और आगे जा (प्रेरक हिंदी कहानी) | Prerak Kahani

Last Updated on July 22, 2019 by admin

बोध कथा : Motivational Story in Hindi

पुराणों में एक कथा आती है :

★ किसी महात्मा के चरणों में प्रणाम करते हुये एक लकडहारे ने निवेदन किया : ‘‘बाबाजी ! लकिडयाँ बेच-बेचकर जीवन बरबाद हुआ जा रहा है । इतने में पूरा नहीं पडता । आपकी कृपा हो जाये नाथ !

★ महात्मा ने कहा : ‘‘बेटा ! जंगल में थोडा आगे जाया कर ।
लकडहारा वन में आगे गया तो उसे चंदन की लकिडयाँ मिलने लगीं । कुछ गरीबी दूर हुई । कभी-कभी महात्मा के पास आकर वह धर्म की कथा-वार्ता सुन लिया करता था । फिर से उसने महात्मा से कहा : ‘‘मुझसे दूसरे लोग ज्यादा मालदार हैं । मुझ पर भी कुछ कृपा करो ।
महात्मा बोले : ‘‘और आगे जा ।

★ कहानी कहती है कि वह और आगे गया तो उसे पित्तल-ताँबे की खदानें मिलीं । वह कुछ और अमीर हुआ । कुछ समय के बाद उसने आकर महात्मा के चरण पकडकर कहा : ‘‘बाबाजी ! कोई और आदेश दीजिए ।
महात्मा ने कहा : ‘‘और आगे जा ।

★ और आगे जाने पर उसे सुवर्ण और हीरे की खदानें मिलीं । अब वह अत्यंत अमीर हो गया । झोंपडी की जगह महल हो गया, टूटे-फूटे बर्तनों की जगह सोने के बर्तन हो गये । कंधों पर लकिडयों का बोझ उठाने की जगह रथ पर घूमने लगा । लेकिन वह देखता है कि इतना ऐश-आराम होने के बाद भी चित्त में शांति नहीं है, चित्त में आनंद और प्रसन्नता नहीं है ।

★ उसने पुनः जाकर महात्मा के पैर पकडे और कहा :
‘‘बाबा ! पहले जब लकिडयाँ काटने का काम करता था तब मजे की नींद आ जाती थी । अब तो इतनी सुविधाएँ होने के बाद भी नींद हराम हो गयी है ।
महात्मा ने कहा : ‘‘वापस आ जा ।
लकडहारा बोला : ‘‘बाबा ! वापस आने को कहते हो तो कंपन होता है । अब कृपा करो कि वापस भी न आना पडे और शांति भी मिले ।
तब महात्मा ने कहा : ‘‘और आगे जा ।

★ और आगे जाने पर उसे माणेक, नीलम आदि मिले ।
लकडहारा महात्मा के पास आकर बोलता है : ‘‘यह सब तो मिल गया है qकतु अब चित्त में डंक लगते हैं कि इसका क्या होगा । ये छूट जायेंगे तब क्या होगा ?
महात्मा ने कहा : ‘‘और आगे जा ।
जब लकडहारा और आगे गया तो एक आत्मनिष्ठ महापुरुष की कुटिया दिखाई दी । जिनकी आँखों से परमात्मा की मस्ती बरस रही थी, जिनके ओठों से परमात्मा का रस छलक रहा था, जिनके दिल और दिमाग ईश्वरीय आनंद से पूर्ण थे ऐसे ब्रह्मनिष्ठ महापुुरुष की कुटिया दिखाई दी ।

★ लकडहारे को बडी श्रद्धा हुई । उसने सोचा कि एक महात्मा ने ‘और आगे जाङ्क कहते-कहते हीरे-जवाहरात तक पहुँचा दिया । अब ये महात्मा मिल गये हैं । उसने जाकर प्रणाम किया और कहा : ‘‘बाबा ! पहले एक लकडहारा था । एक बाबा के द्वारा ‘और आगे जाङ्क कहने से मुझे पित्तल-ताँबे की, फिर सोने की, फिर हीरे-जवाहरात की खदानें मिलीं । अब मैं लौकिक रूप से तो बहुत सुखी दिखता हूँ । संसारियों को तो बडा सेठ दिखता हूँ लेकिन चित्त में शांति नहीं है । आगे जाते-जाते अब मैं आप तक पहुँचा हूँ ।

★ उन ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष ने कहा : ‘‘तू मेरे तक तो पहुँचा है, अब तू अपने आप तक भी पहुँच जा ।
लकडहारा कहता है : ‘‘बाबा ! मैं नहीं जानता कि अपने आप तक कैसे पहुँचा जाये । मैं पहले लकडहारा था । अब एक बडा सेठ हूँ qकतु अंदर से बडा कंगाल हो गया हूँ । अंदर में कोई खुशी नहीं है । कोई तसल्ली नहीं है, शांति नहीं है ।

★ महात्मा ने कहा : ‘‘इतना यदि समझ में आता है तो सौभाग्य है । कई अंधों को तो पता ही नहीं चलता और जीवन बरबाद कर देते हैं । कई ऐसे अंधे होते हैं कि धन के मद से अपने को सेठ मानकर न साधु की शरण में पहुँचे हैं न परमात्मा की शरण में । तुझमें यह सद्गुण है क्योंकि महात्मा की कृपा से संपत्ति मिली है । अतः उसमें तुझे विवेक है । अब तू थोडे प्राणायाम और थोडा नाम-संकीर्तन घर पर ही शुरू कर दे । कभी-कभी मेरे पास आ जाया करना ।

★ लकडहारा महात्मा के बताये गये अनुसार करने लगा । कुछ समय बीता । उसकी अन्नमय कोष से प्राणमय कोष की ओर यात्रा हुई । जब प्राणमय कोष में यात्रा हुई तब महात्मा ने सामने बैठाकर थोडा ध्यान कराया और संप्रेक्षण शक्ति की कृपा कर दी । उसकी प्राणमय कोष से मनोमय कोष की ओर यात्रा आरंभ हो गयी । जब वह ध्यान करता तो मन में बडी शांति महसूस होती, बडा आनंदआता । आँखों से हर्ष के आँसू टपक पडते । उसका चित्त धन्यवाद से भर गया । कुछ बोलने की इच्छा न रही, देखने की इच्छा न रही और घर जाने की भी इच्छा न रही । महात्मा की ओर अहोभाव से देखता है, भावसमाधि में चला जाता है ।

★ महात्मा समझ गये कि वह आनंदमय कोष के निकट पहुँच गया है । परमात्मा के निकट की यात्रा के काबिल हो गया है । महात्मा ने पूछा : ‘‘कहो, कैसे हो ? और कोई हीरे-जवाहरात की खदान चाहिए क्या ?

★लकडहारा बोला : ‘‘बाबा ! कुछ चाहिए तो गदाई है, कम चाहिए तो खुदाई है और कुछ न चाहिए तो शहंशाही है । बाबा ! अब तो कुछ नहीं चाहिए । बस, अब सब देख लिया । मैंने अपने आपको ही ठग डाला । हीरे और मोती नहीं बटोरे, मैंने तो अपने ही कर्मों को बटोरा है । सुवर्ण के बर्तनों में मैंने भोजन नहीं किया बाबा ! वरन् इन बर्तनों ने ही मेरा भोजन कर लिया । बाल सफेद हो गये हैं, चेहरे पर झुर्रियाँ पड गयीं है और मृत्यु करीब आ रही है । बहुयेँ और बेटे सोचते हैं कि बूढा कब मर जाये । जिसके लिए सब कुछ किया, वे भी अपने न रहे । बाबा ! अब तो कृपा करो और गहरे में ले जाओ ।

★ बाबा समझ गये कि उसके पास विवेक और वैराग्य है ।
जो कुछ दिखता है उसमें यदि उपरामता और प्रभु में प्रीति हो रही है तो समझ लेना कि आखिरी जन्म है । जो कुछ दिख रहा है उसमें यदि रुचि हो रही है तो समझना कि अभी बहुत-सी माताओं के गर्भ में शीर्षासन करना बाकी है । बहुत से पिताओं की शिश्ना से गुजरना बाकी है । बेचारे धनवान लोग नहीं जानते कि धन से सब कुछ नहीं होता । जगत की विद्या पढकर अपने को विद्वान माननेवाले लोग नहीं समझते कि बाह्य विद्या कोई सहारा नहीं है । सच्चा सहारा तो तुम्हारा अंतर्यामी परमात्मा है ।

★ लकडहारे को वे आत्मवेत्ता संत समझा रहे हैं :
‘‘तूने धन-संपत्ति का सुख देख लिया । इसमें कोई शांति नहीं है । धन-जायदाद का स्वाद तो उन लोगों को आता है जो इन्द्रिय-लोलुप हैं, इन्द्रियों के गुलाम हैं । उन्हें ही इन्द्रियों के विषय में मजा आता है । जैसे तिनके को हवा बहा ले जाती है ऐसे ही मूर्ख आदमी के मन को इन्द्रियाँ बहा ले जाती हैं । इसलिए तू विवेकी बनना । अब अपनी साधना को नष्ट मत करना । तुच्छ विषयों के पीछे तू अपने मौन और एकांत की शांति का बलिदान मत कर देना । जैसे मूर्ख बालक गोली-बिस्किट की ललच से सुवर्ण का टुकडा दे डालता है ऐसे ही इन्द्रिय-विषयों की लालच में तू आत्मा की शांति का त्याग नहीं करना ।

★ उन आत्मविश्रांति पाये हुये महापुरुष की कृपा एवं उपदेश को पाकर लकडहारा लग गया साधना में और स्वयं भी आत्मविश्रांति को पाकर धन्य हो गया ।

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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