Last Updated on July 22, 2019 by admin
बोध कथा : Hindi Moral Story
उस समय भारत की राजधानी उज्जैनमें थी। राजा वीर विक्रमादित्य उस समय भारत-सम्राट् थे। आपको बालकों से बड़ा प्रेम था। महलके भीतर प्रत्येक कार्य पर बालक ही नियुक्त थे; क्योंकि बालक सीधे, सच्चे, सरल, सुखद, सुभग और सुन्दर होते हैं। वे सहसा कोई भी अपराध नहीं करते। रामायण में भी लिखा है बंदउँ बाल रूप सोइ राम।’ अर्थात प्रत्येकका बालक (पशु-पक्षीका भी) रामका स्वरूप होता है, इसी विचार से भारत-सम्रा ट्ने अपने ‘शरीर-रक्षक’ भी बालक ही बनाये थे और महलका सारा प्रबन्ध बालकोंको सौंप दिया था। | गरमी की रात थी। सतखंडे पर महाराज सो रहे थे। पलंगके नीचे कालीनपर उनके शरीर-रक्षक सो रहे थे। | सहसा रोने की आवाज सुनकर महाराज जाग पड़े। उस समय आधी रात बीत चुकी थी। एक स्त्रीको रोती हुई सुनकर महाराज ने कहा–’पहरे पर कौन है?’
पाँच लड़के एक-एक घंटा जागकर महाराजका पहरा देते थे। उस समय ‘किशोर’ नामक एक क्षत्रिय बालक का पहरा था। वह चुपचाप सामने जा खड़ा हुआ। ‘कौन? किशोर ?’–सम्राट्ने कहा।
‘जी अन्नदाता ! आज्ञा ।’–किशोरने हाथ जोड़कर कहा।
किसी स्त्रीके रोनेकी आवाज सुनते हो किशोर सिंह?राजा बोले ।
‘जी सरकार !’- किशोर ने कहा।
‘जाकर देखो कि इस समय कौन रोता है और क्यों रोता है?’ दीनबन्धु सम्राट्ने आदेश दिया।
अपनी तलवार लेकर किशोर सिंह गुप्त द्वार से महल के बाहर निकल गया।
किशोर की आज्ञापालक-विधिको खुद देखनेके लिये सम्राट् भी उसके पीछे छिपते हुए महलसे बाहर हो गये।
सावधान सम्राट् वही है, जो अपने नौकरों की स्वयं जाँच-पड़ताल करता है।
रोनेकी आवाज कालीदेवीके मन्दिरसे आ रही है। किशोरने मन्दिर में जाकर देखा कि एक अतीव सुन्दर स्त्री रो रही है। मन्दिरके पीछे एक रोशनदान था। उसके द्वारा सम्राट् विक्रमादित्य भीतर का हाल देख रहे थे।
*आप कौन हैं देवि!’–किशोरने पूछा।
‘मैं राज्यलक्ष्मी हूँ।’–देवीने कहा।
‘आप क्यों रो रही हैं इस समय ?’–किशोरने पूछा।
‘राजा वीर विक्रमादित्य की अकाल मृत्यु आ गयी है। ऐसा राजा फिर मुझे कहाँ मिलेगा। इसीसे रोती हूँ।’- देवीने उत्तर दिया।
‘राजाकी मौत कब होगी ?’–किशोर ने पूछा।
*आज प्रात: ठीक चार बजे–देवीने कहा।
‘महाराज के जीवन की रक्षा किसी प्रकार हो सकती है ? किशोरने आँखों में आँसू भरकर पूछा।
‘हाँ, हो सकती है; क्योंकि उपाय सब संकटों का होता है।’ देवी ने अपने आँसू पोंछे।
‘बतलाइये ! बतलाइये ! हमारे हृदय-सम्राट् कैसे बच सकते हैं?’ किशोरने जल्दी-जल्दी पूछा।
‘हाँ, हो सकती है; क्योंकि उपाय सब संकटों का होता है।’ देवी ने अपने आँसू पोंछे।
‘बतलाइये ! बतलाइये ! हमारे हृदय-सम्राट् कैसे बच सकते हैं?’ किशोरने जल्दी-जल्दी पूछा।
अगर कोई कुँआरा व्यक्ति कालीदेवी के सामने अपना बलिदान कर दे तो राजा बच जायगा।’ इतना कहकर ‘राज्यलक्ष्मी’ अन्तर्धान हो गयी।
अपने-आप किशोर कहने लगा–’कुँआरा व्यक्ति मैं कहाँ खोजने जाऊँगा! मैं खुद कुँआरा हूँ। यदि सौ किशोरोंके मरनेसे ऐसे सम्राट्की जीवन-रक्षा हो तो भी कोई बात नहीं। मैं अपना बलिदान करूंगा।’-इतना कहकर किशोरने तलवार नंगी की और अपना गला काटकर देवीके चरणोंमें डाल दिया।
यह हाल देखकर राजाने मन्दिर में प्रवेश किया। स्वामिभक्त बालककी लाश देखकर महाराजने उसको उठा लिया।
सम्राट्ने देवीसे प्रार्थना की, ‘या तो इस लड़के को जीवित कीजिये, नहीं तो मैं भी तलवार से अपना गला काटता हूँ। मैं तो समझता था कि राजासे कोई हार्दिक और नि:स्वार्थ प्रेम नहीं करता। ओह ! किशोर-जैसा स्वामिभक्त अब मुझे कहाँ मिलेगा !’ इतना कहकर राजाने तलवार अपनी गरदन पर चला दी। तुरंत काली माई प्रकट हो गयीं और देवीने राजाका हाथ पकड़ लिया।
‘क्या बात है राजन् ! तुमको जीवित रखनेके लिये बलिदान लिया गया है। अब तुम नहीं मर सकते।’ देवीने तलवार छीन ली।
‘माता ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो इस लड़केको जीवित कीजिये। यह लड़का जीवित न हुआ तो मैं जीता हुआ भी मृतक बना रहूँगा! इसका गम मुझे खाता रहेगा।’
“अच्छा, तुम जाओ, तुम्हारे पीछे तुम्हारा लड़का भी जाता है।’ देवीने मुसकराकर कहा।
राजा चला गया और अपने पलंगपर जा लेटा। देवीने लड़के का सिर उसके धड़से लगाया और उसे जीवित कर दिया। अपनी तलवार लेकर किशोर भी महलको छतपर जा पहुँचा।
‘आ गये किशोर !’ सम्राट्ने पूछा। ‘जी अन्नदाता!’- किशोर बोला। ‘वह स्त्री क्यों रो रही थी?’ सम्राट्ने पूछा।
‘कुछ नहीं सरकार ! उसकी सास ने उसे पीटा था। मैं समझा बुझाकर उसे उसके घर पहुँचा आया और उसकी सास को धमका आया कि अब कभी बहूको मारा-पीटा तो तुम्हारी शिकायत महाराज से कर दी जायगी।’ किशोर ने बहाना बनाया। ( ‘तुम धन्य हो किशोर ! तुम्हारे माता-पिता धन्य हैं। आजसे तुम मेरे प्रधान सेनापति हुए।’ सम्राट्ने किशोरको हृदयसे लगाकर कहा।)