Last Updated on July 24, 2019 by admin
जब रोगी को 21 दिन तक बुखार बना रहे उतरे नहीं तो उसे जीर्ण बुखार कहते हैं। यह बुखार कभी धीमा और कभी तेज हो जाता है। भूख न लगे, क्षीणता या कमजोरी बढ़ जाये तो वह आदमी जीर्ण बुखार से पीड़ित हो जाता है।
लक्षण:
शरीर में हल्का दर्द, आँखों में जलन, पेशाब में पीलापन, पीठ में दर्द।
घरेलु उपाय :
पहला प्रयोगः पलाश के फूलों का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दूध-मिश्री के साथ लेने से गर्मी तथा जीर्णज्वर में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः दूध में 6 रत्ती (750 मिलीग्राम) लेंडीपीपर का चूर्ण उबालकर पीने से या आधा से 2 ग्राम शीतोपलादि चूर्ण अथवा गुडुच (गिलोय) का आधा से 1 ग्राम सत्व (अर्क) या आँवले का 1 से 2 ग्राम चूर्ण लेने से जीर्ण ज्वर में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः काला जीरा, चिरायता और कटुकी एक-एक चम्मच लेकर इन सबको रात्रि में भिगोकर सुबह 500 ग्राम पानी में तब तक उबालें जब तक पानी केवल दो चम्मच रह जाये। उस पानी को सुबह पीने से जीर्णज्वर में लाभ होता है।
चौथिया ज्वरः दूध में पुनर्नवा (विषखपरा) की 1 से 2 ग्राम जड़ का सेवन करने से चौथिया ज्वर में लाभ होता है।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
इन्द्रजौ : इन्द्रजौ के पेड़ की छाल और गिलोय का काढ़ा बनाकर पीने से अथवा रात को इसकी छाल को पानी में गलाकर और सुबह उस पानी को छानकर पीने से पुराने बुखार में लाभ होता है।
चिरायता : चिरायता, सोंठ, वच, आंवला और गिलोय को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर रख लें। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3-4 बार लेने से जीर्ण बुखार समाप्त हो जाता है।
गिलोय :
- 1* जीर्ण बुखार, 6 दिन से भी अधिक समय से चला आ रहा बुखार व न टूटने वाले बुखार मे 40 ग्राम गिलोय को अच्छी तरह से पीसकर, मिटटी के बर्तन में 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर उसमें डालकर रात भर ढककर रख देते हैं। सुबह के समय इसे मसलकर और छानकर पी लेते हैं। इस रस को रोजाना दिन में 3 बार लगभग 20 ग्राम की मात्रा में पीने से जीर्ण ज्वर में लाभ होता है।
- 2* 20 मिलीलीटर गिलोय के रस में 1 ग्राम पिप्पली तथा 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जीर्णज्वर, कफ, प्लीहारोग, खांसी, अरुचि आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
सफेद कचनार : दूषित पृथ्वी, जलवायु और सड़े हुए फल से पैदा हुए बुखार के कारण सिर मे दर्द होने को खत्म करने के लिये सफेद कचनार के 10 से 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर चतुर्थाश बचा काढ़ा पीना चाहिए।
नीम :
- 1* नीम की छाल के काढ़े में धनिया और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से जीर्णज्वर दूर हो जाता है।
- 2* 400 ग्राम नीम के पत्ते, 120 ग्राम सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, त्रिफला, तीनों प्रकार के नमक, 80 ग्राम सज्जी और जवाखार और 200 ग्राम अजवाइन को एक साथ मिलाकर और पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सुबह और शाम लेने से पुराना बुखार मिट जाता है।
- 3* नीम के पत्ते, घोड़बच, हर्र, सिरस, घी और गुग्गल का धुआं से जीर्णज्वर और विषज्वर समाप्त हो जाता है।
नीम की छाल, मुनक्का और गिलोय को बराबर मात्रा में मिलाकर 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह, दोपहर और शाम को सेवन करना जीर्णज्वर में लाभकारी रहता है। - 4* 21 नीम के पत्ते और 21 कालीमिर्च को मलमल के कपड़े में पोटली बानकर 500 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें। उबलने पर चौथाई पानी रहने पर ठंडा करके सुबह और शाम को पीने से पुराने बुखार में आराम आता है।
बकायन :
गुठली रहित बकायन के कच्चे ताजे फलों को कूटकर उसके रस में बराबर मात्रा में गिलोय का रस मिलाकर तथा दोनों के चौथाई भाग बराबर देसी अजवायन का चूर्ण मिलाकर खूब खरल कर झाड़ी के बेल जैसी गोलियां बनाकर, दिन में 3 बार 1-1 गोली ताजे पानी के साथ सेवन करने से पुराने से पुराना बुखार उतर जाता है।
नमक :
नमक को गर्म पानी में उबालकर पीने से विषम ज्वर मिट जाता है।
अर्जुन :
अर्जुन की छाल के 1 चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिट जाता है।
तुलसी : यदि जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) हो गया हो और साथ ही ऐसी खांसी हो जिससे छाती में दर्द हो तो तुलसी के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।