Last Updated on July 22, 2019 by admin
ईश्वर को कैसे प्राप्त करे : ishwar prapti kaise kare / Upay
1. पहला उपाय: परमात्म तत्त्व की कथा का श्रवण करें ।
2. दूसरा उपाय : सत्पुरुषों के सान्निध्य में रहें ।
जैसा संग वैसा रंग -संग का रंग अवश्य लगता है । यदि सज्जन व्यक्ति भी दुर्जन का अधिक संग करे तो उसे कुसंग का रंग अवश्य लग जायेगा । इसी प्रकार यदि दुर्जन से दुर्जन व्यक्ति भी महापुरुषों का सान्निध्य प्राप्त करे तो देर सवेर वह भी महापुरुष हो जायेगा ।
3. तीसरा उपाय : प्रेमपूर्वक नामजप संकीर्तन करें । तुलसीदासजी कहते हैं:
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा ।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
यदि मंत्र किसी ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु द्वारा प्राप्त हो और नियमपूर्वक उसका जप किया जाय तो कितना भी दुष्ट अथवा भोगी व्यक्ति हो, उसका जीवन बदल जायेगा । दुष्ट की दुष्टता सज्जनता में बदल जायेगी । भोगी का भोग योग में बदल जायेगा ।
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4. चौथा उपाय : सुख दु:ख को प्रसन्नचित्त से भगवान का विधान समझें । परिस्थितियों को आने जानेवाली समझकर बीतने दें । घबरायें नहीं या आकर्षित न हों ।
ऐसा नहीं कि कुछ अच्छा हो गया तो खुश हो जायें कि “भगवान की बड़ी कृपा है” और कुछ बुरा हो गया तो कहें: “भगवान ने ऐसा नहीं किया, वैसा नहीं किया |”
लेकिन आपको क्या पता कि भगवान आपका कितना हित चाहते हैं ? इसलिए कभी भी अपने को दु:खद चिंतन या निराशा की खाई में नहीं गिराना चाहिए और न ही अहंकार की दलदल में फँसना चाहिए वरन् यह विचार करें कि संसार सपना है । इसमें ऐसा तो होता रहता है ।
5. पाँचवाँ उपाय : सबको भगवान का अंश मानकर सबके हित की भावना करें । मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही हो जाता है इसलिए कभी शत्रु का भी बुरा नहीं सोचना चाहिए, बल्कि प्रार्थना करनी चाहिए कि परमात्मा उसे सदबुद्धि दें, सन्मार्ग दिखायें । ऐसी भावना करने से शत्रु की शत्रुता भी मित्रता में बदल सकती है ।
6. छ्ठा उपाय : ईश्वर को जानने की उत्कंठा जागृत करें । जहाँ चाह वहाँ राह । जिसके हृदय में ईश्वर के लिए चाह होगी, उस रसस्वरुप को जानने की जिज्ञासा होगी, उस आनंदस्वरुप के आनंद के आस्वादन की तड़प होगी, प्यास होगी वह अवश्य ही परमात्म प्रेरणा से संतों के द्वार तक पहँच जायेगा और देर सवेर परमात्म साक्षात्कार कर जन्म मरण से मुक्त हो जायेगा ।
7. सातवाँ उपाय : साधनकाल में एकांतवास आपके लिए अत्यंत आवश्यक है । भगवान बुद्ध ने छ: साल तक अरण्य में एकांतवास किया था । श्रीमद् आघ शंकराचार्यजी ने नर्मदा तट पर सदगुरु के सान्निध्य में एकान्तवास में रहकर ध्यानयोग, ज्ञानयोग इत्यादि के उत्तुंग शिखर सर किये थे । उनके दादागुरु गौड़पादाचार्यजी ने एवं सदगुरु गोविन्दपादाचार्यजी ने भी एकांत सेवन किया था, अपनी वृत्तियों को इन्द्रियों से हटाकर अंतर्मुख किया था । अत: एकांत में प्रार्थना और ब्रह्माभ्यास करें ।
यदि इन सात बातों को जीवन में उतार लें तो अवश्य ही परमात्मा का अनुभव होगा।