Last Updated on November 15, 2019 by admin
विष्णु धर्मोत्तर ग्रंथ में लिखा है कि इन मंत्रो से सूर्य को अर्घ्य देकर प्रणाम करने वाले की विप्पतियाँ दूर होने में उसको मदद मिलती है | और भक्ति बढ़ाना चाहे, मेरी भक्ति बढे, मेरी साधना के मार्ग जो विघ्न आ रहे वो दूर हो जाये और जैसा गुरुदेव चाहते है ऐसी मेरी साधना और भक्ति में ऊँची स्थिति हो | ये भाव भी कर सकते है | उनके आदेश का पालन करना ये उनकी सेवा है | इसीसे गुरु की प्रसन्नता, उत्साह साधक को प्राप्त होती है उस भक्त को प्राप्त होती है | तो आज से हम लोग शांत जब भी मौका मिले बैठकर अकिंचन भाव | शरीर पाँच भूतों का और गुरुदेव ने समझाया कि यह मैं नहीं हूँ और यहाँ मेरा कुछ नहीं है |
बारा महीनों के बारह मंत्र अलग-अलग होते है | सूर्य को जल तो देते है केवल ये मंत्र जोड़ देना है तो बाह्य जीवन की विप्पतियाँ दूर हो सकती है और साधना के मार्ग में आनेवाली विपत्तियाँ भी दूर हो सकती है क्योकि सूर्य भगवान स्वयं गुरुभक्त है । इन मंत्रों से अर्घ्य देकर प्रार्थना करना कि सूर्य भगवान आपकी अपने गुरु ब्रहस्पतिजी के प्रति भक्ति है ऐसी मेरी मेरे बापूजी के प्रति हो जाय | मेरी मेरे गुरुदेव के प्रति हो जाय | ऐसी मुझे सद्बुद्धि दो | बारह महीनों के बारह मंत्र सूर्य भगवान को जल देते समय बोलो –
मार्गशीर्ष मास का मंत्र – ॐ धाताय नम:
पौष मास का मंत्र – ॐ मित्राय नम:
माघ मास का मंत्र – ॐ अर्यमाय नम:
फाल्गुन मास का मंत्र – ॐ पुषाय नम:
चैत्र मास का मंत्र – ॐ शक्राय नम:
वैशाख मास का मंत्र – ॐ अन्शुमानाय नम:
ज्येष्ठ मास का मंत्र – ॐ वरुणाय नम:
आषाढ़ मास का मंत्र – ॐ भगाय नम:
श्रावण मास का मंत्र – ॐ त्वष्टाय नम:
भाद्रपद मास का मंत्र – ॐ विवश्वते नम:
आश्विन मास का मंत्र – ॐ सविताय नम:
कार्तिक मास का मंत्र – ॐ विष्णवे नम:
हे सूर्यदेव आपकी गुरु ब्रहस्पतिजी के चरणों में भक्ति ऐसी मेरी मेरे गुरुदेव के चरणों में हो | मुझे स्वप्ने में मेरे गुरुदेव में कोई दोष दर्शन ना हो | क्योंकि सूर्य भगवान जैसे आप में कभी अँधेरा नहीं हो सकता ऐसे मेरे गुरुदेव में कोई दोष नहीं हो सकता | जैसे चन्द्रमा में ताप नहीं हो सकता ऐसे मेरे गुरु में कोई दोष नहीं हो सकता | जैसे गंगाजल में मलिनता नहीं आ सकती ऐसे मेरे गुरुदेव में ह्रदय में दोष नहीं हो सकता |