Last Updated on February 16, 2023 by admin
बांझपन क्या है ? :
संतानोत्त्पत्ति क्षमता न होने या गर्भ न ठहर पाने की स्थिति को बन्ध्यापन (बांझपन) कहते हैं। पुरुषों के शुक्र दोष और स्त्रियों के रजोदोष के कारण ही ऐसा होता है। अत: बंध्यापन चिकित्सा में पुरुषों के वीर्य में वीर्य कीटों को स्वस्थ करने, वीर्य को शुद्ध करने की व्यवस्था करें और स्त्रियों को रजोदोष से मुक्ति करें। इससे संतान की प्राप्ति होगी।
बंध्या दोष दो प्रकार का होता है। पहला प्राकृतिक जो जन्म से ही होता है। दूसरा जो किन्ही कारणों से हो जाता है। इसमें पहले प्रकार के बांझपन की औषधि नहीं है। दूसरे प्रकार के बांझपन की औषधियां हैं। जिनके सेवन से बांझपन दूर हो जाता है।
बांझपन के कारण (banjhpan ki karan in hindi)
किसी भी प्रकार का योनि रोग, मासिक-धर्म का बंद हो जाना, प्रदर, गर्भाशय में हवा का भर जाना, गर्भाशय पर मांस का बढ़ जाना, गर्भाशय में कीड़े पड़ जाना, गर्भाशय का वायु वेग से ठंडा हो जाना, गर्भाशय का उलट जाना अथवा जल जाना आदि कारणों से स्त्रियों में गर्भ नहीं ठहरता है। इन दोषों के अतिरिक्त कुछ स्त्रियां जन्मजात वन्ध्या (बांझ) भी होती है। जिन स्त्रियों के बच्चे होकर मर जाते हैं। उन्हें “मृतवत्सा वन्ध्या“ तथा जिनके केवल एक ही संतान होकर फिर नहीं होती है तो उन्हें `काक वन्ध्या` कहते हैं।
बांझपन के लक्षण (banjhpan ke lakshan)
बांझपन का लक्षण गर्भ का धारण नहीं करना होता है।
बांझपन का विभिन्न औषधियों से उपचार (banjhpan ka gharelu upchar in hindi)
1. मैनफल: मैनफल बीजों का चूर्ण 6 ग्राम केशर के साथ शक्कर मिले दूध के साथ सेवन करने से बन्ध्यापन अवश्य दूर होता है। साथ ही मैनफल के बीजों का चूर्ण 8 से 10 रत्ती गुड़ में मिलाकर बत्ती बनाकर योनि में धारण करना चाहिए। दोनों प्रकार की औषधियों के प्रयोग से गर्भाशय की सूजन, मासिक-धर्म का कष्ट के साथ आना, अनियमित स्राव आदि विकार नष्ट हो जाते हैं।
2. दालचीनी:
- वह पुरुष जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होता है, यदि प्रतिदिन तक सोते समय दो बड़े चम्मच दालचीनी ले तो वीर्य में वृद्धि होती है और उसकी यह समस्या दूर हो जाएगी।
- जिस स्त्री के गर्भाधान ही नहीं होता, वह चुटकी भर दालचीनी पावडर एक चम्मच शहद में मिलाकर अपने मसूढ़ों में दिन में कई बार लगायें। थूंके नहीं। इससे यह लार में मिलकर शरीर में चला जाएगा। एक दम्पत्ति को 14 वर्ष से संतान नहीं हुई थी, महिला ने इस विधि से मसूढ़ों पर दालचीनी, शहद लगाया, वह कुछ ही महीनों में गर्भवती हो गई और उसने पूर्ण विकसित दो सुन्दर जुड़वा बच्चों का जन्म दिया।
3. गुग्गुल: गुग्गुल एक ग्राम और रसौत को मक्खन के साथ मिलाकर प्रतिदिन तीन खुराक सेवन करने से श्वेतप्रदर के कारण जो बन्ध्यापन होता है। वह दूर हो जाता है। अर्थात श्वेतप्रदर दूर होकर बन्ध्यापन (बांझपन) नष्ट हो जाता है।
4. तेजपात:
- गर्भाशय की शिथिलता (ढीलापन) के चलते यदि गर्भाधान न हो रहा तो तेजपात (तेजपत्ता का चूर्ण) 1 से 4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से गर्भाशय की शिथिलता दूर हो जाती है तथा स्त्री गर्भधारण के योग्य बन जाती है।
- कभी-कभी किसी स्त्री को गर्भाधान ही नहीं होता है बांझपन की समस्या का सामना करना पड़ता है। किसी को गर्भ रुकने के बाद गर्भस्राव हो जाता है। तेजपात दोनों ही समस्याओं को खत्म करता है। तेजपात का पाउडर चौथाई चम्मच की मात्रा में तीन बार पानी से नियमित लेना चाहिए। कुछ महीने तेजपात की फंकी लेने से गर्भाशय की शिथिलता दूर होकर गर्भाधान हो जाता है जिन स्त्रियों को गर्भस्राव होता है, उन्हें गर्भवती होने के बाद कुछ महीने तेजपत्ते के पाउडर की फंकी लेनी चाहिए। इस तरह तेजपत्ते से गर्भ सम्बन्धी दोष नष्ट हो जाते हैं और स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।
5. तुलसी: यदि किसी स्त्री को मासिक-धर्म नियमित रूप से सही मात्रा में होता होता हो, परन्तु गर्भ नहीं ठहरता हो तो उन स्त्रियों को मासिक-धर्म के दिनों में तुलसी के बीज चबाने से या पानी में पीसकर लेने अथवा काढ़ा बनाकर सेवन करने से गर्भधारण हो जाता है। यदि गर्भ स्थापित न हो तो इस प्रयोग को 1 वर्ष तक लगातार करें। इस प्रयोग से गर्भाशय निरोग, सबल बनकर गर्भधारण के योग्य बनता है।
6. नागकेसर: नागकेसर (पीला नागकेशर) का चूर्ण 1 ग्राम गाय (बछड़े वाली) के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करें, और यदि अन्य कोई प्रदर रोगों सम्बन्धी रोगों की शिकायत नहीं है तो निश्चित रूप से गर्भस्थापन होगा। गर्भाधान होने तक इसका नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। इसमें गर्भधारण में अवश्य ही सफलता मिलती है।
7. कंटकारी: कंटकारी, भटकटैया और रेंगनीकाट आदि नामों से इसे जाना जाता है। इसके फल आधे से एक इंच व्यास के चिकने, गोल और पीले तथा कभी-कभी सफेद रंग के होते हैं। ये सभी हरे रंग के और धारी युक्त होते हैं। फूलों की दृष्टि से ये दो प्रकार के होते हैं। एक गहरे नीले रंग की तथा दूसरा सफेद रंग की। सफेद रंग वाली को श्वेत कंटकारी कहते हैं। श्वेत कंटकारी की ताजी जड़ को दूध में पीसकर मासिकस्राव के चौथे दिन से प्रतिदिन दो ग्राम पिलाने से गर्भधारण होता है।
8. गोखरू:
- छोटा गोखरू और तिल को समान मात्रा में लेकर, चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम बकरी के दूध में सेवन करने से गर्भाशय शुद्ध होकर बंधत्व (बांझपन) नष्ट हो जाता है। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि गोखरू दो प्रकार का होता है। एक छोटा और दूसरा बड़ा। यहां छोटे गोखरू के बारे में लिखा गया है। बड़े वाले गोखरू में यह क्षमता नहीं होती है।
- लगभग 10-20 ग्राम गोखरू के फल के चूर्ण की फंकी देने से स्त्रियों में बांझपन (Banjhpan)का रोग मिट जाता है।
9. अमरबेल: अमरबेल या आकाशबेल (जो बेर के समान वृक्षों पर पीले धागे के समान फैले होते हैं) को छाया में सुखाकर रख लें। इसे चूर्ण बनाकर मासिक-धर्म के चौथे दिन से पवित्र होकर प्रतिदिन स्नान के बाद 3 ग्राम चूर्ण 3 ग्राम जल के साथ सेवन करना चाहिए। इसे नियमित रूप से नौ दिनों तक सेवन करना चाहिए। सम्भवत: प्रथम आवृत्ति में ही गर्भाधान हो जाएगा। यदि ऐसा न हो सके तो योग पर अविश्वास न कर अगले आवृत्ति में भी प्रयोग करें, इसे घाछखेल के नाम से भी जाना जाता है। इसकी कच्चे धागे के क्वाथ (काढ़ा) से गर्भपात होता है।
10. विष्णुकान्ता: पति-पत्नी दोनों को विष्णुकान्ता (नीलशंखपुष्पी) के पत्तों का रस लगभग 20 से 40 ग्राम की मात्रा में या 40 से 80 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए। इससे पति की पूयमेह, शुक्रमेह, मूत्रकृच्छ और धातु की दुर्बलता दूर होती है। पत्नी की गर्भाशय के दुर्बलता के कारण गर्भाधान न होने की शिकायत भी दूर हो जाएगी।
11. गम्भारीफल: यदि किसी स्त्री का गर्भाशय छोटा होने के कारण या सूख जाने की वजह से बंध्यापन (बांझपन) हो तो गम्भारीफल की मज्जा और मुलहठी (मुलेठी) को 250 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गर्भाशय पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाता है और बांझपन दूर हो जाता है।
12. बिजौरा नींबू: बिजौरा नींबू के बीजों को दूध में पकाकर, एक चम्मच घी मिलाकर मासिकस्राव के चौथे दिन से प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से गर्भ की स्थापना निश्चित रूप से होती है। पन्द्रह दिनों तक क्रम नियमित रूप से जारी रखना चाहिए। यदि पहले महीने में गर्भधारण न हो तो अगले मासिकस्राव के चौथे दिन से इसे पुन: जारी करना चाहिए। यह प्रयोग व्यर्थ नहीं जाता है। इससे गर्भधारण अवश्य ही होता है।
13. हींग: यदि गर्भाशय में वायु (गैस) भर गई हो तो थोड़ी-सी कालीहींग को कालीतिलों के तेल में पीसकर तथा उसमें रूई का फोहा भिगोकर तीन दिन तक योनि में रखे। इससे बांझपन (Banjhpan)का दोष नष्ट हो जाएगा। प्रतिदिन दवा को ताजा ही पीसना चाहिए।
14. हरड़: यदि गर्भाशय में कीडे़ पड़ गये हों तो हरड़, बहेड़ा, और कायफल, तीनों को साबुन के पानी के साथ सिल पर महीन पीस लें, फिर उसमें रूई का फोहा भिगोकर तीन दिनों तक योनि में रखना चाहिए। इस प्रयोग से गर्भाशय के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
15. कस्तूरी: यदि गर्भाशय उलट गया हो तो कस्तूरी और केसर को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर गोली बना लें। इस गोली को ऋतु (माहवारी होने के पहले) भग (योनि) में रखें। इसी प्रकार तीन दिनों तक गोली रखने से गर्भाशय ठीक हो जाता है।
16. पीपल:
- पीपल वृक्ष की जटा का चूर्ण 5 ग्राम मासिकस्राव (मासिक-धर्म) के चौथे, पांचवे, छठे और सातवे दिन सुबह स्नानकर बछड़े वाली गाय के दूध के साथ सेवन किया जाए तो बन्ध्यापन मिटकर गर्भवती होने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
- पीपल की डोडी कच्ची 250 ग्राम, शक्कर 250 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार कर लें। मासिक-धर्म के बाद 10 ग्राम चूर्ण मिश्री और दूध के साथ सुबह-शाम देना चाहिए। इसे 10 दिनों तक लगातार सेवन करने से लाभ मिलता है।
- पीपल के सूखे फलों का चूर्ण कच्चे दूध के साथ आधा चम्मच की मात्रा में, मासिक-धर्म शुरू होने के 5 दिन से 2 हफ्ते तक सुबह-शाम रोजाना सेवन करने से बांझपन दूर होगा। यदि लाभ न हो तो आप अगले महीने भी यह प्रयोग जारी कर सकते हैं।
- लगभग 250 ग्राम पीपल के पेड़ की सूखी पिसी हुई जड़ों में 250 ग्राम बूरा मिलाकर पति व पत्त्नी दोनों, जिस दिन से पत्त्नी का मासिकधर्म आरम्भ हो, 4-4 चम्मच गर्म दूध में रोजाना 11 दिन तक फंकी लें। जिस दिन यह मिश्रण समाप्त हो, उसी रात से 12 बजे के बाद रोजाना संभोग (स्त्री प्रंसग) करने से बांझपन की स्थिति में भी गर्भधारण की संम्भावना बढ़ जाती है।
- पीपल के सूखे फलों के 1-2 ग्राम चूर्ण की फंकी कच्चे दूध के साथ मासिक-धर्म के शुद्ध होने बाद 14 दिन तक देने से औरत का बांझपन मिट जाता है।
17. समुन्दरफल: समुन्दरफल, कालानमक और थोड़ा सा लहसुन पीसकर, रूई के फाहे में लपेटकर योनि में रखने से जला हुआ गर्भाशय ठीक हो जाता है। यदि इससे जलन होने लगे तो फाहे को निकालकर फेंक देना चाहिए तथा दिन में एक बार इसे पुन: रखना चाहिए। इसे ऋतुकाल (माहवारी) के पहले दिन से लेकर तीसरे दिन तक योनि में रखना चाहिए।
18. जीरा: काला जीरा, हाथी का नख तथा एरण्ड (अरण्डी) का तेल को महीन करके पीस लें। फिर उसमें रूई का फोहा तर करके तीन दिन तक योनि में रखें। इससे गर्भाशय का बढ़ा हुआ मांस ठीक हो जाता है।
19. ढाक: ढाक (छिउल) के बीजों की भस्म राख बना लें, इसे माहवारी खत्म होने के बाद स्त्री को 3 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले दूध के साथ खिलाना चाहिए। इससे बांझपन (Banjhpan)दूर हो जाता है।
20. शिवलिंगी: शिवलिंगी के बीज नौ दाने, सूर्योदय के समय सूर्यदर्शन करके स्नान करके पति के हाथ से लेकर दूध के साथ खाएं। माहवारी खत्म होने के बाद सूर्य का व्रत भी करें। इसी दिन व्रत में ही धूप दीप से सूर्य की पूजा करें। कुछ भोजन न करें। केवल दूध का ही सेवन करें। रात्रि में संभोग करें। इससे अवश्य ही गर्भधारण हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक अवश्य प्रयोग करें।
21. नौसादर: 20-20 ग्राम की मात्रा में नौसादर और बीजा बेल को पीसकर चार गोली 10-10 ग्राम की बनाकर रख लें। एक गोली रजस्वला के साथ खाएं। दूध का सेवन करे। गर्भ शुद्ध होने पर संभोग करना चाहिए। यदि पांचवें, सातवें, नौवे, ग्यारहवें, तेरहवें दिन संभोग करें तो पुत्र की प्राप्ति होगी।
22. बच: यदि गर्भाशय शीतल (ठंडा) हो गया तो बच, काला जीरा , और असगंध इन तीनों को सुहागे के पानी में पीसकर उसमें रूई का फाहा भिगोकर तीन दिनों तक योनि में रखने से उसकी शीतलता दूर हो जाती है। इस प्रयोग के चौथे दिन मैथुन करने से गर्भ ठहर जाता है।
23. कायफल: कायफल को कूट-छानकर चूर्ण बना लें, फिर उसमें बराबर मात्रा में शक्कर मिलाकर रख लें। ऋतु स्नान के तीन दिनों तक इस चूर्ण को एक मुट्ठी भर सेवन करते हैं। पथ्य में केवल दूध और चावल का सेवन करना चाहिए। इसके चौथे दिन संसार- व्यवहार (स्त्री-प्रसंग) करने से गर्भ ठहर जाता है।
24. असगंध:
- असंगध, नागकेसर और गोरोचन इन तीनों को समान मात्रा में बराबर मात्रा में लेकर पीस-छान लें। इसे शीतल जल के साथ सेवन करें तो गर्भ ठहर जाता है।
- असगंध का चूर्ण 50 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर कपड़छन कर लें। जब रजस्वला स्त्री स्नान करके शुद्ध हो जाए तो 10 ग्राम इसका सेवन घी के साथ करें। उसके बाद पुरुष के साथ रमण (मैथुन) करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी।
25. खिरेंटी: खिरेंटी, खांड, कंघी, मुलेठी, बरगद के अंकुर, तथा नागकेसर को शहद, दूध तथा घी में पीसकर सेवन कराने से बांझ स्त्री भी गर्भधारण करने के योग्य हो जाती है।
26. छोटी पीपल: छोटी पीपल, सोंठ, कालीमिर्च तथा नागकेसर तीनों को समान मात्रा में पीसकर रख लें। इस चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा में गाय के घी में मिलाकर मासिक-स्राव के चौथे दिन स्त्री को सेवन करायें तथा रात को सहवास करें तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।
27. बरियारी: बरियारी, गंगेरन, मुलहठी, काकड़ासिंगी, नागकेसर मिश्री इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 10 ग्राम लेकर घी, दूध तथा शहद में मिलाकर पीने से बांझ स्त्री को भी मातृत्व सुख मिलता है।
28. अतिबला: अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
29. बबूल (कीकर): कीकर (बबूल) के वृक्ष में चार-पांच गज की दूरी पर एक फोड़ा सा निकलता है। जिसे कीकर का बान्दा कहा जाता है। इसे लेकर कूटकर छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में माहवारी के समाप्ति के अगले दिन से तीन दिनों तक सेवन करें। फिर पति के साथ संभोग करे इससे गर्भ अवश्य ही धारण होगा।
30. आक: सफेद आक की छाया में सूखी जड़ को महीन पीसकर, एक-दो ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ सेवन स्त्री को करायें। शीतल पदार्थो का पथ्य देवें। इससे बंद ट्यूब व नाड़ियां खुलती हैं, व मासिक-धर्म व गर्भाशय की गांठों में भी लाभ होता है।
31. लहसुन: सुबह के समय 5 कली लहसुन की चबाकर ऊपर से दूध पीयें। यह प्रयोग पूरी सर्दी के मौसम में रोज करने से स्त्रियों का बांझपन दूर हो जाता है।
32. फिटकरी: मासिक-धर्म ठीक होने पर भी यदि संतान न होती हो तो रूई के फाये में फिटकरी लपेटकर पानी में भिगोकर रात को सोते समय योनि में रखें। सुबह निकालने पर रूई में दूध की खुर्चन सी जमा होगी। फोया तब तक रखें, जब तक खुर्चन आता रहे। जब खुर्चन आना बंद हो जाए तो समझना चाहिए कि बांझपन रोग समाप्त हो गया है।
33. गाजर: बांझ स्त्री (जिस औरत के बच्चा नहीं होता) को गाजर के बीजों की धूनी इस प्रकार दें कि उसका धुंआं रोगिणी की बच्चेदानी तक चला जाए। इसके लिए जलते हुए कोयले पर गाजर के बीज डालें। इससे धुंआ होगा। इसी धूनी को रोगिणी को दें तथा रोजाना उसे गाजर का रस पिलायें। इससे बांझपन दूर हो जाएगा।
34. अजवायन: मासिकधर्मोंपरान्त आठवे दिन से नित्य अजवाइन और मिश्री 25-25 ग्राम लेकर 125 मिलीलीटर पानी में रात्रि के समय एक मिट्टी के बर्तन में भिगों दे तथा प्रात:काल के समय ठंडाई की भांति घोट-पीसकर सेवन करें। भोजन में मूंग की दाल और रोटी बिना नमक की लें। इस प्रयोग से गर्भ धारण होगा।
35. कालानमक: स्त्री का माथा दुखे तो समझना चाहिए कि गर्भाशय खुश्क है। इसके लिए सेंधानमक, लहसुन, समुद्रफेन 5-5 ग्राम की मात्रा में पीसकर रख लें, फिर 5 ग्राम दवा को पानी में पीसकर रूई में लगाकर योनि के अन्दर गर्भाशय के मुंह पर सोते समय 3 दिन तक रखना चाहिए। इससे गर्भाशय की खुश्की मिट जाती है।
36. हींग: यदि स्त्री का अंग कांपे तो गर्भाशय में वायुदोष समझना चाहिए। इसके लिए हींग को पीसकर तिल के तेल में मिलाकर रूई में लगाकर गर्भाशय के मुंह पर 3 दिनों तक लगातार रखना चाहिए। इससे गर्भ अवश्य ही स्थापित हो जाता है।
37. जीरा: यदि स्त्री की कमर में दर्द हो रहा हो समझ लेना चाहिए कि उसके गर्भाशय के अन्दर का मांस बढ़ गया है। इस रोग के लिए हाथी के खुर को पूरी तरह जलाकर बिल्कुल बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस 5 ग्राम चूर्ण को काला जीरा के साथ मिलाकर इसमें अरण्डी का तेल भी मिला लें। इस तेल को एक रूई के फाये में लगाकर योनि में गर्भाशय के मुंह पर लगातार 3 दिन तक रखें। इससे इस रोग में लाभ होता है।
38. सेवती: यदि स्त्री का पूरा शरीर दुखे तो समझना चाहिए कि गर्भाशय में गर्मी अधिक है। जिसके कारण गर्भधारण नहीं होता है। इसके लिए सेवती के फूलों के रस में तिलों का तेल मिलाकर रूई में लगाकर गर्भाशय के मुंह पर तीन दिन तक लगातार रखना चाहिए।
39. राई: यदि स्त्री की पिण्डली दुखती हो तो समझना चाहिए कि गर्भाशय में अधिक ठंडक है। इसके लिए राई, कायफल, हरड़, बहेड़ा 5-5 ग्राम की मात्रा में कूट-छानकर रख लें, फिर एक ग्राम दवा साबुन के पानी में मिलाकर रूई में लगाकर गर्भाशय के मुंह पर रखना चाहिए। इसके प्रयोग से स्त्रियां गर्भधारण करने के योग्य बन जाती हैं।
40. काला जीरा: यदि स्त्री का पेट दुखे तो समझना चाहिए कि गर्भाशय में जाला है। इसके लिए काला जीरा, सुहागा भुना हुआ, बच, कूट 5-5 ग्राम कूट छान लें, फिर एक ग्राम दवा पानी में पीसकर रूई में लगाकर गर्भाशय के मुंह पर तीन दिन तक रखना चाहिए।
41. सौंफ: बन्ध्या (बांझ औरत) औरत यदि 6 ग्राम सौंफ का चूर्ण घी के साथ तीन महीने तक सेवन करें तो निश्चित रूप से वह गर्भधारण करने योग्य हो जाती है। यह कल्प मोटी औरतों के लिए खासकर लाभदायक है। यदि औरत दुबली-पतली हो तो उसमें शतावरी चूर्ण मिलाकर देना चाहिए। 6 ग्राम शतावरी मूल का चूर्ण 12 ग्राम घी और दूध के साथ सेवन करने से गर्भाशय की सभी बीमारियां दूर होती हैं और गर्भ की स्थापना होती है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)