Last Updated on February 13, 2022 by admin
फोड़े फुंसियों के कारण और लक्षण : fode funsi ke karn aur lakshan
फोड़े, फुन्सियाँ, पिड़िका, लोमपाक, बालतोड़ आदि कई नामों से उच्चरित होने वाले रोगों से प्राय: सभी परिचित हैं। यों ही बाल उखड़ जाने से उस स्थान पर छोटी-छोटी फुन्सियां निकल आती हैं। इसमें सदैव नोंक निकलती है। बालों की जड़ों में स्टेफ्लोकोकस नामक कीटाणुओं के संक्रमण से, रक्त विकृत हो जाने से, वर्षा ऋतु में कच्चे या पके आमों के अत्यधिक सेवन से अथवा दुर्बलता के कारण से, फुन्सियाँ निकल आया करती हैं।
पहले इसमें सूजन और दर्द होता है। और इसके बाद इसमें पीव उत्पन्न हो जाता है। अनेक फुन्सियाँ बिना पके ही बैठ जाती हैं और अनेक पककर कड़ी हो जाती हैं । इन सबमें कोर रहती है । कोर के पीव के साथ निकल जाने पर दर्द, सूजन, जलन, एवं कष्ट प्रायः कम हो जाता है।
एक और विशिष्ट प्रकार की फुन्सी होती है जो कई संख्या में एक साथ समीप-समीप या दूर-दूर पर उत्पन्न होती हैं और सही त्वचा के जिस-जिस स्थान पर इन विशिष्ट फुन्सियों का पूय (पीव) लग जाता है उस स्थान पर भी यह उत्पन्न हो जाती है । यह प्राय: संक्रामक चर्मरोग के अन्तर्गत आती है। शरीर में घाव विविध कारणों से हुआ करते हैं । इसीलिए इनके अनेक प्रकार भी हैं।
नासूर के लक्षण : nasur ke lakshan
नासूर को नालवण, विवर तथा अंग्रेजी में फिस्यूला (Fistula) और साइनस (Sinus) के नामों से भी जाना जाता है। पुराना और गहरा घाव जिसके फटने के बाद कम से कम 40 दिन बीत चुके हों, नासूर कहलाता है । यह अंदर से गहरा ट्यूब की भांति तंग टेढ़ा और लम्बा होता है। किन्तु इसका मुँह छोटा होता है और उसके अन्दर चारों ओर कठोर और सफेद मांस बढ़ जाता है । इस सफेद मांस को दूषित मांस भी कहा जाता है। नासूर से सदा पीली गाढ़ी या पतली पीव बहती रहती है। कभी पीव बहनी बन्द हो जाती है और घाव का स्थान शोथयुक्त हो जाता है। किन्तु दोबारा बहने पर शोथ दूर हो जाता है। नासूर | का गड्ढा (नलिका) कभी सीधा कभी टेढ़ा-मेड़ा होता है । तथा यह कभी-कभी पेशी या सिरा अथवा धमनी, (बन्धनी) या किसी अंग तक पहुँच जाता है।
कभी-कभी एक नासूर के कई मुँह भी होते हैं। नासूरों के भी विभिन्न नाम होते हैं। जैसे गुदा के पास होने वाले नासर को भगन्दर (फिस्यला इन एनो) कहते हैं। यदि नासूर का मुँह केवल एक ओर होता है। तो उसको अंग्रेजी में साइनस कहते हैं, एवं जिस नासूर की नलिका के 2 मुँह होते हैं । (एक बाहरी, दूसरा भीतरी) जो किसी अंग के गड्डे के अन्दर खुलता है । वह फिस्यूला कहलाता है। यह एक अत्यन्त कष्टदायक और हठीला रोग है। यह जिस अंग में होता है, उसको नष्ट कर देता है । हड्डी में उत्पन्न होने वाले नासूर का प्रमुख कारण क्षय रोग और कण्ठमाला होता है। और इस प्रकार का नासूर घुटने या टखने या कुहनी या हाथ के पहुँचे (हथेली और कलाई) के जोड़ समीप । जो अत्यन्त ही कठिनाई से ठीक हुआ करता है।
घाव के कारण और लक्षण : ghav ke karn aur lakshan
घाव में विशेषकर स्टेलेफिलो कोक्कस का संक्रमण होता है। आज के युग में लाठी, भाला, तलवार, छुरी, बरछा, तीर, बांस के फटा आदि की मार से घाव बन जाने की तो बात ही क्या, पिस्तौल, राइफल, बन्दूक, मशीनगन और बम इत्यादि अनेक घातक आग्नेय अस्त्रों से भी घाव हो जाया करते हैं ।
फोड़े फुंसी नासूर का देसी इलाज : fode funsi ka desi ilaj in hindi
1. मधु – समस्त प्रकार के फोड़े शोथ (सूजन) और व्रण (जख्म) आदि में मधु लगाकर पट्टी बाँधना लाभकारी है। ( और पढ़े – फोड़े-फुंसी के देशी 19 घरेलु इलाज )
2. तिल – तिल का तेल 30 ग्राम लोहे की कढ़ाई में डालकर पकायें । जब पकने लगे । तब उसमें 10 ग्राम सिन्दूर मिलायें और लोहे की सींक से चलाते रहें। जब रंगत स्याह होने लगे और गाढ़ा हो जाये तब उतारकर किसी चौड़े मुँह की शीशी या स्वच्छ डिबिया में सुरक्षित रख लें । आवश्यकता पड़ने पर इसे कपड़े पर लगाकर चिपकायें। यह गले सड़े घावों को बहुत जल्दी अच्छा कर देता है।
3. गूगल – गूगल को पानी में घिसकर फोड़े पर लेप कर दें। इस प्रयोग फोड़ा या तो बैठ जायेगा या पककर फूट जायेगा। ( और पढ़े – सिर के फोड़े फुंसियों के 12 रामबाण घरेलु उपचार )
4. पीपल – पीपल के पत्ते को घी में चिकना करके, अग्नि पर गरम करें ।उसे सहातासुहाता बाँधने से फोड़ा बैठ जाता है अथवा पककर फूट जाता है ।
5. कालीजीरी – कालीजीरी को पानी में पीसकर लगाने से फोड़े फुन्सियां दूर हो जाती हैं। ( और पढ़े – फोड़े फुंसी में सीघ्र राहत देते है यह 73 देशी नुस्खे )
6. ब्रह्मदन्ती – शंखाहूली (ब्रह्मदन्ती, हुलहुल) 10 ग्राम, काली मिर्च 7 नग, दोनों को पानी में घोट, पीस, छानकर पीने से शरीर में निकलने वाले फोड़े फुन्सियाँ, दाद, खाज, खुजली, इत्यादि की शिकायत नष्ट हो जाती है।
7. महातिक्त घृत – महातिक्त घृत (सिद्ध योग संग्रह) सुबह शाम 1-2 ग्राम खिलायें। ( और पढ़े – फोड़े फुंसी बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार )
8. महामन्जिष्ठारिष्ट – नीम के पत्तों के काढ़े से आक्रान्त त्वचा को प्रतिदिन सुबह धोकर स्वच्छ करें तथा सारिवाद्यासव और महामन्जिष्ठारिष्ट 15-15 मि. ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पिलायें । यह विशेष प्रकार (संक्रामक चर्म रोग) के फोड़े-फुन्सियों के लिए परम लाभकारी है।
9. परवल – परवल के पत्ते, नीम के पत्ते 12-12 ग्रामं और जल 1 लीटर लेकर उनका विधिवत काढा बनायें । आधा लीटर जल शेष बच जाने पर छान लें। इससे आक्रान्त त्वचा को दिन में 2 बार धोवें, तब नीम और निर्गुन्डी के तेल में कपूर मिलाकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 3-4 बार लगायें। हर प्रकार की फोड़े-फुन्सियों में लाभप्रद है। ( और पढ़े – नीम के 51 कमाल के फायदे)
10. नीम के पत्ते – 100 ग्राम नीम के पत्ते पीसकर टिकिया सी बनालें और पुल्टिस की तरह सूजन पर रखकर बाँध दें । बालतोड़ की तीन दिन में सूजन उतरने लगेगी और दर्द मिट जाएगा ।
11. चित्रक – आधा किलो नीमरस और ढाई सौ ग्राम चीनी की हल्की आँच पर ऐसी गाढ़ी। चासनी बनायें, कि करछुली चिपकने लगे । फिर चित्रक, हल्दी, त्रिफला, प्रत्येक 10-10 ग्राम, नागरमोथा, काली जीरी, अजवायन, निर्गुन्डी के बीज, पीपल, सौंठ, काली मिर्च, दन्तीमूल, नीम और बाबची के बीज, अनन्तमूल, और वायविंग 25-25 ग्राम पीस छानकर चाशनी में मिलालें और सुरक्षित रखलें। इसे 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम ताजा पानी के साथ निगलें । इस योग से भगन्दर तो नष्ट हो ही जाएगा तथा चर्म के अनेकों दूसरे रोग भी मिट जाएँगे।
12. भांगरा – नीम का रस व भांगरा का रस 50-50 ग्राम, बबूल और मेंहदी के पत्तों का रस 75-75 ग्राम तथा सेम का रस 50 ग्राम (पांचों का रस मिलाकर) धीमी आग पर पकायें । जब सभी पानी जल जाये, तब 25 ग्राम मोम डाल दें। यह मरहम इतना अधिक प्रभावशाली है कि नासूर (जड़ों वाले फोड़ा) को भी सुखा डालने की क्षमता रखता है तो अन्य मामूली फोड़े-फुन्सियों तो इसके सामने बेचते ही क्या हैं ? सभी प्रकार के फोड़े-फुन्सियों में लाभकारी है।
13. नीम की छाल – पुराने घावों को नीम के पत्तों के काढ़े से धोएं। फिर नीम की छाल के अन्दरूनी हिस्से को सिल पर रगड़कर लेप कर दें। यह क्रिया तब तक जारी रखें जब तक कि घाव पूर्णरूपेण भर न जाए। जिन फोड़े-फुन्सियों और घावों का इलाज बड़े-बड़े चंर्म-विशेषज्ञ करने से भी मुंह मोड़े अथवा हिचकिचाएँ उनका इस घरेलू योग से पीड़ित मानव की सेवा कर यश प्राप्त करें ।
14. नीम रस – बुझा हुआ चूना को नीम की पत्ती के रस में घोटकर नासूर में भरें । चूने के साथ नीम के सूखे हुए पत्ते भी मिला लें तो और भी उत्तम है ।
15. नीम की पत्तियों के रस में 2-3 बार चूने की डली भिगोकर सुखालें, और फिर पीसकर नासूर में भरें । परम लाभप्रद योग है।
16. बिरोजा – 250 ग्राम नीम का तैल, शुद्ध मोम और बिरोजा 50-50 ग्राम लें। पहले बिरोजा दरड़कर बारीक करलें और फिर तैल में पिघलायें और बाद में मोम डाल दें। जब तीनों मिलकर एकजान हो जाये तो यह नासूर नाशक अत्युत्तम मरहम बन जाएगा। इसे सुबह-शाम फोड़ेपर लगायें और रचने दें । प्रत्येक बार नीम के रस में रूई भिगोकर फोड़ा साफ करें और ताजा मरहम लगायें । घाव भरने और घाव को जड़ से उखाड़ फेंकने में यह अत्यन्त ही प्रभावकारी मरहम है ।
17. जात्यादि तैल – घावों पर जात्यादि तैल (शारंगधर संहिता) दिन में 2-3 बार लगायें या 1 बार लगाकर पट्टी बाँधे ।
18. रस माणिक्य – रस माणिक्य (भैषज्य रत्नावली) आयु के अनुसार 125 से 250 मि.ग्रा. तथा गन्धक रसायन (ग्रन्थ सिद्धयोग संग्रह) 500 मि.गा. से 1 ग्राम तक इकट्ठा मिलाकर मधु से सुबह-शाम चटायें । घावों की रामबाण चिकित्सा है ।
19. फिटकरी – सेलखड़ी 60 ग्राम, फिटकरी सफेद 60 ग्राम, सिन्दूर और नीलाथोथा 3-3 ग्राम लेकर 1 कोरी हांड़ी में फिटकरी और सेलखड़ी के चूर्ण को डालकर आग पर रखें। जब औषधि में जोश (उफान) आने लगे तब नीलाथोथा और सिन्दूर का चूर्ण थोड़ा-थोड़ा करके डालते जायें। जब औषधि फुल करके शुष्क हो जाये तो, ठन्डा करके पीस लें । इसे 500 मि.ग्राम से लेकर 1ग्राम तक यह औषधि मक्खन में मिलाकर खिलायें । नासूर में अनुभूत है ।
20. पुराना शहद – पुराना शहद घाव में भरकर ऊपर से पट्टी बाँधे, कुछ ही समय में नासूर ठीक हो जाता है।
21. खरैटी – खरैटी को गौमूत्र के साथ पीसकर लगाने से नासूर ठीक हो जाता है ।
22. अरण्डी – सेलखड़ी 20 ग्राम लेकर उसे अरण्डी के तेल में घिसें । जब घोल गाढ़ा हो जाये तो उस तेल में रुई की बत्ती भिगोकर नासूर में भर दें। लाभप्रद है।
23. बथुआ – बथुए के पत्ते तम्बाकू के बीज दोनों को सम मात्रा में लेकर घी में घोटकर नासूर पर लगायें । नासूर शीघ्र ठीक हो जाता है।
24. राख – भैंस के सींग को जलाकर राख कर लें । इस राख को घी में मिलाकर नासूर में लगाने से नासूर शीघ्र अच्छा होने लगता है।
25. चिरायता – कुटकी और चिरायता प्रत्येक 5-5 ग्राम रात को जल में भिगोकर रखें। प्रात:काल छानकर 15 से 30 मिली० तक की मात्रा में पिलायें । इसी प्रकार प्रात:काल भिगोकर शाम को पिलायें। बच्चों को इसकी 1/4 से 1/2 मात्रा दें। इस योग के सेवन से लोमपाक, बालतोड़, फुन्सियां शीघ्र ठीक हो जाती हैं।
26. महामन्जिष्ठारिष्ठ – महामन्जिष्ठारिष्ठ (आयुर्वेद सार, संग्रह) 15 से 30 मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पिलायें । लोमपाक, बालतोड़, फुन्सियों में परम लाभकारी है।
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(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)