Last Updated on September 8, 2021 by admin
दमा (श्वास) एक बहुत कष्टदायक रोग है। यह मनुष्य को शारीरिक तथा मानसिक रूपसे अपङ्ग बना देता है। ऐसी मान्यता है कि दमा रोग मृत्यु के साथ ही जाता है, परंतु रोगी अगर अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग है, विवेकपूर्ण आहार-विहार करता है तो इस रोगसे होनेवाले शारीरिक और मानसिक कष्ट नगण्य हो जाते हैं और वह एक स्फूर्तिदायक एवं आनन्ददायक जीवन व्यतीत कर सकता है। कुछ छोटी-छोटी ध्यान देनेवाली बातें नीचे दी जा रही हैं, जो अनुभूत हैं –
दमा रोग में खानपान :
1.सुबह उठकर शौच जाने से पूर्व एक-डेढ़ किलो पानी अवश्य पीये। पानी अगर ताँबे अथवा चाँदी के
पात्र में रातभर रखा हो तो और अच्छा है।
2. शौच-मंजन आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर कटिस्नान ले अथवा घुटनों के नीचे दोनों टाँगों को पानी से ५ मिनट तक तर (गीला) करके रखे। इसके लिये पानी की टोंटी के नीचे क्रमशः घुटनों को रखकर घुटने और पिण्डलियों को पानी से तर करते रहे। अगर खड़े होने में परेशानी हो तो स्टूलपर बैठकर पानी के पाइपसे आरामसे तर कर सकते हैं। इसके बाद बिना पानी पोछे उठ जाय, जो भी धोती आदि कपड़ा पहन रखा हो, उससे अच्छी प्रकार ढक दे, जाड़ा हो तो ऊपर तक मोज़ा पहन ले, जिससे पिण्डलियों में रक्तसंचार बढ़े। सीने (फेफड़ों)-से रक्तसंचार होकर पैरों की तरफ दौड़ता है, जिससे श्वास लेने में आसानी होती है।
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3. कटिस्नान के लिये एक प्लास्टिककी बड़ी चिलमची लेकर उसे आधासे अधिक जलसे भर ले और उसमें थोड़े वस्त्रसहित बैठ जाय। यह ध्यान रखें कि टब इतना बड़ा हो कि पानी नाभितक आ जाय। पैरों को टबसे बाहर रखे। अच्छा हो पैर गीले न हों। दाहिने हाथ से नाभि से नीचे पेट को मलते रहे। यह क्रिया पहले १ मिनटसे शुरू करके धीरे-धीरे ३ मिनटतक बढ़ा ले जाय। इससे अधिक समयतक बैठने से नुकसान हो सकता है। इस क्रिया का भी वही महत्त्व है जो घुटने, पिंडली-पादनान का है। कटिस्नान क़ब्ज़, पेचिश, पेट के रोग, गद्द बढ़ना, गर्भाशय, प्रजनन सम्बन्धित रोग, मूत्राशय के रोग दूर करने में सहायक होता है।
कटिस्नान सप्ताह में 3 बार से अधिक न करे। एक दिनमें एक ही उपाय करे, कटिस्नान अथवा घुटना, पाद-स्नान 1-1 दिन अदलब दलकर कर सकते हैं। घुटना, पादस्नान, टाँगों, घुटनोंके दर्द में भी बहुत लाभदायक है।
जो लोग चाय-दूध आदिके अभ्यस्त हैं, जलक्रियाके बाद ले सकते हैं, साथ ही जो नियमित दवाइयाँ हैं, वे भी उस समय 1-2 बिस्कुटके साथ ले सकते हैं।
4. ध्यानका श्वास और हृदयरोग में मुख्य स्थान है। जिस पद्धति से ध्यान जानते हों, अवश्य करे। ध्यान के लिये सुखासन पर पलथी लगाकर बैठ जायँ। जो घुटने आदि के दर्द के कारण पलथी न लगा सकें, कुर्सीका इस्तेमाल कर सकते हैं। पहले दीर्घश्वास लें, दाहिने हाथके अँगूठे से दाहिना नासाद्वार बंद करके १० बार दीर्घ श्वास लें और निकालें। फिर छोटी तथा दूसरी अनामिका अंगुलीसे बायाँ नासाद्वार बंदकर दायें नासाद्वारसे १० बार दीर्घ श्वास लें और बाहर निकालें। फिर दायाँ नासाद्वार बंद कर बाँयें नासाद्वार से दीर्घश्वास लें, बायाँ नासाद्वार बंदकर दायें नासाद्वार से श्वास बाहर निकालें तथा दायें नासाद्वार से श्वास अंदर भरकर दायाँ नासाद्वार अँगूठे से बंदकर बाँये नासाद्वार से श्वास बाहर निकालें। यह प्रक्रिया दस-दस बार दोहरायें। दिन में जब भी समय मिले श्वास-नि:श्वास की यह प्रक्रिया दोहराते रहें।
प्राणायाम की छोटी-सी क्रिया के बाद अपने आनेजानेवाले श्वासपर ध्यान केन्द्रित करें। अंदर जानेवाला श्वास ओठके ऊपरी भाग को छूकर जा रहा है और बाहर आनेवाला श्वास भी नासिका के नीचेवाले छोर को छूता हुआ बाहर निकल रहा है। श्वास के स्पर्श की अनुभूति पर ही ध्यान केन्द्रित करें। इसे आनापान-विधि कहते हैं। ध्यान निरन्तर अभ्यास से होता है। शुरू-शुरू में तो जब आप ध्यान पर बैठेंगे तो मन बहुत विचलित होगा तथा आपको आसन से उठा देगा। अतः ध्यान लगे न लगे, आपको आसनपर जमकर बैठना है। शुरूमें १५ मिनटकी अवधि से लेकर बढ़ाकर धीरे-धीरे एक घंटा ले जायँ। भगवान् बुद्ध द्वारा बतायी गयी विपश्यना नामक ध्यान-पद्धति इसमें बहुत कारगर सिद्ध हुई है।
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5. ध्यान के बाद घूमना भी श्वासरोग में बहुत हितकर है। सुबह-शाम शरीर के बल के अनुसार नियमित घूमना आवश्यक है। इससे ताजी हवा मिलने से चमत्कारिक लाभ मिलता है तथा आत्मविश्वास बढ़ता है, जो कि इस रोग में बहुत जरूरी है। घूमने के बाद नाश्ता करें। नाश्ता जितना हलका करेंगे, श्वास उतना ही ठीक रहेगा। सबसे अच्छा मौसमी फलोंका नाश्ता, आम, पपीता, सेब, केला, संतरा, नाशपाती, अमरूद जो भी मीठा फल हो, नाश्ते में लें। कभी-कभी अंकुरित मूंग की दाल, चने आदि ले सकते हैं। अगर जरूरत समझे तो दूध भी ले सकते हैं, इससे शरीर को ताकत मिलती है। श्वास के रोगियों को यह डर रहता है कि दूध बलगम बनाता है, जब कि दूध सुपाच्य है। शरीर में बल की वृद्धि करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। अतः सुबह शाम एक-एक पाव दूध अवश्य पीयें। डायबिटीज के मरीज नाश्ते में खीरा, टमाटर, दही, अंकुरित मेथी अथवा मूंग ले सकते हैं।
6. सूखे मेवे-बादाम, काजू, किशमिश, मुनक्का, सफेद मिर्च भी श्वासरोग में बहुत अच्छा लाभ करते हैं। 5 मुनक्का, 5 बादाम, 2 सफेद मिर्चकी गोली बनाकर रख ले और सुबह-शाम मुँह में रखकर चूसें। मुनक्का को धोकर सुखा लें। उसमें से बीज निकालकर सिलपर पीस लें। बादाम तथा सफेद मिर्च मिक्सी में पीसकर पाउडर बना लें। फिर मुनक्का और बादाम, मिर्च के पाउडर को एक साथ मिला कर गोली बना लें। सुबह-शाम चूसें, इससे क़ब्जियत दूर होती है। पाचन बढ़ता है, बलगम निकलता है और बल की वृद्धि होती है।
7. दोपहर को तथा शाम को रोटी, हरी सब्जियाँ लें। दालों का प्रयोग कम करें। मूंग-मसूर हलकी होती हैं। अरहर, उर्द, राजमा, सोयाबीन, चना आदि की दालों से परहेज करना चाहिये।
8. चावल सप्ताह में एक बार ले सकते हैं। खटाई, मिर्च, तेल, वैजिटेबल ऑयल, तली हुई वस्तुएँ, मैदे से बने पदार्थ, पेट में तेजाब बनानेवाले खाद्य पदार्थ, बर्फ अथवा फ्रीज की अति ठंडी वस्तुओं का सेवन न करें। जो भी खायें, सतर्कतापूर्वक ध्यान रखें। जो चीज शरीर को नुकसान दे, जिह्वा के स्वादवश पुनः न खायें। अगर शरीर कृश है तो शुद्ध घीसे बना भोजन इस्तेमाल करें। डालडा, रिफाइन्ड इसमें नुकसान देते हैं।
9. अपराह्न में फल ले सकते हैं। अनार बहुत फायदेमन्द है, बलगम निकालता है तथा अन्य फलों की तरह शक्ति और ताजगी देता है। खीरा और फलों के अधिक सेवन से यह फायदा है कि ये शरीर में तेजाबकी मात्रा नहीं बढ़ने देते। श्वास के हर रोगीमें ऑक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है।
10. फल क्षारीय होने की वजह से शरीर में क्षार और अम्ल के संतुलन को बनाये रखने तथा शरीर से हानिकारक पदार्थोंको बाहर निकालने में बहुत सहायक होते हैं। रात्रि में सोते समय दूध ले सकते हैं। रात्रिका भोजन जल्दी करें तथा जल्दी सोने की कोशिश करें। श्वासवाले को दिन में सोना वर्जित है।
11. पानी का खूब सेवन करें। 5-6 लीटर पानी रोज पियें। गर्मियों में सादा तथा जाड़ों में गरम पानी पियें। यही सावधानी स्नान में बरतें। अगर मौसम बदलने से बरसात अथवा जाड़ों में ठंडे पानी से शरीर में कैंपकपी आये तो स्नान में गरम पानी का इस्तेमाल करें। गरम पानी से शरीर में रक्तंका संचार बढ़ता है, जिससे पसीना आता है और यह साँस में सहायक होता है। स्नान अपने शरीरकी शक्तिके अनुसार करें । शरीर में थकान तथा श्वासकी गति न बढ़ने पाये। चाहे तो किसीकी सहायता ले सकते हैं।
12. अगर पेट में क़ब्ज़ रहता है तो त्रिफला, मुनक्का अथवा सूखे अंजीरके सेवन से पेटको साफ रखें। श्वासवाले रोगी को यूरोपियन लेटरीन का इस्तेमाल करने में सुविधा रहती है।
13. अंग्रेजी, आयुर्वेदिक, यूनानी अथवा होम्योपैथिक कोई भी दवाई अपने चिकित्सक की सलाह से लें। जिन्हें अधिक श्वास रहता है, उन्हें नेबुलाइजर के प्रयोग से बहुत फायदा होता है।
14. शरीरमें कोई भी हरकत करनेसे पूर्व यह सुनिश्चित कर लें कि इससे श्वास तो नहीं फूलेगा। अगर ऐसा है-जैसे मलत्याग और स्नान आदिके लिये जानेसे पूर्व पम्पका अवश्य इस्तेमाल करें ताकि श्वासकष्ट अधिक न हो।
15. शक्ति के अनुसार हलका व्यायाम और प्राणायाम किसी भी अच्छे जानकार की निगरानी में करें। कपालभाति, ब्रहदक्षिका (गर्मीमें शीतली), नाडीशोधन, प्राणायाम तथा कोणासन, योगमुद्रा और मत्स्यासन बहुत सहायक होते हैं।
16. अगर वजन अधिक है तो अपने कद के अनुसार वजन को संतुलित आहार-विहार से कम करें। नाक, कान, गले के विशेषज्ञ से परामर्श तथा छाती का एक्स-रे, खून की जाँच डॉक्टर की सलाह से अवश्य करायें। रेकी चिकित्सा भी इसमें काफी लाभप्रद सिद्ध हुई है।