Last Updated on July 22, 2019 by admin
नीचे कुछ अत्यन्त ही विशिष्ट बातों का वर्णन किया जा रहा है जिनका पालन हर व्यक्ति को अधिकतम सीमा तक अवश्य ही करना चाहिए
1-स्नान, सन्ध्या, जप, गुरु व देवताओं का पूजन, वैश्यदेव और अतिथि सत्कार ये 6 कर्म नित्य करने चाहिए।
2- सूर्योदय से प्राय: 1 घण्टा पहले ब्रह्ममुहूर्त होता है। इस समय सोना निषिद्ध है। इस कारण ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नीचे लिखा मन्त्र बोलते हुए अपने हाथ देखें।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।
अर्थात् हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा हैं। अत: सुबह में (उठकर) हाथों का दर्शन करें। पश्चात् नीचे लिखी प्रार्थना कर पृथ्वी पर पैर रखें।
समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमण्डले। विष्णुपत्नि ! नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे।।
अर्थात्-हे विष्णुपनि! हे समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली तथा पर्वतरूप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवि ! तुझे नमस्कार है। मेरे पादस्पर्श को क्षमा करो ! पश्चात् मुख धोकर कुल्ला करके, नीचे लिखे प्रातः स्मरण, तथा भजनादि करके, गणेशजी, लक्ष्मीजी, सूर्य, तुलसी, गो, गुरु, माता, पिता और वृक्षों को प्रणाम करें।
3- यज्ञोपवीत कण्ठी कर दाहिने कान में लपेटकर वस्त्र या आधी धोती से सिर ढकें। वस्त्र के अभाव में जनेऊ को सिर के ऊपर से लेकर बालों तक रखें। आप दिन में उत्तर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुखकर नीचे लिखा मन्त्र बोलकर मौन हो मल त्याग करें। यह नियम विशेष रूप से खुले में मल त्याग करने वालों के लिए है।
4- सामने देवता दक्षिण में पितर और पीठ पीछे ऋषियों का निवास रहता है, इसलिए कुल्ला बाई ओर करें।
5- मल, मूत्र त्यागने के बाद और भोजन के बाद पानी से कुल्ला करना चाहिए।
6- मुखशुद्धि किये बिना मन्त्र फलदायक नहीं होते। इसलिए सूर्योदय से पहले पूर्व, पश्चात् उत्तर अथवा दोनों समय ईशान (पूर्वोत्तर कोण) में मुख कर दंतुअन करनी चाहिए।
पद्म पुराण में कहा है
मध्यमानामिकाभ्यां च वृद्धांगुष्ठेन च द्विजः दन्तस्य धावनं कुर्यान्न तर्जन्या कदाचन।।
अर्थात् मध्यमा, अनामिका तथा अँगुष्ठ से दाँत साफ करें। तर्जनी अँगुली से न करें।
7-हारीत स्मृति में कहा है
उच्चारे मैथुने चैब प्रसावे दन्तधावने। श्राद्धे भोजनकाले च षट्सु मौनं समाचरेत्।।
अर्थात् मल, मूत्र, दन्तधावन, श्राद्ध और भोजन के समय मौन रहें।
8- उवासी (जम्हाई) आने से ‘चुटकी बजावें। छींकने से ‘शतं जीवेम शरदः’ – कहें। अधोवायु, थूक तथा नेत्र में जल आने से दाहिना कान अँगूठे से स्पर्श करें।
9- गायत्री के मन्त्र का 1 जप करने से एक दिन का , 10मन्त्रों के जप से रात दिन का , 100 मन्त्रों के जप से एक मास का , 1000 मन्त्रों के जप से एक वर्ष का, 1 लाख मन्त्रों के जप से जन्म भर का , 10 लाख मन्त्रों के जप से अन्य जन्म का और 1 करोड़ मन्त्रों के जप से सब जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।
10-सदा दाहिने हाथ को गौमुखी में डालकर अथवा कपड़े से ढककर जप करना चाहिए । नहीं तो जप निष्फल होता है । शंख मणि की माला से सौ गुना , मूंगा से हजार गुना , स्फटिक से 10 हजार गुना , मोती से लाख गुना , कमलगट्टे से 10 लाख गुना , सुवर्ण से करोड़ गुना तथा कुश ग्रन्थि और रुद्राक्ष से अनंत गुना फल मिलता है ।
11- ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी को त्रिकाल संध्या करनी चाहिए।जो संध्या नहीं करते उनको शुभ कर्म करने का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता ।इसलिए धर्म की रक्षा ,यश ,कीर्ति ,तेज और धन की वृद्दि चाहने वालों को प्रात: और सांय नित्य संध्या अवश्य करनी चाहिए । घर में संध्या करने से साधारण ,गौशाला में सौ गुना , नदी के किनारे लाख गुना और शिवालय में अनन्त गुना फलदायी होती है ।
12- चूल्हा (अग्नि जलाने से ) ,चक्की (पीसने से ) , बुहारी (बुहारने से ) ,ओखली (कूटने से ) ,और जल के स्थान में (जल पात्र के नीचे जीवों के दबने से) जो पाप होते हैं , उन पापों का नाश करने के लिए – ब्रह्म यज्ञ -वेद वेदांग तथा पुराणों का पढना और पढ़ना ,पितृ यज्ञ -श्राद्द तथा तर्पण, देव यज्ञ -देवताओं का पूजन और हवन, अतिथि सत्कार नित्य अवश्य करना चाहिए ।