Last Updated on December 4, 2021 by admin
बुखार के प्रकार :
हर मनुष्य के शरीर में प्राकृतिक गर्मी लगभग 98.4 डिग्री सेल्सियस तक पाई जाती है। लेकिन यह गर्मी जब शरीर में बढ़ जाती है तो इसे बुखार की अवस्था कहा जाता है। बुखार 8 प्रकार का होता है।
- वात ज्वर
- पित्त ज्वर
- कफ ज्वर
- वातपित्त ज्वर
- पित्तकफ ज्वर
- वातकफ ज्वर
- सन्निपात (त्रिदोषज) ज्वर
- आगन्तुक ज्वर ।
बुखार के कारण :
बुखार भंयकर कीटाणुओं के संक्रमण से होता है। यह रोगाणु शरीर की कोशिकाओं में `पायरोजन´ नामक विषैला पदार्थ पैदा कर देता है जिससे मस्तिष्क में स्थित ताप नियंत्रण केंन्द्र में खराबी हो जाती है और बुखार महसूस होने लगता है। वास्तव में बुखार बीमारी के कीटाणुओं को समाप्त करने में हमारी सहायता करता है। इस दौरान शरीर में विभिन्न प्रकार की जैविक प्रक्रियाएं तेजी से होने लगती हैं और ये सभी बुखार के कीटाणुओं को समाप्त करने में मदद करते हैं।
लम्बे समय तक बुखार का रहना शरीर के लिए घातक है क्योंकि उस दौरान शरीर के भीतरी हिस्से का तापमान बढ़ने के कारण पानी की कमी हो जाती हैं जिससे रक्त व मूत्र नली की कोशिकाएं सिकुड़ने लगती हैं, कोशिकाओं का प्रोटीन कम होने लगता है और दिमाग में विभिन्न प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं। शरीर में अधिक गर्मी, सर्दी, परिश्रम आदि के कारण साधारण बुखार आ जाता है। ऐसे में शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है। शरीर का सामान्य तापमान 98.4 डिग्री सेल्सियस रहता है। यह कम या ज्यादा भी हो सकता है। मुंह द्वारा द्वारा नापने पर तापमान बगल से नापे गए तापमान की अपेक्षा आधा डिग्री अधिक होता है। कभी-कभी यह तापमान अनियमित भोजन, मानसिक आवेग के कारणों से भी अधिक हो जाता है।
अनुचित आहार-विहार के कारण जब विभिन्न धातुएं कुपित होती हैं, तब उनके प्रभाव से अनेक प्रकार के बुखार तथा अन्य रोग पैदा हो जाते हैं। उल्टी, दस्त की अनियमितता, अजीर्ण (पुरानी कब्ज), शोक (दु:ख), क्रोध (गुस्सा), भय (डर), चिन्ता, ग्लानि (पश्चाताप), अधिक या संयोग-विरुद्ध भोजन, झरने का पानी पीने, तेज धूप, अधिक शीत, शरीर में फुंसी-फोड़ा आदि का उठना, विष को पीने, बिना भूख के खाना खाना, अधपके खाद्य पदार्थो का सेवन, अधिक मैथुन, दुर्गन्धित स्थान में रहना, वर्षा के पानी में भीगना, गर्मी-सर्दी का संयोग, ग्रह-पीड़ा, अभिचार-प्रयोग, भूतादि का प्रकोप, कोष्ठबद्धता (कब्ज़) आदि कारणों से बुखार की उत्पति होती है। वातदि दोष दूषित होकर जब आमाशय में तेज वेग के कारण आड़े-तिरछे भ्रमण करने लगते हैं तो उस समय रोम-छिद्रों से पसीना निकलना रुक जाता है, परिणामस्वरूप शरीर के भीतर गर्मी बढ़ जाती हैं। उस गर्मी को ही बुखार कहते हैं।
बुखार का देशी उपचार:
सादे बुखार में उपवास अत्यधिक लाभदायक है। उपवास के बाद पहले थोड़े दिन मूँग लें फिर सामान्य खुराक शुरु करें। ऋषि चरक ने लिखा है कि बुखार में दूध पीना सर्प के विष के समान है अतः दूध का सेवन न करें।
पहला प्रयोगः सोंठ, तुलसी, गुड़ एवं काली मिर्च का 50 मि.ली काढ़ा बनाकर उसमें आधा या 1 नींबू निचोड़कर पीने से सादा बुखार मिटता है।
दूसरा प्रयोगः शरीर में हल्का बुखार रहने पर, थर्मामीटर द्वारा बुखार न बताने पर थकान, अरुचि एवं आलस रहने पर संशमनी की दो-दो गोली सुबह और रात्रि में लें। 7-8 कड़वे नीम के पत्ते तथा 10-12 तुलसी के पत्ते खाने से अथवा पुदीना एवं तुलसी के पत्तों के एक तोला रस में 3 ग्राम शक्कर डालकर पीने से हल्के बुखार में खूब लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः कटुकी, चिरायता एवं इन्द्रजौ प्रत्येक की 2 से 5 ग्राम को 100 से 400 मि.ली. पानी में उबालकर 10 से 50 मि.ली. कर दें। यह काढ़ा बुखार की रामबाण दवा है।
चौथा प्रयोगः बुखार में करेले की सब्जी लाभकारी है।
पाँचवाँ प्रयोगः मौठ या मौठ की दाल का सूप बनाकर पीने से बुखार मिटता है। उस सूप में हरी धनिया तथा मिश्री डालने से मुँह अथवा मल द्वारा निकलता खून बन्द हो जाता है।
बुखार का आयुर्वेदिक घरेलू इलाज :
1. तुलसी :
25 तुलसी के पत्ते, 15 दाने कालीमिर्च के और 10-10 ग्राम अदरक व दालचीनी को 250 मिलीलीटर पानी में उबालकर थोड़ा-थोड़ा पानी कई बार पीने से बुखार में लाभ पहुंचता है।
2. गिलोय :
- 6-6 ग्राम गिलोय, धनिया, नीम की छाल, पद्याख और लाल चंदन आदि को एकसाथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस बने हुए काढ़े को सुबह और शाम पीते रहने से हर प्रकार का बुखार उतर जाता है।
- गिलोय, पीपरामूल (पीपल की जड़), पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, नीम की छाल, सफेद चंदन, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। वयस्कों को 3 से 6 ग्राम और छोटे बच्चों को 1 से 2 ग्राम तक यह चूर्ण गर्म पानी के साथ देने से बुखार में लाभ होता है।
- गिलोय, सोंठ, धनिया, चिरायता तथा मिश्री को बराबर की मात्रा में मिलाकर पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को रोजाना दिन में 3 बार 1-1 चम्मच लेने से हर प्रकार के बुखार में आराम आता है।
- गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर देने से जीर्ण-ज्वर और खांसी ठीक हो जाती है।
- गिलोय के सत् में शहद को मिलाकर चाटने से पुराना बुखार मिट जाता है।
3. मिट्टी :
गीली मिट्टी की पट्टी पेट पर बांधकर हर घंटे में बदलते रहने से बुखार का ताप दूर हो जाता है।
4. चिरायता :
रात में लगभग 4 चम्मच चिरायता का चूर्ण एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इस पानी को छानकर 3-3 चम्मच की मात्रा में दिन में 3-4 बार पीने से सामान्य बुखार में लाभ मिलता है।
5. ग्वारपाठा :
10 से 20 मिलीलीटर ग्वारपाठा की जड़ का काढ़ा दिन में 3 बार पीने से बुखार कम हो जाता है।
6. कटेरी :
कटेरी की जड़ और गिलोय को बराबर की मात्रा में मिलाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में बुखार में देने से पसीना आकर बुखार कम हो जाता है।
7. प्याज :
एक प्याज के बीच की मोटाई के ऊपर कालीमिर्च को छिड़क कर दिन में 2 बार सेवन करने से गन्दी हवा के कारण पैदा हुआ बुखार दूर हो जाता है।
8. पुनर्नवा :
- 2 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ को दूध या ताम्बूल के साथ सुबह-शाम सेवन करने से बुखार में आराम आता है।
- पुनर्नवा का सेवन करने से पेशाब की जलन, मूत्र मार्ग (पेशाब करने के रास्ते मे परेशानी) में संक्रमण के कारण पैदा हुए बुखार के रोग में भी तुरन्त लाभ मिलता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)