Last Updated on April 7, 2020 by admin
पित्त की पथरी क्या है : pitta pathri kya hai
किसी कारणवश पित्त (Bile) में बाधा पड़ने पर यह रोग उत्पन्न हो जाता है। जो लोग शारीरिक परिश्रम न कर मानसिक परिश्रम अधिक करते हैं अथवा बैठे-बैठे दिन व्यतीत करते है तथा नाइट्रोजन और चर्बी वाले खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में खाते हैं, उन मनुष्यों को ही इस रोग से आक्रान्त होने की अधिक सम्भावना रहती है। सौ में से दस रोगियों को 40 से 50 वर्ष की आयु के बाद और अधिकतर स्त्रियों को यह रोग हुआ करता है। आइये जाने क्यों होती है पित्त पथरी |
पित्त पथरी के कारण : pitta pathri ke karan
- आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है कि कुछ रोगों के कीटाणु (जैसे-टायफायड के कीटाणु) पित्ताशय में सूजन उत्तपन्न कर देते हैं जिस कारण पथरी बन जाती है।
- बी-कोलाई (B-Coli) नामक कीटाणु इस रोग का मुख्य कारण माना जाता है। पथरी पित्ताशय में साधारण रेत के कणों (1 से 100 तक) से लेकर दो इन्च लम्बी और एक इन्च तक चौड़ी होती है।
पित्त पथरी के लक्षण : pitta pathri ke lakshan hindi me
- पथरी जब तक पित्ताशय में रुकी रहती है तब तक रोगी को किसी भी तरह की कोई तकलीफ महसूस नहीं होती है। कभी-कभी पेट में दर्द मालूम होता है। किन्तु जब यह पथरी पित्ताशय से निकलकर पित्त-वाहिनी नली में पहुँचती है, तब पेट में एक तरह का असहनीय दर्द पैदा होकर रोगी को व्याकुल कर देता है। इस भयानक दर्द को पित्तशूल कहते है।
- यह शूल दाहिनी कोख से शुरू होकर चारों ओर (दाहिने कन्धे और पीठ तक) फैल जाता है।
- दर्द के साथ अक्सर कै (वमन) ठण्डा पसीना, नाड़ी कमजोर, हिंमांग (Callapse) कामला, साँस में कष्ट, मूच्छ आदि के लक्षण दिखलायी देते हैं। यह दर्द कई धन्टों से लेकर कई सप्ताह तक रह सकता है और जब पथरी आँत के अन्दर आ जाती हैं तब रोगी की तकलीफ दूर हो जाती है। और रोगी सो जाता है। जब तक पथरी स्थिर भाव में रहती है तब तक तकलीफ घट जाती है और जब पथरी हिलती-डुलती है उसी समय तकलीफ पुनः बढ़ जाया करती है। इस प्रकार पथरी के हिलने-डुलने से तकलीफ बढ़ती-घटती रहती है। यह क्रम कई घन्टों से लेकर कई सप्ताह तक चल सकता है।
- पित्ताशय शूल के लक्षण स्पष्ट होने पर पित्त पथरी का ज्ञान हो जाता है। यदि वैद्य(चिकित्सक) को निदान में सन्देह हो तो तुरन्त X-Ray करा लेना चाहिए।
पित्त पथरी में क्या खाये : pitta pathri me kya khana chahiye
खट्टे रसदार फल, ताजे शाक, मक्खन, मठा, जैतून का तेल, सोते समय तरबूजा, खीरा आदि इस रोग में लाभ करते हैं।
पित्त पथरी में क्या नहीं खाना चाहिए : pitta pathri me kya nhi khana chahiye
श्वेतसार (स्टार्च) )और चर्बी वाले खाद्य पदार्थ जैसे-घी, दूध, केला आदि गूदेदार फल, सूखे मेवे, आलू आदि जमीन के नीचे पैदा होने वाली तरकारियाँ (मूली, गाजर, शलजम को छोड़कर) चीनी, मैदे की चीजें तली चीजें तथा नशीली चीजें इस रोग में हानिकारक है।
पित्त पथरी का घरेलू इलाज : pittay ki pathri ka gharelu ilaj
1) प्याज को कतरकर जल से धोकर उसका 20 ग्राम रस निकाल कर उसमें 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से पथरी टूट कर पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है।
2) नीबू का रस 6 ग्राम, कलमी शोरा 4 रत्ती, पिसे तिल 1 ग्राम (यह खुराक की मात्रा है) शीतल जल के साथ दिन में 1 या 2 बार 21 दिन तक सेवन कराने से पथरी गल जाती है।
3) मूली में गड्ढा खोद उसमें शलगम के बीज डालकर गूंथा हुआ आटा ऊपर से लपेट कर आग में सेकें। जब भरता हो जाये या पक जाये तब आग से निकालकर आटे को अलग कर खावें । पथरी टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है। ( और पढ़ें – पित्त की पथरी के लिए 28 असरकारी घरेलू उपचार )
4) पपीते की जड़ ताजी 6 ग्राम को जल 60 ग्राम में पीस छानकर 21 दिन तक पिलाने से पथरी गलकर निकल जाती है। ( और पढ़ें – पथरी का आयुर्वेदिक उपचार )
5) केले के खम्भे के रस या नारियल के 3-4 औंस जल में शोरा 1-1 ग्राम मिलाकर दिन में दो बार देते रहने से पथरी कण निकल जाते हैं और पेशाब साफ आ जाता है।
6) अशोक बीज 6 ग्राम को पानी के साथ सिल पर महीन पीसकर थोड़े, से जल में घोलकर पीने से कुछ दिन में ही पथरी निर्मूल हो जाती है।
7) मूली का रस 25 ग्राम व यवक्षार 1 ग्राम दोनों को मिलाकर रोगी को पिलायें। पथरी गलकर निकल जायेगी। ( और पढ़ें –पथरी के सबसे असरकारक 34 घरेलु उपचार )
8) टिंडे का रस 50 ग्राम, जवाखार 16 ग्रेन (1 ग्रेन=1 चावल भर) दोनों को मिलाकर पीने से पथरी रेत बनकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
9) केले के तने का जल 30 ग्राम, कलमी शोरा 25 ग्राम दूध 250 ग्राम तीनों को मिलाकर दिन में दो बार पिलायें। दो सप्ताह सेवन करायें। पथरी गलकर निकल जाती है।
10) लाल रंग का कूष्मान्ड (कुम्हड़ा या कददू) खूब पका हुआ लेकर 250 ग्राम रस निकालें इसमें 3 ग्राम सेन्धा नमक मिलाकर पिला दें। प्रयोग दो सप्ताह । नियमित दिन में 2 बार करायें। पथरी गलकर मूत्र मार्ग से निकल जाती है। ( और पढ़ें – कददू खाने के 8 बड़े फायदे )
पित्त पथरी का आयुर्वेदिक इलाज : pittay ki pathri ka ayurvedic ilaj
1) रस : त्रिविक्रम रस 250 मि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से सभी प्रकार की पथरी में दें । पाषाण वज्रक रस 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक दिन में 2-3 बार कुलुभी क्वाथ से दें। सभी प्रकार की पथरी में लाभप्रद है। अपूर्वमालिनी बसन्त 125 मि.ग्रा. तक दिन में 2-3 बार बिजौरा निम्बूरस से दें। क्रव्यादि रस 125-250 (मात्रा, अनुपान, लाभ, उपर्युक्त।
2) लौह : धात्री लौह व वरुणाद्य लौह 500 पि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से दें। समस्त अश्मरियों में लाभप्रद है। .
3) भस्म : बदर पाषाण भस्म व वराटिका भस्म अनुपान नारिकेल जल से, पथरी भेदन हेतु वाटिका भस्म, पित्ताश्मरी में शूल शमनार्थ ।
4) गुग्गुल : गोक्षुरादि गुग्गुल 2 गोली दिन में 2-3 बार दुग्ध से दें वात श्लेष्म विकृति पर दें।
5) वटी : सर्वतो भद्रवटी 1 गोली दिन में 2 बार वह्वणादि क्वाथ से दें। लाभ व कार्य उपर्युक्त।
चन्द्रप्रभा वटी 1 गोली दिन में 2 बार मूलक स्वरस दें। (लाभ उपर्युक्त) वात श्लेष्म वकृति पर।
शिवा वटी मात्रा 2 गोली दिन में 2-3 बार शर्बत बिजूरी से लाभ उपरोक्त ।
6) क्षार पर्पटी : श्वेत पर्पटी 500 मि.ग्रा. नारिकेल जल से दिन में 3 बार, यवक्षार 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक अविमूत्र से तथा तिलादि क्षार मात्रा उपर्युक्त जल से दें। पथरी भेदक, मूत्र कृच्छ हर है।
7) चूर्ण : गोक्षुर चूर्ण, 3 ग्राम दिन में 2-3 बार अविदुग्ध से तथा पाषाण भेदादि चूर्ण उपयुक्त मात्रा में गौमूत्र से पथरी भेदक तथा मूत्र कृच्छहर उत्तम चूर्ण है।
8) आसव : चन्दासव पित्तानुबन्ध होने पर, पुनर्नवासव वातानुबन्ध होने पर, 15 से 25 मि.ली. समान जल मिलाकर भोजनोत्तर।
9) घृत : वरुणादि घृत, पाषाण भेदादि घृत, कुशादि घृत, कुलत्यादि घृत 5 से 10 ग्राम दिन में 2 बार गौ दुग्ध से सब प्रकार की अश्मरियों में कुछ समय लेने पर लाभदायक है।
10) अवलेह पाक : कुशावलेह पाषाण भेदक पाक 5 से 10 ग्राम दिन में 2 बार गोदुग्ध से लाभ उपर्युक्त ।
11) क्वाथ : वीरतर्वादि क्वाथ कफज में, पाषाण भेदादि क्वाथ वातज में, एलादि क्वाथ पित्तज में 20 मि.ली. दिन में दो बार ।
त्रिकंटकादि क्वाथ 40 मि.ली. दिन में 2 बार 250 से 500 मि.ग्रा. शिलाजी मिलाकर-सभी प्रकार की अश्मरियों में लाभप्रद है।
पित्त पथरी का प्राकृतिक इलाज : pittay ki pathri ka prakritik upchar
1) दर्द की अवस्था में रोगी को गरम पानी में रखना चाहिए । पानी रोगी को सहने योग्य गरम होना चाहिए। कमरे में वायु के प्रवेश का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए। रोगी के सिर पर ठण्डे पानी से भीगी तौलिया रखना नहीं भूलना चाहिए। रोगी को गरम पानी में आवश्यकतानुसार आधे घण्टे तक रखा जा सकता है जिसे हृदय, यकृत अथवा धमनी का भी रोग हो या जो वृद्ध या कमजोर हो, उसके लिए यह उपचार ठीक न होगा। ऐसे रोगी के लिए गर्म सेंक उपयुक्त सिद्ध होगा ।
2) कोई मोटा कपड़ा गरम पानी में निचोड़कर पित्ताशय के सामने वाले भाग अर्थात् नीचे की पसलियों और उदर के ऊपर वाले पूरे भाग पर रखना चाहिए तथा उसकी गर्मी बनाए रखने के लिए ऊपर ऊनी कपड़ा लपेट देना चाहिए। इस पट्टी को थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तर से बदलते रहना चाहिए। इस प्रकार ताप का प्रयोग करने से शरीर के तन्तु ढीले पड़ जाते हैं । कष्ट कम हो जाता है। तथा पथरी निकलने में भी सहायता मिलती है।
3) रोगी को जिस अवस्था में आराम मिले, उसी अवस्था में लिटाकर पूर्ण विश्राम देना चाहिए। दर्द का दौरा होने के पूर्व लक्षण प्रकट होते ही गरम पानी का एनिमा देकर एक गरम जल का कटिस्नान दे देने से राहत मिलती है ।
4) स्थायी लाभ के लिए रोग की प्रबलता के अनुसार 2 से 4 दिनों का उपवास करना चाहिए । उपवास के दिनों में सिर्फ ठण्डा अथवा गरम जल नीबू के रस के साथ लेना चाहिए और सुबह-शाम गुनगुने पानी का एनिमा लेना चाहिए। एनिमा प्रातःसमय शौच के बाद शाम के समय सोने से कुछ पहले लेना चाहिए। इसके बाद 3 दिन तक केवल रसदार फलों का प्रयोग करना चाहिए । प्रातः समय और रात को सोने से पहले एक गिलास गरम जल में 1 नीबू का रस डालकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। तदुपरान्त तीन दिनों तक फलाहार के साथ धारोष्ण दूध, मठा अथवा दही का घोल लेना चाहिए। अन्त में कुछ दिनों तक निम्नांकित चिकित्सा-क्रम चलाना चाहिए, फिर दर्द के दौरे का भय नहीं रहेगा। ।
5) सुबह के समय उठकर एक गिलास गरम जल में एक कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना चाहिए । फिर दैनिकक्रिया, प्रातःकालीन भ्रमण से लौटकर विश्राम तदुपरान्त हिपबाथ उसके डेढ़ घण्टे के बाद रसदार फल का जलपान, 1 घण्टे के बाद 1 गिलास ठण्डे जल में 1 कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना, दिन के भोजन में-भाजी, सलाद, मठा और उबली हुई तरकारी । सन्ध्या के समय यकृत और पेडू पर गीली पट्टी आधा घण्टा तक फिर टहलना और सायंकालीन भोजन में-ताजे फल, किशमिश, मूंग की अँकुरी और दूध, तथा सूर्यास्त से पहले रात को कमर की गीली पट्टी की लपेट दें । जब तक पेट खूब अच्छी तरह ठीक न हो जाए तब तक दिन और रात के भोजन में अन्न के स्थान पर रामदाना, मखाना या थोड़ा-सा चोकर जोड़ा जा सकता है। उसके बाद दिन में थोड़ा-सा चावल अथवा 1-2 चोकरयुक्त आटे की रोटी मिला सकते हैं। बीच-बीच में एक दिन का उपवास करके 2 दिनों का फलाहार करना चाहिए तथा प्रतिमाह 2 बार पूरे शरीर का भापस्नान भी लेना चाहिए।
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)