Last Updated on July 22, 2019 by admin
रोग परिचय :
गिल्टियाँ या गाँठे उभार के रूप में चर्म और मांस के बीच पाई जाती हैं। यदि शरीर की प्राकृतिक प्रन्थियां बढ़ जायें तो उनको अंग्रेजी में एनलार्जड ग्लैड और यदि किसी रोग के कारण अप्राकृतिक रूप से गिल्टियाँ उत्पन्न हो जाए तो उन्हें ग्लेन्डयूलर ट्यूमर कहते हैं।
इन्हें आयुर्वेद में ग्रन्थिल अर्बुद के नाम से जाना जाता है। इन गिल्टियों में बहुत सी गिल्टियाँ तो स्वयं एक रोग का स्थान रखती हैं।
जैसे –
कन्ठमाला (स्क्रोफ्यूला) – (यह प्रायः नरम मांस जैसे गर्दन और बगल में निकलती हैं। ये प्राय: एक ही झिल्ली में कईकई होती हैं, किन्तु कभी-कभी रसूली की भाँति प्रत्येक की झिल्ली अलग हुआ करती है। इसका कारण गाढ़ा बलगम या कफ पदार्थ होता है । इसमें बहुत जल्द पीप पड़ जाती है परिणामस्वरूप ये फूट जाती हैं ।आधुनिक चिकित्सा शास्त्री इस रोग (कन्ठमाला) को क्षय के संक्रमण (ट्युबर क्युलोसिस) से उत्पन्न होना मानते हैं।
त्वद या ककरौली–यह एक दूषित प्रकार की रसूली या शोथ होती है, जो शरीर के किसी भी भाग पर उत्पन्न हो सकती है । यह गोलाकार काले या बैंगनी रंग की होती है जो क्रमश: बढ़ती रहती है वैसे इसमें हरी और लाल कोषिकायें कड़े पँव (पैर) की भाँति निकल आती है) जब यह फूटती हैं तो घाव बैंगनी रंग का अथवा काला दिखलाई देता है और इसके किनारे मोटे हो जाते हैं जिनमें दुर्गन्ध आती है और पीले रंग का बदबूदार पानी बहता है। रोगी को तीव्र जलन और टीस होती है, सुइयाँ-सी चुभती हुई महसूस होती हैं।
गाँठ (गिल्टी ) के लक्षण : ganth ke lakshan
जो कैन्सर फूटता नहीं है वह बलगम और पित्त के जल के कारण पैदा होता है (ग्लैन्ड) Glanders इस रोग में चर्म के नीचे बिभिन्न स्थानों पर गाँठे पैदा हो जाया करती हैं और लिफटिक ग्लैन्डर्ज रोगाक्रान्त होकर बढ़ जाते हैं। चर्म पर छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं जो बहुत शीघ्र छालों के रूप में परिवर्तित होकर तदुपरान्त, उनमें घाव बन जाते हैं, इन घावों में रक्तयुक्त पीप निकलती है, चर्म के नीचे जो गाँठे पैदा होती हैं वे पहले सल और कष्टदायक होती हैं। बाद में उनमें पीप पड़कर वे फूट जाया करती हैं। इसके साथ ज्वर, बेचैनी, जोड़ों में दर्द और भूख की कमी इत्यादि उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं परन्तु जीर्ण (क्रोनिक) रोगों में यह कष्ट नहीं हुआ करते हैं । इसके उत्पत्ति का कारण कीटाणु वी-मलाई होता है। ये कीटाणु घोड़ों, गधों और खच्चरों के शरीर से मनुष्य के शरीर में आकर इस रोग को उत्पन्न कर देता है।
बद, गिल्टी, ककराल, कछराली ये जाँघ और बगल की लिम्फैटिक ग्रन्थियाँ शोधयुक्त होकर पक जाती हैं। इन्हीं को उक्त विभिन्न नामों से जाना जाता है ।
गाँठ (गिल्टी ) के घरेलू इलाज : ganth ke gharelu ilaj / upay
1- सिरस के बीज 120 ग्राम को पीसकर 250 मि.ली. मधु में मिलाकर पाक बनालें । तदुपरान्त एक हाँडी में बन्द करके 15 दिनों तक धूप में रख दें । फिर 6 से 12 ग्राम की मात्रा में सेवन करें।
2- सरफोंका को पीसकर 10 दिनों तक लगातार निहार-मुँह (बगैर कुछ खाये) 10 ग्राम चूर्ण ताजा जल से खायें । अनुभूत योग है। ( और पढ़े –गाँठ के रामबाण घरेलु उपचार )
3- कटाई का फल पीसकर गरम करके पान पर रखकर बाँधे । बद और ककरौली के लिए अनुभूत है ।
4-चूना शुष्क डेढ़ ग्राम, कुन्दर 500 मि.ग्रा., शिंगरफ रूमी 500 मि.ग्रा.और गुग्गुल 1 ग्राम लें। सभी को पीसकर 1 अण्डे की जर्दी में मिलाकर खूब घोटें फिर कपड़े पर लगाकर गाँठ या ककरौली पर चिपका दें। घाव ठीक हो जाने के बाद फाहा स्वयं अलग हो जाएगा। ( और पढ़े – बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार )
5-निर्बसी, मरमकी, गुग्गुल, एलवा, देसी अजवायन, मेथी के बीज, काला जीरा, उरसा, बाबूना, कूट, बिरौजा सभी सममात्रा में लेकर मकोय के रस में पीसकर थोड़ा गरम करके लेप करें। यह लेप कन्ठमाला के अतिरिक्त प्रत्येक प्रकार की गिल्टियों और सख्त प्रदाह को दूर करने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। अन्य प्रकार के व्रणों इत्यादि को दूर करने हेतु इसमें आवयकतानुसार सिरका मिलाकर लगायें।
6-सरसों, सहजने की बीज, सन के बीज, अलसी के बीज, जौ और मूली के बीज लेकर खट्टी छाछ के साथ पीसें और गिल्टियों पर लेप करें । अथवा अण्डी की जड़ को चावलों के पानी के साथ पीस कर लेप करें। ( और पढ़े – सिर के फोड़े फुंसियों के 12 रामबाण घरेलु उपचार )
7-पके हुए कुम्हड़े के स्वरस में विड़ नमक और सेंधा नमक मिला कर नस्य लेने (सूँघने ) से नवीन कण्ठमाला में शीघ्र लाभ होता है।
8-सूरजमुखी और लहसन पीस कर पुल्टिस बाँधने से कण्ठमाला की गिल्टियाँ पक कर | फूट जाती हैं और तब वह रोग शीघ्र शान्त हो जाता है । ( और पढ़े – फोड़े फुंसी नासूर को जड़ से खत्म करेंगे यह 26 जबरदस्त देसी नुस्खे )
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