Last Updated on January 15, 2025 by admin
परमहंस योगानंद जी ने एक दिन अपने गुरुदेव से एक गंभीर सवाल पूछा, “गुरुदेव, क्या वाकई ऐसा संभव है? क्या विचारों में इतनी ताकत होती है कि ये मेरी जन्मजात कमियों को ठीक कर सकते हैं? क्या हमारे सोचे हुए विचार हमें इस हद तक प्रभावित कर सकते हैं?”
जब उन्होंने इसका उत्तर सुना, तो वे चौंक गए। बचपन से ही परमहंस योगानंद जी की पाचन शक्ति कमजोर थी, और इसका असर उनके शरीर पर साफ़ दिखता था। उनका वजन हमेशा कम रहता था, और थोड़ी सी मेहनत करने के बाद भी वह जल्दी थक जाते थे। लंबी यात्रा पर जाने पर तो उनका शरीर जैसे टूट ही जाता। इस कमजोरी के चलते उन्हें अक्सर हीन भावना का सामना करना पड़ता था।
कॉलेज के दिनों में उनके कमरे में किताबों के मुकाबले ज्यादा तो ताकत बढ़ाने वाली दवाइयों और टॉनिक की बोतलें पड़ी रहतीं। योगानंद जी ने अपनी शारीरिक दुर्बलता को दूर करने के लिए हर प्रकार के इलाज़ किए, लेकिन कोई भी उपाय कारगर साबित नहीं हुआ। फिर जब वे आश्रम आए, तो उनके मन में एक सवाल गूंजता रहता “क्या मैं इतना कमजोर शरीर लेकर भी साधना कर पाऊँगा?”
आश्रम के बरामदे में बैठे हुए परमहंस योगानंद जी के मन में गहरी विचारधारा चल रही थी। तभी अचानक, गुरुदेव श्री युक्तेश्वर जी की तेज नजरें उन पर आकर टिक गईं। एक हल्की मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, “अरे मुकुंद, तुम्हारा शरीर तो बेहद दुबला-पतला लग रहा है।”
योगानंद जी ने महसूस किया कि गुरुदेव ने न केवल उनके शरीर की अवस्था को देखा, बल्कि उनके मन के भीतर छुपी हीन भावना को भी पढ़ लिया। यह सुनते ही वे भावुक हो उठे। उन्होंने उत्तर दिया, “गुरुदेव, मुझे भी मेरा यह कमजोर शरीर पसंद नहीं। बचपन से ही पाचन की समस्या के कारण मेरा शरीर हमेशा दुर्बल रहा है। मैंने हर मुमकिन इलाज और औषधि आज़माई, पर सब व्यर्थ गया।”
युक्तेश्वर जी गंभीरता से बोले, “मुकुंद, औषधियों की भी अपनी सीमाएँ होती हैं। लेकिन असली जड़ तो तुम्हारी सोच है। तुमने खुद को बीमार मान लिया है, और यही तुम्हारी कमजोरी का कारण है। यदि तुम यह दृढ़ निश्चय करो कि तुम पूर्ण स्वस्थ और ताकतवर हो, और अपने विचारों में पूरी शक्ति और विश्वास लाओ, तो देखना, यह स्थिति बदल जाएगी।”
योगानंद जी चकित होकर बोले, “गुरुदेव, क्या सच में सोचने मात्र से ऐसा संभव है?”
“बिलकुल,” युक्तेश्वर जी ने उत्तर दिया, “सोच केवल कल्पना नहीं है। यह तुम्हारे जीवन की दिशा बदल सकती है।”
युक्तेश्वर जी ने कहा, “मुकुंद, बात केवल सोचने भर की नहीं है। अब मैं तुम्हें अपने जीवन का एक अद्भुत अनुभव सुनाता हूँ।”
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए अपने अनुभव को कहना प्रारंभ किया। “एक बार मैं दो महीने तक टायफॉइड से जूझता रहा। बीमारी ने मेरा शरीर इस कदर कमजोर कर दिया कि बुखार ठीक होने के बाद भी मैं साधना करने की स्थिति में नहीं था। जैसे ही मैं थोड़ा संभला, अपने गुरु, लाहिड़ी महाशय जी के दर्शन के लिए गया। मेरे कमजोर शरीर और थकी हुई चाल को देखकर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या हुआ। मैंने पूरी सच्चाई उनके सामने रख दी और कहा, ‘गुरुदेव, मैं बहुत बीमार था। इस वजह से मेरा वजन काफी घट गया है, और अब मुझमें साधना करने की शक्ति भी नहीं बची।'”
गुरुजी मुस्कुराए और बोले, “युक्तेश्वर, तुम्हारी परेशानी तुम्हारी खुद की बनाई हुई है। पहले तुमने अपने मन से खुद को बीमार किया और अब इस बात को स्वीकार कर रहे हो कि तुम कमजोर हो। पर चिंता मत करो। मुझे पूरा यकीन है कि कल तक तुम्हारा स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक हो जाएगा।”
युक्तेश्वर जी ने इस वाक्य को पूरी श्रद्धा के साथ अपने मन में बैठा लिया। “गुरुजी की बात पर मेरे भीतर विश्वास की एक लहर दौड़ गई। पूरे दिन मैंने यह महसूस किया कि उनका आशीर्वाद मेरी हर कमजोरी को दूर कर देगा। और सचमुच, अगले दिन सुबह जब मैं उठा, तो मैंने अपने शरीर में अद्भुत ऊर्जा महसूस की। मेरे हर अंग में ताकत जैसे बह रही थी। मैं अपने कदमों को रोक नहीं पाया और दौड़ते हुए लाहिड़ी महाशय जी के पास पहुंचा। उनके सामने जाकर मैंने उल्लास से कहा, ‘गुरुदेव, कई हफ्तों में पहली बार मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं पूरी तरह स्वस्थ और ताकतवर हूँ। आपने अपनी शक्ति से मुझे स्वस्थ कर दिया।'”
इस पर लाहिड़ी महाशय ने हल्की हंसी के साथ उत्तर दिया, “बिल्कुल सही, पर तुम्हें कैसे पता कि कल तुम्हारा शरीर वैसा ही रहेगा? हो सकता है फिर से दुर्बल हो जाए।”
युक्तेश्वर जी ने एक गहरी सांस ली और कहा, “जब मैंने अपने गुरुदेव लाहिड़ी महाशय की बात सुनी कि मेरी दुर्बलता वापस आ सकती है, तो मेरे मन में भय उत्पन्न हो गया। यह विचार बार-बार मेरे अंदर गूंजता रहा कि कहीं मैं फिर से बीमार न पड़ जाऊं। इस भय ने मुझे इतना प्रभावित किया कि अगले ही दिन कुछ अजीब घटित हुआ। मैं इतना कमजोर महसूस कर रहा था कि ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। बड़ी मुश्किल से गुरुदेव के पास पहुंचा और हताश होकर बोला, ‘गुरुदेव, मैं फिर से बीमार हो गया हूँ।'”
लाहिड़ी महाशय ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “तो तुमने खुद को फिर से बीमार बना लिया।”
युक्तेश्वर जी अचंभित होकर बोले, “गुरुदेव, भला मैं खुद को बीमार कैसे बना सकता हूँ? यह तो आपके वचन हैं जो सत्य साबित हो रहे हैं।”
लाहिड़ी महाशय ने मुस्कुराते हुए कहा, “युक्तेश्वर, तुम भूल रहे हो कि यह सब तुम्हारी ही शक्ति का परिणाम है। पिछले दो दिनों के अनुभव से यह तो स्पष्ट है कि तुम्हारे विचार और विश्वास ने तुम्हें बारी-बारी से स्वस्थ और दुर्बल बनाया है।”
युक्तेश्वर जी ने कातर श्वर में प्रश्न किया, “गुरुदेव, यदि मैं सोचूं कि मैं पूरी तरह स्वस्थ हूँ और मेरा वजन सामान्य हो गया है, तो क्या सच में ऐसा हो सकता है?”
लाहिड़ी महाशय ने गंभीर स्वर में कहा, “शरीर केवल मन का विस्तार है।” उन्होंने समझाया, “शरीर मन के द्वारा निर्मित और नियंत्रित होता है। इस समय तुम जिन विचारों पर विश्वास कर रहे हो, वे न केवल तुम्हारे शरीर, बल्कि तुम्हारी बुद्धि और आचरण को भी प्रभावित कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “मानव मन परमात्मा की अनंत चेतना की एक चिंगारी है।” उन्होंने युक्तेश्वर जी को यह बताया कि यदि कोई व्यक्ति अपने विचारों में शक्ति और विश्वास भर ले, तो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि उसकी इच्छाशक्ति और जीवन शक्ति भी बढ़ सकती है।
लाहिड़ी महाशय ने आत्मविश्वास भरे स्वर में कहा, “मैं तुम्हें अभी दिखा सकता हूँ कि जिन विचारों पर तुम पूरी तीव्रता से विश्वास करते हो, वे तुम्हारी सच्चाई बन जाते हैं।”
युक्तेश्वर जी ने कहा कि उनके गुरुदेव के इन शब्दों ने उनके अंदर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार कर दिया। “मैं बीमार था, मेरा शरीर कमजोर था, लेकिन उस क्षण मैंने अपने भीतर न केवल शक्ति की वृद्धि महसूस की, बल्कि ऐसा लगा कि मेरा वजन भी बढ़ने लगा है। यह मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था।”
शाम को युक्तेश्वर जी घर लौटे। उन्होंने बीमारी और तनाव को पीछे छोड़ते हुए गहरी नींद का आनंद लिया। अगले दिन, जब उनकी माँ ने उन्हें देखा, तो वह दंग रह गईं। उन्होंने चिंतित स्वर में पूछा, “बेटा, तुम्हारे शरीर में यह सूजन क्यों है? कहीं तुम्हें जलाशय की बीमारी तो नहीं हो गई?”
युक्तेश्वर जी मुस्कुराए और अपनी माँ को आश्वस्त करते हुए बोले, “माँ, यह कोई बीमारी नहीं है। असल में, जलाशय की बीमारी में शरीर के ऊतकों के बीच अतिरिक्त द्रव्य फंस जाता है, जिससे सूजन होती है। लेकिन युक्तेश्वर जी ने स्पष्ट किया कि यह कोई बीमारी नहीं थी। उनकी माँ को विश्वास नहीं हो रहा था कि उनका बेटा, जो कुछ दिन पहले तक बेहद कमजोर था, रातों-रात इतना पुष्ट और ताकतवर कैसे हो गया।
युक्तेश्वर जी ने आगे कहा, कुछ ही दिनों में मेरा वजन 22 किलो बढ़ गया। मेरे परिचित और मिलने वाले हैरान रह गए। किसी को यह यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ भी संभव है। अपने जीवन का यह प्रसंग सुनाने के बाद युक्तेश्वर जी चुप हो गए।
गुरुदेव के जीवन की यह घटना सुनने के बाद, परमहंस योगानंद जी के मन से सारी निराशा जैसे गायब हो गई। उनका मन विश्वास से भर गया, और अपच की बीमारी और कमजोरी को लेकर जो निराशा उन्हें घेर रही थी, वह पल भर में समाप्त हो गई।
अपनी जीवनी, “एक योगी की आत्मकथा” में वे लिखते हैं, “उस दिन के बाद, मैंने अपनी सोच और विश्वास को बदल दिया। परिणामस्वरूप, केवल दो हफ्तों के अंदर मैंने अद्भुत शारीरिक शक्ति अर्जित कर ली। उसके बाद मेरी अपच की बीमारी कभी लौटकर नहीं आई।”
परमहंस योगानंद जी कहते हैं, “शक्तिशाली विचारों पर विश्वास करना ही असली चमत्कार है।” वे स्वीकार करते हैं कि इससे पहले उन्होंने न जाने कितने वैद्यों से इलाज करवाया था। लेकिन उनके मन में कभी यह दृढ़ विश्वास ही नहीं आया कि वे पूरी तरह ठीक हो सकते हैं।
वे आगे लिखते हैं, “जब तक मैंने खुद पर भरोसा नहीं किया, तब तक मैं बीमारी के बंधन से मुक्त नहीं हो पाया। पर उस दिन मुझे यह अहसास हुआ कि खुद पर विश्वास करना ही सबसे बड़ी दवा है।”
तो अब सवाल यह है, कि आखिर विचारों की शक्ति कैसे विकसित की जाए।
सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात है हर स्थिति में अच्छाई देखना। परमहंस योगानंद जी ने कहा है, “यदि कोई व्यक्ति अपने मन को बार-बार नकारात्मक विचारों में डूबने की अनुमति देता है, तो वह न केवल अपने मन को, बल्कि अपने व्यक्तित्व और चेहरे को भी विकृत बना लेता है।” इसलिए, अपने मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करें कि वह हर स्थिति में और हर व्यक्ति में केवल अच्छाई को पहचान सके।
यह प्रक्रिया कुछ वैसी ही है, जैसे हमारा शरीर भोजन से पोषक तत्वों को ग्रहण करता है और अवांछित पदार्थों को बाहर निकाल देता है। हमें भी अपने मन में केवल शुभ विचारों और सकारात्मकता को स्थान देना चाहिए और नकारात्मकता को त्याग देना चाहिए।
“माइंड इस दी रियल बिल्डर ऑफ पावर,” यानी शक्ति का असली निर्माता हमारा मन है। परमहंस योगानंद जी समझाते हैं कि जैसे एक हथौड़े की ताकत उस व्यक्ति की ताकत पर निर्भर करती है जो उसे चला रहा है, वैसे ही हर व्यक्ति के पास समान शक्ति होती है। लेकिन इस शक्ति को प्रकट करने के लिए दृढ़ संकल्प, सटीक शब्दों, और मनोबल की आवश्यकता होती है।
अब सवाल यह उठता है कि मन में यह ताकत कैसे आती है?
इसका उत्तर है विवेक। विवेक, यानी डिस्क्रिमिनेशन, हमारे मन को नेगेटिविटी से दूर रखता है और सकारात्मक विचारों को ग्रहण करने में मदद करता है। आपका मन जितना अधिक नेगेटिव विचारों से मुक्त होगा, उतना ही वह मजबूत, साहसी, और ऊर्जावान बनेगा।
इसलिए, अपने मन में सकारात्मकता को आमंत्रित करें, नकारात्मकता को अलविदा कहें, और अपने विचारों को इतनी शक्ति दें कि वे आपके जीवन में चमत्कार कर सकें। याद रखें, आप जो सोचते हैं, वही आप बनते हैं। विचारों की शक्ति को पहचानें और इसे अपनी सफलता का आधार बनाएं।
अब अगला कदम है ‘सचेत होना।’ अगर आप अपनी विचार शक्ति का सही तरीके से उपयोग करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको अपने विचारों के प्रति सचेत होना होगा।
जब कोई विचार आपके मन में प्रकट होता है, तो आपको तुरंत यह पहचानने की आवश्यकता है कि यह विचार सकारात्मक है या नकारात्मक। सकारात्मक विचारों को बढ़ावा दें और दुष्ट या कमजोर करने वाले विचारों को तुरंत त्याग दें। यह तभी संभव है जब आपकी चेतना का स्तर ऊंचा हो और आपका मन पूरी तरह से सतर्क हो।
अब यह सवाल है कि ‘चेतना के स्तर को कैसे बढ़ाया जाए?’
इसके लिए सबसे प्रभावी उपाय है ध्यान। ध्यान के अभ्यास के माध्यम से आप अपने मन को प्रशिक्षित कर सकते हैं कि वह बिना किसी जजमेंट या प्रतिक्रिया के अपने विचारों को देख सके।
जब आप ध्यान में होते हैं, तो आप ‘नॉन-जजमेंटल अवेयरनेस’ का अभ्यास करते हैं। यह अभ्यास आपके मन की चेतना को ऊंचा उठाता है और आपकी अलर्टनेस को बढ़ाता है। अलर्टनेस आपको यह शक्ति देती है कि आप अपने विचारों में से शक्तिशाली और सकारात्मक विचारों को चुन सकें।
इसलिए, अगर आप अपनी विचार शक्ति को सही दिशा में ले जाना चाहते हैं, तो ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाइए। ध्यान न केवल आपके विचारों को स्पष्ट करता है, बल्कि यह आपको मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत भी बनाता है। याद रखें, ‘सचेत रहना और ध्यान करना’ आपकी विचार शक्ति को सक्रिय और प्रभावी बनाने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है।
अब तीसरी और अत्यंत महत्वपूर्ण बात है- कॉन्सन्ट्रेशन अर्थात एकाग्रता।
हमारा मन अक्सर बाहरी विकर्षणों और अंदर उठने वाली उत्कंठाओं के कारण विचलित हो जाता है। यह विचलन हमारे मन को कमजोर करता है और हमारी शक्तिशाली विचारों को पूरी तरह से प्रकट होने से रोक देता है। इसलिए, अपनी विचार शक्ति को प्रभावी बनाने के लिए कॉन्सन्ट्रेशन की शक्ति विकसित करना अनिवार्य है।
परमहंस योगानंद जी कहते हैं, इसका सबसे सरल तरीका है कि आप एक उच्च और शक्तिशाली विचार को पकड़ें। उदाहरण के लिए- “मैं अपने मन का पूर्ण स्वामी हूँ और यह मुझे छू नहीं सकता।”
“मैं सतत आनंद और ऊर्जा से भरा हुआ हूँ।”
इन विचारों को अपने मन में बार-बार दोहराएं। इन्हें केवल शब्दों में सीमित न रखें, बल्कि इनका चित्र अपने मस्तिष्क में देखें। इन्हें महसूस करें, इनके प्रभाव को अपने शरीर और मन पर बार-बार अनुभव करें।
जो आप पाना चाहते हैं, उस पर अपना ध्यान केंद्रित रखें। उसे अपनी दृष्टि से कभी ओझल न होने दें। यह प्रक्रिया केवल विचारों को दोहराना नहीं है, यह एक गहरी प्रार्थना है, एक सशक्त मानसिक अभ्यास है, जिससे आपकी मानसिक ऊर्जा एक दिशा में बहती है।
इस तरह, जब आप नियमित रूप से अभ्यास करते हैं, तो आपके विचार इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि वे वास्तविकता में बदलने लगते हैं।
परमहंस योगानंद जी बताते हैं कि जब आपका मन पूरी तरह एकाग्र होता है, तो उसमें अनंत ऊर्जा उत्पन्न होती है। और यह ऊर्जा आपके जीवन में उन चीजों को साकार कर सकती है, जिन पर आप पूर्ण विश्वास के साथ ध्यान केंद्रित करते हैं।
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