Last Updated on July 22, 2019 by admin
प्रेरक हिंदी कहानी : Prerak Hindi Kahani
★ गुजरात में भावनगर जिला है। उस भावनगर का नरेश भी जिससे काँपता था, ऐसा ‘बहारवटिया’ था जोगीदास खुमाण।
★ एक रात्रि को वह अपनी एकान्त जगह पर सोया था। चाँदनी रात थी। करीब 11 बजने को थे। इतने में ‘छन… छन…..छनन….. छनन…..’ करती हुई किसी की पदचाप सुनाई दी। उसे सुनकर जोगीदास खुमाण अपना तमंचा लेकर खड़ा हो गयाः “कौन है ?”
★ देखा तो सुन्दरी ! सोलह श्रृंगार से सजी-धजी आ रही है।
“खड़ी रहो। कौन हो ?”
★ पास आकर हार-सिंगार से युक्त वह युवती बाँहें पसारती हुई बोलीः
“जोगीदास खुमाण ! तेरी वीरता पर मैं मुग्ध हूँ। अगर सदा के लिए नहीं तो केवल एक रात्रि के लिए ही मुझे अपनी भुजाओं में ले ले।”
★ गर्जता हुआ जोगीदास बोलाः “वहीं खड़ी रह। तू स्त्री है, यह मैं जानता हूँ। लेकिन मैं शत्रुओं से इतना नहीं चौंकता हूँ, जितना विकारों से चौंकता हूँ।”
★ युवतीः “मैंने मन से तुम्हें अपना पति मान लिया है।”
★ जोगीदासः “तुमने चाहे जो माना हो, मैं किसी गुरु की परम्परा से चला हूँ। मैं अपना सत्यानाश नहीं कर सकता। तुम जहाँ से आयी हो, वहीं लौट जाओ।”
★ वह युवती पुनः नाज नखरे करने लगी, तब जोगीदास बोलाः “तुम मेरी बहन हो। मुझे इन विकारों में फँसाने की चेष्टा मत करो। चली जाओ।”
★ समझा-बुझाकर उसे रवाना कर दिया। तब से जोगीदास खुमाण कभी अकेला नहीं सोया। अपने साथ दो अंगरक्षक रखने लगा। वह भी, कोई मार जाये इस भय से नहीं, वरन् कोई हमारा चरित्र भंग न कर जाये, इस भय से दो अंगरक्षक रखता था।
★ डाकुओं में भी कभी-कभी विषय-विकारों के प्रति संयम होता है तो वे चमक जाते हैं।
★ एक रात जोगीदास अपनी घोड़ी भगाते-भगाते कहीं जा रहा था। उसकी मंजिल तो अभी काफी दूर थी लेकिन गाँव के करीब खेत में एक ललना काम किये जा रही थी और प्रभातिया गाये जा रही थी। अभी सूर्योदय भी नहीं हुआ था। जोगीदास की नजर उस ललना पर पड़ी और वह सोचने लगाः “यह अकेली युवती खेत में काम कर रही है !”
★ उसने घोड़ी को उस पर मोड़ा और घोड़ी ललना के पास जा खड़ी हुई।
जोगीदासः “ऐ लड़की !”
युवतीः “क्या है ?”
जोगीदासः “तुझे डर नहीं लगता ? ऐसे सन्नाटे में तू अकेली काम कर रही है ? तुझे तेरे शीलभंग (चरित्रभंग) का डर नहीं लगता ?”
★ तब उस युवती ने हँसिया सँभालते हुए, आँखे दिखाते हुए कड़क स्वर में कहाः “डर क्यों लगे ? जब तक हमारा भैया जोगीदास जीवित है तब तक आसपास के पचास गाँव की बहू बेटियों को डर किस बात का ?”
★ उस युवती को पता नहीं था कि यही जोगीदास है। जोगीदास ने घोड़ी को मोड़ा और अपने गन्तव्य की ओर निकल पड़ा। किन्तु इस बार उसे आत्मसंतोष भी था किः “पचास गाँव की बहू बेटियों को तसल्ली है कि हमारा भैया जोगीदास है।”
★ ‘बहारवटियों’ में संयम होता है तो इस सदगुण के कारण इतने स्नेहपात्र हो सकते हैं तो फिर सज्जन का संयम उसे उसके लक्षय परमेश्वर से भी मिलाने में सहायक हो जाये, इसमें क्या आश्चर्य ?
★ युवती के साथ भोग-विलास करने की अपेक्षा दृढ़ संयम पचासों गाँवों की बहू-बेटियों का धर्मभ्राता बना देता है यह ब्रह्मचर्य का पालन। सिंह जैसा बल भर देता है ‘बहारवटिया’ में ब्रह्मचर्य का पालन। कुप्रसिद्ध को सुप्रसिद्ध कर देता है ब्रह्मचर्य का पालन। सदाचार, सदविचार और यौवन की सुरक्षा करता है ब्रह्मचर्य का पालन।
★ हे युवानो ! तुम भी संयम की शक्ति को पहचानो। अपने जीवन को विषय-विकारों से बचाकर ओजस्वी-तेजस्वी एवं दिव्य बनाने के लिए प्रयत्नशील हो जाओ।
श्रोत – यौवन सुरक्षा-2 (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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