Last Updated on January 27, 2025 by admin
मूलाधार चक्र, जिसे शरीर का पहला चक्र कहा जाता है, हमारे अस्तित्व की नींव है। यह चक्र गुदा और जननेंद्रिय के बीच स्थित होता है और इसकी संरचना चार पंखुड़ियों वाले एक कमल के रूप में होती है, जिसे “आधार चक्र” भी कहा जाता है।
इस चक्र का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह हमारी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्थिरता का प्रतिनिधित्व करता है। अधिकतर लगभग 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है, और उनका जीवन इसी चक्र के आसपास घूमता है। जब किसी व्यक्ति के जीवन में भोग, वासना और निद्रा की ही प्रधानता होती है, तो उसकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास ही केंद्रित रहती है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन अधिकतर सांसारिक इच्छाओं और भौतिक सुख-संसाधनों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है।
जब किसी व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है, तो उसके स्वभाव में स्पष्ट रूप से परिवर्तन देखने को मिलता है। ऐसा व्यक्ति अब आत्मविश्वास से भरा होता है और उसके भीतर निर्भीकता का अनुभव होता है। उसे अपने जीवन के हर पहलू में स्थिरता का आभास होता है, और उसकी मानसिक स्थिति में एक नई शक्ति का संचार होता है। इस जागरण के बाद, वह व्यक्ति वीरता और साहस से परिपूर्ण हो जाता है। इसके साथ ही, उसके भीतर एक गहरा आनंद और शांति की भावना उत्पन्न होती है।
हालांकि, यह जरूरी है कि जब भी आप अपने मूलाधार चक्र को जागृत करने का निर्णय लें, तो आपको पूर्ण संकल्प और जागरूकता के साथ इस प्रक्रिया की शुरुआत करनी चाहिए। इस कार्य को हल्के में न लें, क्योंकि यह एक गहरी और सशक्त प्रक्रिया है, जो आपके जीवन में स्थायी बदलाव ला सकती है। जब आप इसे पूरे मनोयोग से करेंगे, तो इसके प्रभाव और परिणाम अधिक सशक्त और सकारात्मक होंगे।
जैसे एक वृक्ष अपनी जड़ों पर टिका होता है, और एक इमारत अपनी नींव से मजबूती पाती है, ठीक वैसे ही हमारे अस्तित्व की मजबूती भी हमारे शरीर के भीतर स्थित एक अदृश्य शक्ति, यानी मूलाधार चक्र पर निर्भर करती है।
‘मूलाधार’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है- ‘मूल’, जो जड़ का प्रतीक है, और ‘आधार’, जिसका अर्थ नींव होता है। इस चक्र का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यही वह केंद्र है, जहां से प्राण ऊर्जा जागृत होकर धीरे-धीरे हमारे शरीर के उच्चतम चक्र, सहस्रार तक पहुँचती है, जिसे हम कुंडलिनी शक्ति के रूप में भी जानते हैं।
कुंडलिनी शक्ति सामान्यत: इस चक्र में शांत और सुप्त अवस्था में रहती है। यह चक्र रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में स्थित होता है, और हमारे जनेंद्रिय तथा गुदा द्वार के मध्य रहता है।
जब तक यह चक्र शुद्ध और सक्रिय नहीं होता, तब तक जीवन में तामसिक प्रवृत्तियाँ बनी रहती है। मन भोग-विलास में बंधा रहता है। जब मूलाधार चक्र संतुलित और सक्रिय होता है, तब यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, उत्साह, और विकास लाने में सहायक होता है। लेकिन यदि यह चक्र अशुद्ध या अवरुद्ध होता है, तो इसके परिणामस्वरूप सुस्ती, स्वार्थ, और भौतिकता के प्रभावों में वृद्धि होती है, जिससे जीवन में निराशा और दुःख का अनुभव होता है।
मूलाधार चक्र का प्रतीक एक चार पंखुड़ियों वाला कमल है, जिसका अर्थ यह है कि हमारे शरीर की चार प्रमुख नाड़ियों से मिलकर यह चक्र आकार ग्रहण करता है। इसी चक्र से चार विशिष्ट ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं – वं, शं, षं, साँ, जो हमारे मस्तिष्क और हृदय में गहरे प्रभाव और कंपन पैदा करती हैं। यह चक्र हमारे दिल और दिमाग दोनों पर अपना असर डालता है, इसलिए इसका संतुलित और सक्रिय रहना अत्यंत आवश्यक है।
इस कमल के बीच एक उल्टा त्रिकोण भी स्थित है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा के नीचे की ओर प्रवाह को दर्शाता है। इस चक्र का रंग लाल होता है, जो शक्ति का प्रतीक है—शक्ति जो ऊर्जा, गति, जागृति, और विकास को प्रेरित करती है।
जब मूलाधार चक्र सक्रिय और संतुलित होता है, तो यह जीवन में निरंतर सकारात्मक प्रगति लाता है। हमारा शरीर पाँच तत्वों—धरती, जल, आकाश, हवा, और अग्नि—से बना है, और मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व से जुड़ा हुआ है। जब यह चक्र सक्रिय होता है, तो पृथ्वी के सभी गुण हमारे अंदर जागृत होते हैं।
इस चक्र को सक्रिय करने के लिए कुछ मुद्राएं, योगासन, मंत्र, और ध्यान की विधियाँ हैं। यदि आप अपने मूलाधार चक्र को सक्रिय या संतुलित करना चाहते हैं, तो यह ध्यान रखना ज़रूरी है की केवल इन क्रियाओं पर ही नहीं, बल्कि आपको अपने कर्मों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। सर्वप्रथम स्वयं को शुद्ध और पवित्र करें। शुद्धता और पवित्रता आहार और व्यवहार से आती है। आहार अर्थात सात्विक और सुपाच्य भोजन और व्यवहार अर्थात अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सत्य परायण जीवन जीना।
अब, हम आपको एक सरल विधि बताएंगे, जिससे आप जल्दी अपने मूलाधार चक्र को सक्रिय कर सकते हैं। सबसे पहले, आरामदायक स्थिति में कुर्सी पर या जमीन पर आसन बिछाकर बैठें। अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और ज्ञान मुद्रा में अंगूठे और तर्जनी अंगुली को मिलाकर हथेलियों को घुटनों पर रखें। अपनी आँखें बंद कर गहरी और लंबी तीन साँसें लें, और फिर धीरे-धीरे छोड़ें। अपने ध्यान को जनेंद्रिय और गुदा के बीच केंद्रित करें, और अपनी सांसों पर ध्यान बनाए रखें। जैसे ही आप इस विधि को रोज़ाना अभ्यास में लाएंगे, आप जल्द ही इसके सकारात्मक प्रभाव महसूस करेंगे। यह प्रक्रिया निरंतर अभ्यास से और भी सशक्त होती जाएगी।
मूलाधार चक्र की सक्रियता का कोई निर्धारित समय नहीं होता, यह पूरी तरह से आपके ध्यान और एकाग्रता पर निर्भर करता है। इसलिए, इस चक्र को सक्रिय करने के लिए आपको नियमित रूप से इसका अभ्यास करना जरूरी है। इसके अलावा, आप मंत्र उच्चारण से भी इसे संतुलित और सक्रिय कर सकते हैं, और योगासन के माध्यम से भी इसके प्रवाह को बेहतर बना सकते हैं।
तीन प्रमुख योगासन हैं, जो मूलाधार चक्र को सक्रिय करने में मदद करते हैं। पहला है ताड़ासन या पर्वतासन। जैसा कि हम जानते हैं, मूलाधार चक्र पृथ्वी से जुड़ा होता है, और ताड़ासन से यह चक्र पृथ्वी के साथ आपके संबंध को मजबूत करता है। यह आसन आपके शरीर और मन को जोड़कर, आपको वर्तमान में जीने और हर पल को महसूस करने की प्रेरणा देता है।
दूसरा है वीरभद्रासन। इस आसन के दौरान, आपके घुटने, पैर, और कूल्हे जैसे अंग मजबूत होते हैं, जो मूलाधार चक्र के आसपास स्थित होते हैं। यह आसन पृथ्वी से आपके संबंधों को स्थिर और मजबूत बनाता है, और आपके चक्र को संतुलित करने में मदद करता है।
तीसरा आसन है सेतुबंध आसन, जो आपके पैरों को मजबूती से पृथ्वी से जोड़ता है, और मूलाधार चक्र से उत्पन्न ऊर्जा को रीढ़ की हड्डी के माध्यम से पूरी तरह से प्रवाहित करने में मदद करता है।
जब आपका मूलाधार चक्र सक्रिय होता है, तो मूलाधार चक्र में स्पंदन या कंपन महसूस हो सकता है। आप शरीर के विभिन्न हिस्सों में हल्की झुनझुनी और ऊर्जा (गर्माहट) का अनुभव कर सकते हैं, जो एक सकारात्मक संकेत है, कि ऊर्जा अब आपके शरीर में प्रवाहित हो रही है।
चूंकि यह पहला चक्र है, जैसे ही यह सक्रिय होता है, ऊर्जा अपने स्थान से बदलाव कर पूरे शरीर में फैलने लगती है। यही कारण है कि इस चक्र के खुलने पर कुछ खास लक्षण दिखाई देते हैं। आपके जीवन में भय और चिंता की कमी हो जाती है । आप जीवन में भावनात्मक संतुलन को महसूस करते हैं। आप महसूस करेंगे कि आपका मन प्रकृति की ओर आकर्षित होने लगा है। भौतिकता से ऊपर उठकर, आपको सादगी और शांति की ओर झुकाव महसूस होगा । आपकी जीवनशैली अब सरल और शांतिपूर्ण होने लगेगी । इसके अलावा, नींद में भी बदलाव आ सकता है। जब ऊर्जा इस चक्र से ऊपर की ओर प्रवाहित होने लगती है, तो शरीर और मन में कई शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। कुछ लोगों को ऊर्जा के प्रवाह के कारण बेचैनी महसूस हो सकती है, जिससे उन्हें जल्दी नींद नहीं आती। लेकिन इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। जैसे ही ऊर्जा अपने सही मार्ग पर बहने लगती है, सब कुछ सामान्य हो जाता है, और आप फिर से सहज महसूस करने लगते हैं।
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