Last Updated on February 3, 2025 by admin
परमहंस योगानंद जी के शब्दों में, “ईश्वर से बात करना कोई परीकथा नहीं, बल्कि एक जीता-जागता अनुभव है।” भारत की पावन धरा पर संतों को देखा गया है जो प्रभु से सीधे संवाद करते हैं—जैसे कोई अपने पिता या माँ से बात करे। और हैरानी की बात यह है कि यह सामर्थ्य सिर्फ़ संतों तक सीमित नहीं। आप और हम भी ईश्वर से न सिर्फ़ बातें कर सकते हैं, बल्कि उनकी मधुर प्रतिक्रिया भी सुन सकते हैं!
ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता “दिमाग़” नहीं, “दिल” से होकर जाता है। अक्सर हम प्रार्थना में शब्दों का ढेर लगा देते हैं, पर भावनाएं ठंडी रह जाती हैं। योगानंद जी कहते हैं—”ईश्वर से वैसे ही बात करो जैसे एक बच्चा माँ के आगे बेबाक़ होकर रोता है।” उन्हें “पिता” या “माता” का स्नेहिल रूप समझो। जिस तरह माँ बच्चे की गलती भूलकर गले लगा लेती है, वैसे ही जगत जननी भक्त की पुकार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकतीं।
“क्या वाक़ई ईश्वर सुनेंगे?”—यह सवाल मन में आते ही प्रार्थना की शक्ति घट जाती है। भक्त प्रहलाद की तरह निश्छल भाव से माँगो, फिर देखो चमत्कार!
प्रार्थना में ऊर्जा होनी चाहिए। जैसे बादल गरजकर बरसते हैं, वैसे ही दिल की गहराइयों से निकली पुकार ईश्वर तक पहुँचती है।
ईश्वर को जटिल शब्दों की नहीं, सच्ची लगन की भूख होती है। एक बच्चे की तरह सीधे-सरल शब्दों में कहो—”हे प्रभु, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए!”
योगानंद जी कहते हैं—”ईश्वर चुप इसलिए रहते हैं क्योंकि हमारा ध्यान ‘उनकी माया जनित सृष्टि’ पर होता है, ‘उन पर’ नहीं।” जैसे कोई बच्चा माँ से खिलौने माँगता रहे, पर माँ की गोद में बैठने की चाह न हो। जब तक हम “स्वयं ईश्वर” को पाने की ललक नहीं जगाते, तब तक उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देगी।
ईश्वर से बात करना “कला” है, जिसे साधने के लिए धैर्य और अटूट विश्वास चाहिए। जिस दिन आपने उनकी मधुर आवाज़ सुनी, समझ लेना—जीवन का सबसे बड़ा उपहार मिल गया!
हमारा रिश्ता ईश्वर के साथ बिना किसी शर्त के, प्रेम का होना चाहिए। किसी भी अन्य रिश्ते से ज़्यादा, हमें यह अधिकार और स्वाभाविक रूप से यह उम्मीद रखनी चाहिए कि ईश्वर, जो दिव्य माँ के रूप में हैं, हमारी पुकार का जवाब देंगे। ईश्वर इस तरह की गुहार को नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते, क्योंकि एक माँ का अस्तित्व ही है अपने बच्चे से बिना शर्त प्रेम करना है। और उसकी गलती को माफ़ कर देना, चाहे वह कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो।
हमारे हृदय में ईश्वर की एक स्पष्ट छवि माँ के तुल्य होनी ज़रूरी है, नहीं तो हमें स्पष्ट जवाब नहीं मिलता। और प्रभु से जवाब की माँग दृढ़ होनी चाहिए, आधे-अधूरे विश्वास वाली प्रार्थना काफी नहीं है। अगर आपने ठान लिया कि “वह मुझसे बात करेंगे,” और चाहे कितने भी साल बीत जाएं, अगर आप उन पर अटूट विश्वास रखते हैं, तो एक दिन वह ज़रूर जवाब देंगे।
‘एक योगी की आत्मकथा’ ग्रंथ में मैंने उन कई मौकों के बारे में बताया है जब मैंने ईश्वर से सीधे बात की है। मेरा पहला अनुभव- जब मैंने दिव्य आवाज़ सुनी, बचपन में हुआ था। एक सुबह, मैं अपने बिस्तर पर बैठा हुआ था और गहरे विचारों में खो गया। मेरे मन में एक सवाल उठा, “बंद आँखों के अंधेरे के पीछे क्या है?” और तभी, मेरी आंतरिक दृष्टि में एक विशाल प्रकाश की चमक दिखाई दी। मेरे माथे के भीतर, एक चमकदार पर्दे पर, संतों की दिव्य आकृतियाँ दिखीं, जो पहाड़ी गुफाओं में ध्यानमग्न बैठे थे, जैसे कोई छोटी-सी फिल्म चल रही हो।
यह अनुभव इतना जीवंत और रहस्यमय था कि मैं उस पल को आज भी महसूस कर सकता हूँ।
“तुम कौन हो?” मैंने जोर से पूछा।
“हम हिमालय के योगी हैं,” एक दिव्य आवाज़ ने उत्तर दिया।
उस आवाज़ को शब्दों में बयान करना मुश्किल है, लेकिन मेरा दिल खुशी से झूम उठा। वह दृश्य गायब हो गया, लेकिन चांदी जैसी किरणें फैलती चली गईं, अनंत तक। मैंने पूछा, “यह अद्भुत प्रकाश क्या है?”
“मैं ईश्वर हूँ। मैं प्रकाश हूँ,” आवाज स्पष्ट थी, मधुर थी और ऐसी थी जैसे बादलों की गूंज।
उस समय मेरी माँ और बड़ी बहन रोमा वहीं मौजूद थीं, और उन्होंने भी यह दिव्य आवाज़ सुनी। ईश्वर के इस जवाब से मुझे इतनी खुशी मिली कि मैंने ठान लिया कि मैं उन्हें ढूँढ़ूंगा, चाहे जितना भी समय लगे, जब तक कि मैं पूरी तरह से उनके साथ एक न हो जाऊँ।
ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि बंद आँखों के पीछे सिर्फ अंधेरा है। लेकिन जैसे-जैसे आप आध्यात्मिक रूप से विकसित होते हैं और माथे में स्थित “तीसरी आँख” पर ध्यान केंद्रित करते हैं, आप पाएंगे कि आपकी आंतरिक दृष्टि खुल गई है। आप एक और दुनिया देखेंगे, जो अनेक प्रकाशों से भरी हुई, अद्भुत सुंदरता वाली है। जैसे मैंने हिमालय के योगियों को देखा था, वैसे ही संतों के दर्शन आपके सामने प्रकट होंगे। अगर आपका ध्यान और गहरा होगा, तो आप भी ईश्वर की आवाज़ सुनेंगे।
अगर आप एक बार भी प्रभु के साथ रोटी तोड़ लें, उनकी चुप्पी को तोड़ दें, तो वह आपसे बार-बार बात करेंगे। लेकिन शुरुआत में यह बहुत मुश्किल है। ईश्वर से परिचित होना आसान नहीं है, क्योंकि वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि क्या वाकई आप उन्हें जानना चाहते हैं। वह आपकी परीक्षा लेते हैं, यह जानने के लिए कि आप उन्हें चाहते हैं या कुछ और। वह तब तक आपसे बात नहीं करेंगे, जब तक आप उन्हें यह विश्वास नहीं दिला देते कि आपके दिल में कोई और इच्छा छिपी नहीं है। अगर आपका दिल सिर्फ सांसारिक चाहा की कामनाओं से भरा है, तो वह खुद को आपके सामने क्यों प्रकट करें?
ईश्वर की खोज एक सच्चे और निस्वार्थ भाव की माँग करती है। जब आपका दिल पूरी तरह से साफ होगा, तब वह आपसे बात करेंगे, और उनकी आवाज़ आपके लिए एक मधुर संगीत की तरह होगी।
मनुष्य का प्रेम ही ईश्वर को दिया जाने वाला सबसे बड़ा उपहार है। यह सारी सृष्टि मनुष्य की परीक्षा के लिए बनाई गई है। इस दुनिया में हमारे आचरण से यह स्पष्ट होता है कि हम ईश्वर को चाहते हैं या सिर्फ उनके उपहारों को। ईश्वर यह नहीं कहेंगे कि आपको उन्हें सबसे ज़्यादा प्रेम करना चाहिए, क्योंकि वह चाहते हैं कि आपका प्रेम बिना किसी दबाव के, स्वेच्छा से दिया जाए। यही इस ब्रह्मांड के खेल का सबसे बड़ा रहस्य है।
जिस ईश्वर ने हमें बनाया है, वह हमारे प्रेम की तड़प रखता है। वह चाहते हैं कि हम उन्हें बिना माँगे, अपने मन से प्रेम दें। हमारा प्रेम ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जो ईश्वर के पास नहीं है, जब तक कि हम उसे उन्हें देने का निर्णय न लें।
तब तक हम भटके हुए बच्चे हैं, जब तक हम ईश्वर के बनाये मायाजन्य उपहारों के लिए रोते रहते हैं। लेकिन उस परमात्मा को, नज़रअंदाज़ करते हैं। यह भूल हमारे जीवन में जब तक बनी रहेगी, तब तक हम दुख रूपी गड्ढों में गिरते रहेंगे। ईश्वर हमारे अस्तित्व का सार हैं, और जब तक हम उनकी उपस्थिति को अपने भीतर महसूस नहीं करते, तब तक हम अपने वास्तविक स्वरूप की महान गरिमा नहीं जान सकते। यही सच्चाई है।
हम दिव्य हैं, ईश्वर का एक अंश हैं, और इसीलिए हमें किसी भी भौतिक चीज़ में स्थायी संतुष्टि नहीं मिलती। जब तक आप ईश्वर में संतुष्टि नहीं पाते, तब तक आप किसी और चीज़ से संतुष्टि नहीं हो सकते।
परमहंस योगानंद जी कहते हैं – मैं अपना ज्ञान किताबों से नहीं, बल्कि ईश्वर से प्राप्त करता हूँ। मैं शायद ही कभी पढ़ता हूँ। मैं आपको वही बताता हूँ जो मैंने सीधे अनुभव किया है। इसीलिए मैं अधिकार के साथ बोलता हूँ—सत्य के प्रत्यक्ष अनुभव का अधिकार, ईश्वर से जुड़ने का रास्ता भक्ति और विश्वास से होकर जाता है। जब आप उन्हें पूरे दिल से चाहेंगे, तो वह आपके सामने प्रकट होंगे। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि अनगिनत संतों और ऋषियों का अनुभव है। पूरी दुनिया की राय इसके खिलाफ हो सकती है, लेकिन प्रत्यक्ष अनुभव को अंततः स्वीकार करना ही होगा।
ईश्वर कंपन के माध्यम से बात करते हैं। वह हमारे सामने भौतिक रूप में भी प्रकट हो सकते हैं। वह जितना आप सोच सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा व्यक्त हैं। वह उतने ही वास्तविक और सच्चे हैं, जितने कि आप। यही बात मैं आज आपसे कहना चाहता हूँ।
प्रभु हमेशा हमारी पुकार का जवाब दे रहे हैं। उनके विचारों का कंपन लगातार बाहर भेजा जा रहा है। यहाँ एक बहुत महत्वपूर्ण बात है- ईश्वर चेतना हैं। ईश्वर ऊर्जा हैं। बात करने का मतलब है, कंपन करना। और अपनी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के कंपन के माध्यम से वह हर समय बात कर रहे हैं।
वह सृष्टि कर्ता स्वयं को ठोस, तरल, अग्नि, वायु और आकाश के रूप में प्रकट करता हैं। वह अदृश्य परमात्मा लगातार दृश्यमान रूपों में खुद को व्यक्त कर रहा हैं—फूलों में, पहाड़ों में, समुद्रों में और तारों में।
पदार्थ क्या है? यह ईश्वर की ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक विशेष कंपन मात्र है। ब्रह्मांड में कोई भी रूप वास्तव में ठोस नहीं है। जो ठोस दिखता है, वह सिर्फ उनकी ऊर्जा का एक सघन या बड़ी कंपन है।
प्रभु कंपन के माध्यम से हमसे बात कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि उनसे सीधे कैसे जुड़ा जाए? यह सबसे मुश्किल काम है—ईश्वर से बात करना। अगर आप किसी पहाड़ से बात करेंगे, तो वह जवाब नहीं देगा। फूलों से बात करें, तो शायद आपको उनमें थोड़ी सी प्रतिक्रिया महसूस हो। और हाँ, हम दूसरे लोगों से बात कर सकते हैं। लेकिन क्या ईश्वर फूलों और इंसानों से कम संवेदनशील हैं, कि वह हमारी बात सुनते हैं लेकिन जवाब नहीं देते? ऐसा लगता है, है न?
दिक्कत उनमें नहीं, बल्कि हममें है। हमारी अंतर्ज्ञानी टेलीफोनिक प्रणाली खराब हो गई है। ईश्वर हमें बुला रहे हैं और हमसे बात कर रहे हैं, लेकिन हम उनकी आवाज़ नहीं सुन पा रहे। ब्रह्मांडीय कंपन सभी भाषाएं बोलता है, लेकिन संत ही उसे सुनते हैं।
तो क्यों न हम अपने भीतर की इस प्रणाली को ठीक करें? क्यों न हम अपनी चेतना को इतना शुद्ध और संवेदनशील बनाएं कि ईश्वर की आवाज़ हम तक पहुँच सके? यही तो हमारे जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।
एक बार मैंने एक महान गुरु को प्रार्थना करते देखा। जब वह प्रार्थना करते, तो ईश्वर की आवाज़ आकाश से आती हुई प्रतीत होती। ईश्वर को बोलने के लिए गले की ज़रूरत नहीं है। अगर आप पूरी शक्ति से प्रार्थना करें, तो उस प्रार्थना के कंपन, तुरंत एक कंपनात्मक जवाब लाते हैं। यह जवाब उसी भाषा में प्रकट होता है, जिसे आप सुनने के आदी हैं। अगर आप अंगेजी में प्रार्थना करते हैं, तो जवाब अंगेजी में सुनेंगे। अगर आप बांग्ला में बोलते हैं, तो जवाब बांग्ला में मिलेगा।
अलग-अलग भाषाओं के कंपन ब्रह्मांडीय कंपन से उत्पन्न होते हैं। ईश्वर, जो स्वयं ब्रह्मांडीय कंपन हैं, सभी भाषाएं जानते हैं। भाषा क्या है? यह एक विशेष कंपन है। कंपन क्या है? यह एक विशेष ऊर्जा है। और ऊर्जा क्या है? यह एक विशेष विचार है।
हालाँकि ईश्वर हमारी सभी प्रार्थनाएं सुनते हैं, लेकिन वह हमेशा जवाब नहीं देते। हमारी स्थिति उस बच्चे जैसी है, जो अपनी माँ को बुलाता है, लेकिन माँ को लगता है कि आने की ज़रूरत नहीं है। वह उसे खेलने के लिए कोई खिलौना दे देती है, ताकि वह चुप हो जाए। लेकिन जब बच्चा माँ के सिवा किसी और चीज से राजी नहीं होता, तो माँ आ जाती है।
अगर आप ईश्वर को पाना चाहते हैं, तो आपको उस ज़िद्दी बच्चे की तरह बनना होगा, जो माँ के आने तक रोता रहता है। अगर आपने ठान लिया कि आप उनके लिए रोना बंद नहीं करेंगे, तो करुणामई सृष्टि कर्ता माँ आपसे बात करेंगी। चाहे वह सृष्टि के घरेलू कामों में कितनी भी व्यस्त क्यों न हों, अगर आप अपनी पुकार जारी रखेंगे, तो वह बोलने के लिए बाध्य हैं।
हिंदू धर्म शास्त्र हमें बताते हैं, कि अगर एक रात और एक दिन तक, एक पल के लिए भी रुके बिना, एक भक्त दिल की पूरी गहराई से ईश्वर के लिए तड़पता है, तो ईश्वर उसे जवाब अवश्य देते हैं। लेकिन ऐसा करने वाले कितने हैं? हर दिन आपके पास महत्वपूर्ण काम होते हैं, वह शैतान जो आपको ईश्वर से दूर रखता है। प्रभु तब नहीं आएंगे जब आप थोड़ी सी प्रार्थना करें और फिर किसी और चीज़ के बारे में सोचने लगें।
तो क्यों न हम अपनी प्रार्थनाओं को गंभीरता से लें? क्यों न हम उस ज़िद्दी बच्चे की तरह बनें, जो तब तक रोता है, जब तक उसकी माँ न आ जाए? ईश्वर हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, बस हमें उनकी आवाज़ सुनने के लिए तैयार होना है।
जब भक्त ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, तो ईश्वर यह जानते हैं कि उनका दिल और दिमाग सच्ची भक्ति से भरा है या नहीं। वह यह भी जानते हैं कि क्या उनके विचार इधर-उधर भटक रहे हैं। ईश्वर आधे-अधूरे मन से की गई प्रार्थना का जवाब नहीं देते। लेकिन जो भक्त दिन-रात पूरे मन और भाव से प्रार्थना करते हैं और उनसे बात करते हैं, उनके सामने ईश्वर ज़रूर प्रकट होते हैं। ऐसे भक्तों के लिए वह हमेशा आते हैं।
उनसे कहें, “हे प्रभु, अपने आप को प्रकट करो, अपने आप को प्रकट करो।” चुप्पी को जवाब मत समझो। वह पहले आपको वह कुछ देकर जवाब देंगे जो आप चाहते थे, यह दिखाते हुए कि आप उनकी नज़र में हैं। लेकिन उनके उपहारों से संतुष्ट न हों। उन्हें बताएं कि जब तक आप उन्हें नहीं पा लेते, तब तक आप संतुष्ट नहीं होंगे। अंत में वह आपको जवाब देंगे।
कभी-कभी आपके सम्मुख किसी संत का चेहरा प्रकट हो सकता है, या आप एक दिव्य आवाज़ सुन सकते हैं जो आपसे बात कर रही है। तब आप जान जाएंगे कि आप ईश्वर के साथ संवाद में हैं। उन्हें खुद को देने के लिए मनाने के लिए लगातार और स्थिर लगन की ज़रूरत होती है। यह लगन कोई आपको नहीं सिखा सकता। आपको इसे खुद विकसित करना होगा।
आप घोड़े को पानी तक ले जा सकते हैं, लेकिन आप उसे पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। लेकिन जब घोड़े को प्यास लगती है, तो वह खुद ही पानी की तलाश में निकल पड़ता है।
ठीक उसी तरह, जब आपके मन में प्रभु की अथाह प्यास जाग्रत होगी, जब आप किसी और चीज़ को अत्यधिक महत्व नहीं देंगे— ना दुनियावी चीजों की, न शरीर की—तब वह आएंगे। याद रखें, जब आपका हृदय पूरे आर्त भाव से पुकारेगा, जब आप किसी बहाने को स्वीकार नहीं करेंगे, तब वह आएंगे।
आपको अपने मन से सभी संदेहों को दूर करना होगा। ज़्यादातर लोगों को कोई जवाब नहीं मिलता क्योंकि उनमें अविश्वास होता है- की उनसे परमात्मा कैसे बात कर सकते हैं! अगर आप पूरी तरह से दृढ़ हैं कि- कुछ भी हो जाए परमात्मा से जरूर बात करेंगे, तो कोई भी चीज़ आपको रोक नहीं सकती। जब आप हार मान लेते हैं, तो आप खुद के खिलाफ फैसला लिख देते हैं। सफल व्यक्ति के लिए “असंभव” शब्द का कोई अस्तित्व नहीं होता।
ध्यान में जो ब्रह्मांडीय ध्वनि सुनाई देती है, वह कोई साधारण आवाज़ नहीं है—वह ईश्वर की आवाज़ है! यह ध्वनि आपकी समझ में आने वाली भाषा में बदल जाती है। जब मैं “ओम” सुनता हूँ और कभी-कभी ईश्वर से कुछ कहने के लिए कहता हूँ, तो वह “ओम” की ध्वनि अंग्रेजी या बांग्ला भाषा में बदल जाती है और मुझे सटीक निर्देश देती है। ईश्वर हमसे हमारे अंतर्ज्ञान के माध्यम से भी बात करते हैं, बस हमें उनकी आवाज़ सुनने के लिए तैयार रहना होगा।
अगर आप सीख लें कि ब्रह्मांडीय कंपन को कैसे सुना जाए, तो ईश्वर की आवाज़ सुनना आसान हो जाता है। वह हमेशा आपसे बात कर रहे हैं, कह रहे हैं: “मुझे बुलाओ, मुझसे अपने हृदय की गहराई से, अपने अस्तित्व के मूल से, अपनी आत्मा की गहराई से बात करो। लगातार, गंभीरता से, दृढ़ संकल्प के साथ, यह निश्चय करके कि तुम मुझे ढूंढ़ते रहोगे, चाहे मैं कितनी ही बार जवाब क्यों न दूं।”
अगर आप अपने दिल में लगातार यह प्रार्थना करते रहें- “हे मेरे मौन प्रिय प्रभु, मुझसे बात करो,” अगर एक बार भी उनकी ओर से तुम्हें यह जवाब मिल जाए की- ‘हे मेरे भक्त, मैं तुम्हारे पास आऊंगा’ । तो तुम फिर कभी उनसे अलग महसूस नहीं करोगे। दिव्य अनुभव हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा। लेकिन यह पहली बार पाना मुश्किल है, क्योंकि हमारा हृदय और मन पूरी तरह से आश्वस्त नहीं होते। हमारे पुराने भौतिकवादी विश्वासों के कारण संदेह घुस आता है, और हम उनकी आवाज़ सुनने से चूक जाते हैं।
ईश्वर सच्चे भक्तों के हृदय की पुकार का जवाब देते हैं। वह हर इंसान को जवाब देते हैं, चाहे उसकी जाति, पंथ या रंग कुछ भी हो। बांग्ला में एक खूबसूरत कहावत है: “अगर तुम ईश्वर को करुणामई माँ के रूप में पुकारो, तो वह चुप नहीं रह सकती। उन्हें बोलना ही पड़ता है।” कितना सुंदर है, है न?
आज जो कुछ भी मैंने आपको बताया, उसके बारे में गहराई से सोचें। अब आपको कभी संदेह नहीं करना चाहिए। अब आपको कभी संदेह नहीं करना चाहिए। यदि आप अपनी इच्छा में स्थिर और दृढ़ रहेंगे, तो ईश्वर निश्चित रूप से आपको जवाब देंगे।
(परमहंस योगानंद जी द्वारा लिखित पुस्तक “हाउ यू कैन टॉक विथ गॉड” से उद्धरण)
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