गाँठ में बाँध रखने योग्य अनमोल रत्न | Priceless Thoughts

Last Updated on July 22, 2019 by admin

अनमोल वचन : Anmol Vachan

(१)   भोजन के सम्बन्ध में निम्न बातों का ध्यान रखोः
* भूख से कम खाओ, पेट को आधा भोजन से भरो, आधे को हवा और पानी
के लिये खाली रहने दो।
* हर ग्रास को खूब चबा-चबा कर खाओ।
* सारे दिन बकरी की तरह मुँह मत चलाते रहो। दो बार नियत समय पर भोजन करो, प्रातः काल किसी पतली, हल्की चीज का नाश्ता कर सकते हो।
* भोजन को रुचि और प्रसन्नता पूर्वक खाओ।
* बासी रखी हुई, तली चीजें, मिठाई, खटाई तथा मसालेदार, उत्तेजक चीजों से बचो। सादा, हल्का तथा रसीला भोजन करो।
* भोजन में स्वाद का नहीं केवल स्वास्थ्य का ध्यान रखो।

(२)   शरीर से नित्य उचित परिश्रम करो, न तो इतने आराम तलब बनो कि सुस्ती और शिथिलता आ जाए और न इतनी मेहनत करो कि शक्तियों का अत्यधिक खर्च हो जाने से क्षीणता आ जाए।

(३)   इन्द्रिय भोगों में इतने लिप्त न होओ कि मन काबू से बाहर हो जाए और बल-वीर्य का अधिक भाग उन्हीं में नष्ट होने लगे।

(४)   हर महीने एक-दो उपवास रखो, उस दिन निराहार रहकर खूब पानी पीना चाहिए। यदि निराहार न रहा जा सके तो थोड़ा दूध या फल ले सकते हैं।

(५)   सफाई का पूरा ध्यान रखो। नाखून, बाल, दाँत, नाक, कान साफ रखो। नित्य शरीर को खूब रगड़-रगड़ कर स्नान करो। कपड़े धुले हुए साफ रखो।

(६)   मलमूत्र त्यागने में आलस न करो।

(७)   रात को जल्दी सोओ, प्रात:काल जल्दी उठो। पूरी और गहरी नींद लेने का प्रयत्न करो।

(८)   सदा प्रसन्न रहने की आदत डालो। हर घड़ी मुस्कराते रहने का स्वभाव बनाओ।

(९)   सबसे नम्रता और मधुरता के साथ बात करो। निष्ठर, रूखी और कड़वी बात कभी मुँह से मत निकालो।

(१०)   गाली या अपशब्द या उपहास द्वारा किसी को चिढ़ाने की भूल कभी मत करो। अपना मतभेद या विरोध स्पष्ट एवं खरे शब्दों में प्रकट करते हुए भी नम्रता और सज्जनता को हाथ से मत जाने दो।

(११)   समय को अमूल्य समझो, अपने एक-एक मिनट का सदुपयोग करने की फिक्र में रहो, समय एक अप्रत्यक्ष सम्पत्ति है, इसका खर्च करते हुए पूरी-पूरी सावधानी रखो।

(१२)   ऐसी चीज जिनके बिना आसानी से काम चल सकता है, सस्ती मिल रही हो तब भी मत खरीदो।

(१३)   फैशन परस्ती से बचो। अपना रहन-सहन सीधा सादा रखो। सफाई और सादगी सब से बढ़िया फैशन है।

(१४)   आमदनी से खर्च, कम रखो । जहाँ तक बन पड़े कर्ज मत लो, यदि लेना पड़े तो उसे जल्द से जल्द चुकाने का प्रयत्न करो।

(१५)   कृतज्ञ बनो। दूसरे के द्वारा अपने ऊपर जो उपकार हुए हैं उनको धन्यवाद सहित प्रकट करते रहो और उनका बदला चुकाने की फिक्र में रहो।

(१६)   सच्चे मित्रों की संख्या बढ़ाओ। ऊँचे और अच्छे लोगों के सम्पर्क में रहो। अच्छे वातावरण में प्रवेश करो।

(१७)   जैसे बनना चाहते हो, वैसे ही लोगों के समीप, वैसी ही परिस्थितियों के दायरे में अपने को ले जाओ।

(१८)   अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए निरन्तर प्रयत्न शील रहो।“क्यों?” और “कैसे?” की कसौटी पर हर एक बात को परखो। दूसरों से पूछने में झिझक मत करो। मनन, चिन्तन और विश्लेषण करने की आदत डालो।‘अधिक जानने की साधना में अपने को प्रवृत्त रखो।

(१९)   दुर्व्यसनों से सदैव दूर रहो। किसी भी परिस्थिति में उन्हें अंगीकार मत करो, मित्र-सम्बन्धी कितना ही आग्रह करें, शालीनता से मना कर दो।

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