Last Updated on July 24, 2019 by admin
पूज्य बापूजी त्रिकाल संध्या (Trikal Sandhya)से होनेवाले लाभों को बताते हुए कहते हैं कि “त्रिकाल संध्या माने ह्रदय रुपी घर में तीन बार साफ-सफाई | इससे बहुत फायदा होता है |
त्रिकाल संध्या(Trikal Sandhya) करने वाले को मिलते है यह अदभुत 15 लाभ :
१] अपमृत्यु आदि से रक्षा होती है और कुल में दुष्ट आत्माएँ, माता-पिता को सतानेवाली आत्माएँ नहीं आतीं |
२] किसीके सामने हाथ फैलाने का दिन नहीं आता | रोजी – रोटी की चिंता नहीं सताती |
३] व्यक्ति का चित्त शीघ्र निर्दोष एवं पवित्र हो जाता है | उसका तन तंदुरुस्त और मन प्रसन्न रहता है तथा उसमें मंद व तीव्र प्रारब्ध को परिवर्तित करने का सामर्थ्य आ जाता है | वह तरतीव्र प्रारब्ध के उपभोग में सम एवं प्रसन्न रहता है | उसको दुःख, शोक, ‘हाय-हाय’ या चिंता अधिक नहीं दबा सकती |
४] त्रिकाल संध्या करनेवाली पुण्यशीला बहनें और पुण्यात्मा भाई अपने कुटुम्बियों एवं बच्चों को भी तेजस्विता प्रदान कर सकते हैं |
५] त्रिकाल संध्या (Trikal Sandhya)करनेवाले माता – पिता के बच्चे दूसरे बच्चों की अपेक्षा कुछ विशेष योग्यतावाले होने की सम्भावना अधिक होती है |
६] चित्त आसक्तियों में अधिक नहीं डूबता | उन भाग्यशालियों के संसार-बंधन ढीले पड़ने लगते हैं |
७] ईश्वर – प्रसाद पचाने का सामर्थ्य आ जाता है |
८] मन पापों की ओर उन्मुख नहीं होता तथा पुण्यपुंज बढ़ते ही जाते हैं |
९] ह्रदय और फेफड़े स्वच्छ व शुद्ध होने लगते हैं |
१०] ह्रदय में भगवन्नाम, भगवदभाव अनन्य भाव से प्रकट होता है तथा वह साधक सुलभता से अपने परमेश्वर को, सोऽहम् स्वभाव को, अपने आत्म-परमात्मरस को यही अनुभव कर लेता है |
११] जैसे आत्मज्ञानी महापुरुष का चित्त आकाशवत व्यापक होता है, वैसे ही उत्तम प्रकार से त्रिकाल संध्या(Trikal Sandhya) और आत्मज्ञान का विचार करनेवाले साधक का चित्त विशाल होंते – होते सर्वव्यापी चिदाकाशमय होने लगता है |ऐसे महाभाग्यशाली साधक-साधिकाओं के प्राण लोक – लोकांतर में भटकने नहीं जाते | उनके प्राण तो समष्टि प्राण में मिल जाते हैं और वे विदेहमुक्त दशा का अनुभव करते हैं |
१२] जैसे पापी मनुष्य को सर्वत्र अशांति और दुःख ही मिलता है, वैसे ही त्रिकाल संध्या करनेवाले साधक को सर्वत्र शांति, प्रसन्नता, प्रेम तथा आनंद का अनुभव होता है |
१३] जैसे सूर्य को रात्रि की मुलाकात नहीं होती, वैसे ही त्रिकाल संध्या करनेवाले में दुश्चरित्रता टिक नहीं पाती |
१४] जैसे गारुड़ मंत्र से सर्प भाग जाते हैं, वैसे ही गुरुमंत्र से पाप भाग जाते हैं और त्रिकाल संध्या करनेवाले शिष्य के जन्म-जन्मान्तर के कल्मष, पाप – ताप जलकर भस्म हो जाते हैं |
आज के युग में हाथ में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देने से भी अच्छा साधन मानसिक संध्या करना है | इसलिए जहाँ भी रहें, तीनों समय थोड़े – से जल से आचमन करके त्रिबंध प्राणायाम करते हुए संध्या आरम्भ कर देनी चाहिए तथा प्राणायाम के दौरान अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जप करना चाहिए |
१५] त्रिकाल संध्या व त्रिकाल प्राणायाम करने से थोड़े ही सप्ताह में अंत:करण शुद्ध हो जाता है | प्राणायाम, जप, ध्यान से जिनका अंत:करण शुद्ध हो जाता है उन्हींको ब्रह्मज्ञान का रंग जल्दी लगता है |
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कैसे करें त्रिकाल संध्या :
★ आप लोग जहाँ भी रहें, त्रिकाल संध्या के समय हाथ-पैर धोकर तीन चुल्लू पानी पी के ( आचमन करके ) संध्या में बैठे और त्रिबंध प्राणायाम करें |
★ अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जप करें, २ – ५ मिनट शांत होकर फिर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें और ध्यान करें तो बहुत अच्छा |
★ त्रिकाल न कर सकें तो द्विकाल संध्या अवश्य करें |
★ लम्बा श्वास लें और हरिनाम का गुंजन करें | खूब गहरा श्वास लें नाभि तक और भीतर करीब २० सेकंड रोक सकें तो अच्छा है, फिर ओऽऽ….म…. इस प्रकार दीर्घ प्रणव का जप करें |
★ ऐसा १०-१५ मिनट करें |
★ कम समय में जल्दी उपासना सफल हो, जल्दी आनंद उभरे, जल्दी आत्मानंद का रस आये और बाहर का आकर्षण मिटे, यह ऐसा प्रयोग है और कहीं भी कर सकते हो, सबके लिए है, बहुत लाभ होगा | ★ अगर निश्चित समय पर निश्चित जगह पर करो तो अच्छा है, विशेष लाभ होगा |
★ फिर बैठे हैं…..श्वास अंदर गया तो ॐ या राम, बाहर आया तो एक….. अंदर गया तो शांति या आनंद, बाहर आया तो दो….श्वास अंदर गया तो आरोग्यता, बाहर गया तो तीन….इस प्रकार
★ अगर ५० की गिनती बिना भूले रोज कर लो तो २ – ४ दिन में ही आपको फर्क महसूस होगा कि ‘हाँ, कुछ तो है |
★ ’ अगर ५० की गिनती में मन गलती कर दे तो फिर से शुरू से गिनो | मन को कहो, ’५० तक बिना गलती के गिनेगा तब उठने दूँगा |’ मन कुछ अंश में वश भी होने लगेगा,
★ फिर ६०, ७०…. बढ़ते हुए १०८ तक की गिनती का नियम बना लो | १ मिनट में १३ श्वास चलते हैं तो १०८ की गिनती में १० मिनट भी नहीं चाहिए लेकिन फायदा बहुत होगा |
★ घंटोंभर क्लबों में जाने की जगह ८ – १० मिनट का यह प्रयोग करें तो बहुत ज्यादा लाभ होगा |’
स्रोत – ऋषिप्रसाद
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