बाल पक्षाघात का आयुर्वेदिक उपचार – Baal Pakshaghat ka Ayurvedic Ilaj in Hindi

Last Updated on October 23, 2020 by admin

क्या है बाल पक्षाघात ? (What is Child Paralysis in Hindi)

यह बालकों में व्यंग्य उत्पन्न करने वाला एक दुःखदायी विकार है, जिसमें बालक के अंग-अवयवों में से किसी एक भाग या दोनों भागों के अंगों में शिथिलता उत्पन्न होती है। बालक चलने, फिरने व स्वतः के कार्य करने में असमर्थ होता है। विशेषतः बच्चों में उत्पन्न होने से इसे बाल पक्षाघात या बालांगघात भी कहा जाता है।

नवजात अवस्था से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चों में बाल पक्षाघात व्याधि उत्पन्न हो सकती है। विभिन्न उम्र में होने वाले लक्षणों के आधार पर बालकों के शरीर में वात, पित्त, कफ के अनुपात में गड़बड़ हो जाती है। लेकिन वात की प्रधानता इस व्याधि में पायी जाती है।

बाल पक्षाघात क्यों होता है ? (Child Paralysis Causes in Hindi)

बाल पक्षाघात के कारण ? –

यह व्याधि अपने-अपने कारणों से वात को प्रकुपित करके वात के संचालन में दुविधा उत्पन्न कर हाथ एवं पांव में शिथिलता उत्पन्न करती है। बाल पक्षाघात यह निज (शरीर दोषों से उत्पन्न) तथा आगन्तुज (बाहरी कारण-जैसे इन्फेक्शन इत्यादि) कारणों से उत्पन्न होता है।

वर्षा ऋतु में अधिकतर वातजन्य विकार प्रबलता से पाये जाते हैं, मुख्यतः बालकों में होने वाला जीवाणुजन्य संक्रमण (Polio) भी इसी ऋतु में पाया जाता है। यह 6 माह से 5 साल के बच्चों में अधिकता से दिखाई देता है। राष्ट्रीय लसीकरण (टीका) कार्यक्रम के अंतर्गत भारत ने इस व्याधि पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है।

  • Transverse Myelitis में स्पाइनल कॉर्ड में सूजन उत्पन्न होने से शाखागत पक्षवध उत्पन्न होता है। इसे बालपक्षवध (बाल पक्षाघात) कहा जाता है। यह विकृति विषाणुजन्य, प्रत्यूर्जाजन्य होती है।
  • कभी-कभी यह कुछ व्याधियों के उपद्रव स्वरूप देखने को मिलती है जैसे फिरंग, गोवर (Measels) इत्यादि।
  • कभी-कभी यह लसीकरण (टीका) के पश्चात भी देखने को मिलता है, जैसेकि चिकनपाक्स व रेबीज़ (Chicken pox & rabies)

बाल पक्षाघात के क्या लक्षण होते हैं? (Child Paralysis Symptoms in Hindi)

  1. बाल पक्षाघात में एक पार्श्व (हाथ एवं पांव) तथा दोनों पार्श्वों में पूरी तरह से क्रिया हानि (Paralysis) या अल्परूप में क्रिया हानि (Paresis) के लक्षण दिखाई देते है।
  2. कभी-कभी यह लक्षण बुद्धि की क्षमताओं को भी प्रभावित करते है।

बाल पक्षाघात से बचाव (Child Paralysis Prevention in Hindi)

किसी भी व्याधि की चिकित्सा से बेहतर होता है, उससे बचे रहना। निम्न निर्देशों का पालन करने का प्रयास करें –

  • बाल पक्षाघात से बच्चों को बचाने के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है।
  • पोषक आहार के द्वारा बच्चों की आरोग्य क्षमता को बनाये रखें।
  • अत्यावश्यक लसीकरण (सरकार द्वारा दिये जाने वाले टीका) ही कराएं।
  • बच्चों को सामान्य रीति से प्रकृतिस्थ चीजों से खेलने दें।

बाल पक्षाघात का आयुर्वेदिक इलाज (Child Paralysis Ayurvedic Treatment in Hindi)

आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंतर्गत निम्न औषधियों का प्रयोग चिकित्सक परामर्शानुसार प्रयोग करने पर लाभदायक है।

आभ्यांतर चिकित्सा –

  1. कुमारकल्याण रस, बृहतवात चिंतामणि रस, रस सिंदूर, अभ्रक भस्म, योगेन्द्र रस, रसराज रस, एकांगवीर रस, लक्ष्मी विलास रस।
  2. योगराज गुग्गुल, आरोग्य वर्धिनी रस, ब्राह्मी वटी।
  3. दशमूल चूर्ण, बलाचतुष्टक चूर्ण, मेध्य रसायन, त्रिकटु चूर्ण, पिप्पली चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, गोक्षुरादि चूर्ण, सारस्वत चूर्ण, शतावर्यादि चूर्ण, वैश्वानर चूर्ण, अश्वगंधा।
  4. कषाय- बलापुनर्नवादि, दशमूल, धान्वन्तर, फलत्रिकादि ।
  5. ब्राह्मी घृत, दशमूल घृत, धान्वन्तर घृत, नागबलादि घृत,सारस्वत घृत, शतवर्यादि घृत।
  6. अणु तेल, क्षीरबला, बला तेल, लाक्षादि तेल, महानारायण तेल, शंखपुष्पी तेल।

बाह्य चिकित्सा –

1. स्नेहन मालिश (Oleation) – बलातेल, नारायण तेल, महानारायण तेल, क्षीरबला तेल, अश्वगंधा तेल, बला गुडूच्यादि तेल लाभकारी है।

( और पढ़े – तेल मालिश करने का सही तरीका और लाभ )

2. स्वेदन भाप (Steam) – दशमूल, बला, अश्वगंधा, निर्गुंडी, शिग्रु, लघुपंचमूल, विदारीकंद, एरण्ड मूल, दुग्ध इत्यादि से करें।

( और पढ़े – स्वेदन कर्म : आयुर्वेद चिकित्सा की दिव्य प्रणाली )

3. बस्ति – मात्रा बस्ति, योग बस्ति, अनुवासन, आस्थापन, बृहण बस्ति इत्यादि।

4. नस्य – अणु, ब्राह्मी, क्षीरबला, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, ज्योतिष्मती।

( और पढ़े – नस्य थेरेपी क्या है ? इसकी विधि और फायदे )

बाल पक्षाघात में क्या खाना चाहिए ?

  • मधुर, अम्ल एवं लवण रसात्मक पदार्थ।
  • मूंग, मसूर का यूष (सूप), कृशरा (खिचड़ी) सैंधव नमक से युक्त।
  • गेहूं, लाल चावल, यव, अम्लफल रस, मूंग, कुलथी, उड़द, जवस, तुअरदाल, मेथी।
  • परवल, लौकी, भिंडी, बैंगन, कुम्हड़ा, मूंगना, कुंदरू, गाजर, टमाटर, लहसुन, अदरक, हल्दी, प्याज।
  • मेथी, चौलाई, चूका।
  • अनार, आम, अंगूर, संतरा, मोसंबी, नींबू, सीताफल, अमरूद, केला, नारियल, अंजीर, सफरचंद, खजूर, बादाम।
  • गाय एवं भैंस का दूध, घी, दही, चीज़, उबला गरम पानी, कांजी, तेल, एरंड तेल।
  • हमेशा ताजा एवं गरम आहार लें।

विहार (लाभप्रद) –

उष्णजल स्नान, स्नेहन, स्वेदन, अभ्यंग, व्यायाम

बाल पक्षाघात में यह सब न खाएं (परहेज)

  • नाचनी, बटाना, चना, चौलाई दाना (बरबटी), छोले, राजमा, मटकी।
  • करेले, तुरई, गोभी, ग्वार, आलू, शकरकंद ।
  • जामून, बेर।
  • पालक, मशरूम, कमलकंद ।
  • साबूदाना, पोहा।
  • फ्रिज की चीजें, काली चाय, कोल्ड कॉफी, आइस्क्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स।
  • फ्रूट सलाद, दुध+केला, मिल्क शेक।
  • पापड़, भेल, वेफर्स, पिज्जा, बर्गर।
  • सैन्डविच, वडापाव, मिसल, समोसा इत्यादि ।

विहार (हानिकारक) –

अति चिंता, व्यायाम, श्रम, रात्रि जागरण, रात्रि जल स्नान, अधिक घूमना।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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