Last Updated on December 17, 2019 by admin
रतौंधी के लक्षण : ratondhi ke lakshan
सड़कों की धूल-मिट्टी, कार, बसों और ट्रकों का धुआं वातावरण को दूषित करके नेत्रों को बहुत हानि पहुंचाता है। स्त्री-पुरुष, बच्चे व प्रौढ़ सभी नेत्रों के रोगों से पीड़ित होते हैं। कुछ नेत्र रोग संक्रामक रूप से फैलते हैं।
रतौंधी रोग में रोगी की आयु के विकास के साथ धुंधला दिखाई देने लगता है। सूर्य डूबने के साथ रोगी बसों के नंबर नहीं पढ़ पाता। कई बार उसके लिए स्कूटर, कार को देख पाना भी मुश्किल हो जाता है। रतौंधी की चिकित्सा में विलंब करने पर रोगी शाम को घर की चीजें भी स्पष्ट नहीं देख पाता। रतौंधी के रोगी को सभी चीजें बहुत धुंधली दिखाई देती हैं। तेज ट्यूबों और बड़े-बड़े बल्बों की लाइट में ही रोगी कुछ देख पाता है।
नेत्र ज्योति क्षीण होने से रोगी को पढ़ने-लिखने में बहुत कठिनाई होती है। पढ़ने-लिखने की कोशिश करने पर सिर में दर्द होने लगता है। ऐसे में नजर का चश्मा लगाना पड़ता है। नेत्र ज्योति की चिकित्सा न करा पाने की स्थिति में जल्दी-जल्दी चश्मे का नंबर बदलवाना पड़ता है।
रतौंधी किस कारण होता है : ratondhi kis karan hota hai
1- शारीरिक निर्बलता के कारण शरीर के विभिन्न अंगों में क्षीणता की उत्पत्ति होती है। भोजन में घी, तेल, मक्खन व दूध का अभाव होने पर नेत्रों की ज्योति भी क्षीण होती है।
2- नेत्रों की ज्योति में कमी भोजन में हरी सब्जियों व विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण होती है। किशोरावस्था में जब किसी बच्चे को संतुलित भोजन नहीं मिलता है तो रतौंधी की उत्पत्ति होती है। चिकित्सकों के अनुसार रतौंधी का सबसे बड़ा कारण है विटामिन ‘ए’।
भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी होने पर अन्य नेत्र रोगों के साथ रतौंधी की उत्पत्ति होती है।
3- गर्भावस्था में गर्भवती द्वारा संतुलित भोजन नहीं करने पर भी अनेक ऐसे तत्त्वों की कमी हो जाती है जो गर्भस्थ शिशु की नेत्र ज्योति को क्षीण कर देते हैं।
4- आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार भोजन में अधिक उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक किया जाता है तो उसका नेत्रों पर हानिकारक प्रभाव होता है।
5- भोजन में अधिक मात्रा में शीतल खाद्य पदार्थों का सेवन भी शरीर में कफ की अधिक उत्पत्ति करके नेत्रों को हानि पहुंचाता है।
क्योंकि कफ प्रकुपित होकर नेत्रों के तीसरे पटल पर आवरण (परदा) बना देता है, जिससे रोगी सूर्य की तेज रोशनी में तो स्पष्ट देख पाता है लेकिन सूर्य के छिपने पर शाम के समय नहीं देख पाता। रोगी को धुंधला दिखाई देता है।
6- धूप में अधिक घूमनेफिरने और खेलते समय नेत्रों में धूल-मिट्टी जाने पर बहुत कम नवयुवक उसकी स्वच्छता पर ध्यान देते हैं।
खेल-कूद कर घर लौटने पर कुछ किशोर हाथ तो जल से साफ कर लेते हैं। लेकिन नेत्रों को साफ करना भूल जाते हैं, गंदे हाथों व रूमाल से नेत्रों को स्पर्श करने पर गंदगी के जीवाणु नेत्रों पर संक्रमण करके रोगों की उत्पत्ति करते हैं।
रतौंधी की विकृति के दूसरे अनेक कारण भी हो सकते हैं।
रतौंधी के घरेलू इलाज / उपाय : ratondhi ka ilaj
रतौंधी की चिकित्सा करने से पहले चिकित्सक के लिए यह जान लेना आवश्यक होता है कि रतौंधी की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। भोजन में पौष्टिक तत्त्वों का अभाव रहा हो तो रोगी को संतुलित व पौष्टिक भोजन देना आवश्यक हो जाता है। केवल औषधियों की सहायता से रतौंधी को नष्ट नहीं किया जा सकता। भोजन में शीतल खाद्य पदार्थों का सेवन बंद कराना आवश्यक हो जाता है क्योंकि कफ की मात्रा को कम करके ही रतौंधी को नष्ट करने में सफलता मिलती है।
1-रतौंधी से पीड़ित युवक-युवतियों को भोजन में ऐसे खाद्य-पदार्थों काअधिक मात्रा में सेवन कराना चाहिए जिनमें विटामिन ‘ए’ की मात्रा अधिक होती है। प्रतिदिन आम खाने व रस पीने से विटामिन ‘ए’ मिलने से रतौंधी की विकृति नष्ट होती है। ( और पढ़े – रतौंधी के 41 सबसे प्रभावशाली घरेलु उपचार )
2- 200 ग्राम टमाटर प्रतिदिन खाने से रतौंधी रोग नष्ट होता है।
3- प्रतिदिन 200 ग्राम गाजर का रस पीने से विटामिन ‘ए’ मिलता है और रतौंधी रोग का निवारण होता है। किशोरों को प्रतिदिन गाजर खिलाने व रस पिलाने से रतौंधी रोग से सुरक्षा होती है। ( और पढ़े – आँखों की रौशनी बढ़ाने वाले सबसे कामयाब घरेलु नुस्खे )
4-बादाम की दो-तीन गिरी रात को जल में डालकर रखें। प्रातः उनके छिलके अलग करके, उन्हें पीसकर मक्खन व मिश्री मिलाकर रोगी को खिलाने से रतौंधी रोग का निवारण होता है।
5- चमेली के फूल, नीम के कोमल पत्ते, हल्दी, दारू हल्दी, रसौत, सभी औषधि बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर गोबर के रस में मिलाकर रखें। गोबर को किसी कपड़े में बांधकर निचोड़ने से रस निकल आता है। इस मिश्रण में सलाई डूबोकर नेत्रों में सुबह-शाम लगाने से रतौंधी नष्ट हो जाती है। ( और पढ़े –आँखों की आयुर्वेदिक देखभाल )
6-समुद्र फेन (झाग) 2 ग्राम, पीपल 2 ग्राम और काली मिर्च 2 ग्राम मात्रा में लेकर इसमें सेंधा नमक 2 ग्राम मात्रा में मिलाकर किसी खरल में खूब बारीक पीसें। इस मिश्रण में सुरमे की कज्जली मिलाकर खूब बारीक सुरमा बनाएं। इस सुरमे को सलाई से प्रतिदिन सुबह-शाम नेत्रों में लगाने से रतौंधी रोग से मुक्ति मिलती है।
7- प्रतिदिन त्रिफला का चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में जल के साथ सेवन करने से नेत्र ज्योति तीव्र होने से रतौंधी रोग नष्ट होता है। रात्रि के समय 5 ग्राम त्रिफला को जल में डालकर रखें। प्रातः त्रिफला के जल से नेत्रों को साफ करने से नेत्र ज्योति तीव्र होती है। त्रिफला जल को स्वच्छ कपड़े से छानकर नेत्रों को साफ करना चाहिए। ( और पढ़े – लाल आंखों के सबसे असरकारक 53 आयुर्वेदिक घरेलु उपचार)
8- नागरबेल के पान को कूट-पीसकर कपड़े में बांधकर उसका रस निकालें । इस रस की दो-दो बूंदें सुबह-शाम नेत्रों में डालने से रतौंधी रोग नष्ट होता है। नेत्रों में कोई भी रस डालने से पहले स्वच्छ जल से धो लेना चाहिए।
9- अपामार्ग की जड़ को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। प्रतिदिन रात्रि के समय 3 ग्राम चूर्ण जल के साथ सेवन करने से रतौंधी की विकृति नष्ट होती है। ( और पढ़े – आखों की रौशनी बढ़ाने वाली लाभकारी मुद्रा)
10- अश्वगंधा का चूर्ण और मुलहठी का चूर्ण, दोनों 3-3 ग्राम मात्रा में लेकर, उसमें आंवले का रस 5 ग्राम मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से रतौंधी नष्ट होती है और नेत्र ज्योति तीव्र होती है।
11- करेले के पत्तों के रस में काली मिर्च को घिसकर, नेत्रों में लगाने से रतौंधी नष्ट होती है।
आहार-विहार : ratondhi me kya khana chahiye aur kya nahi
✦ रतौंधी की उत्पत्ति भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण होती है। बहुत समय तक भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी बनी रहती है और रोगी को कुछ पता नहीं चल पाता। सभी लोग स्वाद की दृष्टि से भोजन करते हैं, इसलिए भोजन में मिर्च-मसालों व अम्ल रस के बने स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ अधिक होते हैं। मिर्चमसालों व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थ नेत्रों को बहुत हानि पहुंचाते हैं। इनका सेवन बंद कर देना चाहिए।
✦ दूध, दही, घी, मक्खन, पनीर के सेवन से नेत्रों को बहुत शक्ति मिलती है। घी, मक्खन व पनीर से विटामिन ‘ए’ भी मिलता है। रतौंधी से सुरक्षा के लिए किशोरावस्था में हरी सब्जियों व फलों का सेवन करना चाहिए। हरी सब्जियों में चौलाई, बथुआ, पत्तागोभी, मेथी, सरसों, पालक, लोबिया में पर्याप्त मात्रा में विटामिन ‘ए’ होता है। सब्जियों को देर तक नहीं पकाना चाहिए क्योंकि देर तक पकाने से उनके विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
✦ गाजर, खुबानी, रसभरी, आम, सन्तरा, पपीता, टमाटर, फालसा, हरा धनिया, चुकंदर के पत्तों में भी पर्याप्त मात्रा में विटामिन ‘ए’ होता है। भोजन में इन फलों व सब्जियों का अवश्य सेवन करना चाहिए। गाजर बहुत सस्ती सब्जी है। छोटे बच्चे भी गाजर बहुत शौक से खाते हैं। गाजर का रस निकालकर प्रतिदिन पिलाने से रतौंधी से सुरक्षा होती है।
✦ सूर्योदय के समय किसी पार्क में जाकर ओस पड़ी घास पर नंगे पांवों चलने से नेत्रों को बहुत लाभ होता है। ग्रीष्म ऋतु की उष्णता, जो नेत्रों को हानि पहुंचाती है, का निवारण होता है। नेत्रों की ज्योति प्राकृतिक रूप से विकसित होती है तो रतौंधी की विकृति से सुरक्षा होती है।
रतौंधी की दवा : ratondh ki ayurvedic dawa
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