सेरेब्रल पाल्सी के लक्षण, कारण और उपचार

Last Updated on February 21, 2022 by admin

सेरेब्रल पाल्सी क्या है ? (What is Cerebral Palsy in Hindi)

सेरेब्रल पाल्सी मानसिक एवं शारीरिक विकलांगता की ऐसी स्थिति है, जिसमें मांसपेशियों में अत्यधिक तनाव एवं जकड़न उत्पन्न होने के कारण मरीज रोजमर्रा के कामकाज, यहाँ तक कि अपनी नित्य क्रियाएँ भी नहीं कर पाता है। यह पोलियो से एकदम उलटी बीमारी है। पोलियो में मांसपेशियों में अधिक जकड़न होने के कारण विकलांगता उत्पन्न होती है।

सेरेब्रल पाल्सी के कारण (Cerebral Palsy Causes in Hindi)

सेरेब्रल पाल्सी क्यों होता है ?

सेरेब्रल पाल्सी होने का प्रमुख कारण समय पूर्व पैदाइश तथा जन्म के समय बच्चे का कम वजन होना है। समय से तीन माह पूर्व पैदा होनेवाले बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका बहुत अधिक होती है। जन्म के समय डेढ़ किलोग्राम से कम वजन वाले 25 प्रतिशत बच्चों को सेरेब्रल पाल्सी होने की आशंका होती है। जन्म के समय डेढ़ से ढाई किलोग्राम के बीच वजन वाले बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका 10 प्रतिशत होती है।

यह बीमारी बच्चे के मस्तिष्क के विकास के दौरान आघात लगने या व्यवधान आने के कारण होती है। इस व्यवधान या आघात के कारण मस्तिष्क को होनेवाली ऑक्सीजन एवं रक्त की आपूर्ति में कमी आ जाती है। गर्भधारण से लेकर प्रसव काल और जन्म के समय से लेकर आठ वर्ष की उम्र तक मस्तिष्क के विकास में आघात या व्यवधान आने पर यह बीमारी होने का खतरा रहता है।

सेरेब्रल पाल्सी के लक्षण (Signs and Symptoms of Cerebral Palsy in Hindi)

सेरेब्रल पाल्सी के क्या लक्षण होते हैं ?

  • सेरेब्रल पाल्सी के शिकार बच्चे करवट बदलने, बैठने और चलने जैसी क्रियाएँ देर से सीखते हैं।
  • अगर बच्चा नौ माह तक नहीं बैठ पाए और 16 से 18 माह तक नहीं चल पाए तो उसे सेरेब्रल पाल्सी हो सकती है।
  • इस रोग से ग्रस्त स्पास्टिक बच्चे के शरीर में असामान्य जकड़न आ जाती है।
  • स्पास्टिक बच्चे टाँगों का संतुलन सही रख पाने में असमर्थ होते हैं। उनके हाथ-पैर अकड़ जाते हैं जिन्हें सीधा करना न तो स्वयं बच्चे के लिए और न ही किसी अन्य व्यक्ति के लिए सरल होता है ।
  • बाँहों और हाथों की अकड़न के कारण कुहनियाँ आगे की तरफ मुड़ जाती हैं, अँगूठे हथेली में अंदर आ जाते हैं और मटठी भींचकर बंद हो जाती है। इस कारण इन बच्चों के लिए हाथों से काम करना, लिखना, खाना, कपड़े पहनना, किसी वस्तु को पकड़ना आदि कार्य या तो कठिन या असंभव होता है।
  • इसी बीमारी के मरीजों में धड़ के नीचे जकड़न के कारण कूल्हे के जोड़ों पर जाँघे आगे की तरफ मुड़कर आपस में भिंचकर मिल जाती हैं, घुटने पीछे की तरफ मुड़ जाते हैं और एड़ियाँ जमीन से ऊँची उठ जाती हैं।
  • रोगी मुश्किल से पैरों के अँगूठों और उँगुलियों पर सहारा देने पर ही खड़ा हो पाता है। रोगी के खड़े होने पर कूल्हे पीछे निकल आते हैं तथा धड़ आगे की तरफ झुक जाता है। उसकी दोनों टाँगें आपस में एक-दूसरे को कैंची की तरह काटती हैं।
  • पाँवों की जकड़न के कारण मरीज के लिए सीधे चलना, रेंगना, पलटी खाना, घुटनों के बल चलना, खड़े होना मुश्किल अथवा असंभव हो जाता है।
  • इनकी जाँच करने पर उनकी मांसपेशियों में कमजोरी, जकड़न तथा असंतुलन पाए जाते हैं ।
  • इस बीमारी का बच्चों की बुद्धि (आई.क्यू.) पर भी खराब असर पड़ता है। ज्यादातर मरीजों की मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता भी कम हो जाती है और यह प्रायः स्थायी होती है।
  • कुछ रोगियों का मुँह एक तरफ को टेढा हो जाता है. मँह थोड़ा खुला रहता है तथा उससे लार टपकती रहती है।
  • इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की दृष्टि, श्रवण तथा बोलने की क्षमताओं में भी असामान्यता पाई जाती है।
  • करीब 75 प्रतिशत रोगियों में दृष्टि तथा श्रवण दोष पाए जाते हैं, 30 प्रतिशत रोगियों को दौरे पड़ते हैं तथा लगभग 75 प्रतिशत रोगियों में मानसिक अपंगता होती है।

सेरेब्रल पाल्सी का उपचार (Cerebral Palsy Treatment in Hindi)

सेरेब्रल पाल्सी का ईलाज कैसे किया जाता हैं ?

स्पास्टिक बच्चे के छह माह के हो जाने के बाद यथा संभव जल्द-से-जल्द उपचार शुरू कर देने पर बहुत लाभ होता है। बच्चों की सुषुप्त शारीरिक एवं मानसिक शक्ति को जाग्रत् कर उसे विकसित करने का यही उचित समय होता है। इस उम्र में फिजियोथेरैपी तथा स्प्लिंट का अत्यंत महत्त्व होता है। इनकी मदद से जकड़न के कारण जोड़ों को टेढे-मेढे होने से रोका जा सकता है, जिससे भविष्य में रोगी को सामान्य जीवन जीने में काफी सहायता मिलती है।

शल्य चिकित्सा –

शल्य चिकित्सा के लिए रोगी की आयु चार वर्ष से अधिक होना आवश्यक है। यह ऑपरेशन जकड़न दूर करने तथा इससे उत्पन्न समस्या को ठीक करने के लिए किया जाता है। शल्य चिकित्सा से पूर्व रोगी के परिवारजनों को रोग तथा शल्य चिकित्सा और उसके बाद व्यायाम से होने वाले संपूर्ण लाभ की वास्तविकता से पूर्ण रूप से अवगत होना आवश्यक है।

सेरेब्रल पाल्सी के मरीजों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए की जानेवाले शल्य चिकित्सा के तहत तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों तथा अस्थियों की सर्जरी की जाती है। इन ऑपरेशनों के बाद जकड़न में काफी कमी आती है और बच्चों की स्थिति में काफी सुधार होता है, लेकिन बच्चों को अपने नित्यकर्म करने लायक बनाने के लिए उन्हें फिजियोथेरैपी की जरूरत होती है। ऑपरेशन तथा फिजियोथेरैपी से मरीज को चलने फिरने के लायक होने में तीन माह से दो वर्ष का समय लग सकता है।

अज्ञानता के कारण मरीज ऑपरेशन कराए बगैर लंबे समय तक फिजियोथेरैपी कराते रहते हैं, जिसके कारण मरीज की स्थिति दिनोदिन गंभीर होती रहती है। अगर मरीज समय पर सर्जरी करा ले तो उसे सामान्य जीवन जीने लायक बनाया जा सकता है। इसलिए ऐसे बच्चों के जोड़ों के टेढ़े-मेढ़े होने की स्थिति में ऑपरेशन से जोड़ों को ठीक किए बगैर फिजियोथेरैपी पर वर्षों का समय जाया करना व्यर्थ है। बेहतर यही है कि पहले नाड़ियों, मांसपेशियों एवं अस्थियों को ऑपरेशन की मदद से ठीक कर दिया जाए तथा उसके बाद फिजियोथेरैपी की मदद से नाडियों मांसपेशियों एवं हड्डियों में शक्ति एवं सामंजस्य लाकर मरीज को आत्मनिर्भर बना दिया जाए। ऑपरेशन के बाद मरीज की कैंचीनुमा चाल समाप्त हो जाती है और वह चलने-फिरने तथा रोजमर्रा के काम करने में सक्षम हो जाता है।

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