Last Updated on February 13, 2023 by admin
बच्चों की घुण्डी खांसी क्या है ? :
सांस की नली में जलन के साथ सांस लेने में कठिनाई होती है और कभी-कभी सांस की नली में दूसरी झिल्ली की परत जम जाती है। इसे घुण्डी खांसी कहते हैं। घुण्डी खांसी 2 तरह की होती है- कृत्रिम और प्राकृतिक। कृत्रिम घुण्डी खांसी बच्चों को एकाएक हो सकती है। इस रोग में बच्चा सोया रहता है और एकाएक गले में सुरसुराहट उत्पन्न होकर नींद खुल जाती है और सांस में रुकावट उत्पन्न होकर सांय-सांय की आवाज निकलने के साथ गले से घड़घड़ाहट की आवाज आने लगती है।
प्राकृतिक घुण्डी खांसी में पहले बच्चे को सूखी खांसी आती है और ऐसी खांसी उत्पन्न होती है जिसमें खांसते-खांसते बेहोशी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस खांसी में बार-बार खांसने के कारण गला फट जाता है, गले में दर्द होता है, शरीर अचानक गर्म हो जाता है। इस रोग में बच्चे की आवाज कुत्ते की आवाज की तरह हो जाती है।
बच्चों की घुण्डी खांसी का होम्योपैथिक इलाज (Bacchon ki Ghudi Khansi ka Homeopathic Ilaj)
1. ऐकोनाइट- दोनों प्रकार की घुण्डी खांसी में आवाज खराब हो जाती है, खांसी के दौरे पड़ने से सांस अटकने लगती है, त्वचा सूख जाती है, बच्चा बेचैन रहता है, बुखार होता है और तेज प्यास लगती है। ऐसे लक्षणों में बच्चे को ऐकोनाइट औषधि की 3x की शक्ति हर 10 मिनट के अंतर से सेवन कराना हितकारी होता है।
2. स्पंजिया– घुण्डी खांसी से ग्रस्त बच्चे को रात के समय खांसी के दौरे पड़ते हैं जिसके कारण बच्चा अचानक नींद से उठ जाता है। खांसते समय बच्चे के अन्दर से सांय-सांय की आवाज आती रहती है और आवाज भी खराब हो जाती है। ऐसे में स्पंजिया औषधि की 3 शक्ति की मात्रा का सेवन कराने से रोग में जल्द लाभ मिलता है। इस रोग में ऐकोनाइट और स्पंजिया के सेवन करने से बच्चे में उत्पन्न बुखार समाप्त हो जाता है और खांसी में भी आराम मिलता है। इस तरह औषधि के प्रयोग के बाद रोग में आराम मिलने पर हिपर-सल्फर औषधि की 6 शक्ति का सेवन कराने से पूर्ण लाभ मिलता है।
3. सैम्बुकस– इस रोग में यदि बच्चे को खांसी के दौरे पड़ने पर बेहोशी की हालत उत्पन्न होने के लक्षण दिखाई दे तो बच्चे को सैम्बुकस औषधि की 2x देना लाभकारी होता है। इस औषधि का प्रयोग विशेष रूप से रात के समय खांसी के दौरे पड़ने के बाद सांस अटकने के कारण नींद से उठ जाने के लक्षण में लाभकारी है।
4. ब्रोमिन– यदि सांस नली में नकली झिल्ली की परत बन कर मोटी हो गई हो जिससे बच्चे को सांस लेने में कठिनाई हो रही हो तो ऐसे लक्षणों में बच्चे को ब्रोमिन औषधि की 3ग का सेवन हर 15 मिनट के अंतर पर सेवन कराने से लाभ होता है।
5. ऐण्टिम-टार्ट- घुण्डी खांसी उत्पन्न होने के साथ यदि बच्चे का गला फैला हुआ हो और सिर पीछे की ओर टेढ़ा हो गया हो तो ऐसे लक्षणों में बच्चे को ऐण्टिम-टार्ट औषधि की 6 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।
6. बेलेडोना- घुण्डी खांसी में यदि बच्चे को केवल खांसी आती है और खांसी आने के साथ चेहरा व आंखें लाल हो जाती है, नाड़ी कठोर व कमजोर हो जाती है। ऐसे लक्षणों में बच्चे को बेल औषधि की 3 शक्ति का सेवन कराने से लाभ होता है।
7. फास्फोरस- कई बार बच्चे में घुण्डी खांसी उत्पन्न होने के कारण बच्चे की आवाज खराब हो जाती है तथा गले में दर्द होता है। यह रोग होने के बहुत देर बाद बलगम निकलता है। इस तरह के लक्षणों में फास्फोरस औषधि की 6 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
8. कास्टिकम- घुण्डी खांसी के साथ उत्पन्न ऐसे लक्षण जिसमें खांसने से छाती में दर्द होता है, शरीर अकड़ जाती है और उसकी आवाज खराब हो जाती है। ऐसे लक्षणों में बच्चे को कास्टिकम औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का सेवन कराना चाहिए।
9. आयोडिन- यदि घुण्डी खांसी के साथ उत्पन्न ऐसे लक्षण जिसमें खांसने पर स्वरयन्त्र में दर्द होता है, उत्तेजित करने वाली सूखी खांसी आती है और खांसते समय गले में कर्कश लगने के कारण बच्चा गले को पकड़कर खांसता हो। ऐसे लक्षणों के साथ बच्चे को सांस लेने में कठिनाई होती है तथा गले से सांय-सांय की आवाज आती रहती है। इस तरह के लक्षणों के साथ उत्पन्न घुण्डी खांसी में आयोडिन औषधि की 6 शक्ति की मात्रा देना उपयोगी होता है।
अन्य औषधियों का प्रयोग –
- दोनों प्रकार की घुण्डी खांसी में कैल्के-फास- 12x या 30, कैलि-सल्फ- 12x या 30 और फेरम-फास- 1x या 30 शक्ति औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। इन औषधियों का सेवन रोग में हर आधे घंटे के अंतर पर सेवन कराने से लाभ होता है।
- फेरम-फास 12x का चूर्ण 30 और कैलि-म्यूर- 12x का चूर्ण या 30 शक्ति का प्रयोग नकली घुण्डी की खांसी को दूर करने में अधिक लाभकारी होती है।
- इस रोग के शुरुआती अवस्था में बच्चे को सिर्फ गर्म पानी दें और इसके बाद पानी में बना आरारूट, पानी में बने बार्ली तथा दूध आदि देना चाहिए। इस रोग में बच्चे को उठाना-बैठाना नहीं चाहिए तथा प्रसूता को खाने-पीने का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
बच्चों की हूप खांसी का होम्योपैथिक इलाज (Bacchon ki Hup Khansi ka Homeopathic Ilaj)
1. पार्टुसिन या मिफइटिस- यह बच्चे को होने वाली लारयुक्त खांसी है। इस तरह की खांसी में लम्बी सांस लेने पर ´हूप´ शब्द निकलता है। यह रोग उत्पन्न होने पर 2-4 सप्ताह से लेकर लगभग 6 महीने तक रह सकता है लेकिन यह रोग अधिक दिनों तक रहने पर बच्चे को क्षय (टी.बी.) रोग हो जाने की संभावना रहती है। हूप खांसी उत्पन्न होने पर उसके उपचार के लिए अन्य औषधि की उपयोग करने से पहले पार्टुसिन औषधि की 30 शक्ति की मात्रा दिन में 3-4 बार देने के बाद ही अन्य औषधि देनी चाहिए। 1 सप्ताह तक इस औषधि का प्रयोग करने के बाद भी यदि कोई लाभ न हो तो मिफइटिस औषधि की 3ग का प्रयोग हर 2 घंटे के अंतर पर करने से लाभ होता है।
2. ड्रासेरा- यदि हूप खांसी बच्चे को बार-बार होता है और रोग के साथ अन्य लक्षण जैसे- उल्टी करना, पीले रंग के बलगम आना तथा खांसी के साथ दर्द होना और आवाज का खराब होना विशेषकर आधी रात के बाद। ऐसे लक्षण हो तो बच्चे को ड्रासेरा औषधि की 3x शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
यदि हूप खांसी आने पर गले में अधिक खिंचाव महसूस हो तो विभिन्न औषधियां जैसे- क्यूप्रम- 6, इपिकाक- 6, मैफ्थैलिस- 3x का चूर्ण, बेलेडोना- 3, हाइड्रोसियानिक-एसिड- 3x तथा ऐण्टिम-टार्ट- 6 शक्ति औषधि की मात्रा को बीच-बीच में दी जा सकती है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)