Last Updated on July 22, 2019 by admin
हाथीपाँव रोग के कारण : hathi paon ke karn
हाथीपाँव रोग को श्लीपद या फीलपाँव के नाम से भी जाना जाता है |यह रोग (फाइलेरिया बेन्काफ्टाई / ) नामक कीटाणु के संक्रमण से उत्पन्न होता है । यह कीटाणु रोगी के रक्त या लसिका प्रवाह में उपथित रहता है। ये कीटाणु सूत के समान पतला तथा लगभग 2 मीटर तक लम्बा और 2.5 मि.मी. मोटा होता है।
हाथीपाँव रोग के लक्षण : hathi paon ke lakshan
✦ इस रोग में सर्वप्रथम पैरों की ऊपरी त्वचा में सूजन होकर | उसका रंग गम्भीर हो जाता है । धीरे-धीरे आक्रान्त पैर अपनी प्राकृतिक अवस्था से दोगुना, तिगुना मोटा हो जाता है ।
✦ इसकी सूजन में अंगुली से दबाने पर गड्ढे नहीं पड़ा करते हैं । लसिका वाहिनियाँ सूज जाती हैं जिससे कई स्थानों पर उभार बन जाते हैं और उसमें दूधिया जल के समान तरल बहने लगता है ।
✦ किसी-किसी रोगी में इसका कीटाणु संक्रमण अण्डकोषों में पहुँच जाता है जिसके परिणामस्वरूप अण्डकोष 40 कि. ग्रा. तक भारी हो जाते हैं।
हाथीपाँव रोग में खान पान : hathi paon me khan pan
भोजन में दही, चावल, आलू और केला इत्यादि खाना बन्द कर दें । दोपहर में गेहूं की हल्की रोटी (चपाती) और कम मिर्च मसाले की हरी सब्जी खायें । भोजन के समय पानी बिल्कुल न पियें । भोजनोपरान्त 1 घंटे बाद जल इच्छानुसार पीवें । रात्रि का भोजन सूर्यास्त से पूर्व ही करें तथा रात्रि में भी पानी बिल्कुल न पीयें।
हाथीपाँव रोग का इलाज / उपचार : hathi paon (filariasis) ka ilaj / upchar
1- अँगूठे के ऊपर का रक्त निकाल देने से यह रोग नष्ट हो जाता है।
2- गुड़ और हल्दी बराबर को गाय के मूत्र के साथ प्रयोग करने से यह रोग नष्ट हो जाता है । ( और पढ़े – हल्दी के अदभुत 110 औषधिय प्रयोग )
3- 10 माशी कसौंदी की जड़ को गाय के घी मिलाकर प्रयोग करने से श्लीपद रोग नष्ट हो जाता है ।
4-सहदेवी को तालफल के रस में पीसकर पेस्ट बनाकर लेप करने से श्लीपद रोग नष्ट हो जाता है।
5- गाय के मूत्र में सिहोरा के बक्कल का काढ़ा मिलाकर प्रयोग करने से फाइलेरिया रोग नष्ट हो जाता है। ( और पढ़े – गोमूत्र है 108 बिमारियों की रामबाण दवा )
6- सौंठ, सरसों और साठी की जड़ काजी में पीसकर लेप करने से श्लीपद रोग नष्ट हो जाता है।
7- देवदारु, सौंठ, संहजने की जड़ और सरसों को गाय के मूत्र में पीसकर लेप करने से श्लीपद रोग नष्ट हो जाता है ।
8- गोमूत्र 3-3 ग्राम दिन में 3 बार पियें तथा प्रतिदिन 2-3 काली हरड़ चूसें । श्लीपद नाशक उत्तम प्रयोग है।
9- अरन्ड के तैल में बड़ी हरड़ की छाल को भून लें। फिर इसका चूर्ण कर सुरक्षित रख लें । यह 3 ग्राम चूर्ण फाँककर ऊपर से 50 ग्राम गोमूत्र पियें। श्लीपद नाशक उत्तम योग है। ( और पढ़े –अरण्डी तेल के 84 लाजवाब फायदे व औषधीय प्रयोग )
10- गोमूत्र के साथ गिलोय का रस नित्य पान करने से गोमूत्र तथा सरसों पीसकर लेप करने से श्लीपद रोग नष्ट हो जाता है।
11- श्लीपद गज केसरी (भैर.) 1 गोली (250 मि.ग्रा.) गर्म जल से सुबहशाम सेवन करें।
12- नित्यानन्द रस (रसेन्द सागर संग्रह) 1 गोली (250 मि.ग्रा.) हरड़ भिगोकर तैयार किये गये जल से सुबह-शाम सेवन करें।
13- सौरेवर घृत (भै. र.) 12 ग्राम 250 मि.ली. दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।
नोट-औषधि खाने से दो घंटे पूर्व तथा बाद में जल न पियें ।
14- वृद्धि वाधिका वटी (भावप्रकाश) 1 से 2 गोलियाँ (250 से 500 मि.ग्रा.) गरम जल या गाय के दूध से दिन में 2 बार सेवन करें। फाइलेरिया के संक्रमण से उत्पन्न अन्डकोष वृद्धि में अतिशय उपयोगी है।
15- जलकुम्भी को सुखाकर भस्म बनायें । तदुपरान्त इसे गरम सरसों के तैल में मिलायें । उसे फाइलेरिया से आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगायें तथा भोजनोपरान्त लवणभास्कर चूर्ण (भैषज्य रत्नावली) 2 से 4 ग्राम तक गर्म जल से दिन में 2 बार सेवन करें ।
16- बायविंडग, काली मिर्च, आक की जड़, सौंठ, चीता की जड़, देवदारु, मुसब्बर एवं नमक पांचों प्रकार के लें । प्रत्येक औषधि 500 ग्राम को जल के साथ पीसकर लुगदी बनाकर तिलों का तैल 4 लीटर तथा जल 16 लीटर एक कड़ाही में डालकर इसी में उपयुक्त लुगदी भी डाल दें। तैल सिद्ध कर बाद में जब पानी सभी जल जाए और तैल मात्र शेष रह जाए तभी शीतल कर छान लें और बोतलों में भरकर सुरक्षित रख लें। इस तैल से फाइलेरिया से आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-3 बार हल्की-हल्की मालिश करें । लाभप्रद योग है।
(वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)