Last Updated on July 25, 2019 by admin
दाद (Ringworm) क्या है ?
दाद को दद्रु अथवा दीनाय व अंग्रेजी में इसे Ring worm या Tinea के नाम से भी पुकारा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार दाद की गणना कुष्ठ रोगों के अन्तर्गत ही की गई है। कुष्ठ रोग में ही दाद, खुजली आदि साधारण त्वचा के रोग व कोढ़ दोनों का ही ग्रहण किया गया है। इनमें अंतर जानने के लिए क्षुद्र कुष्ठ व महाकुष्ठ दो भेद कहा गया है। महाकुष्ठ सात प्रकार के होते हैं तथा क्षुद्र कुष्ठ ग्यारह प्रकार के होते हैं। इन ११ क्षुद्र कुष्ठों में से एक रोग दाद है। क्षुद्र कुष्ठ के लिए त्वक् रोग (Deseases of the skin) व महाकुष्ठ के लिए Leprosy कहा गया है। ‘कृष्णातीति कुष्ठं’ अर्थात् शरीर के त्वचा आदि धातुओं के नाश करने के कारण ही इसको कुष्ठ कहते हैं।
दाद क्यों होता है इसके कारण :
• चरक के अनुसार विरुद्ध अन्नपान व द्रव और स्नेह बाहुल गरिष्ठ पदार्थों के सेवन करने वाले,
• उपस्थित वमन व अन्य वेगों को रोकने वाले,
• अत्यधिक भोजन करने के उपरान्त व्यायाम करने वाले,
• अत्यधिक अग्नि का सेवन करने वाले,
• धूप, परिश्रम तथा भय से पीड़ितावस्था में बिना विश्राम किए ठंडा पानी पीने वाले,
• अपक्व पदार्थों का भोजन करने वाले, अध्ययन करने वाले,
• पंचकम में कुपथ्य करने वाले,
• नवीन अन्न, दही, मछली, लवण व अत्यन्त खट्टे पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने वाले,
• भोजन का परिपाक हुए बिना मैथुन करने वाले व दिन में सोने काले,
• ब्राह्मण, माता-पिता तथा आचार्य लोगों का तिरस्कार करने वाले एवं नीच कर्म करने वाले व्यक्तियों में वात, पित्त एवं कफ ये तीनों दोष कुपित होकर त्वचा, रक्त, मांस और शरीरस्थ जलीय धातुओं को दूषित कर सात (महाकुष्ठ) व ग्यारह (क्षुद्र कुष्ठ) कुष्ठों को उत्पन्न कर देते हैं, जिनमें दाद भी एक है।
अष्टांग हृदय के अनुसार इस जन्म में मिथ्या आहार-विहार करने से विशेषकर विरोधी आहारों एवं विहारों के सेवन करने से, साधुजनों की निन्दा करने से तथा उनका वध करने से, दूसरों के धन सम्पत्ति का हरण एवं विनाश आदि पाप कर्म करने से अथवा पूर्वजन्म कृत पापों के उदय हो जाने पर वातादि दोष कुपित होकर तर्यग्गामिनी सिराओं में पहुंचकर त्वचा, लसीका रक्त तथा मांस को दूषित करते हैं और उनको शिथिल करके बाहर निकल कर त्वचा पर विवर्णता उत्पन्न कर देते हैं। उस विकार को कुष्ठ कहते हैं।
सुश्रुत ने भी इन उपर्युक्त कारणों को ही कुष्ठ ही उत्पत्ति कारण बताया है। इन उपर्युक्त कारणों से प्रकुपित हुए पित्त और कफ दूषित वायु के साथ तिर्यग्गामिनी सिराओं के द्वारा बाह्य रोग मार्ग में चारों तरफ फैल जाते हैं। जिस स्थान पर ये दोष पहुंचते है। वहां मंडलों की उत्पत्ति हो जाती है। इस प्रकार के त्वचा में फैले हुए दोष की चिकित्सा न करने पर बढ़कर, आन्तरिक धातुओं में प्रविष्ट हो जाते हैं। अर्थात् प्रथम त्वचा में ही कुष्ठ के लक्षण उत्पन्न होते हैं। बाद में दोष आन्तरिक धातुओं में प्रविष्ट होने लगते हैं।
दाद की पहचान व लक्षण :
दाद के लिम्न लिखित लक्षण है। –
• दाद की जड़े दूब घास के समान लम्बी होती है, वर्ण अतसी पुष्प के समान होता है।
• चकते उभरे हुए होते हैं,
• कंडू अर्थात् खाज होती रहती है तथा जीवन भर बनी रहती है अथवा बीच-बीच में शांत होकर पुनः होती रहती है।
• दाद प्रायः वर्षात के दिनों में अधिक लोगों को होता है, वह भी उन लोगों को जो कि अपने देह व वस्त्र को साफ सुथरे नहीं रखते। अन्य ऋतुओं में भी कई लोगों में देखा गया है।
• यह रोग कमर, गुप्ताओं में विशेष रुप से वैसे सम्पूर्ण शरीर में कहीं भी हो जाता है।
• कफ, पित्त की विकृति से दाद होता है।
कच्छ दाद –
जिनके हाथ पैर व बगल में तथा कमर में फुन्सियां हों, उसे कच्छ दाद कहते हैं। इसमें दाद होता है। व्यवहारिक दृष्टिकोण से दो प्रकार का होता है। (१) नम दाद (कच्छ) (२) शुष्क दाद (कच्छ) ।
नम कच्छ में फुन्सियां होती हैं। उससे पानी जैसा पूय का रिसाव होता रहता है। शुष्क कच्छ दाद में प्रायः उभरी हुई फुन्सियां अनेक नहीं होतीं अथवा वे उतने सूक्ष्म व एकाकार हो जाती हैं कि पृथक-पृथक नहीं दिखाई देकर एकसा दिखाई देती हैं तथा प्रभावित पूरा चर्म खंड उभरा हुआ, अत्यन्त सूक्ष्म दानेदार लाल, काला या नीला वर्ण का हुआ करता है।
आयुर्वेद मे दाद का इलाज (चिकित्सा) :
(१) गंधक रसायन (khujli ki tablet)-
इसे दिन मे दो बार एक से तीन गोली तक पानी के साथ खिलाना चाहिए। इसी प्रकार दाद व अन्य चर्म रोग में आरोग्यवर्द्धनी वटी, समीर पन्नग रस, नारषिंह चूर्ण, भृङ्गराजासव, खदिरारिष्ट का भी सेवन करना श्रेयस्कर रहता है।
(२)खुजली की दवा (khujli ki dawa) –
शुद्ध गंधक २ भाग, त्रिफला चूर्ण ४ भाग मिलाकर चूर्ण बना लें। चिकित्सक की सलाहानुसार प्रयुक्त करें।
(३) शुद्ध गंधक २ भाग एवं एक भाग रस माणिक्य को मिलाकर प्रयुक्त करें।
(४) दाद नाशक मरहम-
क्राइसोफेनिक एसिड ४ ड्राम, काबॉलिक एसिड ४ ड्राम, सेलिसिलिक एसिड २ ड्राम, पीली वेसलीन १६ औंस लेकर सबको खरल कर मरहम बना लें। यह एक सप्ताह में दाद को नष्ट कर देता है।
यह ध्यान रखें कि इसको आंखादि में लगने से बचाना चाहिए।
(५) दाद नाशक लेप-
आमलासार गंधक, कच्चा सुहागा, सफेद कत्था, राल सब ६०-६० ग्राम मिलाकर कपड़छान चूर्ण करें। फिर ६० ग्राम गुग्गुल का बारीक चूर्ण मिलाकर नींबू के रस में तीन घण्टे तक खरल कर गोलियां बना लें। उपयोग- इस गोली को गौमूत्र या नींबू के रस में घिसकर लगाने से लाल-काला, नया या पुराना दाद नष्ट होता है।
(६) एडगजादि लेप-
चकबड़ बीज, कूठ, सैंधा नमक, सरसों, वायविडंग। इन सबको समान भाग लेकर कांजी में पीसकर लेप करने से कृमिकुष्ठ, मण्डल कुष्ठ, दद् (दाद) शांत होते हैं।
(७) चकवड़ बीज, सर्जरस (राल एवं करायल), मूली बीज। इन तीनों को अलग-अलग कांजी (मट्ठा, दही का पानी)में पीसकर दाद या अन्य चर्म-रोग पर लेप करने से दाद ठीक होता है।
(८) कत्था एवं कमीला दोनों समभाग में लें। शुद्ध गाय के घृत में मिलाकर मरहम बना लें।यह दाद की उत्तम औषधि है।
(९) चकबड़ बीज, बायविडंग, अमलतास की जड़, पीपल और कुठ इन सबके कषाय के पान करने, स्नान करने अथवा लेप करने से दाद ठीक होता है।
(१०) लक्षा, सोंठ, मिरच, पीपल, पवांड बीज, बिजोरा, कूठ, सरसों, हल्दी तथा मूली के बीज को छाछ में पीसकर दाद पर लगाने से अच्छा लाभ करता है।
(११) जिसके पूरे देह पर ही दाद हो गया हो, उसे चक्रमर्द का साग खिलाते हैं तथा चक्रमर्द के उबले पानी से स्नान कराते हैं।
(१२) चक्रमर्द (पवांड) के बीज को कांजी अथवा नींबू के स्वरस में सड़ाकर फिर बारीक पीसकर दाद पर लगाने से लाभ होता है।
(१३) कूठ, बायविडंग, चक्रमर्द बीज, तिल, सैंधा नमक व सरसों सभी को नींबू के स्वरस में पीसकर गोली बनाकर रखें। इसे जल में घिसकर दाद पर लगाने से ठीक होता है।
(१४) अर्क तैल-
आक पत्र स्वरस, हल्दी का गाढ़ रस समान भाग लेकर समान भाग ही सरसों के तेल में विधि के अनुसार तैल बनाकर दाद से प्रभावित स्थान को अच्छी तरह साफ करके लगावें
खान पान और परहेज / पथ्यापथ्य :
• खट्टा, मीठा व तीखे पदार्थों का सेवन नहीं करें।
• रोगी के कपड़े तौलिये, बिस्तर आदि का दूसरा प्रयोग न करें।
• रोगी की त्वचा के स्पर्श से भी यह रोग लग सकता है। इसलिए प्रभावित अंगों का स्पर्श नहीं करें।
• जहां तक हो रोगी को नमक एवं मिर्च का सेवन बंद कर दें।
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नोट :- ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।