नाभि से साँस लो जीवन जादू की तरह बदलेगा | साँसों का गूढ़ रहस्य | Deep Breathing का सही तरीका

Last Updated on January 31, 2025 by admin

कल्पना कीजिए, एक ऐसा समय जब इंसान पहाड़ों की तरह अटल, नदियों की तरह अविरल, और बरगद के पेड़ की तरह सैकड़ों साल तक जीवित रहता था। प्राचीन ग्रंथों में दर्ज है कि महर्षि अगस्त्य ने 500 वर्षों तक तपस्या की, चीन के ली चिंगयुन ने 256 साल की उम्र तक साँस ली, और जापान के रहस्यमयी ‘जिंकिची’ आज भी 200 साल के रहस्य को अपने डीएनए में छिपाए बैठे हैं। लेकिन आज? हमारी उम्र का पैमाना सिकुड़कर आधा रह गया है। आज 30 की उम्र में जोड़ों में दर्द, 40 में ब्लड प्रेशर, और 50 तक आते-आते शरीर ‘एक्सपायर्ड’ होने लगता है। क्या वाकई यही हमारी नियति है? या हमने अपने पूर्वजों के उस ‘अमरता के मंत्र’ को भुला दिया है, जो हमे पंच भूत और प्रकृति से जोड़ता था?

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी साँसें सिर्फ ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान नहीं हैं, बल्कि जीवन को बदलने की एक शक्तिशाली कुंजी भी हो सकती हैं? प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने इस सत्य को जाना और समझा था। उन्होंने पाया था कि साँसों के माध्यम से न सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है, बल्कि मन को शांत, एकाग्र और अद्भुत क्षमताओं से भरा जा सकता है। यही वह गूढ़ रहस्य है, जिसे आज विज्ञान भी मानने लगा है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या हम अपनी साँसों की ताकत को पहचानते हैं? क्या हम जानते हैं कि सही श्वास-तकनीकों के ज़रिए हम न सिर्फ बीमारियों को दूर भगा सकते हैं, बल्कि अपने दिमाग को इतना तेज़ बना सकते हैं कि वह चीज़ों को गहराई से समझ सके, याद रख सके और नई ऊँचाइयों को छू सके?

इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे प्राणायाम और प्राचीन श्वास-तकनीकें आपके जीवन को पूरी तरह बदल सकती हैं। क्या आप तैयार हैं इस सफर के लिए, जहाँ हम आपको बताएंगे कि कैसे साँसों की ताकत से आप अपने शरीर, मन और आत्मा को एक नई ऊर्जा और दिशा दे सकते हैं? कैसे सही श्वास-तकनीकों के माध्यम से आप अपने मन को शांत, एकाग्र और अद्भुत क्षमताओं से भर सकते है। यह कोई जादू नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य है, जिसे हमारे पूर्वज हजारों साल पहले ही जान चुके थे।

लेख के अंत में मैं आपको कुछ खास तकनीकों और ध्यान की विधियों के बारे में बताऊंगा, जो आपके शरीर और मन को एक नया आयाम दे सकती हैं। ये तकनीकें न सिर्फ आपकी रोजमर्रा की समस्याओं को दूर करेंगी, बल्कि आपको एक नई ऊर्जा से परिपूर्ण करेंगी। इसलिए, पूरा लेख ध्यान से देखिएगा और अंत तक मेरे साथ बने रहिएगा।

तो चलिए, इस रोचक कहानी की शुरुआत करते हैं। यह कहानी शुरू होती है हजारों साल पहले, जब भारत के महान ऋषि-मुनियों ने एक अद्भुत विज्ञान की खोज की – साँसों का विज्ञान। उन्होंने गहराई से अध्ययन किया कि कैसे हमारी साँसें हमारे जीवन, ऊर्जा और चेतना को प्रभावित करती हैं। उन्होंने पाया कि साँसों का सही तरीके से उपयोग करके न सिर्फ हम अपनी उम्र को लंबा कर सकते हैं, बल्कि अद्भुत दिव्य शक्तियाँ भी हासिल कर सकते हैं। ऋषि-मुनियों ने समझ लिया था कि ईश्वर ने हर इंसान को यह शक्ति दी है कि वह अपनी उम्र बढ़ा सके, लेकिन यह तभी संभव है, जब हम साँसों की चाल, गति और उसके विज्ञान को समझें और उसका सही ढंग से अभ्यास करें।

उन्होंने पाया कि साँसें न सिर्फ ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करती हैं, बल्कि ये हमारे शरीर की ऊर्जा, मन की स्थिति और आत्मा की शक्ति को भी नियंत्रित करती हैं। यही कारण है कि उन्होंने प्राणायाम जैसी तकनीकों को विकसित किया, जो साँसों के माध्यम से शरीर और मन को संतुलित करती हैं। इन तकनीकों के ज़रिए हम न सिर्फ बीमारियों से मुक्त हो सकते हैं, बल्कि अपने अंदर छिपी अद्भुत क्षमताओं को भी जगा सकते हैं।

दोस्तों, सबसे पहले हमें साँस लेने की प्रक्रिया को गहराई से समझना होगा। जब हम साँस अंदर लेते हैं, तो उसे “श्वास” कहते हैं, और जब साँस बाहर छोड़ते हैं, तो उसे “प्रश्वास” कहा जाता है। यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हमारी साँसों की गति और तरीका हमारे जीवन को कितना गहराई से प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, अगर आप किसी छोटे बच्चे को सोते हुए ध्यान से देखेंगे, तो पाएँगे कि उसकी साँसें नाभि से ली जाती हैं। जैसे ही बच्चा साँस अंदर लेता है, उसका पेट गुब्बारे की तरह फूलता है और फिर धीरे-धीरे सिकुड़ता है। यह साँस लेने का सबसे प्राकृतिक और स्वस्थ तरीका है, जो हमें ईश्वर की ओर से एक अनमोल उपहार के रूप में मिला है।

शायद यही वजह है कि बच्चों का दिमाग इतना रचनात्मक और समझने की क्षमता से भरपूर होता है। उनकी सोच हमसे कहीं अधिक स्पष्ट और तीव्र होती है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हमारी दिनचर्या और जीवनशैली बदलने लगती है, और इसके साथ ही हमारे साँस लेने का तरीका भी बदल जाता है। यह बदलाव हमारी साँसों की गति और तरीके पर गहरा असर डालता है, जिससे हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति प्रभावित होती है।

आज के समय में ज्यादातर लोग छाती से साँस लेते हैं, जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक नहीं है। यह तरीका हमारे शरीर को पूरी ऑक्सीजन नहीं दे पाता और हमारी ऊर्जा को कम कर देता है। इसके विपरीत, नाभि से साँस लेने की प्रक्रिया हमारे शरीर को पूरी तरह से ऑक्सीजन से भर देती है और हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार करती है। यही कारण है कि प्राचीन योग और प्राणायाम में नाभि से साँस लेने पर इतना ज़ोर दिया गया है।

दोस्तों, साँसों और उम्र के बीच के गहरे रहस्य को समझने के लिए आइए एक अद्भुत उदाहरण लेते हैं। एक कुत्ता, जो 1 मिनट में लगभग 30-35 बार साँस लेता है, औसतन केवल 11-12 साल तक ही जी पाता है। वहीं, एक कछुआ, जो 1 मिनट में सिर्फ 4-6 बार साँस लेता है, 600 साल तक जीवित रह सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है, जो साँसों की गति और उम्र के बीच के गहरे संबंध को साफ़ तौर पर दर्शाता है।

एक साधारण मनुष्य आमतौर पर 1 मिनट में 15-16 बार साँस लेता है, और किसी शारीरिक गतिविधि के दौरान यह संख्या और भी बढ़ जाती है। इसका सीधा असर हमारी उम्र पर पड़ता है। यही कारण है कि जो लोग तनाव, चिंता और भागदौड़ भरी जिंदगी जीते हैं, उनकी साँसों की गति तेज़ हो जाती है, और उनकी उम्र भी उसी अनुपात में कम होती जाती है।

इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि हमारी उम्र का निर्धारण दिनों की गिनती से नहीं, बल्कि हमारी साँसों की गति से होता है। यही वह गूढ़ ज्ञान है, जिसे हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले समझ लिया था। उन्होंने यह जान लिया था कि साँसों को नियंत्रित करके हम न सिर्फ अपने जीवन को लंबा कर सकते हैं, बल्कि उसे बेहतर और स्वस्थ भी बना सकते हैं।

उन्होंने प्राणायाम और अन्य यौगिक तकनीकों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि अगर हम अपनी साँसों को धीमा और गहरा करना सीख जाएँ, तो हमारे शरीर की ऊर्जा बढ़ती है, मन शांत होता है, और हमारी उम्र लंबी हो सकती है। यही कारण है कि योग और प्राणायाम में साँसों को नियंत्रित करने पर इतना ज़ोर दिया गया है।

भारत के प्राचीन गुरु सांसों के उन गूढ़ रहस्यों को जानते थे, जो जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं। उन्होंने ऐसी यौगिक क्रियाओं और तकनीकों को विकसित किया, जो न केवल मनुष्य की आयु बढ़ाने में सक्षम थीं, बल्कि उन्हें रोगमुक्त और स्वस्थ जीवन जीने की कला भी सिखाती थीं। उनका मानना था कि प्राण वायु, यानी ऑक्सीजन, केवल हमारे फेफड़ों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे शरीर की हर कोशिका, हर अंग और हर तंत्र को ऊर्जा से भर देती है। उन्होंने इस रहस्यमयी संबंध को समझने के लिए गहन शोध किया और पाया कि सांस लेने का तरीका हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

जब हम सांस लेते हैं, तो प्राण वायु हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हर कोशिका को जीवंत कर देती है। यह ऊर्जा का संचार करती है, जो हमें जीवन देती है। लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, अधिकतर लोग सांस लेने के सही तरीके को भूल चुके हैं। एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में लगभग 14 से 15 बार सांस लेता है, जो शरीर के लिए आदर्श नहीं है। यह गलत पैटर्न न केवल हमें समय से पहले बूढ़ा दिखाता है, बल्कि कई बीमारियों को भी न्योता देता है। सही तरीके से सांस लेना सीखकर हम न केवल अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी ऊर्जा और उत्साह से भर सकते हैं।

हिमालय की गुफाओं में रहने वाले ऋषियों और गुरुओं की कहानियाँ तो आपने जरूर सुनी होंगी। ये महान योगी साधारण इंसानों से कहीं अधिक लंबी उम्र जीते हैं, और वह भी बिना किसी आधुनिक चिकित्सा सुविधा के! यह सुनने में जितना आश्चर्यजनक लगता है, उतना ही सच भी है। उनकी लंबी आयु और अद्भुत स्वास्थ्य का रहस्य उनकी जीवनशैली और साँसों पर उनके नियंत्रण में छिपा है।

अब सवाल यह है कि क्या हम भी उनकी तरह स्वस्थ और दीर्घायु जीवन जी सकते हैं? जवाब है, हाँ! इसके लिए आपको केवल दो सरल लेकिन शक्तिशाली कदम उठाने होंगे। पहला, अपनी साँसों की संख्या को कम करें। अगर आप एक मिनट में 14-15 बार साँस लेते हैं, तो इसे धीरे-धीरे घटाकर 10-11 बार करने का अभ्यास करें। दूसरा, अपनी साँसों को गहरी और लंबी बनाएँ। गहरी साँसें आपके शरीर को अधिक ऑक्सीजन प्रदान करेंगी, जिससे आपकी ऊर्जा बढ़ेगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा।

ये छोटे-छोटे बदलाव आपके जीवन में बड़े परिणाम ला सकते हैं। गहरी और धीमी साँसें न केवल आपको शारीरिक रूप से स्वस्थ रखेंगी, बल्कि मानसिक शांति और एकाग्रता भी प्रदान करेंगी। तो क्यों न आज से ही अपनी साँसों पर ध्यान देना शुरू करें और हिमालय के ऋषियों की तरह एक स्वस्थ, लंबा और संतुलित जीवन जीने की ओर कदम बढ़ाएँ? यह कोई जादू नहीं, बल्कि प्रकृति का एक सरल और सशक्त नियम है।

वाह! यह सुनकर हैरानी होती है, है न? लेकिन यह सच है कि साँसों की शक्ति इतनी गहरी और रहस्यमयी है कि यह न केवल आपके शरीर और मन को बदल सकती है, बल्कि आपकी छठी इंद्रिय को भी जागृत कर सकती है। जी हाँ, साँसों का सही तरीके से उपयोग करके आप अपने अंदर छिपी उस अद्भुत क्षमता को जगा सकते हैं, जो आपको प्रकृति और उसकी ऊर्जा के साथ जोड़ती है।

जब आप अपनी साँसों को धीमा और नियंत्रित करना शुरू करते हैं, तो आपका शरीर और मन शांत हो जाता है। यह शांति आपकी छठी इंद्रिय को जागृत करने का पहला कदम है। धीरे-धीरे, आप अपने आसपास की ऊर्जा और वाइब्रेशन्स को महसूस करने लगते हैं। यह वही क्षमता है, जो हिमालय के ऋषियों और गुरुओं को जंगली जानवरों के साथ शांति से रहने और उनसे संवाद करने की शक्ति देती है। वे अपनी साँसों के माध्यम से इतने सूक्ष्म ऊर्जा स्तर पर पहुँच जाते हैं कि वे प्रकृति और उसके जीवों के साथ एक तालमेल बना लेते हैं।

साँसों का नियंत्रण वास्तव में एक ऐसी कला है, जो न केवल आपके शरीर और मन को बदल सकती है, बल्कि आपको ब्रह्मांड के रहस्यों तक पहुँचाने की क्षमता भी रखती है। जब आप अपनी साँसों को नियंत्रित करना सीख जाते हैं, तो आपके अंदर एक गहरी समझ विकसित होने लगती है। यह समझ न केवल आपके अपने अस्तित्व तक सीमित रहती है, बल्कि पूरे ब्रह्मांड और उसमें घटने वाली घटनाओं को समझने की क्षमता भी प्रदान करती है। यही वजह है कि कुछ सिद्ध योगी और ऋषि-मुनि ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने और भविष्य की घटनाओं को पहले से महसूस करने में सक्षम हो जाते हैं।

अब, मैं आपको साँसों से जुड़े कुछ ऐसे रहस्यों और तकनीकों के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो शायद आपके लिए नए होंगे। यदि आप किसी सच्चे योगी को ध्यान से देखें, तो आप उनके चेहरे पर एक अद्भुत शांति और तेज देखेंगे। यह शांति और तेज उनके साँसों के नियंत्रण और मन की एकाग्रता का परिणाम होता है। वे किसी भी परिस्थिति में अपने आप को शांत और स्थिर रख सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने मन को साँसों के माध्यम से वश में कर लिया है। यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली और आकर्षक होता है।

आपने उन ऋषि-मुनियों के बारे में जरूर सुना होगा, जो सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहे। यह कोई कल्पना नहीं है, बल्कि साँसों की एक विशेष तकनीक का परिणाम है। उन्होंने अपनी साँसों को नियंत्रित करके अपने शरीर को इतना स्वस्थ और सक्षम बनाया कि वे सामान्य मनुष्यों से कहीं अधिक लंबी आयु जी सके। यह तकनीक न केवल उनके शरीर को रोगमुक्त रखती थी, बल्कि उन्हें अद्भुत मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ भी प्रदान करती थी।

ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास करने से हम अपने शरीर, मन और आत्मा को संतुलित कर सकते हैं। यह प्राचीन ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हमारी साँसें हमारे मन और शरीर के बीच एक सेतु का काम करती हैं। जब हम अपनी साँसों पर नियंत्रण करते हैं, तो हम अपने विचारों और भावनाओं को भी नियंत्रित कर सकते हैं। यह नियंत्रण हमें शांति, स्थिरता और आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।

प्राणायाम के माध्यम से हम प्राण ऊर्जा को नियंत्रित और संचालित करते हैं। यह ऊर्जा हमारे शरीर में जीवन शक्ति का स्रोत है। जब हम प्राणायाम का अभ्यास करते हैं, तो हम इस ऊर्जा को संतुलित करते हैं, जिससे हमारे शरीर के सभी अंग और प्रणालियाँ सही ढंग से काम करती हैं। इससे न केवल हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी हमें लाभ मिलता है।

प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इस ज्ञान को गहराई से समझा और इसका उपयोग अपने जीवन को सरल, स्वस्थ और सार्थक बनाने के लिए किया। आज के समय में भी यह ज्ञान उतना ही प्रासंगिक है। यदि हम इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करें, तो हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। यह हमें तनाव से मुक्ति दिलाता है, हमारे मन को शांत करता है और हमें आंतरिक खुशी और संतुष्टि प्रदान करता है।

जैसा कि मैंने पहले बताया, एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में लगभग 14 से 15 बार साँस लेता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आप अपनी साँसों की गति को घटाकर 11 या उससे कम कर दें, तो आपकी दुनिया ही बदल सकती है? जी हाँ! जब आपकी साँसें धीमी होती हैं, तो आपकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। आप अपने आसपास की हर छोटी-बड़ी चीज़ को गहराई से महसूस करने लगते हैं। जानवरों की आवाज़ें, उनके संकेत और उनकी भाषा आपके लिए स्पष्ट हो जाती है। यह ऐसा है, जैसे आप प्रकृति के साथ एक नई भाषा में बात करने लगे हों।

अब इसे और आगे बढ़ाइए। अगर आप अपनी साँसों को 9 या उससे कम कर दें, तो आप पेड़-पौधों की दुनिया में झाँक सकते हैं। उनकी ऊर्जा, उनकी कार्यप्रणाली और उनके साथ होने वाला संवाद आपके लिए स्पष्ट हो जाता है। यह ऐसा है, जैसे आप प्रकृति के साथ एक गहरा रिश्ता बना लेते हैं। और यदि आप इसे और भी आगे ले जाएँ और अपनी साँसों की गति को 6 या उससे कम कर दें, तो आप निर्जीव वस्तुओं के काम करने के तरीके को भी समझने लगेंगे। यह वह स्तर है, जहाँ आप ब्रह्मांड के रहस्यों को छूने लगते हैं।

यह कोई काल्पनिक बात नहीं है। यह वही ज्ञान है, जिसे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने साधा था। उन्होंने साँसों के इस विज्ञान के माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों को जाना और भविष्य की घटनाओं को पहले ही भाँप लेते थे। यह एक ऐसी कला है, जो आपको साधारण से असाधारण बना सकती है। योगिक परंपरा तो यहाँ तक कहती है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी साँसों को घंटों तक रोक सके, तो वह मानवता के एक नए आयाम में प्रवेश कर सकता है। यह सिर्फ साँसों का खेल नहीं है, यह एक ऐसा द्वार है, जो आपको अपने भीतर और बाहर की दुनिया के बीच एक गहरा संबंध स्थापित करने की क्षमता देता है।

स्वामी रामा, जो हिमालय की गुफाओं में तपस्वी जीवन जीते थे, योग और प्राणायाम की इस प्राचीन परंपरा के जीते-जागते प्रतीक थे। उन्होंने बचपन से ही साँसों पर नियंत्रण करने का अभ्यास शुरू कर दिया था, और यही उनकी असाधारण क्षमताओं का आधार बना। 1970 में अमेरिका में हुए एक शोध के दौरान, स्वामी रामा ने अपनी साँसों और शरीर में प्रवाहित होने वाली प्राण ऊर्जा को पूरी तरह से रोक दिया। यह देखकर वहाँ मौजूद डॉक्टर हैरान रह गए। उन्होंने स्वामी रामा के शरीर का गहन अध्ययन किया और उन्हें मृत घोषित कर दिया। लेकिन यहाँ चमत्कार शुरू हुआ—स्वामी रामा इस स्थिति में भी पूरी तरह से जागरूक थे और सब कुछ महसूस कर रहे थे। वे पूर्णतः स्वस्थ थे और अपने शरीर और मन पर पूरा नियंत्रण रखते हुए इस अवस्था से वापस लौट आए।

यह घटना डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा सवाल बन गई। उन्होंने देखा कि स्वामी रामा ने साँसों और प्राण ऊर्जा पर इतना गहरा नियंत्रण हासिल कर लिया था कि वे अपने शरीर और मन को किसी भी परिस्थिति में स्थिर रख सकते थे। यह साबित करता है कि साँसों का विज्ञान न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है, बल्कि हमें ऐसे अनुभवों से भी जोड़ सकता है, जो सामान्यतः असंभव लगते हैं।

स्वामी रामा ने एक अनोखा रहस्य बताया। उन्होंने कहा कि अगर हम अपनी साँसों को समझ लें और उन्हें नियंत्रित करना सीख जाएँ, तो शरीर की कोई भी बीमारी ऐसी नहीं रहेगी, जिसका इलाज न हो सके। यहाँ तक कि वे बीमारियाँ भी, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान नहीं सुलझा पाया है, उन्हें भी हराया जा सकता है। स्वामी रामा ने बताया कि हमारी साँसें और मन एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। जब साँसें अस्थिर होती हैं, तो मन भी अशांत हो जाता है। लेकिन जैसे ही साँसें शांत होती हैं, मन भी स्थिर हो जाता है और इंसान दीर्घायु हो जाता है। यानी, साँसों का नियंत्रण ही जीवन को लंबा और स्वस्थ बनाने का राज है!

अब थोड़ा मजेदार हिस्सा समझिए। सामान्य तौर पर, जब हम साँस लेते हैं, तो वह हमारे शरीर के भीतर लगभग 5 से 6 इंच तक ही जाती है। और जब साँस छोड़ते हैं, तो यह बाहर 10 से 12 इंच तक निकलती है। लेकिन यह प्रक्रिया हमारे रोजमर्रा के कामों के हिसाब से बदलती रहती है। जैसे, जब हम खाना खा रहे होते हैं, तो साँस छोड़ने की लंबाई बढ़कर 16-17 इंच तक हो जाती है। चलते समय यह और बढ़कर 22-24 इंच तक पहुँच जाती है, और दौड़ते समय तो यह 45-50 इंच तक फैल जाती है! लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि जब हम गहरी नींद में होते हैं, तो साँसों की लंबाई 60-70 इंच तक पहुँच सकती है। यानी, नींद में हमारी साँसें एक छोटी सी यात्रा पर निकल पड़ती हैं!

दोस्तों, स्वास्थ्य को अक्सर इंसान की प्राण शक्ति कहा जाता है, और यह बात जापान के एक 200 वर्षीय व्यक्ति ने भी साबित कर दी थी। उन्होंने अपनी लंबी उम्र का रहस्य बताते हुए दो सरल मगर गहरी बातें साझा कीं:

साँसों की गहराई नाभि तक होनी चाहिए, यानी आपको अपनी साँसों को पेट के निचले हिस्से तक महसूस करना चाहिए।

पीठ हमेशा सीधी रखनी चाहिए।

ये दोनों बातें साधारण लग सकती हैं, लेकिन योग और प्राणायाम के दृष्टिकोण से ये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को भी बढ़ाती हैं।

प्राचीन शास्त्रों में साँसों के महत्व को और भी गहराई से समझाया गया है। उनके अनुसार, साँसों की लंबाई और उसके नियंत्रण से व्यक्ति की शक्तियाँ और क्षमताएँ बदल सकती हैं। जैसे- अगर बाहर निकलने वाली साँस की लंबाई आधा इंच कम हो जाए, तो व्यक्ति की वासनाएँ कम होने लगती हैं।

यदि यह लंबाई एक इंच कम हो जाए, तो आनंद की अनुभूति बढ़ती है और रचनात्मकता में निखार आता है।

दो इंच कम होने पर वाकसिद्धि प्राप्त होती है।

ढाई इंच कम होने पर व्यक्ति दूर की चीज़ों को स्पष्ट रूप से देख सकता है।

यदि यह छह से सात इंच कम हो जाए, तो साधक को तीव्र गति से चलने की शक्ति मिलती है, जिससे वह कुछ ही पलों में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच सकता है।

और जब साँसों की लंबाई आठ इंच कम हो जाती है, तो साधक को अष्टसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

इसका रहस्य यह है कि जब शरीर के भीतर जाने वाली साँस की लंबाई की अपेक्षा बाहर निकलने वाली साँस की लंबाई कम होती है, तो व्यक्ति की आयु लंबी हो सकती है। यही वजह है कि प्राचीन योग परंपरा में साँसों को नियंत्रित करने की कला को इतना महत्व दिया गया है। यह न केवल दीर्घायु का साधन है, बल्कि साधक को अद्वितीय शक्तियाँ भी प्रदान कर सकता है।

रामभक्त हनुमान जी, जिन्हें अष्टसिद्धि और नवनिधि का स्वामी माना जाता है, ने अपनी तपस्या और साधना के बल पर आठों सिद्धियों को हासिल कर लिया था। ये सिद्धियाँ हर इंसान के भीतर छुपी हुई हैं, बस जरूरत है तो उन्हें जगाने की। क्या आप जानते हैं कि अगर आप अपनी सांसों की लंबाई को 10 से 11 इंच तक कम कर लें, तो न सिर्फ आपकी उम्र बढ़ सकती है, बल्कि आप इच्छा मृत्यु का वरदान भी पा सकते हैं? यही वजह है कि सांसों पर नियंत्रण पाने का अभ्यास इतना महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ योग नहीं, बल्कि जीवन को बदलने की कुंजी है।

भगवान शिव ने माता पार्वती को एक गहरा रहस्य बताया था। उन्होंने कहा कि जो योगी रात में इड़ा नाड़ी और दिन में पिंगला नाड़ी को नियंत्रित करने में सफल हो जाता है, वही सच्चे योग का महारथी बनता है। अगर आप अपने शरीर को स्वस्थ, मन को शांत और दिमाग को तेजस्वी बनाना चाहते हैं, तो एक खास विधि का अभ्यास करें। यह विधि ध्यान और मेडिटेशन से भी कहीं ज्यादा प्रभावशाली है। इसके नियमित अभ्यास से आपके चेहरे पर एक अलौकिक तेज आ जाएगा। आपका दिमाग एक सुपरफास्ट ट्रेन की तरह तेजी से काम करेगा, और आपका हर अंग नई ऊर्जा से भर जाएगा। लेकिन यह सब पाने के लिए थोड़ा धैर्य रखना होगा। जिस शरीर को सालों से नजरअंदाज किया गया हो, उसे ठीक होने में थोड़ा समय तो लगेगा ही। पर जब परिणाम आएंगे, तो आपको लगेगा कि यह इंतजार पूरी तरह से सार्थक था।

अब इस अद्भुत और रहस्यमयी विधि को समझिए, जो आपके जीवन को एक नया आयाम दे सकती है। हर सुबह, जब प्रकृति की शांति चारों ओर छाई हो, एक शांत और सकारात्मक वातावरण में बैठें। अपनी आँखें बंद करें और अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित करें। साँस लेते समय इसे केवल सीने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपनी नाभि तक महसूस करें। जितनी गहरी और धीमी साँस आप ले सकते हैं, लें। यह गहरी साँस आपके शरीर के हर कोने तक ऑक्सीजन पहुँचाएगी और आपके अंगों में नई जान फूंक देगी।

जब साँस छोड़ें, तो इसे धीरे-धीरे और नियंत्रित तरीके से करें। कोशिश करें कि साँस छोड़ते समय केवल आधी साँस ही बाहर निकले। यह तकनीक आपके शरीर में ऊर्जा को संतुलित करेगी और आपको अद्भुत शांति का अनुभव कराएगी। शुरुआत में इस अभ्यास को 11 साँसों तक करें और फिर धीरे-धीरे इसे बढ़ाएँ। अगर आप इसे ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-5 बजे) में करते हैं, तो इसका प्रभाव और भी गहरा हो जाएगा। इस समय प्रकृति की ऊर्जा अपने चरम पर होती है, और आप न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे, बल्कि आपकी आत्मिक शक्तियाँ भी जागृत होने लगेंगी।

यह सरल लेकिन अत्यंत प्रभावशाली अभ्यास आपके जीवन को एक नई दिशा देगा। यह न सिर्फ आपके शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाएगा, बल्कि आपके मन को शांत और दिमाग को तेजस्वी भी करेगा। यह मात्र एक व्यायाम नहीं, बल्कि आपके भीतर छिपी असीम क्षमताओं को जगाने का एक जादुई तरीका है। तो क्यों न आज से ही इसका अभ्यास शुरू करें और अपने जीवन में एक नई चमक लाएं? यह छोटा सा कदम आपको एक बड़े बदलाव की ओर ले जा सकता है।

DISCLAIMER:  हमारा उद्देश्य सनातन धर्म को बढ़ावा देना और समाज में धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। हमारे द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्य वेद, पुराण, महाभारत, श्रीमद्भागवत गीता, और अन्य धार्मिक ग्रंथों से लिए गए हैं। इसके अतिरिक्त, जानकारी का स्रोत इंटरनेट, सोशल मीडिया, और अन्य माध्यम भी हैं। हमारा एकमात्र उद्देश्य हिंदू धर्म का प्रचार करना है।यहां प्रस्तुत जानकारी सामान्य मान्यताओं और स्रोतों पर आधारित है,  और ” mybapuji.com” इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।

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