसाय करने पर भी मन शान्त नहीं रह पाता है, अत: भूमि-पूजन विधि-विधान के साथ वैदज्ञ विद्वान ब्राह्मण के सान्निध्य में करना चाहिए।
✦ शुभ मुहूर्त के अवसर पर नया आसन, गद्दी, फीचर, काउण्टर आदि लाना चाहिए । स्वेत एवं पीत वस्त्र का ही उपयोग करना चाहिए । चादर, मसनद के खोल आदि स्वेत वस्त्र के ही हों । लक्ष्मी शुक्र ग्रह की रश्मियों से आकृष्ट होती है, अत: शुभ्रता की ओर ध्यान दें, क्योंकि शुभ्रता में आकर्षण है।
✦ मुहूर्त के अवसर पर नवीन बहीखाता खरीदकर लाना चाहिए । इसी प्रकार नयी लेखनी (कलम, डॉटपेन आदि) मसिपात्र (स्याही) आदि व्यापारिक सामग्री लानी चाहिए । इन सभी का श्रद्धा के साथ व्यापारी को पूजन करना चाहिए । व्यापारी के ये अनिवार्य यन्त्र कहें जाते हैं। यदि उपयोगिता हो तो तुला (तराजू) आदि का भी विधि-विधान से पूजन करना चाहिए।
✦ होटल, दुकान एवं व्यापारिक प्रतिष्ठान को मुहूर्त के अवसर पर पत्रपुष्पादि की सजावट से स्थित करना चाहिए । वस्त्रादिक के वितान बनाकर अथवा टेण्ट व तम्बू आदि लगाकर अलंकृत करना चाहिए । वाद्य-वृन्द आदि मंगल ध्वनि की व्यवस्था करनी चाहिए । अपने प्रतिष्ठान अथवा दुकान को सुसज्जित करना चाहिए ।
✦ द्वार के पास समुचित दिशा में बैठकर दुकान, कार्यालय आदि का विधि-विधान से पूजन करना चाहिए ।
✦ गन्ध, पुष्प, पत्र, अक्षत आदि से स्वास्तिक के चिह्न अंकित करने चाहिए । यह स्वास्तिक चिह्न ऋद्धि (समृद्धि) सिद्धि (सफलता) का प्रतीक है । सिन्दूरी स्वास्तिक की अपेक्षा कुकमादिसे सुन्दर कल्पना करनी चाहिए जिससे व्यापार स्थायित्व एवं विकास की ओर अग्रसर हो। स्वास्तिक मंगल (कल्याण) के प्रतीक हैं तथा इनमें आकर्षण शक्ति है । यह ध्यान रहे कि प्रतिलोम भुजाओंवाला स्वास्तिक न हो अन्यथा फल विपरीत होंगे । अतः स्वास्तिक में छिपे वैज्ञानिक रहस्य को समझना जरूरी है ।
✦ यदि प्रवेश संकरा है और अन्त में चौड़ा हो तो गोमुखी भूखंड कहलाता है। ऐसा भूखंड आवास के लिए श्रेष्ठ एवं दुकान के लिए भी श्रेष्ठ होता है ।
✦ यदि आपका भूखण्ड प्रवेश-द्वार से चौड़ा और अन्त में संकरा हो तो ऐसा भूखण्ड गृहस्थ व्यक्ति के रहने के लिए ठीक नहीं होता परन्तु दुकान के लिए चलता है।
✦ जिस भूखंड के पूर्व या उत्तर में पहाड़ हो, उसे त्याग दें ।