Last Updated on July 15, 2020 by admin
अन्ननली में जलन के लक्षण : Ann nali me Jalan ke Lakshan in Hindi
★ गले से पेट तक जो प्रणालिका होती है उससे होकर भोजन तथा पानी पेट में जाता है। इस प्रणालिका को अंग्रेजी में गुलेट (Gullet) या इसोफेगस (Qesophagus या Esophagus) कहते हैं। जब इसमें सूजन होती है तो भोजन को निगलना कठिन हो जाता है तथा इस प्रणालिका में जलन होने लगती है।
★ यह एक प्रकार का पुराना रोग है। इस रोग से पीड़ित रोगी के भोजननली से लेकर मलद्वार तक पूरी अन्ननली में जलन होती है, जीभ और गले के कोषों में दर्द होता है, जीभ और मसूढ़ों में जख्म हो जाता है, यकृत की क्रिया गड़बड़ा जाती है। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक होता है।
★ इस रोग से पीड़ित रोगी को दिन में लगभग 3 बजे बार-बार पानी की तरह पीले रंग का कीच के समान या फेन-भरे दस्त आते हैं, दस्त से खट्टी बदबू आती है।
★ रोगी के जीभ और मसूढ़ों पर घाव हो जाता है या अजीर्ण रोग भी हो जाता है। रोगी के यकृत का आकार धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। जीभ लाल हो जाती है तथा उस पर दर्द होता है, जीभ में स्वाद लेने की शक्ति खत्म हो जाती है या सूंघने की शक्ति नहीं रहती ।
★ कभी-कभी तो शरीर की गर्मी बढ़ जाती है। इसके बाद रोगी के शरीर में खून की कमी हो जाती है, बहुत अधिक पसीना आता है और रोगी सुस्त हो जाता है। कभी-कभी तो यह रोग कई वर्षो तक चलता रहता है।
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अन्ननली में जलन का देसी घरेलू उपचार : bhojan ki nali me jalan ka gharelu upchar
1) केला / Banana : केले का रस 20 से लेकर 40 मिलीलीटर तक सुबह-शाम कालीमिर्च के साथ देने से लाभ होता है।
2) सागौन / Teak : सागौन (सागोन) की लकड़ी या छाल का चूर्ण 3 से 12 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
3) ताड़ / Palm : ताड़ के पेड़ के नये पुष्पित भाग की राख तीन से छ: ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से अम्लपित्त से होने वाली अन्ननली की जलन मिट जाती है।
4) हरड़ : हरड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, मिश्री मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
5) पान : swas nali ki sujan dur karne ka upay -पान के पत्ते पर तेल लगाकर गर्म करके छाती पर बांधने से सांस की नली की सूजन और यकृत (जिगर) के दर्द में लाभ होता है।
6) गुग्गुल : गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर लगभग 1 ग्राम तक गुड़ के साथ सेवन करने से आहार नली की जलन शांत होती है।
7) नागकेसर / Nagakesar : नागकेसर (पीले नागकेसर) की जड़ और छाल को मिलाकर पीसकर काढ़ा बना लें। इसे रोजाना 1 दिन में 2 से 3 बार खुराक के रूप में सेवन करें। इससे आमाशय की जलन (गेस्ट्रिक) में लाभ होता है।
8) कुलिंजन : कुलिंजन के टुकड़े लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक रोजाना सुबह, दोपहर चूसने से गले की जलन में लाभ होता है।
9) मुलेठी : मुलेठी (जेठी मधु) का चूर्ण एक से चार ग्राम तक दूध या देशी घी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आमाशय की अम्लता दूर होकर जलन मिटती है।
10) गुरूच : गुरूच का सत्व लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से जलन मिटती है।
अन्य उपचार : रोग की अवस्था में रोगी को सिर्फ दूध पीने के लिए देना चाहिए।
सावधानी : ऐसी अवस्था में खाना खाने के पहले कोई तरल पदार्थ दूध या पानी का घूंट लेना चाहिए।
(दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)